भारतीय संविधान में भारत के राष्ट्रपति - President of India in Indian Constitution
अनुच्छेद 52 के अनुसार – भारत का एक राष्ट्रपति होगा।
अनुच्छेद 53 – संघ की कार्यपालिका शक्ति: संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका उपयोग स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अथवा अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी के माध्यम से करेगा।
राष्ट्रपति भारत में रक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है।
चयनित सांसद , राज्यों के चयनित विधायक ,
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (70वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया और 1.06.1995 से प्रभावी) और संघशासित क्षेत्र पुड़ुचेरी के चयनित विधायक।
संसद और विधानसभाओं तथा विधान परिषदों के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव का आयोजन एकल संक्रमणीय पद्धति द्वारा समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार होता है और यह मतदान गुप्त बैलेट द्वारा किया जाता है।
राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित सभी संदेहों और विवादों की जांच और निपटारे का निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है जिसका निर्णय अंतिम होता है।
चुनाव प्रक्रिया पर निगरानी एवं संचालन भारतीय चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है।
अभी तक केवल एक राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी र्निविरोध निर्वाचित हुई हैं।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्हें दो बार राष्ट्रपति नियुक्त किया गया है।
दो राष्ट्रपति – डॉ. जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद की उनके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हुई है।
भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है।
भारत के राष्ट्रपति की योग्यता और पात्रता यह होती है कि -
राष्ट्रपति संसद अथवा किसी विधानमंडल के सदन का सदस्य नहीं होता है।
‘संविधान के उल्लंघन करने पर’ महाभियोग का प्रावधान है। हांलाकि, संविधान में कहीं भी इस शब्द का स्पष्टीकरण नहीं किया गया है।
यह आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा लगाया जा सकता है। हांलाकि, इस प्रकार के किसी प्रस्ताव को लाने से पूर्व राष्ट्रपति को 14 दिन पहले इसकी सूचना दी जाती है।
साथ ही, नोटिस पर उस सदन जिसमें यह प्रस्ताव लाया गया होता है, के कुल सदस्यों के कम से कम एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर अवश्य होते है।
उस सदन में विधेयक के स्वीकृत होने के बाद, महाभियोग विधेयक को उस सदन के कुल सदस्यों के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
इसके बाद विधेयक दूसरे सदन में जाता है जो आरोपो की जांच करेगा तथा राष्ट्रपति के पास ऐसी जांच में उपस्थित होने और प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होता है।
यदि दूसरा सदन आरोप बनाये रखता है और राष्ट्रपति को उल्लंघन का दोषी पाता है, तथा उस संकल्प को उस सदन के कुल सदस्यों के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित करता है, तो राष्ट्रपति का पद संकल्प पारित होने की दिनांक से रिक्त माना जाता है।
अत: महाभियोग एक अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया है ।
निलंबित वीटो – विधेयक को पुर्नविचार के लिये भेजना।
पॉकेट वीटो – राष्ट्रपति को भेजे गए किसी विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं करना।
अध्यादेश का संसद की पुर्नबैठक के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदन(Approval) प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
अत: अध्यादेश का अधिकतम जीवनकाल – 6 माह + 6 सप्ताह होता है।
अनुच्छेद 53 – संघ की कार्यपालिका शक्ति: संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका उपयोग स्वयं प्रत्यक्ष रूप से अथवा अपने किसी अधीनस्थ अधिकारी के माध्यम से करेगा।
राष्ट्रपति भारत में रक्षा बलों का सर्वोच्च सेनापति होता है।
हालांकि राष्ट्रपति केवल एकमात्र संवैधानिक प्रधान या टिटुलर प्रमुख, डे जूर प्रमुख या नोमिनल कार्यपालिका प्रधान अथवा प्रतीकात्मक प्रधान होता है।
