कोरोना वायरस मानव जीवन और इतिहास पर एक गहरा आघात दे गया है । देश के प्रथम श्रेणी के वैज्ञानिक एवं डॉक्टर इसके सामने बेबाक से लग रहे हैं । जब-जब सृष्टि पर किसी चीज की अति हुई किसी न किसी घोर संकट का प्रादुर्भाव अवश्य हुआ है । काल के प्रवाह में आज तक जब जब महामारी या कोई विकट परिस्थितियों का जन्म हुआ उसके पीछे मानव का बेपनाह स्वार्थ छिपा होता है । ऐसे में बात करें तो प्रकृति पर पिछले कुछ वर्षों से व्यापक स्तर पर प्रहार हुआ है । मानव के पास जो भी संसाधन आज मौजूद हैं वह प्रकृति की ही देन है । परन्तु आज मानव प्रकृति पर तो अघात कर ही रहा है साथ मे जैव विविधता का अस्तित्व को मिटाने पर तुला हुआ है । हम प्रकृति के संरक्षण की बात तो करते हैं परन्तु कहाँ तक ? दिन प्रतिदिन जीवों की प्रजातियों के लुप्त होना और कई प्राकृतिक धरोहरों को हमने स्वार्थ वश खो दिया है ।
पर्यावरण से छेड़छाड़ का प्रभाव
पृथ्वी को अंधकारमय एवं विनाश की ओर अब कदम चल पड़े हैं ऐसे में प्रकृति के रौद्र रूप का सामने आना कोई नयी बात नहीं है ।प्रकृति से निरन्तर बड़े स्तर और छेड़छाड़ करने का नतीजे पिछले कुछ वर्षों से लगातार सामने आ रहे हैं आज पर्यावरण का निरन्तर कटाव, जलवायु परिवर्तन , हिमखंड का पिघलना ,शुद्ध वायु न मिलना ये संकट सामने आने लगे हैं । कोरोना शायद एक सीख जरूर दे गया है कि अब भी न सम्भले तो भविष्य में मानव जाति का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है ।
आर्थिक संकट
कोरोना वायरस जहां एक ओर समग्र विश्व के लिए एक चिनौति बन चुका है वहीं इससे देश की अर्थव्यवस्था और कारोबार से देश की नींव डगमगा गयी है । लॉकडाउन के चलते देश के सभी बड़े उद्योग व व्यापक स्तर के तमाम कारोबार ठप्प पड़े हुए हैं । सभी प्रकार के आयात निर्यात इससे प्रभावित हो गए हैं । इससे कृषि क्षेत्र पर भी बहुत बुरा असर पड़ा है । वहीं खड़ी फसल कटाई के बाद अब लॉकडाउन के चलते खराब होने के कगार पर है । जिससे किसानों को भारी नुकसान हो सकता है । इतना ही नहीं नकदी फसल का ज्यादा भंडारण भी चिंता का विषय बना हुआ है ।
कोरोना से लघु उद्योगों से बड़े उद्योगों तक , शेयर बाजार, पर्यटन, मेडिसिन कंपनियों सहित सभी प्रभावित हुए हैं । ऐसे में केंद्र सरकार और राज्य सरकार के लिए आने वाले कुछ सप्ताह बहुत ही चिनौतियों भरने वाले हैं । जब तक निर्यात व आयात सही तरीके से पटरी पर नहीं आ जाते तब तक सरकार से लेकर उद्योगपतियों तक सभी प्रभावित रहेंगे ।
शिक्षा क्षेत्र में प्रभाव
संयुक्त राष्ट्र ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि शिक्षा प्रणाली पर COVID-19 के प्रभाव के कारण शैक्षिक वित्तपोषण का अंतर एक-तिहाई तक बढ़ सकता है।
स्कूलों और शिक्षण संस्थानों के बंद होने से विश्व की तकरीबन 94% छात्र आबादी प्रभावित हुई है और निम्न तथा निम्न-मध्यम आय वाले देशों में यह संख्या 99% है।
इसके अलावा COVID-19 महामारी ने शिक्षा प्रणाली में मौजूद असमानता को और अधिक बढ़ा दिया है।
इस महामारी के कारण निम्न आय वाले देशों की कमज़ोर एवं संवेदनशील आबादी इस वायरस से सबसे अधिक प्रभावित हुई है। वर्ष 2020 की दूसरी तिमाही के दौरान निम्न आय वाले देशों में प्राथमिक स्तर पर तकरीबन 86% बच्चे स्कूल से बाहर हो गए हैं, जबकि उच्च आय वाले देशों में यह आँकड़ा केवल 20% है।
उपसंहार-
कोविड19 का भारतीय समाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ा है, जिसमें 80 प्रतिशत आबादी आर्थिक तनाव का सामना कर रही है। शोध के निष्कर्षों के अनुसार, इस अवधि के दौरान सामाजिक अलगाव के कारण लगभग 50 प्रतिशत लोग तनाव और चिंता से पीड़ित हैं।
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