बेरोजगारी की परिभाषा: हर देश में अलग अलग होती है जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है. सामान्य तौर पर बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है।
रोजगार की समस्या विकसित और विकासशील दोनों देशों में पाई जाती है। प्रसिद्द अर्थशास्त्री कीन्स बेरोजगारी को किसी भी समस्या से बड़ी समस्या मानता था। इसी कारण वह कहते था कि यदि किसी देश के पास बेरोजगारों से करवाने के लिए कोई भी काम ना हो तो उनसे सिर्फ गड्डे खुदवाकर उन्हें भरवाना चाहिए ऐसा करवाने से बेरोजगार लोग भले ही कोई उत्पादक कार्य न करें लेकिन वे अनुत्पादक कार्यों में संलिप्त नही होंगे और देश में वस्तुओं और सेवाओं की मांग बनी रहेगी जिससे देश में औद्योगिक विकास होता रहेगा।
बेरोजगार किसे कहते हैं (What is unemployed)
‘बेरोजगार उस व्यक्ति को कहा जाता है जो कि बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम तो करना चाहता है लेकिन उसे काम नही मिल पा रहा है।’
बेरोजगारी की परिभाषा हर देश में अलग अलग होती है. जैसे अमेरिका में यदि किसी व्यक्ति को उसकी क्वालिफिकेशन के हिसाब से नौकरी नही मिलती है तो उसे बेरोजगार माना जाता है।
ऐच्छिक बेरोजगारी क्या है? - what is voluntary unemployment
ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार नही है अर्थात वह ज्यादा मजदूरी की मांग कर रहा है जो कि उसको मिल नही रही है इस कारण वह बेरोजगार है, ऐसी बेरोजगारी को ऐच्छिक बेरोजगारी कहते हैं।
स्वैच्छिक बेरोजगारी एक ऐसी स्थिति को संदर्भित करती है जब वे व्यक्ति जो काम करने में सक्षम हैं, लेकिन काम करने के लिए तैयार नहीं हैं, हालांकि उनके लिए उपयुक्त काम उपलब्ध है। दूसरे शब्दों में, वे स्वेच्छा से बेरोजगार हैं, अर्थात, अपनी मर्जी के बेरोजगार।
अनैच्छिक बेरोजगारी क्या है? ( Open or Involuntary Unemployment )
खुली या अनैच्छिक बेरोजगारी ( Open or Involuntary Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार है लेकिन फिर भी उसे काम नही मिल रहा है तो उसे अनैच्छिक बेरोजगार कहा जायेगा. और ऐसी बेरोजगारी को अनैच्छिक बेरोजगारी कहते हैं। एक अनैच्छिक बेरोजगारी का मतलब एक ऐसी स्थिति है जिसमें सभी सक्षम व्यक्ति जो प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने के इच्छुक हैं उन्हें काम नहीं मिलता है।
ऐसे लोग काम करने के लिए शारीरिक रूप से और मानसिक रूप से फिट हैं मजदूरी दिए जाने की दर पर काम करने के इच्छुक हैं लेकिन नौकरी से बाहर हैं। इस प्रकार, उनकी बेरोजगारी अनैच्छिक है (अर्थात, स्वैच्छिक नहीं) क्योंकि वे अपनी इच्छाओं के खिलाफ बेरोजगार हैं।
इस प्रकार की बेरोजगारी पूर्ण रोजगार सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त मांग की कमी के कारण है। यह श्रम की अधिक आपूर्ति को इंगित करता है जिसे कठोर मजदूरी दर समाप्त करने में विफल रही है। संक्षेप में, यदि अनैच्छिक बेरोजगारी मौजूद है, तो अर्थव्यवस्था को पूर्ण रोजगार संतुलन के स्तर पर नहीं कहा जा सकता है। यह अर्थव्यवस्था में कम रोजगार के संतुलन का संकेत देगा।
ऐच्छिक बेरोजगारी और अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर ( Difference between voluntary unemployment and involuntary unemployment )
ऐच्छिक बेरोजगारी (Voluntary unemployment) | अनैच्छिक बेरोजगारी (Involuntary unemployment) |
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1.ऐच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार नही है। | 1. अनैच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति बाजार में प्रचलित मजदूरी दर पर काम करने को तैयार होता है। |
2.ऐच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति ज्यादा मजदूरी दर की मांग करता है । | 2.अनैच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति ज्यादा मजदूरी दर की मांग नही करता है । |
3. ऐच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति अपनी इच्छाओं के अनुसार बेरोजगार होता हैं। | 3. अनैच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति अपनी इच्छाओं के विरुद्ध बेरोजगार होता हैं। |
4. ऐच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति के लिए उपयुक्त काम उपलब्ध होता है। | 4. अनैच्छिक बेरोजगारी में व्यक्ति के लिए उपयुक्त काम उपलब्ध नही होता है। |
ऐच्छिक बेरोजगारी और अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर का महत्व क्या है ?