भारत के राष्ट्रपति का चुनाव - Election of the President of India
राष्ट्रपति का चुनाव निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा किया जाता है जिसमें निम्न शामिल होते हैं ।
चयनित सांसद , राज्यों के चयनित विधायक ,
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (70वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया और 1.06.1995 से प्रभावी) और संघशासित क्षेत्र पुड़ुचेरी के चयनित विधायक।
संसद और विधानसभाओं तथा विधान परिषदों के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं लेते हैं।
अनुच्छेद 55 में चुनाव के तौर-तरीके के बारे में बताया गया है और इसमें संविधान के अनुसार एकरूपता एवं राष्ट्रभर से प्रतिनिधित्व होना चाहिए।
अत: सांसद और विधायक अपने प्रतिनिधित्व के आधार पर मत देते हैं।
राष्ट्रपति के चुनाव का आयोजन एकल संक्रमणीय पद्धति द्वारा समानुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार होता है और यह मतदान गुप्त बैलेट द्वारा किया जाता है।
राष्ट्रपति के निर्वाचन से संबंधित सभी संदेहों और विवादों की जांच और निपटारे का निर्णय उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जाता है जिसका निर्णय अंतिम होता है।
चुनाव प्रक्रिया पर निगरानी एवं संचालन भारतीय चुनाव आयोग द्वारा किया जाता है।
अभी तक केवल एक राष्ट्रपति श्री नीलम संजीव रेड्डी र्निविरोध निर्वाचित हुई हैं।
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद एकमात्र राष्ट्रपति हैं जिन्हें दो बार राष्ट्रपति नियुक्त किया गया है।
दो राष्ट्रपति – डॉ. जाकिर हुसैन और फखरुद्दीन अली अहमद की उनके कार्यकाल के दौरान मृत्यु हुई है।
भारत के राष्ट्रपति का कार्यकाल (अनुच्छेद 56) और भारत के राष्ट्रपति का पुर्ननिर्वाचन (अनुच्छेद 57) - The term of the President of India and the re-election of the President of India
भारत के राष्ट्रपति की योग्यता (अनुच्छेद 58), शर्तें (अनुच्छेद 59) एवं शपथ (अनुच्छेद 60) - Qualification of president of india
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए,
- उसकी उम्र कम से कम 35 वर्ष पूरी होनी चाहिए,
- लोकसभा का सांसद चुने जाने की पात्रता होनी चाहिए
- किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।
राष्ट्रपति संसद अथवा किसी विधानमंडल के सदन का सदस्य नहीं होता है।
यदि ऐसा कोई सदस्य राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होता है, तो उसकी सीट को रिक्त मान लिया जाता है।
चुनाव हेतु किसी उम्मीदवार के नामांकन के लिए निर्वाचक मंडल के कम से कम 50 सदस्य प्रस्तावक और 50 सदस्य अनुमोदक अवश्य होने चाहिए।
भारत के राष्ट्रपति को शपथ भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है यदि वह अनुपस्थित है, तो उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध किसी वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है।
सामग्री, भत्ते और विशेषाधिकार आदि संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और उसके कार्यकाल में इनमें कोई कमी नहीं की जाती है।
राष्ट्रपति को अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी आपराधिक कार्यवाही से छूट मिलती है।
राष्ट्रपति को गिरफ्तार अथवा जेल में बंद नहीं किया जा सकता है।
हांलाकि, दो महीनों के नोटिस के बाद, उसके कार्यकाल में उसके खिलाफ उसके व्यक्तिगत कार्य के सबंध में दीवानी मामले ( civil cases ) चलाये जा सकते हैं।
संवैधानिक उपबंध (Constitutional provision) द्वारा राष्ट्रपति को उसके पद से औपचारिक रूप से हटाया जा सकता है।
चुनाव हेतु किसी उम्मीदवार के नामांकन के लिए निर्वाचक मंडल के कम से कम 50 सदस्य प्रस्तावक और 50 सदस्य अनुमोदक अवश्य होने चाहिए।
भारत के राष्ट्रपति को शपथ भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है यदि वह अनुपस्थित है, तो उच्चतम न्यायालय के उपलब्ध किसी वरिष्ठतम न्यायाधीश द्वारा दिलाई जाती है।
सामग्री, भत्ते और विशेषाधिकार आदि संसद द्वारा निर्धारित किए जाते हैं और उसके कार्यकाल में इनमें कोई कमी नहीं की जाती है।
राष्ट्रपति को अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी आपराधिक कार्यवाही से छूट मिलती है।
