बिहारीलाल का जीवन परिचय, रचनाये, भाव पक्ष, कला पक्ष, साहित्य में स्थान
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नमस्कार दोस्तों आज हम आपको इस लेख में कवि बिहारी लाल के बारे में बताने जा रहे हैं। आपकी बोर्ड परीक्षा में कवियों की जीवनी बार-बार पूछी जाती है, इस लेख में बिहारी लाल का जीवन परिचय बहुत ही स्पष्ट और सरल शब्दों में बताया जा रहा है, जिसे याद रखना आपके लिए बहुत आसान होगा और इस लेख में हम परिचय जीवन प्रस्तुत करेंगे ताकि आपको परीक्षा में पूरे अंक मिल जाएँ। जीवन परिचय के लिए निम्न प्रकार का प्रश्न एमपी बोर्ड परीक्षा में आता है।
प्रश्न- बिहारी लाल का जीवन परिचय निम्नलिखित बिंदुओं के अधार पर कीजिए-
1.जीवन परिचय 2. दो रचनाये 3. भाव पक्ष - कला पक्ष
अथवा
बिहारी लाल का साहित्यिक परिचय निम्नलिखित बिंदुओं के अधार पर कीजिए-
1.दो रचनाये 2. भाव पक्ष - कला पक्ष 3. साहित्य में स्थान
उत्तर-
बिहारी लाल का जीवन परिचय (साहित्यिक परिचय)
जीवन परिचय - हिंदी साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि बिहारी लाल का जन्म सन 1595 ई. ( संवत 1652 ) में मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के वसुआ गोविन्दपुर नामक ग्राम में हुआ था ।बिहारी लाल के पिता का नाम केशव राय था उनके पिता केशव राय बिहारीलाल को 8 वर्ष की आयु में ओरछा ले गए जहां उनकी भेंट महान कवि आचार्य केशवदास से हुई जिनसे उन्होंने काव्य शिक्षा ग्रहण की। इनका विवाह मथुरा में एक ब्राह्मण कन्या के साथ हुआ विवाह के पश्चात यह में तकरार में रहने लगे और कुछ समय बाद मथुरा से आगरा गए। आगरा से जयपुर के राजा जयसिंह के दरबार मे पहुंचे । वहाँ राजा जयसिंह अपनी रानी के प्रेम में डूबे रहते थे राजपाट पर बिलकुल ध्यान नही देते थे किसी मे उन्हें समझाने का साहस न था तब बिहारी जी ने अपने एक दोहे के माध्यम से उन्हें समझाया ।
नहिं पराग ,नहिं मधुर मधु ,नहीं विकास यही काल।
अली कली ही सौं बंध्यो ,आगे कौन हवाल।।
राजा जयसिंह इससे बहुत प्रभावित हुए और राजपाट संभालने लगे और ओर बिहारी लाल को अपने राजकवि के रूप में नियुक्त किया । यही पर बिहारीलाल ने अपनी अनुपम कृति बिहारी सतसई की रचना की। सन 1663 ई.( संवत 1720 ) में वृन्दावन में बिहारी लाल का निधन हो गया।
बिहारीलाल की रचनायें- बिहारी लाल की एक मात्र रचना "बिहारी सतसई" है ( बिहारी ने अपनी सम्पूर्ण प्रतिभा मात्र एक पुस्तक बिहारी सतसई के निर्माण में लगा दी। इसमें कुल 713 दोहे है, इसके तीन भाग है-नीति विषयक , भक्ति और अध्यात्म विषयक तथा श्रृंगार परक )।
भाव पक्ष - कला पक्ष - बिहारी लाल की काव्य में श्रृंगार रस की प्रधानता है, बिहारी लाल ने श्रंगार रस के संयोग और वियोग दोनों रूपों का बहुत ही अच्छे से प्रयोग किया है। बिहारी के भक्ति परक दोहों में शांत रस की प्रधानता मिलती है, सगुण ब्रह्म के कृष्ण के रूप में उन्हें बहुत अधिक आकर्षित किया है बिहारी लाल ने कृष्ण के सौंदर्य का मनमोहक चित्रण अपने काव्यों में किया है, इनके कई दोहे नीति और उपदेश लिए हुए हैं, आपके दोहों का विषय प्रकृति चित्रण भी रहा है आपने श्रंगार चित्रण में प्रकृति को उद्दीपन रूप में लिया है। बिहारी लाल की भाषा साहित्यिक ब्रजभाषा है। बिहारी जी ने अपने काव्य में रूपक ,उत्प्रेक्षा, श्लेष ,उपमा, यमक अतिशयोक्ति तथा अन्योक्ति आदि अलंकारों का बड़े स्वाभाविक रूप में अपने काव्य में प्रयुक्त किया है। बिहारी जी ने अपने काव्य में दोहा छंद को ही अपनाया है।
साहित्य में स्थान- बिहारी लाल रीतिकाल के कवि हैं। रचनाओं में कवित्त शक्ति और काव्य रीतियों का जैसा सुंदर समन्वय बिहारी ने किया है किसी और रीतिकालीन कवि ने की रचनाओं में नहीं मिलता है। बिहारी लाल की तुलना कविवर देव से की जाती है। बिहारी लालजी हिंदी साहित्य में सदैव ही स्मरणीय रहेंगे ।
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