पुस्तक के ज्ञान को व्यवहार में कैसे लाएं । How to bring book knowledge into daily life.
Knowledge becomes wisdom only after it has been put to practical use.
जानकारी का भण्डार समृद्ध करना
छात्र - छात्राएँ , विशेषकर , जो प्रतियोगी परीक्षाओं में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं , विविध प्रकार की सूचनाएं एकत्र करने के लिए पुस्तकों , पत्र - पत्रिकाओं , इंटरनेट पर ब्लॉग आदि को पढ़ते रहते हैं , आकाशवाणी तथा दूरदर्शन आदि द्वारा अपनी जानकारी का भण्डार समृद्ध करने में लगे रहते हैं । इण्टरनेट के आगमन और 3G , 4G , 5G सूचना संचार प्रौद्योगिकी ने ज्ञान के नवीन और अत्याधुनिक स्रोतों तक पहुँच आसान कर दी है । जो लोग ज्ञान की खोज में रहते हैं , उनको चैन अथवा विश्राम नहीं मिलता है ।
चिन्तन पद्धति का विकास
अध्ययन के मध्य चिन्तन पद्धति का विकास हो जाना भी एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । अतएव सूचनाओं ( Information ) के संग्रहकर्ता सत्य के अन्वेषक ( Seekers of truth ) बन जाते हैं । इनमें से ही वे ज्ञानीजन जन्म लेते हैं , जो समाज को ज्ञान प्रदान करने वाले ज्ञानियों की पंक्ति में खड़े हो जाते हैं और भविष्य में भी स्मरण किए जाते हैं ।
सामान्य ज्ञान की प्राप्ति प्रथम सोपान
हम Knowledge को सामान्य ज्ञान अथवा सूचना कहते हैं तथा Wisdom के लिए ज्ञान शब्द का प्रयोग करते हैं । इस प्रकार ज्ञान की उपलब्धि में सामान्य ज्ञान की प्राप्ति प्रथम सोपान होता है ।
ज्ञानार्जन की प्रक्रिया
हम जब यह देखते हैं कि एक शिशु भी विभिन्न प्रकार की जानकारी अथवा सूचनाएं प्राप्त करने के लिए उत्सुक एवं प्रयत्नशील रहता है , तब हम यह समझ लेते हैं कि मनुष्य जन्म से ज्ञान का संकलनकर्ता एवं ज्ञान रूपी वृक्ष का बीज होता है । सामान्य छात्र - छात्राओं में कुछ ऐसे भी होते हैं , जो जीवनपर्यन्त सामान्य ज्ञान प्राप्त करके ज्ञानार्जन की प्रक्रिया में संलग्न बने रहते हैं । ऐसे ही व्यक्ति स्वयं और अपने समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं । सामान्य ज्ञान की लग्न कुछ व्यक्तियों के मन में ज्ञान की चिनगारी लगा देती है । विलियम कूपर नाम के अनुसार सामान्य ज्ञान हमारे मस्तिष्क में निवास करता है और अन्य व्यक्तियों के विचारों से परिपूर्ण रहता है , जबकि ज्ञान अथवा सत्य की अनुभूति मन में होती है , जो स्वयं के विचारों की देन होती है , इस वर्ग के व्यक्तियों का जीवन प्रायः कठिन एवं काँटों से भरा होता है । यह बात दूसरी है कि इसका अपना विशेष आनन्द एवं पुरस्कार होता है । ज्ञान का मार्ग प्रायः अग्नि - परीक्षाओं का मार्ग होता है ।
अग्नि परीक्षाओं से अनभिज्ञ
जर्मनी के दार्शनिक कवि गेटे ने पूरा बल देते हुए कहा है कि जो व्यक्ति अग्नि परीक्षाओं से अनभिज्ञ बने रहते हैं वे नहीं जानते हैं कि प्रकृति की शक्तियों कैसी होती हैं ? ज्ञान का मन्दिर किसी पहाड़ी की चोटी पर स्थित रहता है तथा उस तक पहुँचने वाला मार्ग टेढ़ा - मेढ़ा तथा काँटेदार झाड़ियों से घिरा होता है । सच्चे ज्ञान के स्वरूप को स्पष्ट करते हुए एक विद्वान् ने बताया है कि सही मत का आधार सही ज्ञान होता है । इसके अभाव में हमारे मत का कोई मूल्य नहीं रह जाता है , जो सच्चे ज्ञान एवं सत्य को उपलब्ध करना चाहते हैं , वे अपना सर्वस्व बलिदान करते आए हैं , क्योंकि सत्यानुभूति का लक्ष्य स्वार्थ न होकर परमार्थ बन जाता है ।
नाना प्रकार की सूचनाओं एवं स्रोतों से सत्यानुभूति नही होती
अधिकांश अध्येता अपने दिमाग को नाना प्रकार की सूचनाओं एवं विविध स्रोतों से एकत्र सामान्य ज्ञान को ढूँस - ढूँस कर मस्तिष्क में भरते रहते हैं । वे उसके माध्यम से न सत्यानुभूति करते हैं और न उसके अनुसार अपने जीवन को ढालते हैं । वे विद्वान् होने का गर्व कर सकते हैं ।
