MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

नियुक्तिकरण Important Questions

नियुक्तिकरण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

प्रश्न 1.
“भर्ती, भावी कर्मचारियों की खोज करने तथा उन्हें रिक्त कार्यों के लिये आवेदन करने के लिए प्रेरणा देने तथा प्रोत्साहित करने की प्रक्रिया होती है।” यह परिभाषा दी है
(a) एलिन
(b) डेल.एस.बीच
(c) फिलिप्पो
(d) कूण्ट्ज एवं ओडोनेल।
उत्तर:
(c) फिलिप्पो

प्रश्न 2.
भर्ती के बाह्य स्रोत हैं –
(a) विज्ञापन
(b) रोजगार कार्यालय
(c) वर्तमान कर्मचारियों के मित्रगण
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 3.
साक्षात्कार के उद्देश्य हैं –
(a) प्रार्थी की उपयुक्तता
(b) प्रार्थी को पद, संस्था के बारे में पूर्ण जानकारी देना
(c) प्रार्थी को संतोष
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न  4.
रोजगार कार्यालय भर्ती का स्रोत है –
(a) आन्तरिक
(b) बाह्य
(c) उपर्युक्त दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) बाह्य

प्रश्न  5.
सर्वोत्तम विकल्प का चयन किस पर आधारित होता है –
(a) पूर्वानुमान पर
(b) कार्यविधि पर
(c) विश्लेषण का मूल्यांकन
(d) नीति।
उत्तर:
(c) विश्लेषण का मूल्यांकन

प्रश्न 6.
प्रशिक्षण में बल दिया जाता है –
(a) सैद्धान्तिक ज्ञान पर
(b) सामान्य ज्ञान पर
(c) सर्वांगीण ज्ञान पर
(d) व्यावहारिक ज्ञान पर।
उत्तर:
(c) सर्वांगीण ज्ञान पर

प्रश्न 7.
निम्न में से क्या कार्य पर प्रशिक्षण’ है –
(a) केस अध्ययन
(b) भूमिका निर्वाह प्रशिक्षण
(c) शिक्षार्थी प्रशिक्षण
(d) सम्मेलन एवं गोष्ठियाँ।
उत्तर:
(c) शिक्षार्थी प्रशिक्षण

प्रश् 8.
नियुक्तिकरण का सम्बन्ध है –
(a) राजनीतिक घटक से
(b) आर्थिक घटक से
(c) सामाजिक घटक से
(d) मानकीय घटक से।
उत्तर:
(d) मानकीय घटक से

प्रश्न 9.
निम्न में से क्या मौद्रिक अभिप्रेरण है –
(a) बोनस
(b) पेंशन
(c) अवकाश वेतन
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 10.
भर्ती प्रक्रिया में खोज की जाती है –
(a) वरिष्ठ कर्मचारियों की
(b) सेवानिवृत्त कर्मचारियों की
(c) भावी कर्मचारियों की
(d) विशिष्ट कर्मचारियों की।
उत्तर:
(c) भावी कर्मचारियों की

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. चयन …………. के बाद शुरू होता है।
  2. विकास का लक्ष्य कर्मचारी के …………. व्यक्तित्व का विकास करना है।
  3. गैर मानवीय संसाधन को …………. साधन क्रियाशील बनाता है।
  4. पूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति भर्ती का …………. स्रोत है।
  5. …………. एक नकारात्मक प्रक्रिया है जिसमें आवेदकों को चयनित तथा अचयनित दो भागों में विभाजित किया जाता है।
  6. संस्था में रिक्त पदों हेतु उपयुक्त कर्मचारियों का चयन व कार्य प्रदान करना …………. कहलाता है।
  7. संस्थानों में भर्ती के …………. स्रोत होते हैं।
  8. कर्मचारियों को भावी उच्च पदों हेतु तैयार करने की प्रक्रिया को …………. कहते हैं।
  9. कार्य परिवर्तन या कार्य बदली विधि का सर्वाधिक प्रचलन …………. में होता है।
  10. संस्था में कर्मचारियों की आवश्यकता का आकलन …………. प्रबन्धक द्वारा होता है।

उत्तर:

  1. पूर्व परीक्षा
  2. समग्र
  3. मानवीय
  4. आंतरिक
  5. चयन
  6. नियुक्तिकरण
  7. दो
  8. विकास,
  9. बैंक
  10. कार्मिक।

प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए –

  1. भर्ती के किसी एक आंतरिक स्रोत का नाम बताइये।
  2. भर्ती के किसी बाह्य स्रोत का नाम बताइये।
  3. चयन प्रक्रिया का अंतिम चरण क्या है ?
  4. जब कर्मचारी को संस्था के विभिन्न प्रकार के कार्यों का प्रशिक्षण दिया जाता है, उस प्रशिक्षण पद्धति को क्या कहते हैं ?
  5. किस प्रशिक्षण पद्धति में कर्मचारियों को, कृत्रिम परिस्थिति में, कारखाने से अलग वास्तविक उपकरणों में प्रशिक्षण दिया जाता है ?
  6. प्रशिक्षण से किसमें वृद्धि होती है ?
  7. कर्मचारी वर्ग में प्रशिक्षण से किस बात का संचार होता है ?
  8. ‘कार्य पर प्रशिक्षण’ कहाँ दिया जाता है ?
  9. भर्ती का कौन-सा स्रोत विस्तृत चयन प्रदान करता है ?
  10. स्थानांतरण भर्ती का कौन-सा स्रोत है ?
  11. प्रशिक्षण की कितनी विधियाँ हैं ? उन विधियों के नाम लिखिए।
  12. भर्ती के किस स्रोत से कर्मचारी अभिप्रेरित होता है ?
  13. कर्मचारियों को प्रशिक्षण से होने वाला एक लाभ लिखिए।
  14. शिक्षा क्या है ?
  15. प्रशिक्षण तथा विकास में अंतर का एक बिन्दु लिखिए।

उत्तर:

  1. स्थानांतरण
  2. विज्ञापन द्वारा भर्ती
  3. नियुक्ति
  4. कार्य परिवर्तन विधि
  5. द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण विधि
  6. मनोबल
  7. आत्मविश्वास
  8. कार्यस्थल पर
  9. भर्ती का बाह्य स्रोत
  10. आंतरिक स्रोत
  11. शिक्षण की दो विधियाँ हैं –
    • कार्य पर प्रशिक्षण
    • कार्य से पृथक् प्रशिक्षण
  12. भर्ती के आंतरिक स्रोत से कर्मचारी अभिप्रेरित होता है।
  13. प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता में वृद्धि होती है
  14. शिक्षा कर्मचारियों के ज्ञान तथा समझ को बढ़ाने वाली एक प्रक्रिया है,
  15. प्रशिक्षण जॉब प्रधान प्रक्रिया है, जबकि विकास कैरियर प्रधान प्रक्रिया है।

प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये

  1. प्रशिक्षण से कर्मचारी के ज्ञान, योग्यता, क्षमता में वृद्धि होती है।
  2. नियुक्तिकरण मानव संसाधन प्रबन्ध का एक भाग है।
  3. नियुक्तिकरण कर्मचारियों के अपनत्व की भावना विकसित करता है
  4. कर्मचारियों की भर्ती तथा चयन दोनों समान है।
  5. नियुक्तिकरण की प्रक्रिया पर किया गया धन का व्यय धन की बर्बादी है।
  6. द्वार प्रकोष्ठ प्रशिक्षण में वास्तविक कार्यस्थल में कार्य के दौरान प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है।
  7. कार्य से संबंधित सैद्धांतिक व व्यावहारिक प्रशिक्षण, संयुक्त प्रशिक्षण के अंतर्गत दिया जाता है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. सत्य
  3. सत्य
  4. असत्य
  5. असत्य
  6. असत्य
  7. सत्य

प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

उत्तर:

  1. (b)
  2. (c)
  3. (a)
  4. (e)
  5. (d)
  6. (f)

नियुक्तिकरण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कार्य से परे प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. प्रकोष्ठ शाला प्रशिक्षण- इस पद्धति के अंतर्गत नये कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के उद्देश्य से अलग से एक प्रशिक्षण केन्द्र की स्थापना की जाती है। एक अनुभवी एवं प्रशिक्षित प्रशिक्षक को इस केन्द्र का अध्यक्ष नियुक्त किया जाता है। इस केन्द्र में औजारों एवं मशीनरी को इस ढंग से लगाया जाता है ताकि कारखाने जैसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाये। जब कर्मचारी प्रशिक्षित हो जाते हैं तो उन्हें वास्तविक कार्य पर लगा दिया जाता है।

2. विशिष्ट पाठ्यक्रम एवं कक्षाओं का आयोजन – प्रशिक्षण की इस विधि में संस्था के अंदर ही विशेष पाठ्यक्रम एवं कक्षाओं का आयोजन करके, प्रबंधकीय वर्ग के विभिन्न लोगों को अनुभवी एवं विशेषज्ञ व्यक्तियों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों प्रकार का होता है। इस तरह के प्रशिक्षण देने की अनेक विधियाँ हैं।

