हर एक देश में विभिन्न निर्णय लेने के लिए एवं काम करने के लिए सरकार की जरूरत होती है यह निर्णय कई विषयों से संबंधित हो सकते हैं जैसे सड़कों और स्कूल कहां बनाए जाएंगे, बहुत ज्यादा महंगी होने पर महंगी चीजों के दाम कैसे कम किए जाएंगे अथवा बिजली की आपूर्ति को कैसे बढ़ाया जाएगा।
सरकार कई सामाजिक मुद्दों पर भी कार्रवाई करती है उदाहरण के लिए सरकार गरीबों की मदद करने के लिए कई कार्यक्रम चलाती है जैसे प्रधानमंत्री किसान कल्याण योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि । इनके अलावा सरकार कई अन्य महत्वपूर्ण काम भी करती है जैसे डाक एवं रेल सेवाएं चलाना ।
सरकार का काम देश की सीमाओं की रक्षा करना और दूसरे देशों से शांतिपूर्ण संबंध बनाए रखना भी है। सरकार की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करें कि देश के सभी नागरिकों को पर्याप्त भोजन और स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें। अगर कहीं कोई विवाद होता है या कोई अपराध करता है तो लोग न्यायालय जाते हैं न्यायालय भी सरकार का ही एक अंग है।
जब प्राकृतिक आपदा गिरती है जैसे सुनामी या भूकंप तो मुख्य मुख्य रूप से सरकार ही पीड़ित लोगों को सहायता प्रदान करती है ।
शायद आपको यह जानकर अचरज हो रहा होगा कि सरकार इतना सब कुछ कैसे कर पाती है और सरकार के लिए इन कामों को करना क्यों जरूरी है ?
जब लोग इकट्ठे रहते हैं और काम करते हैं तो कुछ हद तक एक व्यवस्था की जरूरत होती है जिससे आवश्यक निर्णय लिए जा सके। और कुछ नियमों की जरूरत होती है ताकि लोग सुरक्षित महसूस कर सकें , लोगों के लिए सरकार कई तरह के काम करती है वह नियम बनाती है, निर्णय लेती है और अपनी सीमा में रहने वाले लोगों पर उन्हें लागू करती है। कुछ उदाहरण जो सरकार के अंग है जैसे – सर्वोच्च न्यायालय , भारत पैट्रोलियम , भारतीय रेल , मंत्रालय जैसे गृह मंत्रालय, विदेश मंत्रालय आदि।
भारत सरकार के स्तर
अब आपको पता है कि सरकार कितनी सारी अलग-अलग चीजों के लिए जिम्मेदार है तो क्या आप सोच सकते हैं कि सरकार यह सारे इंतजाम कैसे करती होगी ?
दरअसल सरकार अलग-अलग स्तरों पर काम करती है – 1.स्थानीय स्तर 2. राज्य स्तर एवं 3. राष्ट्रीय स्तर
1. स्थानीय स्तर का मतलब आपके गांव एवं शहर मोहल्ले से होता है।
2. राज्य स्तर का मतलब जो पूरे राज्य को ध्यान में रखें जैसे हरियाणा या असम या अन्य राज्य की सरकार पूरे राज्य में काम करती है ।
3. राष्ट्रीय स्तर की सरकार का संबंध पूरे देश से होता है।
सरकार एवं कानून
सरकार कानून बनाती है और देश में रहने वाले सभी लोगों को यह कानून मानने होते हैं केवल यही वह तरीका है जिससे सरकार काम कर सकती है सरकार के पास जैसे कानून बनाने की ताकत होती होती है वैसे ही यह ताकत भी होती है कि लोगों को कानून मानने के लिए बाध्य करें ।
उदाहरण के लिए एक कानून है कि गाड़ी चलाने वाले के पास लाइसेंस होना चाहिए । अगर कोई लाइसेंस के बिना गाड़ी चलाता हुआ पकड़ा जाए तो उसे जेल की सजा काटनी पड़ सकती है या जुर्माना भरना पड़ सकता है।
सरकार जो कार्रवाई कर सकती है वो तो करती ही है उसके अलावा अगर लोगों को लगे कि किसी कानून का ढंग से पालन नहीं हो रहा है तो वे खुद कदम उठा सकते हैं।
उदाहरण के लिए अगर किसी व्यक्ति को यह लगे कि उसको उसके उसको उसके धर्म या उसकी जाति के कारण किसी नौकरी में नहीं लिया गया है तो वह न्यायालय जा सकता है और यह दावा कर सकता है कि कानून का पालन सही से नहीं हो रहा है । तब न्यायालय आदेश देगा कि क्या कदम उठाने की जरूरत है।
सरकार के प्रकार
सरकार को निर्णय लेने और कानून का पालन करवाने यानी उन्हें बाध्य बनाने की शक्ति कौन देता है ?
