अपनी आस पास में चारों तरफ नज़र दौड़ाइए । क्या कोई ऐसा व्यक्ति है जो बिल्कुल आपकी तरह दिखता हो ? इस आर्टिकल में आप पढ़ेंगें कि लोग एक - दूसरे से कई मामलों में भिन्न होते हैं । वे न केवल अलग दिखते हैं , बल्कि वे अलग - अलग क्षेत्रों से भी आते हैं । उनके धर्म , रहन - सहन , खान - पान , भाषा , त्योहार आदि भी भिन्न होते हैं । ये भिन्नताएँ हमारे जीवन को कई तरह से रोचक एवं समृद्ध बनाती हैं । इन भिन्नताओं के कारण ही भारत में विविधता है ।
विविधता या अनेकता हमारे जीवन को किस तरह बेहतर बनाती है ? भारत इतनी विविधताओं वाला देश कैसे बना ? क्या सभी तरह की भिन्नताएँ विविधता का ही भाग होती हैं ? चलिए , कुछ उत्तर पाने के लिए इस आर्टिकल को आगे पढ़ते हैं ।
जाति व्यवस्था असमानता का एक बहुत बड़ा उदाहरण है । इस व्यवस्था में समाज को अलग - अलग समूहों में बाँटा गया । इस बँटवारे का आधार था कि लोग किस - किस तरह का काम करते हैं । लोग जिस जाति में पैदा होते थे , उसे बदल नहीं सकते थे ।
उदाहरण के लिए अगर आप कुम्हार के घर में पैदा हो गईं तो आपकी जाति कुम्हार ही होती और आप बस वही बन सकती थीं । कोई व्यक्ति जाति से जुड़ा अपना पेशा भी नहीं बदल सकता था , इसलिए उस ज्ञान के अलावा किसी अन्य ज्ञान को हासिल करना ज़रूरी नहीं समझा जाता था । इससे गैर - बराबरी पैदा हुई ।
विविधता हमारे जीवन को कैसे समृद्ध करती है ?
आपके दोस्त और सहेलियाँ होंगी जो आपसे बहुत अलग होंगी । आपने शायद उनके घर में अलग तरह का खाना खाया होगा , उनके साथ अलग त्योहार मनाए होंगे , उनके कपड़े पहन कर देखे होंगे और थोड़ी बहुत उनकी भाषा भी सीखी होगी ।
भारत में विविधता भारत विविधताओं का देश है । हम विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं । विभिन्न प्रकार का खाना खाते हैं , अलग - अलग त्योहार मनाते हैं और भिन्न - भिन्न धर्मों का पालन करते हैं । लेकिन गहराई से सोचें तो वास्तव में हम एक ही तरह की चीजें करते हैं केवल हमारे करने के तरीके अलग हैं ।
हम विविधता को कैसे समझें ?
करीब दो - सवा दो सौ वर्ष पहले जब रेल , हवाईजहाज़ , बस और कार हमारे जीवन का हिस्सा नहीं थे , तब भी लोग संसार के एक भाग से दूसरे भाग की यात्रा करते थे । वे पानी के जहाज़ में , घोड़ों या ऊँट पर बैठकर जाते या फिर पैदल चलकर । अक्सर ये यात्राएँ खेती और बसने के लिए नई ज़मीन की तलाश में या फिर व्यापार के लिए की जाती थीं । चूँकि यात्रा में बहुत समय लगता था , इसलिए लोग नई जगह पर अक्सर काफी लंबे समय तक ठहर जाते थे । इसके अलावा सूखे और अकाल के कारण भी कई बार लोग अपना घर - बार छोड़ देते थे । उन्हें जब पेट भर खाना तक नहीं मिलता था तो वे नई जगह जा कर बस जाते थे । कुछ लोग काम की तलाश में और कुछ युद्ध के कारण घर छोड़ देते थे । लोग जब नई जगह में बसना शुरू करते थे तो उनके रहन - सहन में थोड़ा बदलाव आ जाता था । कुछ चीजें वे नई जगह की अपना लेते थे और कुछ चीज़ों में वे पुराने ढर्रे पर ही चलते रहते थे । इस तरह उनकी भाषा , भोजन , संगीत , धर्म आदि में नए और पुराने का मिश्रण होता रहता था । उनकी संस्कृति और नई जगह की संस्कृति में आदान - प्रदान होता और धीरे - धीरे एक मिश्रित यानी मिली - जुली संस्कृति उभरती ।
