तेनाली राम की कहानियाँ – तेनालीराम की घोषणा – Tenaliram ki ghoshna

तेनालीराम की घोषणा 

एक बार राजा कृष्णदेव राय से पुरोहित ने कहा – महाराज, हमें अपनी प्रजा के साथ सीधे जुड़ना चाहिए। पुरोहित की बात सुनकर सभी दरबारी चौंक पड़े। वे पुरोहित की बात समझ न पाए।

तब पुरोहित ने अपनी बात को समझाते हुए उन्हें बताया – दरबार में जो भी चर्चा होती है, हर सप्ताह उस चर्चा की प्रमुख बातें जनता तक पहुँचाई जाएँ। प्रजा भी उन बातों को जानें। मंत्री ने कहा – महाराज, विचार तो वास्तव में बहुत उत्तम है। तेनालीराम जैसे अकलमंद और चतुर व्यक्ति ही इस कार्य को सुचारु रूप से कर सकते हैं। साथ ही तेनालीराम पर दरबार की विशेष जिम्मेदारी भी नहीं है।

राजा ने मंत्री की बात मान ली और तेनालीराम को यह काम सौंप दिया। तय किया गया – तेनालीराम जनहित और प्रजा-हित की सारी बातें, जो राजदरबार में होंगी, लिखित रूप से दरोगा को देंगे। दरोगा नगर के चौराहों पर मुनादी कराकर जनता और प्रजा को उन बातों की सूचनाएँ देगा।

तेनालीराम सारी बात समझ गया था। वह यह भी समझ गया था कि मंत्री ने उसे जबरदस्ती फँसाया है। तेनालीराम ने भी अपने मन में एक योजना बनाई। सप्ताह के अंत में उसने मुनादी करने के लिए दरोगा को एक पर्चा थमा दिया। दरोगा ने पर्चा मुनादी वाले को पकड़ाकर कहा – जाओ और मुनादी करा दो।

मुनादी वाला सीधा चौराहे पर पहुँचा और ढोल पीट-पीटकर मुनादी करते हुए बोला – सुनो-सुनो, नगर के सारे नागरिकों सुनो। महाराज चाहते हैं कि दरबार में जनहित के लिए जो फैसले किए गए हैं, उन्हें सारे नगरवासी जानें। उन्होंने श्रीमान तेनालीराम को यह कठिन काम सौंपा है। हम उन्हीं की आज्ञा से आपको यह समाचार सुना रहे हैं। ध्यान देकर सुनो।

See also  बघेलखण्ड की लोककथा : मनुष्य का मोल – लखनप्रताप सिंह [Manushya ka mol]

महाराज चाहते हैं कि प्रज्ञा और जनता के साथ पूरा न्याय हो। अपराधी को दंड मिले। इस मंगलवार को राजदरबार में इसी बात को लेकर काफी गंभीर चर्चा हुई। महाराज चाहते थे कि पुरानी न्याय-व्यवस्था की अच्छी और साफ-सुथरी बातें भी इस न्याय प्रणाली में शामिल की जाएँ। इस विषय में उन्होंने पुरोहित जी से पौराणिक न्याय-व्यवस्था के बारे में जानना चाहा किंतु पुरोहित जी इस बारे में कुछ न बता सके, क्योंकि वह दरबार में बैठे ऊँघ रहे थे। उन्हें इस दशा में देखकर राजा कृष्णदेव राय को गुस्सा आ गया। उन्होंने भरे दरबार में पुरोहित जी को फटकारा। गुरुवार को सीमाओं की सुरक्षा पर राजदरबार में चर्चा हुईं किंतु सेनापति उपस्थित न थे, इस कारण सीमाओं की सुरक्षा की चर्चा आगे न हो सकी। राजा ने मंत्री को कड़े आदेश दिए हैं कि राजदरबार में सारे सभासद ठीक समय पर आएँ।

यह कहकर मुनादी वाले ने ढोल बजा दिया। इस प्रकार हर सप्ताह नगर में जगह-जगह मुनादी होने लगी। हर मुनादी में तेनालीराम की चर्चा हर जगह होती थी। तेनालीराम की चर्चा की बात मंत्री,सेनापति और पुरोहित के कानों में भी पहुँची। वे तीनों बड़े चिंतित हो गए,कहने लगे – तेनालीराम ने सारी बाजी ही उलटकर रख दी। जनता समझ रही है कि वह दरबार में सबसे प्रमुख हैं। वह जानबूझकर हमें बदनाम कर रहा है।

दूसरे ही दिन जब राजा दरबार में थे तो मंत्री ने कहा – महाराज, हमारा संविधान कहता है कि राजकाज की समस्त बातें गोपनीय होती हैं। उन बातों को जनता या प्रजा को बताना ठीक नहीं।

See also  विक्रम - बैताल की कहानियाँ [Vikram Betaal Hindi Kahaani – Story 5]

तभी तेनालीराम बोल पड़ा – बहुत अच्छे मंत्री जी, आपको शायद उस दिन यह बात याद नहीं थी। आपको भी तभी याद आया, जब आपके नाम का ढोल पिट गया।

यह सुनकर सारे दरबारी हँस पड़े। बेचारे मंत्री जी की शक्ल देखने लायक थी। राजा कृष्णदेव राय भी सारी बात समझ गए। वह मन ही मन तेनालीराम की सराहना कर रहे थे।

Leave a Comment