3. केस अध्ययन प्रणाली – इस विधि में वरिष्ठ प्रबंधक द्वारा प्रशिक्षार्थी प्रबंधकों को एक विशेष समस्या को सुलझाने के लिए कहा जाता है। सभी परीक्षार्थी अपने-अपने ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर समस्या को हल निकालते हैं तथा एक-दूसरे के साथ मिलान करते हैं। एक ही समस्या के विभिन्न समाधान होने पर उनमें तर्क-वितर्क होता है।

सभी अपने-अपने समाधान के पक्ष में प्रमाण जुटाने का प्रयत्न करते हैं। इस तर्क-वितर्क को वरिष्ठ प्रबंधक द्वारा भी सुना जाता है। तर्क-वितर्क के आधार पर तथा अपने अनुभवों का प्रयोग करके वरिष्ठ प्रबंधक एक उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करता है और उनके द्वारा किये गये प्रयासों में हुई त्रुटियों को स्पष्ट करता है।

4. चलचित्र – चलचित्र बहुत प्रभावी पद्धति हो सकती है, जहाँ कौशल का प्रदर्शन करना आवश्यक है। इसका सम्मेलन परिचर्चाओं में बहुत प्रयोग होता है।

5. कम्प्यूटर माडलिंग – यह कम्प्यूटर पर आधारित प्रशिक्षण है। इस विधि में प्रशिक्षार्थी अपने कौशल में वृद्धि के लिए कम्प्यूटर का प्रयोग करता है। इस विधि का प्रयोग वहाँ होता है, जहाँ प्रशिक्षण अधिक महँगा हो। जैसे एक टाईम बम को प्रभावहीन करने का प्रशिक्षण देना।

6. नियोजित अनुदेश – इस विधि के अंतर्गत किसी संक्षिप्त घटना पर विचार किया जाता है। नियोजित अनुदेश में एक संक्षिप्त घटना को कक्षा में विचार के लिए रखा जाता है। प्रशिक्षक व विद्यार्थी सभी आपसी तर्कवितर्क के आधार पर समस्या का उचित समाधान ढूँढने का प्रयत्न करते हैं । इस विधि का मुख्य लाभ यह है कि इसमें प्रशिक्षक से प्रश्न पूछकर महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 2.
चयन प्रक्रिया में प्रयोग की जाने वाली विभिन्न प्रकार की रोजगार परीक्षाओं का वर्णन करें।
अथवा
विभिन्न प्रकार की रोजगार चयन परीक्षाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये। 
अथवा
किन्हीं चार रोजगार परीक्षणों का संक्षिप्त वर्णन करें।
उत्तर:
चयन परीक्षाएँ (Tests for selection) – आवेदकों के चयन की कई परीक्षायें हैं। उनमें से कुछ परीक्षाओं का नीचे वर्णन किया गया है

(i) बुद्धिमता परीक्षा (intelligence test) – इस परीक्षा के पीछे यह मान्यता है कि अधिक बुद्धिमान व्यक्ति किसी भी कार्य को शीघ्रता एवं सरलता से सीख सकता है और इनके प्रशिक्षण पर संस्था को अधिक खर्च नहीं करना पड़ता। प्रार्थियों की बुद्धिमता की जाँच के लिए उनकी ग्रहण शक्ति (Reception power), स्मरणशक्ति (Memory), तर्कशक्ति (Resasoning power) आदि को देखा जाता है। इस परीक्षण के लिए प्रश्नों की एक लंबी सूची तैयार करके प्रार्थियों को एक निश्चित समय में उत्तर देने को कहा जाता है। इसी आधार पर उनकी बुद्धिमता के स्तर का पता चलता है।

(ii) प्रवृत्ति परीक्षा (Aptitude test) – इस परीक्षा द्वारा प्रार्थी की छिपी हुई योग्यताओं का पता लगाने का प्रयास किया जाता है ताकि यह निश्चित किया जा सके कि उसे प्रशिक्षण द्वारा सिखाया जा सकता है अथवा नहीं। अन्य शब्दों में, वह परीक्षा जो प्रार्थी की सीखने की क्षमता का माप करती हो, प्रवृत्ति परीक्षा कहलाती है। प्रवृत्ति परीक्षा में यह देखा जाता है कि क्या एक व्यक्ति में किसी काम को सीखने की क्षमता है।

(iii) व्यक्तित्व परीक्षा (Personality test) – इस परीक्षा के द्वारा यह देखा जाता है कि एक व्यक्ति में अन्य व्यक्तियों के साथ मेल-मिलाप करने, उन्हें प्रभावित करने एवं उन्हें अभिप्रेरित करने की कितनी योग्यता है। इसके साथ ही यह भी देखा जाता है कि जिस कार्य पर उसे नियुक्त किया जायेगा, उसमें उपस्थित होने वाली बाधाओं से निपटने के लिए उसमें जरूरी शक्ति है या नहीं। उदाहरणार्थ, एक व्यक्ति जो दूसरे के दुःखों को नहीं समझता, एक अच्छा डॉक्टर नहीं हो सकता। इसी प्रकार एक व्यक्ति जिसको लोगों से मिलना अच्छा नहीं लगता वह एक अच्छा विक्रयकर्ता नहीं हो सकता।

प्रश्न 3.
कार्य पर प्रशिक्षण से क्या अभिप्राय है ? इसके विभिन्न प्रकारों का वर्णन करें।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण (On the job training)- कार्य पर प्रशिक्षण से अभिप्राय उस स्थिति से है जिसके अंतर्गत श्रमिक को उसके निकटतम पर्यवेक्षक (Immediate supervisor) द्वारा कार्यस्थल पर ही प्रशिक्षण दिया जाता है अर्थात् श्रमिक काम को वास्तविक परिवेश में ही सीखता है। यह करके सीखो (Learning by doing) के सिद्धांत पर आधारित है। यह विधि केवल तकनीकी कार्यों के लिये उपयुक्त है।
कार्य पर प्रशिक्षण की सामान्य प्रचलित विधियाँ (Common and popular methods of on the job training)- कार्य पर प्रशिक्षण की मुख्य विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. नवसिखुआ प्रशिक्षण (Apprenticeship training)- इस विधि का प्रयोग वहाँ किया जाता है, जहाँ किसी विशेष कार्य में पूर्ण-दक्षता (Complete preficiency) प्राप्त करने के लिए एक लंबे समय तक प्रशिक्षण की आवश्यकता हो। इसमें प्रशिक्षण लेने वाले व्यक्ति को एक निश्चित समय तक किसी विशेषज्ञ के साथ काम करना पड़ता है। प्रशिक्षण की अवधि प्रायः दो वर्ष से सात वर्ष तक होती है।

प्रशिक्षण के दौरान विशेषज्ञ द्वारा कार्य के सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक दोनों पहलुओं की पूर्ण जानकारी दी जाती है। नियोक्ता द्वारा परीक्षण अवधि में निर्वाह भत्ता (Stipend) भी पारिश्रमक के रूप में दिया जाता है। पूर्ण दक्षता प्राप्त कर लेने पर कर्मचारी को वास्तविक कार्य सौंप दिया जाता है।

2. अनुशिक्षण (Coaching)- इस विधि में अधिकारी प्रशिक्षणार्थी का एक शिक्षक के रूप में मार्गदर्शन करता है और दिशा-निर्देश देता है। वह प्रशिक्षार्थी का मार्गदर्शन करता है कि वह किस प्रकार अपनी कमजोरी को दूर कर सकता है।

अधिकारी कर्मचारी के कार्य- निष्पादन और व्यवहार में आवश्यक परिवर्तनों का सुझाव देता है। शिक्षक संगठन के उद्देश्यों के साथ-साथ व्यक्तियों के उद्देश्यों को भी महत्व देता है।

3. संयुक्त प्रशिक्षण (Intership training)- संयुक्त प्रशिक्षण प्रणाली द्वारा तकनीकी संस्थाएँ एवं व्यावसायिक संस्थाएँ मिलकर अपने सदस्यों को प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक ज्ञान में संतुलन स्थापित करना है।

See also  MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 1 प्रबंध-प्रकृति एवं महत्व

इस प्रशिक्षण प्रणाली के अंतर्गत शैक्षणिक संस्थाएँ अपने विद्यार्थियों को सैद्धांतिक ज्ञान तो स्वयं प्रदान करती हैं लेकिन व्यावहारिक ज्ञान के लिए उन्हें व्यावसायिक संस्थाओं में भेजती हैं। इस प्रकार जो कर्मचारी व्यावसायिक संस्थानों में पहले से काम कर रहे हैं,

उन्हें आधुनिकतम सैद्धांतिक ज्ञान (Latest theoretical knowledge) उपलब्ध कराने के लिए समय-समय पर शिक्षण संस्थाओं में भेजा जाता है। इस प्रकार दोनों प्रकार की संस्थायें एक-दूसरे की सहायता करती हैं।