अगर अलग - अलग क्षेत्रों का इतिहास देखें तो हमें पता चलेगा कि किस तरह विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों ने वहाँ के जीवन और संस्कृति को आकार देने में योगदान किया है । इस तरह से कई क्षेत्र अपने विशिष्ट इतिहास के कारण विविधतासंपन्न हो जाते थे । ठीक इसी प्रकार लोग अलग - अलग तरह की भौगोलिक स्थितियों से किस प्रकार सामंजस्य बैठाते हैं , उससे भी विविधता उत्पन्न होती है ।
उदाहरण के लिए समुद्र के पास रहने में और पहाड़ी इलाकों में रहने में बड़ा फ़र्क है । न केवल वहाँ के लोगों के कपड़ों और खान - पान की आदतों में फ़र्क होगा , बल्कि जिस तरह का काम वे करेंगे , वे भी अलग होंगे । शहरों में अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि उनका जीवन उनके भौतिक वातावरण से किस तरह गहराई से जुड़ा हुआ है । ऐसा इसलिए कि शहरों में लोग विरले ही अपनी सब्जी या अनाज उगाते हैं । वे इन चीजों के लिए बाज़ार पर ही निर्भर रहते हैं ।
आइए , भारत के दो भागों - लद्दाख और केरल के उदाहरण के ज़रिए यह समझने की कोशिश करें कि किसी क्षेत्र की विविधता पर उसके ऐतिहासिक और भौगोलिक कारकों का क्या असर पड़ता है ।
लद्दाख जम्मू और कश्मीर के पूर्वी हिस्से में पहाड़ियों में बसा एक रेगिस्तानी इलाका है । यहाँ पर बहुत ही कम खेती संभव है , क्योंकि इस क्षेत्र में बारिश बिल्कुल नहीं होती और यह इलाका हर वर्ष काफी लंबे समय तक बर्फ से ढंका रहता है । इस क्षेत्र में बहुत ही कम पेड़ उग पाते हैं । पीने के पानी के लिए लोग गर्मी के महीनों में पिघलने वाली बर्फ पर निर्भर रहते हैं । यहाँ के लोग एक खास किस्म की भेड़ पालते हैं जिससे पश्मीना ऊन मिलता है । यह ऊन कीमती है , इसीलिए पश्मीना शाल बड़ी महँगी होती है ।
लद्दाख के लोग बड़ी सावधानी से इस ऊन को इकट्ठा करके कश्मीर के व्यापारियों को बेच देते हैं । मुख्यतः कश्मीर में ही पश्मीना शालें बुनी जाती हैं । यहाँ के लोग दूध से बने पदार्थ , जैसे मक्खन , चीज़ ( खास तरह का छेना ) एवं मांस खाते हैं । हरएक परिवार के पास कुछ गाय , बकरी और याक होती हैं । रेगिस्तान होने का यह मतलब नहीं कि व्यापारी यहाँ आने के लिए आकर्षित नहीं हुए ।
लद्दाख तो व्यापार के लिए एक अच्छा रास्ता माना गया क्योंकि यहाँ कई घाटियाँ हैं जिनसे गुज़र कर मध्य एशिया के काफिले उस इलाके में पहुँचते थे जिसे आज तिब्बत कहते हैं । ये काफिले अपने साथ मसाले , कच्चा रेशम , दरियाँ आदि लेकर चलते थे ।
लद्दाख के रास्ते ही बौद्ध धर्म तिब्बत पहुँचा । लद्दाख को छोटा तिब्बत भी कहते हैं । करीब चार सौ साल पहले यहाँ पर लोगों का इस्लाम धर्म से परिचय हुआ और अब यहाँ अच्छी - खासी संख्या में मुसलमान रहते हैं । लद्दाख में गानों और कविताओं का बहुत ही समृद्ध मौखिक संग्रह है । तिब्बत का ग्रंथ केसर सागा लद्दाख में काफी प्रचलित है । उसके स्थानीय रूप को मुसलमान और बौद्ध दोनों ही लोग गाते हैं और उस पर नाटक खेलते हैं ।
केरल भारत के दक्षिणी - पश्चिमी कोने में बसा हुआ राज्य है । यह एक तरफ समुद्र से घिरा हुआ है और दूसरी तरफ पहाड़ियों से । इन पहाड़ियों पर विविध प्रकार के मसाले जैसे कालीमिर्च , लौंग , इलायची आदि उगाए जाते हैं । इन मसालों के कारण यह क्षेत्र व्यापारियों के लिए बहुत ही आकर्षक बना । सबसे पहले अरबी एवं यहूदी व्यापारी केरल आए । ऐसा माना जाता है कि ईसा मसीह के धर्मदूत संत थॉमस लगभग दो हज़ार साल पहले यहाँ आए । भारत में ईसाई धर्म लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है । अरब से कई व्यापारी यहाँ आकर बस गए । इब्न बतूता ने , जो करीब सात सौ साल पहले यहाँ आए , अपने यात्रा यात्रा वृत्तांत में मुसलमानों के जीवन का विवरण देते हुए लिखा है कि मुसलमान समुदाय की यहाँ बड़ी इज़्ज़त थी ।