ज्ञान के अनुसार आचरण करना
विद्वान् बन जाना और उपदेश देना एक बात है , ज्ञान की अनुभूति करना और उसके अनुसार आचरण करना सर्वथा एक भिन्न बात है । अनुभव बताता है कि ऐसे अनेक प्रतियोगी देखने में आते हैं , जो लिखित परीक्षा में उच्च स्तर के अंक प्राप्त कर लेते हैं , परन्तु साक्षात्कार के लिए उपस्थित होते समय व्यवहार ज्ञान से शून्य होते हैं , उदाहरणार्थ - वे न तो दरवाजा बन्द करते समय सावधानी बरतते हैं , न बिना आज्ञा लिए कुर्सी पर बैठते हैं आदि इनमें अधिकांश प्रतियोगी “ हम साक्षात्कार किस प्रकार दें " -आदि विषयों पर स्थापित हो गया हो गया होता , है कि श्रेष्ठ व्यक्तियों में - जो व्यक्ति प्राप्त ज्ञान के बहुत ललित एवं विस्तृत व्याख्यान दे सकते हैं , ' खुद मियाँ फजीहत दीगरा नसीहत ' कोटि के व्यक्तियों को लक्ष्य करके अंग्रेजी के विश्व विश्रुत नाटककार विलियम शेक्सपियर ने एक स्थान पर लिखा है कि यदि सामान्य ज्ञान का संग्रह ही सब कुछ होता , तो समस्त कुटीर राजप्रासाद बन गई होतीं तथा ज्ञान का सुख साम्राज्य सर्वत्र बीस व्यक्तियों को बता सकता हूँ कि एवं उपयोगी क्या है , परन्तु तदनुसार आचरण करने वाले बीस में स्वयं एक नहीं हो सकता हूँ ? " जो अनुसार आचरण नहीं करता है , उसको लक्ष्य करके जाता है कि वह उस किसान के समान है , जो अपने खेत में हल तो चलाता है , परन्तु बीज नहीं बोता है । वास्तविकता तो यह है कि समस्त प्राप्त सामान्य ज्ञान की सार्थकता यह है कि वह हमें सांसारिक दृष्टि से चतुर बनाने की अपेक्षा हमें संसार को चतुराई से जानने की क्षमता प्रदान करें ।
व्यक्तिगत सुख का त्याग
आप लोगों में से से प्रायः सभी का लक्ष्य है - सार्वजनिक सेवाओं में उच्च पद की प्राप्ति अतएव आप जैसे व्यक्तियों के लिए यह जान लेना विशेष रूप से आवश्यक है कि आपके लिए तथा समाज के लिए समान रूप से लाभकारी एवं उपयोगी बनने का मार्ग कौनसा है ? सामान्य नियम यह है कि समाज की सेवा करने वाले को व्यक्तिगत सुख के त्याग के लिए सदैव सन्नद्ध रहना चाहिए ।
समस्त पूर्वाग्रहों से मुक्त रहना चाहिए
हम जब ज्ञान अथवा सत्यानुभूति की दृष्टि से पुस्तकों का अध्ययन करें तो हमें अपना दिमाग खुला हुआ तथा समस्त पूर्वाग्रहों से मुक्त रखना चाहिए जिससे नवीन ज्ञान हमारे मन में बेरोक - टोक प्रवेश पा सके और स्थान भी प्राप्त कर सके । इस प्रकार की अध्ययन पद्धति प्रायः स्वतःस्फूर्त ज्ञान को भी जन्म देती हुई देखी जाती है । साक्षात्कार के अवसर पर प्रतियोगी प्रायः ऐसे प्रश्नों का उत्तर देते हुए देखा जाता है , जो उसने पूर्व में न सुने थे और न हल किए थे । स्मरण रखिए कि सामान्य ज्ञान पुस्तकों में सोता रहता है , पुस्तकालय में खर्राटे भरता रहता है , परन्तु ज्ञान सर्वत्र सजग और सचेत बना रहता है । जिन महापुरुषों , समाजसेवियों आदि को हम स्मरण करते हैं , उनके जीवन की कहानी यह थी कि पुस्तकों से सम्पर्क द्वारा उन्होंने कार्य की प्रेरणा प्राप्त की थी जिसने उन्हें पूर्ण निष्ठा द्वारा असामान्य कार्य करने की क्षमता प्रदान की ।
सार
पुस्तकों का मात्र अध्ययन करके तथा उनसे प्राप्त सामान्य ज्ञान द्वारा हम वाद - विवाद आदि के माध्यम से अन्य व्यक्तियों के विचारों को अभिव्यक्त करते हैं , जिसे मिस हासकिन्स ने मात्र अज्ञान का आदान - प्रदान बताया है। पुस्तकों का अध्ययन करते समय हम यह ध्यान रखें कि इनसे प्राप्त जानकारी जीवन की समस्याओं से परिचित कराने में तथा उनका समाधान प्रस्तुत करने में कितनी सहायक हो सकती है ? यही है सामान्य ज्ञान को व्यावहारिक रूप प्रदान करना ।
(समाप्त)
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