सशस्त्र बल न्यायाधिकरण - Armed Forces Tribunal
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण भारत में एक सैन्य न्यायाधिकरण है। इसकी स्थापना वर्ष 2009 में सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम, 2007 के तहत की गई थी। सशस्त्र बल न्यायाधिकरण अधिनियम को 169वें विधि आयोग की रिपोर्ट तथा उच्चत्तम न्यायालय के विभिन्न निर्देशों के आधार पर पारित किया गया था।
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की कार्य एवं शक्तियां
यह सेना अधिनियम 1950, नौसेना अधिनियम 1957 और वायु सेना अधिनियम 1950 के अध्यधीन व्यक्तियों के बारे में कमीशन, नियुक्तियों, अभ्यावेशनों (enrolments) और सेवा शर्तों के संबंध में विवादों और शिकायतों का अधिनिर्णयन या सुनवाई करता है।
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण की संरचना
- न्यायाधिकरण की प्रत्येक खंडपीठ में एक न्यायिक सदस्य तथा अन्य प्रशासनिक सदस्य होते हैं।
- न्यायिक सदस्य उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश होता है।
- प्रशासनिक सदस्य के रूप में मेजर जनरल/समकक्ष या इससे ऊपर रैंक के सेवानिवृत सैन्य बल अधिकारी शामिल होते हैं। जज एडवोकेट जनरल (Judge Advocate General– JAG), सेना का विधिक व न्यायिक प्रमुख, को भी प्रशासनिक सदस्य के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण का अध्यक्ष
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) के अध्यक्ष पद पर सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश अथवा उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश को नियुक्त किया जाता है।
सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के बारे में अपवाद
- असम राइफल्स तथा तटरक्षक बल (Coast Guard) सहित अन्य अर्धसैनिक बल, सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के अधिकार क्षेत्र से बाहर होते हैं।
- सशस्त्र बल न्यायाधिकरण (AFT) को भारतीय दंड संहिता, और दंड प्रक्रिया संहिता के संदर्भ में एक दाण्डिक न्यायालय माना जाता है।
- सशस्त्र बल न्यायाधिकरण के फैसले के विरुद्ध अपील केवल उच्चतम न्यायालय में की जा सकती है। उच्च न्यायालयों को ऐसी अपीलों पर सुनवाई करने की अनुमति नहीं है।
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