राष्ट्रपति को गिरफ्तार अथवा जेल में बंद नहीं किया जा सकता है।
हांलाकि, दो महीनों के नोटिस के बाद, उसके कार्यकाल में उसके खिलाफ उसके व्यक्तिगत कार्य के सबंध में दीवानी मामले ( civil cases ) चलाये जा सकते हैं।
भारत के राष्ट्रपति पर महाभियोग (अनुच्छेद 61) - Impeachment on the President of India
‘संविधान के उल्लंघन करने पर’ महाभियोग का प्रावधान है। हांलाकि, संविधान में कहीं भी इस शब्द का स्पष्टीकरण नहीं किया गया है।
यह आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा लगाया जा सकता है। हांलाकि, इस प्रकार के किसी प्रस्ताव को लाने से पूर्व राष्ट्रपति को 14 दिन पहले इसकी सूचना दी जाती है।
साथ ही, नोटिस पर उस सदन जिसमें यह प्रस्ताव लाया गया होता है, के कुल सदस्यों के कम से कम एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर अवश्य होते है।
उस सदन में विधेयक के स्वीकृत होने के बाद, महाभियोग विधेयक को उस सदन के कुल सदस्यों के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित किया जाना चाहिए।
इसके बाद विधेयक दूसरे सदन में जाता है जो आरोपो की जांच करेगा तथा राष्ट्रपति के पास ऐसी जांच में उपस्थित होने और प्रतिनिधित्व कराने का अधिकार होता है।
यदि दूसरा सदन आरोप बनाये रखता है और राष्ट्रपति को उल्लंघन का दोषी पाता है, तथा उस संकल्प को उस सदन के कुल सदस्यों के 2/3 से अधिक बहुमत से पारित करता है, तो राष्ट्रपति का पद संकल्प पारित होने की दिनांक से रिक्त माना जाता है।
अत: महाभियोग एक अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया है ।
संसद के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते हैं, परंतु वे महाभियोग प्रक्रिया में पूर्ण हिस्सा लेते हैं।
साथ ही, राज्य विधायकों की महाभियोग की प्रक्रिया में कोई भूमिका नहीं होती है।
भारत के राष्ट्रपति की शक्तियाँ - Powers of the President of India
भारत के राष्ट्रपति के पास कई शक्तियां होती हैं । आइये जानते हैं ।
कार्यपालिका शक्तियाँ
- राष्ट्रपति के नाम से सभी कार्यपालिका कार्य किए जाते हैं। वह भारत सरकार का औपचारिक, टिटुलर प्रमुख या डे जूर प्रमुख होता है।
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है।
- भारत के महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य आयुक्तों, संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों, राज्यों के राज्यपालों, वित्त आयोग के अध्यक्ष और सदस्यों आदि की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है।
- राष्ट्रपति अंतर्राज्यीय परिषद की नियुक्ति करता है और वह किसी भी क्षेत्र को अनुसूचित क्षेत्र और किसी जाति को अनुसूचित जाति घोषित करने का निर्णय कर सकता है।
विधायी शक्तियाँ
- राष्ट्रपति के पास संसद सत्र को आहूत( बुलाने) करने, सत्रावसान ( Pruning ) करने और लोकसभा भंग करने की शक्ति होती हैं।
- संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को आहूत ( बुलाने) करने की शक्ति होती है। (इस बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है ।)
- भारत का राष्ट्रपति कला, साहित्य, विज्ञान और समाज सेवाओं से ख्याति प्राप्त लोगों से 12 सदस्यों को राज्य सभा के लिए और एंग्लो भारतीय समुदाय से 2 लोगों को लोकसभा के लिए नामांकित कर सकता है।
- विशेष प्रकार के विधेयकों जैसे धन विधेयक, भारत की संचित निधि से व्यय करने की मांग करने वाले विधेयक आदि को प्रस्तुत करने के मामले में राष्ट्रपति की पूर्व अनुमति आवश्यक है।
- वह विधेयक पर अपनी राय को रोक सकता है, विधेयक को विधायिका में लौटा सकता है, या फिर पॉकेट में रख सकता है।
- वह संसद के सत्र में न होने पर अध्यादेश पारित कर सकता है।
- वह वित्त आयोग, कैग और लोक सेवा आयोग आदि की रिपोर्ट को संसद के समक्ष रखता है।
- बिना राष्ट्रपति की अनुमति के किसी अनुदान का आवंटन नहीं किया जा सकता है। साथ ही, वह केन्द्र और राज्यों के मध्य आय के बंटवारे के लिए प्रत्येक पांच वर्ष में एक वित्त आयोग का गठन करता है।
न्यायिक शक्तियाँ
- भारत का राष्ट्रपति मुख्य न्यायाधीश तथा उच्चतम एवं उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति करता है।