4. पद-दली प्रशिक्षण– इस विधि का उद्देश्य एक अधिकारी को संस्था के सभी विभागों की जानकारी प्रदान करना है। अधिकारी को पहले एक विभाग में नियुक्त किया जाता है और जब वह इस विभाग के बारे में सभी जानकारियाँ प्राप्त कर लेता है, तो उसे किसी दूसरे विभाग में भेज दिया जाता है और इसके बाद अन्य विभागों में इस प्रशिक्षण प्रणाली का मुख्य उद्देश्य संस्था में ऐसे अधिकारियों को उपलब्ध कराना है जो विपरीत परिस्थितियों में किसी भी विभाग को संभाल सके।

प्रश्न 4.
नियुक्तिकरण प्रक्रिया के एक चरण के रूप में अभिविन्यास (Orientation) के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
अभिविन्यास के उद्देश्य निम्नलिखित हैं

  1. नये कर्मचारी को संस्था से परिचित कराना।
  2. नये कर्मचारी को नये वातावरण में अति शीघ्र समायोजित करने का प्रयत्न करना।
  3. नये कर्मचारी तथा वर्तमान कर्मचारियों में मधुर संबंध विकसित करना।
  4. नये कर्मचारी को अनुभव करवाना कि वह संगठन का एक सदस्य है।
  5. नये कर्मचारी में संस्था के प्रति वफादारी का विकास करना।
  6. नये कर्मचारी का वर्तमान कर्मचारियों के साथ मिलकर एक टीम के सदस्य के रूप में काम करना।
  7. नये कर्मचारी को संस्था की नीतियों के बारे में अवगत कराना।
  8. इस बात को सुनिश्चित करना कि नया कर्मचारी संस्था के प्रति नकारात्मक अभिरुचि न बनाये।

प्रश्न 5.
अभिविन्यास कार्यक्रम के अंतर्गत नये कर्मचारियों को कौन-कौन सी सूचनाएँ दी जा सकती हैं ?
उत्तर:
अभिविन्यास कार्यक्रम (Induction programme) – के अंतर्गत नये कर्मचारी को निम्नलिखित सूचनायें दी जा सकती हैं

  1. कंपनी का संक्षिप्त इतिहास
  2. कंपनी की नीतियाँ।
  3. कंपनी का संगठनात्मक ढाँचा।
  4. विभागों की स्थिति (Location)
  5. कर्मचारियों को दी जाने वाली सुविधायें।
  6. नये कर्मचारी के अधिकार तथा कर्तव्य।
  7. कार्य करने के घंटे।
  8. अवकाश के नियम।
  9. अनुशासनं संबंधी नियम।

प्रश्न 6.
कारण सहित बताइए कि भर्ती के आंतरिक स्रोत बाह्य स्रोतों से बेहतर क्यों हैं ?
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक स्रोत, बाह्य स्रोतों से निम्नलिखित कारणों से बेहतर हैं

1. अभिप्रेरणा में वृद्धि- सभी आंतरिक स्रोतों और विशेषकर पदोन्नति द्वारा भर्ती किए जाने पर कर्मचारियों की अभिप्रेरणा में वृद्धि होती है। यदि उन्हें पहले से ही मालूम हो कि उनकी पदोन्नति हो सकती है तो उच्च पद पर नियुक्त होने की इच्छा उनके मनोबल में वृद्धि करेगी और वे अपने कार्यों को अत्यधिक कुशलता के साथ करेंगे।

2. औद्योगिक शांति- भर्ती के आंतरिक स्रोतों का प्रयोग किए जाने पर पदोन्नति की खुशी में कर्मचारी वर्ग संतुष्ट रहता है और परिणामतः औद्योगिक शांति स्थापित होती है। पदोन्नति प्रक्रिया नीचे से ऊपर पूरे संगठन में चलती है। इसी विचार से कर्मचारी सीखने व अभ्यास करने पर पूरा जोर लगाते हैं।

3. सरल चयन- संस्था के अंदर काम कर रहे व्यक्तियों के बारे में हर तरह की जानकारी होती है। यही कारण है कि उनका उच्च पद के लिए चयन करने पर किसी प्रकार का जोखिम नहीं होता।

4. प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं- प्रस्तुतीकरण का अर्थ नए कर्मचारी को उस वातावरण से परिचित करवाना है जहाँ उसे काम करना है। भर्ती के इस स्रोत में कर्मचारियों को यह जानकारी पहले से ही होती है। अतः इस स्रोत में प्रस्तुतीकरण की आवश्यकता नहीं है।

5. प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं- चूँकि कर्मचारी पहले से प्रशिक्षित होते हैं तो उन्हें पुनः प्रशिक्षण देने की आवश्यकता नहीं होती। अतः प्रशिक्षण पर होने वाले खर्च से भी संस्था का बचाव होता है।

प्रश्न 7.
कार्य पर प्रशिक्षण तथा कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों में अंतर लिखिए।
उत्तर:
कार्य पर प्रशिक्षण तथा कार्य से परे प्रशिक्षण विधियों में अंतर –

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

प्रश्न 8.
नियुक्ति कार्य की आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाने वाले बिंदु लिखें।
उत्तर:
निम्नलिखित बिंदु नियुक्ति कार्य की आवश्यकता तथा महत्व को दर्शाते हैं

  1. यह अन्य साधनों का प्रभावपूर्ण उपयोग संभव बनाता है।
  2. यह अन्य प्रबंधकीय कार्यों के निष्पादन को संभव बनाता है।
  3. यह सही व्यक्ति को सही कार्य दिलाता है।
  4. यह कर्मचारियों के विकास में सहायक है।
  5. यह कर्मचारियों के आवश्यकता से अधिक होने को रोकता है।
  6. यह योग्य एवं सक्षम कर्मचारियों को खोजने में सहायक है।
  7. यह मानवीय व्यवहार की जटिलताओं का सामना करने में सहायक है।

प्रश्न 9.
प्रशिक्षण से कर्मचारियों को होने वाले लाभों की सूची बनायें।
उत्तर:
प्रशिक्षण से कर्मचारियों को निम्नलिखित लाभ होते हैं

  1. कार्य संतुष्टि।
  2. दुर्घटनाओं में कमी।
  3. बाजार मूल्य में वृद्धि।
  4. पदोन्नति की अच्छी संभावनाएँ।
  5. कार्यक्षमता एवं कार्यकुशलता में वृद्धि।
  6. जीवन स्तर में सुधार।

प्रश्न 10.
भर्ती के बाह्य स्रोत के रूप में वर्तमान कर्मचारियों की अनुशंसा (Recommendation of exisiting employees) पर प्रकाश डालें।
उत्तर:
वर्तमान कर्मचारियों की अनुशंसा (On the recommendations of existing employees)कई व्यावसायिक इकाइयाँ अपने कर्मचारियों को अपने यहाँ रोजगार देने के लिए उनके सगे-संबंधियों, मित्रों एवं अन्य जान-पहचान के लोगों के नामों के सिफारिश करने को प्रोत्साहित करती हैं। कुछ फर्मों का यह विश्वास है कि यह नीति एक मूल्यवान धरोहर है जिससे वर्तमान कर्मचारियों की साख भी बनी रहती है तथा इससे भरोसे के व्यक्ति भी मिल जाते हैं। इसके अतिरिक्त जब कोई वर्तमान कर्मचारी या व्यावसायिक मित्र किसी व्यक्ति की सिफारिश करता है तब अपने आप ही उस व्यक्ति की प्राथमिक जाँच हो जाती है।

प्रश्न 11.
चयन प्रक्रिया के चरण के रूप में शारीरिक या डॉक्टरी परीक्षा के उद्देश्य लिखें।
उत्तर:
चयन प्रक्रिया के चरण के रूप में डॉक्टरी परीक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य हैं

  1. संबंधित कार्य के लिए आवश्यक क्षमता की जानकारी प्राप्त करना।
  2. संस्थाओं को संक्रामक रोगों से सुरक्षित रखना।
  3. कानूनी दावों के अंतर्गत अनुचित दावों के विरुद्ध संस्था को सुरक्षा प्रदान करना।
  4. कर्मचारियों की चिकित्सा पर अत्यधिक खर्च को रोकना।
  5. दुर्घटनाओं की दर, श्रम-आवर्तन और अनुपस्थिति दर को कम करना।

प्रश्न 12.
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भर्ती के किन्हीं पाँच आंतरिक स्रोतों को समझाइए।
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक स्रोत – जब संगठन के भीतर से ही विभिन्न पदों की पूर्ति की जाती है तो इसे आंतरिक स्रोत कहते हैं। भर्ती के आंतरिक स्रोत निम्नांकित हैं

1. स्थानांतरण- जब किसी कर्मचारी को उसके पद के अनुरूप उसी पद के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजा जाता है तो इसे स्थानांतरण कहते हैं । स्थानांतरण होने पर अधिकारों तथा पारिश्रमिक के स्तर में कोई अंतर नहीं होता है।

