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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 4 नियोजन
नियोजन Important Questions
नियोजन वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
प्रश्न 1.
योजना के निम्न में से कौन-से उद्देश्य हैं –
(a) पूर्वानुमान
(b) मितव्ययता
(c) निश्चित लक्ष्यों को स्थापित करना
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 2.
“नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिये बनाया गया पिंजड़ा है।” यह कथन किसने कहा है-
(a) हार्ट
(b) हेनरी फेयोल
(c) उर्विक
(d) ऐलन।
उत्तर:
(d) ऐलन।
प्रश्न 3.
नियोजन प्रक्रिया का अंतिम चरण है –
(a) लक्ष्य निर्धारण
(b) पूर्वानुमान
(c) सर्वोत्तम विकल्प का चयन
(d) अनुसरण करना।
उत्तर:
(d) अनुसरण करना।
प्रश्न 4.
भावी क्रियाओं का पूर्व निर्धारण, प्रबंध के किस कार्य के अंतर्गत किया जाता है –
(a) नियोजन
(b) संगठन
(c) नियंत्रण
(d) निर्देशन
उत्तर:
(a) नियोजन
प्रश्न 5.
उद्देश्य होने चाहिए –
(a) आदर्श
(b) जटिल
(c) व्यावहारिक
(d) एकपक्षीय।
उत्तर:
(c) व्यावहारिक
प्रश्न 6.
निम्न का योजना से संबंध नहीं है –
(a) बजट
(b) अभिप्रेरणा
(c) कार्यक्रम
(d) कार्यविधि।
उत्तर:
(b) अभिप्रेरणा
प्रश्न 7.
“मेरी संपत्ति, कारखाना, सब कुछ ले जाओ, मेरे लिए मेरा संगठन छोड़ दो, मैं अपने व्यापार को पुनः उसी स्थिति में खड़ा कर दूँगा।” यह कथन है –
(a) हेनरी फेयोल
(b) एफ.डब्ल्यू. टेलर
(c) हेनरी फोर्ड
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) हेनरी फोर्ड
प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –
- ………….. एक ऐसी विधि है जो कार्य को पूरा करती है।
- नियोजन एक ……………. प्रक्रिया है।
- …………… प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है।
- बिना लक्ष्य के ……………………. की प्राप्ति नहीं हो सकती।
- बजट भविष्य के लिए ………………… का पूर्वानुमान है।
उत्तर:
- प्रक्रिया
- उद्देश्य निर्धारित
- नियोजन
- उद्देश्य
- खर्चों
प्रश्न 3.
एक शब्द या वाक्य में उत्तर दीजिए
- नियोजन करते समय प्रबन्ध को भविष्य के बारे में कुछ कल्पनाएँ (मान्यताएँ) करनी होती है। इन्हें क्या कहते हैं ?
- प्रबंध के सभी कार्यों में से एक कार्य को आधारभूत कार्य माना जाता है। उस कार्य का नाम बताइए।
- प्रतिस्पर्धी की नीति के विश्लेषण में कौन-सी योजना सहायता करती है ?
- वह योजना कौन-सी है जो कर्मचारियों द्वारा किए जाने वाले और न किए जाने वाले कार्य को बताती है ?
- प्रबंध के किस स्तर पर नियोजन कार्य किया जाता है ?
- नियोजन का घनिष्ठ संबंध किस प्रक्रिया से है ?
- लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए किसकी आवश्यकता होती है ?
- नियोजन किस प्रकार की प्रक्रिया है ?
- प्रबंधकीय कार्यों का आधार क्या है ?
- भावी अनिश्चतता दूर करने में क्या आवश्यक है ?
- योजना किस प्रकार की क्रिया है ?
- नीतियों के निर्धारण का आधार क्या होता है ?
- नियोजन में सर्वप्रथम किसका निर्धारण किया जाता है ?
- क्या नियोजन पीछे देखने की क्रिया है ?
- क्या नियोजन एक भौतिक कसरत है ?
उत्तर:
- परिकल्पनाएँ
- नियोजन
- व्यूह रचना
- नियम
- सभी स्तरों पर
- नियंत्रण
- श्रेष्ठनियोजन
- बौद्धिक प्रक्रिया
- नियोजन
- नियोजन
- निरंतर चलने वाली क्रिया
- लक्ष्य
- लक्ष्य/उद्देश्य
- नहीं
- नहीं।
प्रश्न 4.