- राष्ट्रपति , विधि के किसी भी प्रश्न पर उच्चतम न्यायालय से सलाह ले सकता है।
- वह क्षमादान इत्यादि दे सकता है।
आपातकालीन शक्तियाँ
- राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352)
- राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356)
- वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
वीटो शक्ति
भारत के राष्ट्रपति के पास निम्न तीन वीटो शक्तियाँ होती हैं:
पूर्ण वीटो – विधेयक पर अपनी अनुमति को रोके रखना। इसके बाद विधेयक समाप्त हो जाता है और एक अधिनियम नहीं बन पाता है। उदाहरण – 1954 में, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने पेप्सू विनियोग विधेयक पर अपनी मंजूरी रोके रखी थी। तथा, 1991 में, श्री आर. वेंकटरमन ने सांसदों के वेतन, भत्ते विधेयक पर अपनी मंजूरी रोक दी थी।
निलंबित वीटो – विधेयक को पुर्नविचार के लिये भेजना।
2006 में, राष्ट्रपति डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने लाभ के पद विधेयक पर निलंबित वीटो का प्रयोग किया था।
हांलाकि, राष्ट्रपति विधेयक पर विधायिका के पुर्नविचार के लिये केवल एक बार ही विधेयक लौटा सकता है।
पॉकेट वीटो – राष्ट्रपति को भेजे गए किसी विधेयक पर कोई कार्रवाई नहीं करना।
संविधान में ऐसी कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है जिसके अंदर राष्ट्रपति को विधेयक पर अपनी अनुमति अथवा हस्ताक्षर करना अनिवार्य है।
अत: उसके पास अमेरिकी राष्ट्रपति की तुलना में ‘बिग्गर पॉकेट’ है।
1986 में, राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह ने भारतीय डाकघर संशोधन विधेयक पर पॉकेट वीटो लगाया था।
ध्यान दें: राष्ट्रपति के पास संविधान संशोधन विधेयक के संबंध में कोई वीटो शक्ति नहीं है। वह ऐसे विधेयकों को अनुमोदित(Approved) करने के लिये बाध्य है।
अध्यादेश बनाने की शक्ति (अनुच्छेद 123) - Ordinance making power
संसद के दोनों सदनों अथवा किसी एक सदन के सत्र में नहीं होने पर राष्ट्रपति द्वारा अध्यादेश जारी किया जा सकता है।अध्यादेश का संसद की पुर्नबैठक के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदन(Approval) प्राप्त करना अनिवार्य होता है।
अत: अध्यादेश का अधिकतम जीवनकाल – 6 माह + 6 सप्ताह होता है।
राष्ट्रपति केवल प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्री परिषद की सलाह पर अध्यादेश जारी कर सकता है।
राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति (अनुच्छेद 72)- Presidential pardon power
राष्ट्रपति के पास संघीय कानून, अथवा किसी कोर्ट मार्शल या मृत्यु दंड के मामले में दण्डित किसी व्यक्ति के दण्ड को माफ करने, रोक लगाने, बदलने, लघुकरण करने और विराम देने की शक्ति होती है।
यह एक कार्यपालिका शक्ति है और राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 के अंतर्गत ऐसी शक्तियाँ हैं,
यह एक कार्यपालिका शक्ति है और राज्यपाल के पास अनुच्छेद 161 के अंतर्गत ऐसी शक्तियाँ हैं,
हांलाकि राज्यपाल मृत्युदंड और कोर्ट मार्शल के मामलों में दखल नहीं दे सकता है।
राष्ट्रपति इस शक्ति का उपयोग केन्द्रीय कैबिनेट के परामर्श पर करता है।
राष्ट्रपति इस शक्ति का उपयोग केन्द्रीय कैबिनेट के परामर्श पर करता है।
राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियाँ - Discretionary powers of the President
प्रधानमंत्री की नियुक्ति: जब लोकसभा में किसी भी पार्टी को कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो अथवा प्रधानमंत्री के कार्यकाल में मृत्यु होने पर तथा कोई उचित उत्तराधिकरी न होने पर।
लोकसभा का विश्वास मत हासिल न कर पाने पर केन्द्रीय कैबिनेट को निलंबित करने की शक्ति होती है।
मंत्रीपरिषद द्वारा लोकसभा में बहुमत खोने पर लोकसभा भंग करने की शक्ति होती है।
विधेयकों के संबंध में निलंबन वीटो शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
लोकसभा का विश्वास मत हासिल न कर पाने पर केन्द्रीय कैबिनेट को निलंबित करने की शक्ति होती है।
मंत्रीपरिषद द्वारा लोकसभा में बहुमत खोने पर लोकसभा भंग करने की शक्ति होती है।
विधेयकों के संबंध में निलंबन वीटो शक्ति का प्रयोग कर सकता है।
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