2. पदोन्नति- जब कर्मचारियों को जो कि संगठन में पहले से ही कार्यरत हैं उन्हें अनुभव, वरिष्ठता तथा योग्यता के आधार पर पदोन्नत किया जाता है, इसे पदोन्नति कहते हैं।

3. अतिरेक कर्मचारियों का समायोजन- जब किसी कारणवश संगठन की किसी एक इकाई में कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो उन अतिरिक्त कर्मचारियों को संगठन की ही दूसरी इकाई में जहाँ कर्मचारियों की संख्या कम है, अंतरित कर दिया जाता है। इसे ‘अतिरेक कर्मचारियों का समायोजन’ कहा जाता है।

भर्ती के बाह्य स्रोत- जब संगठन के बाहर से कर्मचारियों को कार्य पर रखा जाता है तो इसे बाह्य स्रोत कहा जाता है। भर्ती के बाह्य स्रोत निम्नलिखित हैं

1. सेवानिवृत्त सैन्य कर्मचारी- मिलिट्री में कार्यरत कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति आयु कम होने के कारण प्रबंधक इन्हें भर्ती करना पसंद करते हैं क्योंकि ये बहुत मेहनती, निष्ठावान तथा अनुशासनप्रिय होते हैं।

2. भूतपूर्व कर्मचारियों की पुनर्नियुक्ति- ऐसे कर्मचारी जो छंटनी के परिणामस्वरूप निकाल दिए गए थे या स्वयं किन्हीं कारणवश काम छोड़कर गए थे परन्तु अब कार्य करने के इच्छुक हैं और ऐसे कर्मचारियों का पुराना रिकॉर्ड यदि अच्छा है तो नए कर्मचारियों की तुलना में इन्हें रखना लाभप्रद होता है।

3. वर्तमान कर्मचारियों के मित्र तथा रिश्तेदार- वर्तमान में कार्यरत कर्मचारियों के मित्र व रिश्तेदार जो कि योग्य एवं कर्तव्यनिष्ठ हों उन्हें भी रिक्त पद पर नियुक्त किया जा सकता है।

4. परिसर भर्ती- कारखानों या संस्थाओं द्वारा विभिन्न प्रार्थियों के आवेदन पत्र संस्था के द्वारा जमा करवा कर उनमें से कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

5. शिक्षण संस्थाओं तथा तकनीकी संस्थाओं द्वारा विभिन्न शिक्षण तथा तकनीकी संस्थाओं से संपर्क करके रिक्त स्थानों पर होनहार नवयुवकों का चयन करके उनकी आवश्यकतानुसार भर्ती की जाती है।

6. विज्ञापन द्वारा विभिन्न पत्र- पत्रिकाओं, समाचार-पत्रों, रेडियो, टेलीविजन तथा इंटरनेट पर विज्ञापन देकर भी आवेदन बुलवाए जा सकते हैं, जिनमें से योग्य कर्मचारियों का चयन किया जा सकता है।

प्रश्न 13.
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती के आंतरिक तथा बाह्य स्रोतों में अंतर –

आंतरिक स्रोत

  1. आंतरिक स्रोत का तात्पर्य संस्था में रिक्त पदों को विद्यमान कर्मचारियों से भरना है नए कर्मचारियों से भरना है।
  2. इसके अंतर्गत कम समय लगता है।
  3. यह मितव्ययी होते हैं।
  4. इसमें चुनाव की सुविधा सीमित होती है इसलिए अधिक कुशल कर्मचारी नहीं मिल पाते। ।
  5. इसके द्वारा कर्मचारियों के मनोबल में कमी होती है।
  6. इसके अंतर्गत पदोन्नति तथा स्थानान्तरण आते

बाह्य स्रोत

  1. बाह्य स्रोत का तात्पर्य संस्था में रिक्त पदों को
  2. इस स्रोत के अंतर्गत अधिक समय लगता है
  3. बाह्य स्रोत के द्वारा भर्ती में अधिक खर्च वहन करने पड़ते हैं।
  4. इसमें चुनाव की सुविधा विस्तृत होती है तथा श्रेष्ठ गुणवत्ता वाले कर्मचारी मिल जाते हैं।
  5. इसके द्वारा कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि आती है।
  6. इसके अंतर्गत रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती, विज्ञापन द्वारा भर्ती आदि आते हैं।

प्रश्न 14.
प्रशिक्षण से संस्था तथा कर्मचारियों को कौन-कौन से लाभ होते हैं ?
उत्तर:
प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा कर्मचारियों को किसी विशेष प्रकार के कार्य को सही तथा कुशलतापूर्वक पूरा करने के लिए उसके ज्ञान तथा निपुणता में वृद्धि की जाती है। प्रशिक्षण देने से संस्था तथा कर्मचारी दोनों को लाभ होता है।
संस्था को लाभ-प्रशिक्षण देने पर एक संस्था को निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. माल तथा मशीन का सही तथा मितव्ययी ढंग से प्रयोग होता है।
  2. उत्पादित माल की किस्म तथा मात्रा में सुधार होता है।
  3. दुर्घटनाओं में कमी आती है।
  4. पर्यवेक्षण की आवश्यकता कम पड़ती है।
  5. श्रमिकों की उपस्थिति बढ़ जाती है।
  6. औद्योगिक संबंधों में सुधार होता है।

कर्मचारियों को लाभ-प्रशिक्षण प्राप्त होने पर कर्मचारियों को निम्नांकित लाभ होते हैं

  1. कर्मचारियों का मनोबल बढ़ता है।
  2. दुर्घटनाओं का भय कम होता है।
  3. बाजार मूल्य में वृद्धि होती है।
  4. पदोन्नति के अवसरों में वृद्धि होती है।
  5. कार्यकुशलता तथा कार्यक्षमता बढ़ जाती है।
  6. कर्मचारियों के जीवन स्तर में सुधार होता है।

प्रश्न 15.
चार्ट के माध्यम से भर्ती के दोनों स्रोतों को समझाइए।
उत्तर:

MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 6 नियुक्तिकरण

प्रश्न 16.
भर्ती तथा चयन में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भर्ती तथा चयन में अंतर –
भर्ती

  1. भर्ती में भविष्य के लिए कर्मचारियों की खोज करके उन्हें आवेदन-पत्र भेजने हेतु प्रोत्साहित
  2. भर्ती, चयन से पहले की जाती है।
  3. भर्ती के विभिन्न स्रोत होते हैं।
  4. भर्ती में प्रार्थियों की संख्या बहुत अधिक होती है।
  5. भर्ती एक सकारात्मक प्रक्रिया है।
  6. भर्ती एक साधन है।

चयन

  1. चयन में प्रार्थियों को दो भागों में बाँटा जाता है एक वे जिन्हें चुना गया है तथा दूसरे वे जिन्हें किया जाता है।अयोग्य घोषित किया गया है।
  2. चयन, भर्ती के बाद होता है।
  3. चयन की एक निश्चित प्रक्रिया होती है।
  4. चयन में प्रार्थियों की संख्या भर्ती से बहुत कम होती है।
  5. चयन एक नकारात्मक प्रक्रिया है।
  6. चयन एक साध्य है।

प्रश्न 17.
प्रशिक्षण की कोई पाँच विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की पाँच विधियाँ निम्नलिखित हैं

1. कार्य पर प्रशिक्षण- इस विधि के अंतर्गत जिस स्थान पर कर्मचारी कार्य करते हैं उसी स्थान पर प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की जाती है। कार्य पर प्रशिक्षण देने का मुख्य उद्देश्य कम से कम समय में कर्मचारियों को अच्छी तरह से प्रशिक्षित करने से है। इसमें प्रशिक्षार्थी रुचि से कार्य सीखता है तथा काम की बारीकियों से परिचित हो जाता है। इस विधि का एक बड़ा दोष है कि कार्य में बाधा उत्पन्न होती है और उत्पादन में गिरावट आती है।

2. प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रशिक्षण- इस विधि में प्रशिक्षण देने के लिए अलग-अलग विशिष्ट प्रशिक्षण केन्द्र खोले जाते हैं। ऐसे प्रशिक्षण केन्द्र, सरकार या उद्योगपतियों द्वारा चलाए जाते हैं। इन केन्द्रों पर सैद्धांतिक तथा व्यावहारिक दोनों प्रकार के प्रशिक्षण पर बल दिया जाता है। इस विधि में उत्पादन कार्य में कोई बाधा उत्पन्न नहीं होती।

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3. पर्यवेक्षकों द्वारा प्रशिक्षण- पर्यवेक्षकों द्वारा जब प्रशिक्षण दिया जाता है तो प्रशिक्षणार्थियों को अपने अधिकारियों से परिचित होने का अवसर भी मिल जाता है। साथ ही पर्यवेक्षकों को भी प्रशिक्षणार्थियों की योग्यता, दक्षता तथा संभावनाओं को परखने का अवसर मिल जाता है।

4. यंत्रों द्वारा प्रशिक्षण- यह प्रशिक्षण की आधुनिक विधि है। इसमें यंत्रों का बड़े पैमाने पर प्रयोग होता है। ये यंत्र प्रशिक्षणार्थियों को काम के बारे में विभिन्न सूचनाएँ देते हैं।

