प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय: प्रमुख रचनाएँ, भाषा एवं शैली और साहित्य में स्थान बताइए।

Ashok Nayak
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प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय: प्रमुख रचनाएँ, भाषा एवं शैली और साहित्य में स्थान बताइए।


प्रेमचंद जी का साहित्यिक परिचय

( 1 ) प्रमुख रचनाएँ ( कोई -2 ) 

1. गोदान 

2. कर्मभूमि


( 2 ) भाषा : प्रेमचन्द की भाषा दो प्रकार की है - एक तो वह जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है ; दूसरी वह जिसमें उर्दू , संस्कृत और हिन्दी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है । यही भाषा प्रेमचन्द जी की प्रतिनिधि भाषा है । इसी भाषा का प्रयोग उन्होंने श्रेष्ठ रचनाओं में किया है । यह भाषा अधिक सजीव , व्यावहारिक और प्रवाहमयी है । प्रेमचन्द ने अपनी रचनाओं में हिन्दी की खड़ी बोली के सरल , सहज , बोधगम्य एवं व्यावहारिक रूप को अपनाया है । उन्होंने भाषा में आकर्षण तथा सहज प्रवाह लाने के लिए अवसरानुकूल उर्दू शब्दों का प्रयोग किया है । उनकी भाषा में मुहावरे तथा सूक्तियाँ बहुतायत में मिलती हैं । 


शैली :

प्रेमचन्द ने अपने साहित्य की रचना जनसाधारण के लिए की । वे विषय एवं भावों के अनुकूल शैली को परिवर्तित कर लेते थे । प्रेमचन्द ने अपने साहित्य में निम्नलिखित शैलियों का प्रयोग किया


( 1 ) वर्णनात्मक शैली - किसी पात्र , वस्तु , घटना आदि का वर्णन करते समय इस शैली का प्रयोग किया गया है । नाटकीय सजीवता इस शैली की प्रमुख विशेषता है । 

( 2 ) विवेचनात्मक शैली - प्रेमचन्द ने अपने गम्भीर विचारों को व्यक्त करने के लिए विवेचनात्मक शैली को अपनाया . है । इस शैली के अन्तर्गत प्रयुक्त वाक्य अपेक्षाकृत बड़े हैं तथा संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया गया है ; जैसे " लोग अपने - अपने कमरे में बैठे रोजेदार मुसलमानों की तरह महीने के दिन गिना करते थे , लेकिन मनुष्यों का वह छुपा हुआ जौहरी आड़ में बैठा हुआ देख रहा था कि इन बगुलों में हंस कहाँ छुपा हुआ है । " 

( 3 ) मनोवैज्ञानिक शैली - प्रेमचन्द ने मन के भावों तथा पात्रों के मन में उठे अन्तर्द्वन्द्वों को चित्रित करने के लिए इस शैली को अपनाया है । 

( 4 ) हास्य व्यंग्यात्मक शैली - सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय इस शैली ने प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति की है । 

( 5 ) भावात्मक शैली - काव्यात्मकता और आलंकारिकता पर आधारित प्रेमचन्द की इस शैली के अन्तर्गत मानव - जीवन से सम्बन्धित विभिन्न भावनाओं की अभिव्यक्ति हुई है । उनकी कहानियों में दीन - दुःखियों , महिलाओं , ग्रामीणों और समाज के अन्य तिरस्कृत तथा उपेक्षित लोगों के प्रति जन - जागरण तथा जन - चेतना लाने का भाव दिखाई देता है ।

( 3 ) साहित्य में स्थान :

हिन्दी साहित्य में प्रेमचन्द उपन्यास सम्राट कहलाते हैं । वे युग प्रवर्तक कहानीकार होने के साथ - साथ नए कहानीकारों में भी अपना विशिष्ट स्थान रखते हैं । आधुनिक साहित्य जगत में कहानी - कला को अक्षुण्ण बनाये रखने वाले कथाकारों में वे अग्रणी हैं । उपन्यासों की भाँति उनकी कहानियों में भी आदर्शोन्मुख - यथार्थवादी प्रवृत्ति पाई जाती है । एक श्रेष्ठ कथाकार और उपन्यास - सम्राट के रूप में हिन्दी साहित्य में इनका नाम सदा अमर रहेगा ।


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