भेद का महत्व यह है कि एक अर्थव्यवस्था में बेरोजगारी का परिमाण, अनैच्छिक बेरोजगारी के परिमाण से परिलक्षित होता है क्योंकि पूर्व में केवल अनैच्छिक बेरोजगारी शामिल है।
कीन्स के अनुसार, अनैच्छिक बेरोजगारी प्रभावी मांग की अपर्याप्तता के कारण उत्पन्न होती है जिसे सरकार के हस्तक्षेप के माध्यम से कुल मांग को बढ़ाकर हल किया जा सकता है।
विकसित देशों में किन प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है
1. चक्रीय बेरोजगारी (Cyclical Unemployment): इस प्रकार की बेरोजगारी अर्थव्यवस्था में चक्रीय उतार-चढ़ाव के कारण पैदा होती है. जब अर्थव्यवस्था में समृद्धि का दौर होता है तो उत्पादन बढ़ता है रोजगार के नए अवसर पैदा होते हैं और जब अर्थव्यवस्था में मंदी का दौर आता है तो उत्पादन कम होता है और कम लोगों की जरुरत होती है जिसके कारण बेरोजगारी बढती है।
2. प्रतिरोधात्मक या घर्षण जनित बेरोजगारी (Frictional Unemployment): ऐसा व्यक्ति जो एक रोजगार को छोड़कर किसी दूसरे रोजगार में जाता है, तो दोनों रोजगारों के बीच की अवधि में वह बेरोजगार हो सकता है, या ऐसा हो सकता है कि नयी टेक्नोलॉजी के प्रयोग के कारण एक व्यक्ति एक रोजगार से निकलकर या निकाल दिए जाने के कारण रोजगार की तलाश कर रहा हो , तो पुरानी नौकरी छोड़ने और नया रोजगार पाने की अवधि की बेरोजगारी को घर्षणजनित बेरोजगारी कहते हैं।
विकासशील देशों में कितने प्रकार की बेरोजगारी होती है
विकासशील देशों में निम्न प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है।
1. मौसमी बेरोजगारी (Seasonal Unemployment): इस प्रकार की बेरोजगारी कृषि क्षेत्र में पाई जाती है. कृषि में लगे लोगों को कृषि की जुताई, बोवाई, कटाई आदि कार्यों के समय तो रोजगार मिलता है लेकिन जैसे ही कृषि कार्य ख़त्म हो जाता है तो कृषि में लगे लोग बेरोजगार हो जाते हैं।
2. प्रच्छन्न बेरोजगारी (Disguised Unemployment): प्रच्छन्न बेरोजगारी उस बेरोजगारी को कहते हैं जिसमे कुछ लोगों की उत्पादकता शून्य होती है अर्थात यदि इन लोगों को उस काम में से हटा भी लिया जाये तो भी उत्पादन में कोई अंतर नही आएगा. जैसे यदि किसी फैक्ट्री में 100 जूतों का निर्माण 10 लोग कर रहे हैं और यदि इसमें से 3 लोग बाहर निकाल दिए जाएँ तो भी 100 जूतों का निर्माण हो जाये तो इन हटाये गए 3 लोगों को प्रच्छन्न रूप से बेरोजगार कहा जायेगा. भारत की कृषि में इस प्रकार की बेरोजगारी बहुत बड़ी समस्या है।
3. संरचनात्मक बेरोजगारी (Structural Unemployment): संरचनात्मक बेरोजगारी तब प्रकट होती है जब बाजार में दीर्घकालिक स्थितियों में बदलाव आता है।
उदाहरण के लिए: भारत में स्कूटर का उत्पादन बंद हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस नए विकास के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे मिस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की मांग बढ़ गयी है। इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन के कारण पैदा होती है।
उदाहरण के लिए: भारत में स्कूटर का उत्पादन बंद हो गया है और कार का उत्पादन बढ़ रहा है. इस नए विकास के कारण स्कूटर के उत्पादन में लगे मिस्त्री बेरोजगार हो गए और कार बनाने वालों की मांग बढ़ गयी है। इस प्रकार की बेरोजगारी देश की आर्थिक संरचना में परिवर्तन के कारण पैदा होती है।
बेरोजगारी का तकनीकी अर्थ – technical meaning of unemployment
बेरोजगारी को समझने के लिए हमें पहले श्रम शक्ति और कार्यबल के बारे में सीखना होगा -किसी भी देश के आयु पिरामिड में तीन ऐसे वर्ग होते हैं, 0-15 वर्ष, 15-65 और 65+, इस वर्ग को उस देश की श्रम बल कहा जाता है।
श्रम बल = कार्य करने के इच्छुक + कार्य करने में सक्षम।
इस श्रम बल में जितने लोगों को काम मिल गया है वह कार्य बल है।
किसी देश का वह श्रम बल जो कार्य बल में बदल नहीं सका, बेरोजगार कहलाता है।
बेरोजगारी = श्रमबल – कार्यबल
पूर्ण रोजगार = श्रमबल = कार्यबल
जब किसी देश का पूर्ण श्रम बल कार्य बल में बदला जाये तो वह पूर्ण रोजगार कहलाता है।
श्रम बल – श्रम बल के अंतर्गत हमारे देश में 15 वर्ष से 65 वर्ष की आयु के लोग आते है। इसमें 15-65 वर्ष की आयु के लोग जो या तो रोजगार में लगे हुए है या फिर रोजगार की तलाश में है।
रोजगार + बेरोजगार
कार्य बल – श्रम बल में से वे लोग जिनको रोजगार अथवा कार्य मिल जाता है राष्ट्र का कार्य बल कहलाते हैं।
बेरोजगारी निकालने का सूत्र – formula for unemployment
बेरोजगारी की संख्या = श्रम शक्ति – रोजगार लोगों की संख्याबेरोजगारी की दर निकालने के लिए निम्न सूत्र लगाया जाता है –
बेरोजगारी की दर = बेरोजगारों की संख्या/श्रम शक्ति X 100
तो इस प्रकार आपने पढ़ा कि बेरोजगारी क्या होती है ? बेरोजगारी कितने प्रकार की होती है और भारत में किस प्रकार की बेरोजगारी पाई जाती है तथा ऎच्छिक बेरोजगारी और अनैच्छिक बेरोजगारी में अंतर क्या है? इसके अलावा कुछ ऐसे बेरोजगार भी होते हैं जिनको मजदूरी भी ठीक मिल सकती है लेकिन फिर भी ये लोग काम नही करना चाहते हैं जैसे: भिखारी, साधू और बिगड़े बेटे इत्यादि।
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