5. उद्योग में प्रशिक्षण- वर्तमान समय में उद्योग में प्रशिक्षण देने का ढंग अत्यधिक लोकप्रिय हो गया है। इसमें उद्योग की आवश्यकता के अनुरूप ही कर्मचारियों को प्रशिक्षण दिया जाता है।

प्रश्न 18.
भर्ती के बाह्य स्रोत में इंटरनेट द्वारा प्रकाशन (वेब प्रकाशन) क्या है ?
उत्तर:
वर्तमान समय में इंटरनेट का प्रयोग दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। इंटरनेट, भर्ती का एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्रोत बन गया है क्योंकि आज की युवा पीढ़ी इंटरनेट से बहुत प्रभावित है। इंटरनेट पर भर्ती के लिए विशेष वेबसाइट बनाई जा रही है। इन वेबसाइटों के द्वारा प्रार्थियों को संपूर्ण जानकारी दी जाती है कि किस कंपनी को किस योग्यता के व्यक्ति, कितनी संख्या में चाहिए। वांछित योग्यता रखने वाले व्यक्ति इन कंपनियों में संपर्क करके नौकरी प्राप्त कर सकते हैं। कुछ सामान्य वेबसाइट हैं
Naukri.com.,Monster.com, www.jobstreet.com, www. click. job. com. आदि।

प्रश्न 19.
प्रशिक्षण तथा विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण तथा विकास में अंतरप्रशिक्षण
प्रशिक्षण

  1. प्रशिक्षण, ज्ञान तथा कौशल बढ़ाने की प्रक्रिया होती है।
  2. प्रशिक्षण अल्पकालीन होता है।
  3. प्रशिक्षण निम्न तथा मध्यम स्तर के कर्म चारियों के लिए उपयोगी होता है।
  4. प्रशिक्षण की एक निश्चित समयावधि होती है।
  5. प्रशिक्षण का क्षेत्र सीमित होता है।

विकास

  1. विकास, सीखने तथा वृद्धि की प्रक्रिया है।
  2. विकास दीर्घकालीन होता है।
  3. विकास का सम्बन्ध उच्च स्तर से होता है।
  4. विकास की कोई निश्चित समयावधि नहीं होती।
  5. विकास का क्षेत्र विस्तृत होता है।

प्रश्न 20.
प्रशिक्षण की आवश्यकता (महत्व) के कोई पाँच बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की आवश्यकता (महत्व) के प्रमुख बिन्दु निम्नांकित हैं

1. उत्पादकता में वृद्धि हेतु- प्रशिक्षण का मुख्य उद्देश्य यह है कि किसी भी कार्य को अच्छे ढंग तथा शीघ्र कैसे किया जाए। प्रशिक्षण द्वारा कर्मचारियों में कार्य के प्रति लगन में वृद्धि होती है। उनका आत्मविश्वास बढ़ता है जिसके परिणामस्वरूप कार्यक्षमता में वृद्धि होती है इस प्रकार उपक्रम के उत्पादन में वृद्धि होती है।

2. दुर्घटनाओं में कमी- प्रशिक्षित कर्मचारी कार्य को सही ढंग से करता है। उसे पता होता है कि मशीनों एवं यंत्रों का उपयोग किस प्रकार करना है तो दुर्घटनाओं में भी कमी आती है। दुर्घटना को किस प्रकार टाला जा सकता है, सभी प्रशिक्षण के दौरान बताया जाता है।

3. पर्यवेक्षण तथा निर्देशन में कमी हेतु- किसी भी कार्य को सही ढंग से करने के लिए पर्यवेक्षण तथा निर्देशन दिया जाता है लेकिन एक प्रशिक्षित कर्मचारी अपने कार्य को सही व उचित तरीके से सम्पन्न कर लेता है। इसलिए प्रशिक्षण के बाद पर्यवेक्षण तथा निर्देशन करने की आवश्यकता नहीं होती है।

4. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि- प्रशिक्षित कर्मचारी अपने कार्य को पूर्ण कौशल के साथ करता है जिसके फलस्वरूप उसे कार्य में स्थायित्व मिलता है, पदोन्नति के अवसर अधिक मिलते हैं और उसके मनोबल में वृद्धि होती है।

5. स्थायित्व की भावना में वृद्धि- जब कोई भी संस्था किसी कर्मचारी को प्रशिक्षण प्रदान करती है तो प्रशिक्षण के दौरान उस पर अतिरिक्त भार बढ़ता है जिसकी पूर्ति वह कर्मचारी से कार्य करवाकर करती है। अतः कर्मचारी को कार्य में स्थायित्व प्रदान किया जाता है।

6. कार्यक्षमता व कुशलता में वृद्धि- प्रशिक्षण में विशेष कार्य को विधिपूर्वक करने की कला सिखाई जाती है। इससे कर्मचारियों की कार्यक्षमता एवं कुशलता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 21.
चयन क्या है ? इसकी प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चयन का आशय, बाहरी व्यक्तियों का परीक्षण करके, उनका साक्षात्कार लेकर उन्हें नियुक्त करने का निर्णय लेना है। चयन करने का मुख्य लक्ष्य होता है, सही व्यक्ति को सही कार्य पर लगाया जाये।
चयन की प्रक्रिया-चयन की सामान्य प्रक्रिया निम्न प्रकार है

1. पूर्व परीक्षाओं- चयन पूर्व परीक्षा के माध्यम से अयोग्य प्रत्याशियों को अलग कर दिया जाता है। इस पूर्व परीक्षा में सफल प्रत्याशी ही मुख्य परीक्षा में बैठने की पात्रता रखते हैं।

2. प्रारंभिक साक्षात्कार- प्रारंभिक साक्षात्कार में प्रार्थी की उपयुक्तता के बारे में निर्णय लेने में सहायता प्राप्त होती है। यदि प्रार्थी उपयुक्त पाया जाता है तो उसे रिक्त पद की नियुक्ति की अन्य औपचारिकताओं को पूरा करना पड़ता है।

3. रिक्त आवेदन पत्र भेजना- चयन करने के पश्चात् चयनित प्रत्याशी को एक रिक्त आवेदन पत्र भरने के लिए दिया जाता है। इसमें आवेदन के द्वारा अपनी शैक्षणिक योग्यता, अनुभव, अभिरुचि, वर्तमान स्थिति तथा संभावित वेतन आदि की जानकारी प्राप्त की जाती है। इस प्रपत्र के तीन भाग होते हैं

  • व्यक्तिगत जानकारी
  • मनोवैज्ञानिक जानकारी
  • कार्य एवं योग्यता सम्बन्धी जानकारी।

4. आवेदन पत्र की जाँच- जब आवेदक द्वारा आवेदन पत्र भरकर संस्थान को भेज दिया जाता है तो आवेदन पत्र के साथ संलग्न संदर्भ पत्र तथा अनुभव आदि की जाँच की जाती है। प्रार्थी जब चयन की समस्त प्रक्रियाओं में सफल हो जाता है तब उसे नियोक्ता द्वारा एक पत्र निर्गमित किया जाता है जिसे नियुक्ति-पत्र कहते हैं।।

5. मुख्य परीक्षा- प्रत्याशी के चयन का आधार मुख्य परीक्षा ही होता है। इसे मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी कहते हैं। यह परीक्षा मुख्यतः लिखित में होती है। मुख्य परीक्षा में योग्यता परीक्षण, कार्य परीक्षण, अभिरुचि परीक्षण, व्यक्तित्व परीक्षण, बुद्धि परीक्षण, भाषा-योग्यता तथा रुझान परीक्षण होते हैं।

प्रश्न 22.
चयन के प्रमुख सिद्धान्तों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कर्मचारियों का चयन करते समय निम्नांकित सिद्धान्तों का पालन करना चाहिए

  1. सक्षम व्यक्तियों द्वारा चयन- चयन हमेशा सक्षम व्यक्ति द्वारा ही किया जाना चाहिए। आवश्यकता पड़ने पर बाहरी विशेषज्ञों की सेवाएँ भी ली जा सकती हैं। इससे सर्वश्रेष्ठ कर्मचारी के चयन की संभावना अधिक होती है।
  2. निर्धारित प्रभावों के आधार पर चयन हमेशा निर्धारित प्रमापों के आधार पर ही होना चाहिए ताकि संस्था में किसी भी अयोग्य कर्मचारी की नियुक्ति नहीं हो सके।
  3. उपयुक्त स्त्रोत- चयन आंतरिक तथा बाह्य किसी भी स्रोत से किया जा सकता है मुख्यत: यह बात ध्यान में रखी जाए कि सर्वश्रेष्ठ प्रत्याशी का चयन होना चाहिए।
  4. चयन, संस्था की नीति के अनुरूप- यदि संस्था द्वारा कोई नीति निर्धारित की गई है तो चयन करते समय उसे ध्यान में रखा जाए, उसी के अनुरुप चयन होना चाहिए।
  5. सभी पहलुओं पर विचार- चयन करते समय व्यक्ति की शैक्षणिक योग्यता, उसकी कार्य के प्रति रुचि, स्वास्थ्य, अनुभव आदि बातों पर विचार किया जाना चाहिए।
  6. लोच- चयन की प्रक्रिया लोचदार होनी चाहिए अर्थात् संस्था के हित में आवश्यकता पड़ने पर आसानी से परिवर्तन किया जा सके।