सत्य या असत्य बताइये
- नियोजन एक भौतिक कसरत है।
- नियोजन एक मानसिक कसरत है।
- नियोजन प्रबन्ध का प्राथमिक कार्य है।
- नियोजन आगे देखने की प्रक्रिया है।
- नियोजन समय की बर्बादी है।
उत्तर:
- असत्य
- सत्य
- सत्य
- सत्य
- असत्य
प्रश्न 5.
सही जोड़ी बनाइये –
उत्तर:
- (d)
- (e)
- (b)
- (f)
- (a)
- (c)
नियोजन अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
“नियोजन एक मानसिक कार्य है।” समझाइए।
उत्तर:
किसी भी योजना को बनाने के लिए उच्च स्तरीय सोच की आवश्यकता होती है, क्योंकि इसमें पूर्वानुमान लंगाना पड़ता है, विकल्पों का मूल्यांकन करते हुए उपयुक्त विकल्प का चयन करना पड़ता है। इन सभी कार्यों हेतु उच्च स्तरीय ज्ञान की आवश्यकता होती है। अतः नियोजन एक मानसिक कार्य है।
प्रश्न 2.
व्युत्पन्न योजना किसे कहते हैं ? क्या सहायक योजना व्युत्पन्न योजना होती है ?
उत्तर:
व्युत्पन्न योजना वह योजना कहलाती है जो मुख्य योजना की सहायता के लिए और मुख्य योजना में से ही बनाई जाती है। हाँ, सहायक योजना, व्युत्पन्न योजना होती है क्योंकि सहायक योजना की व्युत्पत्ति मुख्य योजना से ही होती है।.
प्रश्न 3.
नियोजन को भविष्यवाणी क्यों कहा जाता है ?
उत्तर:
नियोजन का संबंध भविष्य से होता है अतः इसे भविष्यवाणी भी कहा जाता है।
प्रश्न 4.
नियोजन की सीमाओं पर विजय पाने के क्या उपाय हो सकते हैं ?
उत्तर:
नियोजन की सीमाओं पर विजय प्राप्त करने के निम्नलिखित उपाय हो सकते हैं
- नियोजन करते समय वर्तमान और भविष्य की समस्याओं का ध्यान रखना चाहिए।
- नियोजन उच्च स्तरीय प्रबंधकों द्वारा किया जाना चाहिए।
- नियोजन की सफलता हेतु सभी कर्मचारियों का सहयोग लेना चाहिए।
- नियोजन की पूर्ण जानकारी संबंधित पक्षों को देनी चाहिए।
- नियोजन सदैव विश्वसनीय आँकड़ों द्वारा बनाया जाना चाहिए।
- नियोजन लोचपूर्ण होना चाहिए।
प्रश्न 5.
नियोजन के अंतर्गत पाँच डब्ल्यू (W) कौन-से हैं ?
उत्तर:
नियोजन के पाँच डब्ल्यू (W) हैं –
- क्या (What)
- कहाँ (Where)
- कब (When)
- क्यों (Why)
- तथा कौन (Who)
कोई भी योजना हो इन पाँच दृष्टिकोणों के आधार पर ही बनती है।
प्रश्न 6.
मोर्चाबन्दी कितने प्रकार की होती है ? समझाइए।
उत्तर:
मोर्चाबन्दी दो प्रकार की होती है
- बाहरी मोर्चाबन्दी-बाहरी मोर्चाबन्दी से तात्पर्य है जो प्रतियोगी को ध्यान में रखकर बनाई जाती है।
- आंतरिक मोर्चाबन्दी-ऐसी मोर्चाबन्दी जो किसी परिवर्तन से संस्था के अंदर ही उत्पन्न होने वाली समस्या का सामना करने के लिए बनाई जाती है।
प्रश्न 7.
क्या बजट का संबंध नियोजन और नियंत्रण दोनों से होता है ? समझाइए।
उत्तर:
जब कोई बजट तैयार किया जाता है तो एक योजना बनाकर तैयार होता है अतः यह नियोजन से संबंधित होता है और जब परिणामों से विचलन को मापने के लिए एक उपकरण के रूप में इसका प्रयोग करते हैं तो इसका संबंध नियंत्रण से होता है। अतः कहा जा सकता है कि बजट का संबंध नियोजन तथा नियंत्रण दोनों से होता है।
प्रश्न 8.
यदि योजना न बनाई जाये तो इसका संगठन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
कार्य कैसे करना है, इसके लिए पहले से ही किया गया नियोजन कार्य को निर्देशित करता है। योजना के अभाव में अलग-अलग दशाओं में कार्य होगा तथा संगठन अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में सफल नहीं हो पाएगा।
प्रश्न 9.