इस प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि उस देश की कैसी सरकार है है की कैसी सरकार है है।
लोकतंत्र :
लोकतंत्र में लोग ही सरकार को यह शक्ति देते हैं और लोग ऐसा चुनाव के माध्यम से करते हैं। वे अपनी पसंद के नेता को वोट देकर चुनते हैं एक बार चुन लिए जाने के बाद यही चुने हुए लोग सरकार बनाते हैं ।
लोकतंत्र में सरकार को अपने निर्णयों एवं उठाए गए कदमों का आधार बताना होता है और सफाई भी देनी होती है ।
राजतंत्र :
इसमें राजा या रानी के पास निर्णय लेने और सरकार चलाने की शक्ति होती है राजा के पास सलाहकारों का एक छोटा सा समूह होता है जिससे वह विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कर सकता है। लेकिन निर्णय लेने की अंतिम शक्ति राजा के पास ही होती है। लोकतंत्र के समान राजतंत्र में राजा या रानी को अपने निर्णय एवं उठाए गए कदमों का आधार नहीं बताना होता है और ना ही कोई सफाई देनी होती है।
भारत में लोकतांत्रिक सरकार
भारत एक लोकतांत्रिक देश है इस लोकतंत्र व्यवस्था को पाने के लिए हमने लंबी लड़ाई लड़ी है विश्व में और भी कई देश हैं जहां लोगों ने लोकतंत्र लाने के लिए संघर्ष किए हैं।
लोकतंत्र के मुख्य बात यह है कि लोगों के पास अपने नेता को चुनने की शक्ति होती है इसलिए एक अर्थ में लोकतंत्र लोगों का ही शासन होता है । लोकतंत्र में मूलभूत विचार यह भी है कि लोग नियमों को बनाने में भागीदार बनकर खुद ही शासन करें ।
आजकल के समय में लोकतांत्रिक सरकार को प्रायः प्रतिनिधि लोकतंत्र कहते हैं। प्रतिनिधि लोकतंत्र में लोग सीधे भाग नहीं लेते हैं बल्कि चुनाव की प्रक्रिया के द्वारा अपने प्रतिनिधि को चुनते हैं।
ये प्रतिनिधि मिलकर सारी जनता के लिए निर्णय लेते हैं।
आजकल कोई भी सरकार अपने आपको तब तक लोकतांत्रिक नहीं कह सकती जब तक कि वह देश के सभी वरिष्ठ नागरिकों को वोट देने के अधिकार ना दें ।
लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था क्या आप विश्वास कर सकते हैं कि एक समय ऐसा था जब लोकतांत्रिक सरकारें औरतो और गरीबों को चुनाव में भाग नहीं लेने देती थी ?
अपने शुरुआती दौर में सरकारें केवल उन्हीं पुरुषों को वोट देने देती थी जो पढ़े लिखे थे और जिनके पास अपनी संपत्ति होती थी। इसका मतलब था कि औरतो , गरीबों और आज आशिक्षितों को वोट देने का अधिकार नहीं था।
ऐसी स्थिति में देश उन्हीं नियमों के सहारे चलते थे थे जो ये गिने-चुने पुरुष बनाते थे भारत में आजादी से पहले बहुत कम लोग लोगों को वोट देने का अधिकार था इसलिए जनता ने संगठित होकर इस अधिकार की मांग की । गांधीजी समेत कई नेताओं ने इस अन्याय पूर्ण व्यवहार का विरोध किया और उन्होंने भी जोर शोर से मांगे उठायी।
1921 में यंग इंडिया पत्रिका में लिखते हुए गांधी जी ने कहा था ने कहा था मैं यह विचार सहन नहीं कर सकता कि जिस आदमी के पास संपत्ति है वह वोट दे सकता है लेकिन वह आदमी जिसके पास चरित्र है पर संपत्ति या शिक्षा नहीं , वह वोट नहीं दे सकता या जो अपना पसीना बहा कर ईमानदारी कर ईमानदारी से काम करता है वह वोट नहीं दे सकता क्योंकि उसने गरीब होने का गुनाह किया है।
संसार में कहीं भी सरकारों ने स्वेच्छा से अपनी शक्ति लोगों के साथ नहीं बांटी है। पूरे यूरोप और अमेरिका में महिलाओं और गरीबों के कार्यों में भागीदारी के लिए संघर्ष करना पड़ा।
महिलाओं के द्वारा मताधिकार के लिए किए गए संघर्ष में प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अधिक मजबूती पकड़ी थी। इस आंदोलन को महिला मताधिकार आंदोलन कहते हैं और अंग्रेजी में “सफरेज मूवमेंट” कहते हैं सफ्रेज का मतलब होता है वोट देने का अधिकार ।
प्रथम विश्व युद्ध के दौरान बहुत से पुरुष लड़ाई में थे इसीलिए महिलाओं को उन कामों को करने के लिए बुलाया गया जो पुरुष किया करते थे।
जब महिलाओं ने विभिन्न प्रकार के कामों और उनकी व्यवस्था करना शुरू किया तो लोगों को यह देख कर बड़ा ही आश्चर्य हुआ कि उन्होंने महिलाओं और उनकी क्षमताओं के बारे में क्यों इतनी गलत धारणाएं बना रखी थी कि महिलाएं ये काम नहीं कर सकती हैं ।
इस तरह महिलाओं को निर्णय लेने में समान रूप से योग्य माना जाने लगा। महिला मताधिकार आंदोलन के साथियों ने सभी महिलाओं के लिए वोट देने के अधिकार की मांग की ।
उनकी आवाज सुनी जाए इसके लिए उन्होंने जगह-जगह पर अपने आप को लोहे की जंजीरों में बांधकर प्रदर्शन किया । उनमें से कई क्रांतिकारी महिलाएं जेल गई और भूख हड़ताल भी की ।
● अमेरिका में औरतों को वोट देने का अधिकार 1932 में मिला।
● इंग्लैंड में औरतों को यह अधिकार कुछ सालों बाद 1928 में मिला।
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