प्रश्न 23.
भर्ती की पद्धतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किसी उद्योग या व्यवसाय में श्रम को एकत्र करने के लिये श्रमिकों की भर्ती आवश्यक है। श्रमिकों की भर्ती की पद्धति अलग-अलग हो सकती है किसी भी एक पद्धति पर निर्भर रहना उचित नहीं होता है अतः आवश्यकतानुसार एक या अनेक पद्धतियों का प्रयोग किया जाना चाहिये। कर्मचारियों की भर्ती के लिये सामान्यतः निम्नलिखित पद्धतियाँ अपनाई जाती हैं

1. मध्यस्थों द्वारा भर्ती (Recruitment through intermediary)– मध्यस्थों द्वारा कर्मचारियों की भर्ती की पद्धति अत्यधिक प्राचीन है। इस पद्धति में चौधरी, सरदार, मुकद्दम, ठेकेदार एवं दलालों द्वारा दूरस्थ क्षेत्रों से श्रमिकों व कर्मचारियों को लाकर श्रम की पूर्ति करते हैं। यह पद्धति वर्तमान में अव्यावहारिक, शोषणकारी तथा अवैज्ञानिक मानी जाती है।

2. विज्ञापन द्वारा भर्ती (Recruitment through advertisement)- विज्ञापन श्रम पूर्ति का एक महत्त्वपूर्ण साधन माना जाता है। इस पद्धति में नियोक्ता समाचार पत्र या रोजगार समाचार पत्रों में कर्मचारियों की आवश्यकता का विज्ञापन प्रकाशित करवाते हैं इसमें योग्यतायें, वेतन, भत्ते व अन्य शर्ते भी प्रकाशित की जाती हैं इच्छुक व योग्य व्यक्ति विज्ञापन पढ़कर आवेदन करते हैं व नियोक्ता आवेदकों में से योग्य व्यक्ति को कार्य पर नियुक्त कर देते हैं इस पद्धति में दूर-दूर के क्षेत्रों से योग्य कर्मचारियों को कार्य पर लगाया जा सकता है।

3. रोजगार कार्यालय द्वारा भर्ती (Recruitment through employment exchange) वर्तमान में प्रत्येक जिला स्तर पर व प्रत्येक विश्वविद्यालयों में रोजगार कार्यालय (केन्द्र). प्रारम्भ किये गये हैं जहाँ पर रोजगार से सम्बन्धित जानकारी प्राप्त की जाती है। साथ ही यहाँ बेरोजगार युवक / युवतियों की विस्तृत जानकारी भी उपलब्ध रहती है। नियोक्ता या भर्तीकर्ता रोजगार केन्द्रों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति कर सकते हैं।

4. प्रत्यक्ष भर्ती (Direct recruitment) – यह पद्धति आधुनिक समय में काफी प्रचलित व उपयुक्त मानी गई है। क्योंकि इसमें भर्तीकर्ता को अपने मनपसन्द व योग्य व्यक्ति को सीधे भर्ती करने का सुअवसर प्राप्त हो जाता है। इस पद्धति में विधिवत् आवेदन पत्रों को बुलाना, छाँटना, साक्षात्कार आदि समस्त क्रियायें क्रमवार की जाती हैं कुछ मनोवैज्ञानिक परीक्षण भी इसमें किये जाते हैं। यह विधि पूर्णतः आधुनिक, वैज्ञानिक तथा व्यावहारिक होने के कारण अधिकांश प्रतिष्ठानों द्वारा इसे अपनाया जा रहा है।

5. श्रम संघों द्वारा भर्ती (Recruitment through trade union) – कुछ उपक्रमों में या कुछ श्रम संगठन जैसे एटक, इन्टुक, हिन्द मजदूर सभा, ए. आई. फुटकों आदि अत्यधिक महत्त्वपूर्ण एवं सशक्त होते हैं। रोजगार से सम्बन्धित जानकारी इनके कार्यालय में सदैव उपलब्ध होती है अतः आवश्यकतानुसार श्रम संघों के माध्यम से भी श्रम पूर्ति की जा सकती है।

6. मित्रों एवं रिश्तेदारों द्वारा भर्ती (Recruitment through friends and relatives)- कुछ उपक्रम अपने कर्मचारी व प्रबन्धकों को यह निर्देशित करते हैं कि वे अपने विश्वासपात्र व योग्य मित्रों व रिश्तेदारों को कार्य करने के लिये प्रोत्साहित करें। इससे अच्छे व योग्य कर्मचारी प्राप्त हो जाते हैं तथा इन कर्मचारियों पर विश्वास किया जा सकता है तथा गोपनीयता पर भरोसा किया जा सकता है किन्तु इस पद्धति में वर्तमान में काफी दोष आ गये हैं तथा गलत व्यक्ति के कार्य पर भर्ती हो जाने का सन्देह बना रहता है इस कारण इसे अव्यावहारिक पद्धति माना गया है।

प्रश्न 24. आंतरिक स्रोत के लाभ लिखिए।
उत्तर:
आन्तरिक स्रोत के लाभ (Merits of internal sources)-भर्ती के आंतरिक स्रोतों के निम्नलिखित लाभ हैं

1. सामान्य नियमों की जानकारी संस्था में अनेक वर्षों से कार्य करने के कारण इन कर्मचारियों को संस्था के सामान्य नियमों व व्यावसायिक नीतियों की जानकारी अच्छी तरह से होती है। अतः नये कर्मचारियों की भांति इन्हें जानकारी देना आवश्यक नहीं होता इससे समय व धन की बचत होती है।

2. कर्मचारियों के मनोबल में वृद्धि इस प्रणाली में कर्मचारियों का मनोबल सदैव उच्च बना रहता है,क्योंकि उन्हें यह ज्ञात रहता है कि कभी न कभी उनकी पदोन्नति अवश्य होगी। अत: वे काफी लगन व उत्साह
से कार्य करते हैं।

3. पदोन्नति के द्वार खुले रहना आंतरिक स्रोत से भर्ती विधि में सभी कर्मचारियों के लिये पदोन्नति के द्वार खुले रहते हैं। प्रत्येक कर्मचारी आशावान रहता है कि उसकी पदोन्नति भविष्य में अवश्य होगी।

4. भर्ती पर न्यूनतम व्यय – भर्ती की इस प्रणाली में न्यूनतम व्यय होता है, क्योंकि वे सभी औपचारिकतायें जो बाह्य स्रोतों में करनी पड़ती हैं तथा उन पर जो व्यय होता है, वह आंतरिक भर्ती में नहीं करना पड़ता। इससे उपक्रम अपव्यय से बच जाता है।

5. कार्यक्षमता में वृद्धि – इस विधि में सभी कर्मचारियों को यह ज्ञात रहता है कि उनकी भविष्य में पदोन्नति होगी। साथ ही अधिक कार्यकुशल व लगनशील कर्मचारियों की पदोन्नति शीघ्र होगी इसी उम्मीद से कर्मचारी पूर्ण लगन एवं आस्था से कार्य करते हैं। इससे कर्मचारियों की क्षमता में वृद्धि होती है।

प्रश्न 25.
प्रशिक्षण की परिभाषा लिखिए व प्रशिक्षण की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण की परिभाषायें (Definitions of Training)

1. एडविन बी. फ्लिप्पो (Edwin B. Flippo) के अनुसार-“किसी विशिष्ट कार्य को करने के लिये कर्मचारी के ज्ञान, कौशल में वृद्धि करने से संबंधित क्रिया को प्रशिक्षण कहते हैं।”

2. डेल एस. बीच (Dale S. Beach) के अनुसार-“प्रशिक्षण एक ऐसी संगठित कार्यविधि है, जिसके द्वारा लोग किसी निश्चित उद्देश्य के लिये ज्ञान एवं कौशल सीखते हैं।”

3. माइकल जे. जूसियस (Michael J. Jucius) के अनुसार-“प्रशिक्षण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा विशिष्ट कार्यों के सम्पादन हेतु कर्मचारियों की अभिवृत्तियों, निपुणताओं एवं योग्यताओं में अभिवृद्धि की जाती है।”

4. प्लाण्टी, कोर्ड एवं इफर्सन (Planty, Cord and Efferson)-“प्रशिक्षण सभी स्तर के कर्मचारियों के उस ज्ञान, उन चातुर्यों तथा अभिवृत्तियों का सतत् एवं विधिवत् विकास है जो उनके तथा कम्पनी के कल्याण में योगदान देते हैं।”