जहाँ केरल और लद्दाख की भौगोलिक स्थितियाँ एक - दूसरे से बिल्कुल अलग हैं , वहीं हम यह भी देखते हैं कि दोनों क्षेत्रों के इतिहास में एक ही प्रकार के सांस्कृतिक प्रभाव हैं । दोनों ही क्षेत्रों को चीन और अरब से आनेवाले व्यापारियों ने प्रभावित किया । जहाँ केरल की भौगोलिक स्थिति ने मसालों की खेती संभव बनाई , वहीं लद्दाख की विशेष भौगोलिक स्थिति और ऊन ने व्यापारियों को अपनी ओर खींचा । इस तरह पता चलता है कि किसी भी क्षेत्र के सांस्कृतिक जीवन का उसके इतिहास और भूगोल से प्रायः गहरा रिश्ता होता है ।
विविध संस्कृतियों का प्रभाव केवल बीते हुए कल की बात नहीं है । हमारे वर्तमान जीवन का आधार ही काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाना है । हरएक कदम के साथ हमारे सांस्कृतिक रीति - रिवाज और जीने का तरीका धीरे - धीरे उस नए क्षेत्र का हिस्सा बन जाते हैं जहाँ हम पहुँचते हैं । ठीक इसी तरह अपने पड़ोस में हम अलग - अलग समुदायों के लोगों के साथ रहते हैं । अपने रोज़मर्रा के जीवन में हम मिल - जुलकर काम करते हैं और एक - दूसरे के रीति - रिवाज और परंपराओं में घुलमिल जाते हैं ।
विविधता में एकता
भारत की विविधता या अनेकता को उसकी ताकत का स्रोत माना गया है । जब अंग्रेजों का भारत पर राज था तो विभिन्न धर्म , भाषा और क्षेत्र की महिलाओं और पुरुषों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ मिलकर लड़ाई लड़ी थी । भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अलग - अलग परिवेशों के लोग शामिल थे । उन्होंने एकजुट होकर आंदोलन किया , इकट्ठे जेल गए और अंग्रेज़ों का अलग - अलग तरीकों से विरोध किया । अंग्रेजों ने सोचा था कि वे भारत के लोगों में फूट डाल सकते हैं क्योंकि उनमें काफी विविधताएँ हैं और इस तरह उनका राज चलता रहेगा । मगर लोगों ने दिखला दिया कि वे एक - दूसरे से चाहे कितने ही भिन्न हों , अंग्रेजों के खिलाफ लड़ी जाने वाली लड़ाई में वे सब एक थे ।
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उभरे गीत और चिह्न विविधता के प्रति हमारा विश्वास बनाए रखते हैं । स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही भारत के झंडे की परिकल्पना की गई थी । इस झंडे को सारे भारत में लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ इस्तेमाल किया था । जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब भारत की खोज में लिखा कि भारतीय एकता कोई बाहर से थोपी हुई चीज़ नहीं है , बल्कि “ यह बहुत ही गहरी है जिसके अंदर अलग - अलग तरह के विश्वास और प्रथाओं को स्वीकार करने की भावना है । इसमें विविधता को पहचाना और प्रोत्साहित किया जाता है । " यह नेहरू ही थे जिन्होंने भारत की विविधता का वर्णन करते हुए ' अनेकता में एकता ' का विचार हमें दिया ।
If you liked the information of this article, then please share your experience by commenting. This is very helpful for us and other readers. Thank you