वास्तव में जब हम किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन के लिये कुछ कार्य करते हैं तो इसे प्रशिक्षण कहा जाता है। इस प्रकार किसी विशिष्ट कार्य को विशिष्ट ढंग से करने की कला, ज्ञान एवं कौशल संबंधी शिक्षा प्रशिक्षण कहलाती है।

See also  MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 3 प्रबंध एवं व्यावसायिक वातावरण

प्रशिक्षण की विश्नाथिया (Characteristics of Training)
प्रशिक्षण के आशय एवं परिभाषाओं की व्याख्या के पश्चात् इसकी निम्न विशेषतायें बताई जा सकती हैं।

  1. प्रशिक्षण कर्मचारी विकास की एक सतत् प्रक्रिया है।
  2. प्रशिक्षण कर्मचारियों के विकास का एक सुनिश्चित ढंग है।
  3. प्रशिक्षण से कर्मचारी के ज्ञान व कौशल में अभिवृद्धि होती है।
  4. प्रशिक्षण से कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है।
  5. प्रशिक्षण मानव पूँजी (Human capital) में साभिप्राय विनियोग (Objective investment) है।
  6. प्रशिक्षण की व्यवस्था करना उपक्रम का उत्तरदायित्व एवं आवश्यकता है।
  7. प्रशिक्षण से कर्मचारियों को आत्मसन्तुष्टि मिलती है।

प्रश्न 26.
प्रशिक्षण के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
प्रशिक्षण के उद्देश्य (Objectives of Training)
किसी भी उपक्रम, संस्था या संगठन के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम एक आवश्यकता बन गई है। प्रशिक्षण के बिना औद्योगिक सफलता का प्रयास व्यर्थ होगा।
कीथ डेविस के अनुसार-“प्रशिक्षण का उद्देश्य किसी ऐसे व्यक्ति को नवीन अनुभव प्रदान करना है जो उसके ज्ञान, कौशल अथवा दृष्टिकोण में परिवर्तन द्वारा उसके आचरण में पविर्तन लाये।”प्रशिक्षण के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं.

1. व्यवसाय की सामान्य जानकारी देना- नव नियुक्त कर्मचारी को व्यवसाय की सामान्य जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से सामान्य प्रशिक्षण आयोजित किया जाता है। कभी-कभी स्थानांतरण या कार्य परिवर्तन के कारण भी नये स्थान,नये कार्य की जानकारी प्रदान करने बाबत् प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है।

2. कर्मचारियों के मनोबल को बढ़ाने हेतु- प्रशिक्षण से कर्मचारी का मनोबल सदैव ऊँचा रहता है तथा अप्रशिक्षित कर्मचारी का मनोबल प्रतिकूल रहने से इसका उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। अतः उत्पादन व कार्य में वांछित प्रगति के लिए कर्मचारियों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है।

3. सूचना प्रसारित करने हेतु- व्यवसाय एवं उद्योग में कुछ ऐसी सूचनायें दी जाती हैं जिन्हें प्रशिक्षण केन्द्रों पर प्रदर्शन द्वारा देना महत्वपूर्ण होता है। अतः ऐसी सूचना कर्मचारियों में प्रदान करने के उद्देश्य से भी प्रशिक्षण आवश्यक है।

4. संगठन के प्रति निष्ठावान बनाना- प्रत्येक संगठन के लिए कर्मचारियों का निष्ठावान होना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे समर्पित भावना से कार्य करें। प्रशिक्षण के दौरान विभिन्न मनोवैज्ञानिकों, प्रबन्धकों व श्रम संगठनों के नेताओं द्वारा विभिन्न विचारों व उत्प्रेरक भावनाओं द्वारा कर्मचारियों को निष्ठावान बनाना प्रशिक्षण का उद्देश्य है।

5. उत्पादन में वृद्धि हेतु- प्रत्येक उपक्रम उत्पादन में वृद्धि चाहता है इस हेतु कुशल कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। कुशल कर्मचारी प्रशिक्षण द्वारा बनाये या तैयार किये जाते हैं। अतः उत्पादन में वृद्धि करने, बाजार का विस्तार करने के उद्देश्य से कर्मचारियों को प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

6. देहातीपन को दूर करना- यहाँ देहातीपन का आशय पुरानी रूढ़िवादी विचारधारा व कार्यशैली से है। वर्तमान वैज्ञानिक युग में पुरानी शैली से विकास की बात करना व्यर्थ है अत: संस्था के पुराने कर्मचारियों के मन मस्तिष्क से देहातीपन की विचारधारा को हटाने के उद्देश्य से प्रशिक्षण देना आवश्यक है।

प्रश्न 27.
मानव शक्ति नियोजन की अवधारणा को समझायें। इसके कितने पहलू हैं ? उन पहलुओं को समझाइयें।
उत्तर:
मानव शक्ति नियोजन (Man power planning)- मानव शक्ति नियोजन कर्मचारियों की माँग एवं पूर्ति में संतुलन स्थापित करने की प्रक्रिया है। इसके द्वारा संगठन की वर्तमान तथा भावी मानवीय आवश्यकताओं की व्याख्या की जाती है। यह मानव संसाधन प्राप्त करने, उपयोग करने, सुधार करने अथवा बनाये रखने की एक व्यूह रचना है। इसमें संस्था के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आवश्यक मानव शक्ति की संख्या एवं किस्म का निर्धारण किया जाता है। मानव शक्ति नियोजन में मानव साधन के संबंध में नीतियों तथा कार्यविधियों का निर्माण किया जाता है ताकि कर्मचारियों की भर्ती एवं चयन भली-भाँति किया जा सके।
मानव शक्ति नियोजन के दो पहलू हैं

1. परिमाणात्मक पहलू (Quantitative aspect)- सर्वप्रथम कितने कर्मचारियों की आवश्यकता होगी, इसका अनुमान लगाया जाता है। यह अनुमान लगाते समय कार्यभार विश्लेषण में उत्पादन व विवरण बजटों के आधार पर कार्य की आवश्यकताओं को निश्चित किया जाता है। श्रम शक्ति विश्लेषण के अंतर्गत वर्तमान श्रम शक्ति, श्रम अनुपस्थिति,

स्थानांतरण तथा पदोन्नति, संस्था के विकास की दर आदि को ध्यान में रखकर नए कर्मचारियों की संख्या निर्धारित की जाती है। इस पहलू में विद्यमान मानव शक्ति और अपेक्षित मानव शक्ति की तुलना करके मानव शक्ति की परिमाणात्मक आवश्यकता का अनुमान लगाया जाता है। वर्तमान मानव शक्ति का विश्लेषण मानव शक्ति अंकेक्षण कहलाता है।

2. गुणात्मक पहलू (Qualitative aspect)- कर्मचारियों की संख्या का अनुमान लगाने के पश्चात् उनमें किस प्रकार की योग्यता, अनुभव एवं अभिरुचि होनी चाहिए इसका निर्धारण किया जाता है। इसके लिए कार्य का विश्लेषण आवश्यक है। आवश्यक मानवशक्ति के प्रकार (Type) की गणना करते समय कंपनी को पिछड़े समुदाय के लोगों, महिलाओं, विशेष आवश्यकताओं वाले लोगों इत्यादि में से नियुक्त किए जाने वाले व्यक्तियों की संख्या के संबंध में भी नीति बना लेनी चाहिए।

प्रश्न 28.
नियुक्तिकरण की विशेषताएँ संक्षेप में लिखें।
उत्तर:
नियुक्तिकरण की विशेषताएँ (Feature of staffing)– नियुक्तिकरण की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. जनकेंद्रित (People-centred) – नियु क्तिकरण जनकेंद्रित है। यह व्यक्तियों पर केंद्रित है। इसका संबंध संस्था में ऊपर से लेकर नीचे तक सभी श्रेणियों के कर्मचारियों से है। नियुक्तिकरण में मनुष्यों की भर्ती की जाती है। उनका चयन किया जाता है। उनको प्रशिक्षण दिया जाता है।
उनका विकास किया जाता है। दूसरे शब्दों में नियुक्तिकरण की प्रत्येक क्रिया मनुष्य से संबंधित है। संगठन तथा नियोजन की तरह यह कोई कागजी कार्य नहीं है, अपितु योग्य व्यक्तियों को संगठन में विभिन्न पदों पर लगाना है।

2. एक पथक प्रबंधकीय कार्य (A separate managerial function) – नियुक्तिकरण प्रबंध का एक पृथक् तथा महत्वपूर्ण कार्य है। यह कार्य प्रबंध के अन्य कार्यों का अंग नहीं है। प्रत्येक प्रबं धक नियुक्तिकरण का कार्य करता है।

3. सभी प्रबंधकीय स्तरों पर आवश्यक (Essential at all levels of management) – कर्मचारी नियुक्ति कार्य की आवश्यकता सभी प्रबंधकीय स्तरों पर होती है। अलग से सेविवर्गीय विभाग (Personnel department) की स्थापना के बाद भी प्रत्येक प्रबंधक को नियुक्ति का कार्य करना पड़ता है।

4. व्यापक क्षेत्र (Wide scope) – नियुक्तिकरण का कार्यक्षेत्र बहुत ही व्यापक है। इसमें कर्मचारियों की भर्ती, चयन, प्रशिक्षण, विकास, उनके पारिश्रमिक एवं निष्पादन मूल्यांकन से संबंधित अनेक क्रियायें शामिल हैं।

5. कार्मिक (सेविवर्गीय) प्रबंध से भिन्न (Different from personnel management) – यद्यपि नियुक्तिकरण तथा सेविवर्गीय के सिद्धांत समान हैं परंतु फिर भी नियुक्तिकरण सेविवर्गीय प्रबंध से भिन्न है। नियुक्तिकरण प्रबंधकों से संबंधित है जबकि सेविवर्गीय प्रबंध अन्य प्रकार के कर्मचारियों से संबंध रखता है।

7. निरंतर सामंजस्य बनाना (Making continuous adjustment) – नियुक्तिकरण पद तथा व्यक्ति में निरंतर सामंजस्य स्थापित करने की क्रिया है।

8. उद्देश्य (Objective)- नियुक्तिकरण का उद्देश्य संगठन के कार्यों का निर्बाध एवं कुशल संचालन संभव बनाना है।

प्रश्न 29.
शिक्षा व प्रशिक्षण में अंतर लिखिए।
उत्तर:
शिक्षा एवं प्रशिक्षण में अन्तर (Difference between Education and Training) प्रायः शिक्षा व प्रशिक्षण दोनों को एक ही माना जाता है किन्तु इन दोनों के उद्देश्य अधिक ज्ञान व जानकारी देना है परन्तु इसके बावजूद भी इन दोनों में पर्याप्त अन्तर है। मूलभूत अंतर इस प्रकार है

  1. शिक्षा एक विशिष्ट पाठ्यक्रम (Syllabus) के अनुरूप दी जाती है। यह पाठ्यक्रम दीर्घकाल तक प्रभावशील रहता है जबकि प्रशिक्षण में कार्य करने का ढंग महत्वपूर्ण होता है।
  2. शिक्षा दीर्घकालीन योजना है जो लगातार प्रतिवर्ष दी जाती है परन्तु प्रशिक्षण अल्पकालीन होता है।
  3. शिक्षा में गुरु-शिष्य या विद्यार्थी-शिक्षक का सम्बन्ध होता है जो दोनों के मध्य एक सम्मान का सूचक है। प्रशिक्षण में प्रशिक्षार्थी तथा मास्टर या प्रशिक्षक का सम्बन्ध होता है जिसमें दोनों के मध्य अल्पकालीन औपचारिक संबंध रहता है।
  4. शिक्षा सामान्य ज्ञान से संबंधित है जबकि प्रशिक्षण विशिष्ट ज्ञान से संबंधित होता है।
  5. शिक्षा से मनुष्य का सर्वांगीण विकास होता है, प्रशिक्षण से मनुष्य को किसी विशिष्ट क्षेत्र का ही ज्ञान होता है।
  6. शिक्षा राष्ट्र या राज्यव्यापी होता है जबकि प्रशिक्षण किसी विशिष्ट विभाग के कर्मचारियों के लिये होता है।
  7. शिक्षा का संबंध स्कूल, मदरसा, विद्यालय, महाविद्यालय आदि से रहता है जबकि प्रशिक्षण का सम्बन्ध प्रशिक्षण केन्द्र या स्थल से होता है। –
  8. शिक्षा में बालक को अंधकार (अज्ञान) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर ले जाया जाता है। प्रशिक्षण में कोई विशिष्ट जानकारी दी जाती है।

प्रश्न 30.
भर्ती के सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
संसार में किसी भी कार्य को सम्पन्न करने के लिये कुछ मार्गदर्शक या सिद्धांतों की आवश्यकता पड़ती है ये मार्गदर्शक या सिद्धान्त ही भर्ती की नीति कहलाती है। आदर्श भर्ती नीति प्रत्येक स्वामी (भर्तीकर्ता) के लिये आवश्यक है कि वह उनका पालन करे। वर्तमान में भर्ती का कार्य सेविवर्गीय प्रबन्धकों द्वारा किया जाता है अतः उन्हें निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिये

  1. भर्ती कार्य शीर्ष प्रबन्ध से भर्ती से सम्बन्धित समस्त कार्य हमेशा उच्च या शीर्ष प्रबन्ध से ही होना चाहिये ताकि भर्ती में किसी भी प्रकार का पक्षपात या विरोधाभासी कार्य न हो सके।
  2. विभिन्न विभागों से रिक्त स्थान की जानकारी – शीर्ष विभाग को विभिन्न विभागों से विभिन्न पदों पर रिक्त स्थान की जानकारी हेतु समय-समय पर बुलाना चाहिये ताकि उसी के अनुरूप भर्ती की जा सके ।
  3. आवश्यकता के अनुरूप भर्ती – उपक्रम में वर्तमान में जितने पद रिक्त हों उतने पदों पर ही भर्ती करनी चाहिये अधिक भर्ती से उपक्रम पर अनावश्यक आर्थिक बोझ बढ़ता है तथा कम भर्ती करने पर कार्य पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न हो सकती है।
  4. भर्ती हेतु अलग विभाग भर्ती का कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। अतः इस हेतु कुशल व अनुभवी भर्तीकर्ता का चयन कर, अलग विभाग या शाखा खोलनी चाहिये, जिसे सेविवर्गीय विभाग या भर्ती शाखा का नाम दिया जा सकता है।
  5. नये पदों की स्वीकृति कार्य बढ़ जाने से अतिरिक्त पदों की आवश्यकता हो तो अतिरिक्त पद निर्माण की स्वीकृति नियोक्ता से ही लेनी चाहिये। चूँकि अतिरिक्त पद निर्माण से आर्थिक बोझ बढ़ जाता है।

प्रश्न 31.
सेविवर्गीय विकास क्या है ? इसके मुख्य उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
आशय- विकास एक सामान्य शब्द है जिसका आशय बढ़ाना, विस्तार करना, प्रगति करना, उच्च स्तर बढ़ाना आदि से है। यहाँ पर विकास का संबंध सेविवगीर्य विकास से है जिसमें संस्था में कार्य करने वाले कर्मचारियों या प्रबंधकों के विकास का कार्य किया जाता है।

कर्मचारी विकास के उद्देश्य (Objectives of Employee development) – प्रबन्धकीय विकास में कर्मचारी विकास एक महत्वपूर्ण कार्य है। किसी भी उपक्रम में कर्मचारी विकास के सामान्यतः निम्न उद्देश्य होते हैं

1. योग्य श्रम शक्ति की लगातार पूर्ति (Continued supply of competent labour force) – किसी भी प्रबन्ध में कर्मचारी विकास एक लगातार प्रक्रिया है। योग्य कर्मचारी एवं प्रबन्धकों की लगातार पूर्ति के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है क्योंकि उनके हित में योजना (कार्य) न होने पर कार्य छोड़ने की प्रवृत्ति बढ़ सकती है।

2. विकास एवं लाभ प्राप्ति के लिये (For getting development and profit) – किसी भी उपक्रम की स्थापना लाभ प्राप्ति के लिये की जाती है तथा लाभ-प्राप्ति पर ही उपक्रम का विकास निर्भर है। उपक्रम की सफलता व उसका विकास कर्मचारियों की योग्यता व कार्यक्षमता पर आधारित होती है अतः उपक्रम के विकास एवं लाभ प्राप्ति के लिये कर्मचारियों का पर्याप्त विकास कार्य आवश्यक है।

3. मानव शक्ति का अधिकतम उपयोग के लिये (For maximum use of manpower) – उत्पादन के विभिन्न घटकों में श्रम (मानव) शक्ति का विशिष्ट एवं पृथक् स्थान होता है। कर्मचारी स्वयं प्रेरित होकर तभी कार्य करेगा जब वह स्वयं सन्तुष्ट हो, उसकी सन्तुष्टि के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है ताकि उसका अधिकतम उपयोग किया जा सके।

4. कर्मचारी प्रतिभा का विकास (Developement of employee’s talent) – कुछ न कुछ प्रतिभा प्रत्येक व्यक्ति में होती है प्रबन्ध एवं उपक्रम में चुने हुये कर्मचारी कार्य करते हैं अतः इनकी प्रतिभा को विकसित कर उसका अधिकतम लाभ लेने के लिये कर्मचारी विकास आवश्यक है। उपक्रम में उत्पादकता में वृद्धि करने के लिये कर्मचारी प्रतिभा का विकास आवश्यक है।

5. उच्चस्तरीय मूल्यांकन (Higher level assignments) – जब तक कर्मचारी का पर्याप्त एवं सर्वांगीण विकास नहीं होगा तब तक उसका उच्चस्तरीय मूल्यांकन नहीं हो सकता । कर्मचारी के कार्य को परखने (Examine) के लिये उसका मूल्यांकन आवश्यक है अतः उसके मूल्यांकन के लिये भी कर्मचारी का विकास आवश्यक है।

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