वे कौन-सी घटनाएँ तथा शक्तियाँ हैं जो व्यवसाय की योजनाओं को प्रभावित करती हैं ?
उत्तर:
कीमतों तथा लागतों में वृद्धि, सरकारी हस्तक्षेप, अप्रत्याशित घटनाएँ तथा परिवर्तन, कानूनी प्रावधान तथा अधिनियम, व्यवसाय की योजनाओं को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 10.
“नियोजन सफलता की गारंटी नहीं है।” इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
व्यवसाय की सफलता तभी संभव है जब योजनाओं को उचित प्रकार से बनाया तथा क्रियान्वित किया जाए। व्यावसायिक वातावरण स्थिर नहीं होता वह गत्यात्मक होता है। नियोजन समस्याओं को रोक नहीं सकता। यह केवल उसका पूर्वानुमान लगा सकता है तथा समस्याओं के उत्पन्न होने पर उनका सामना करने के लिए आकस्मिक योजना बना सकता है। प्रबन्ध के द्वारा अच्छे प्रयास किए जाने के बाद भी नियोजन कई बार सफल नहीं हो पाता। इसलिए माना जाता है कि नियोजन सफलता की गारंटी नहीं है।
प्रश्न 11.
निम्न के बारे में आप क्या जानते हैं
- सेविवर्गीय नीति
- विक्रय नीति
- मूल्य निर्धारण नीति।
उत्तर:
- सेविवर्गीय नीति-इसके अंतर्गत यह निश्चित किया जाता है कि कर्मचारियों की पदोन्नति का आधार योग्यता होगी या फिर वरिष्ठता।
- विक्रय नीति-इस नीति में यह निश्चित किया जाता है कि माल नकद बेचा जाना है या उधार भी।
- मूल्य निर्धारण नीति-इस नीति में विक्रय मूल्य का निर्धारण किया जाता है अर्थात् यह तय किया जाता है कि लागत में कितना लाभ जोड़कर विक्रय मूल्य निर्धारित करना है।
प्रश्न 12.
नियोजन की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
नियोजन की बहुमान्य परिभाषाएँ निम्न हैं –
- बिली ई. गौज, “नियोजन मूल रूप से चयन करना है और नियोजन की समस्या उसी समय पैदा होती है जबकि किसी वैकल्पिक कार्य विधि की जानकारी हुई हो।”
- जार्ज आर. टैरी, “नियोजन भविष्य में झाँकने की एक विधि या तकनीक है तथा भावी आवश्यकताओं का एक रचनात्मक पुनर्निरीक्षण है, जिससे कि वर्तमान क्रियाओं को निर्धारित लक्ष्यों के सम्बन्ध में समायोजित किया जा सके।”
प्रश्न 13.
नियोजन प्रबंध का प्राथमिक कार्य है ?
उत्तर:
नियोजन प्रबंध का प्राथमिक कार्य है, सर्वप्रथम योजना बनाई जाती है। जिसके द्वारा प्रबंध अपने लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को निर्धारत करता है तथा लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या, किसे कब कैसे करना है ? इसका निर्धारण करता है। तत्पश्चात् इसकी शर्तों के लिए सभी प्रबन्धकीय क्रियाएँ जैसे–संगठन, नियुक्तिकरण, निर्देशन, नियंत्रण सम्पन्न होती है।
प्रश्न 14.
नियोजन और नियंत्रण में क्या संबंध है ?
उत्तर:
नियोजन और नियंत्रण में घनिष्ठ संबंध है। प्रभावी नियंत्रण उसी उपक्रम में रह सकता है, जहाँ पर समस्त क्रियाएँ निर्बाध गति से चलती हैं। बिना रुकावट के समस्त क्रियाएँ उसी उपक्रम में चलती हैं, जहाँ सम्पूर्ण व्यवस्था नियोजित हो, अतः स्पष्ट है कि जहाँ नियोजन नहीं वहाँ नियंत्रण नहीं। इस प्रकार नियंत्रण व्यवस्था हेतु नियोजन का अत्यधिक महत्व है।
प्रश्न 15.
प्रभावपूर्ण नियंत्रण हेतु नियोजन जरूरी है। समझाइए।
उत्तर:
प्रभावपूर्ण नियंत्रण की दृष्टि से नियोजन प्रबंधकीय नियंत्रण की कुंजी है। पूर्वानुमान बजट निर्माण, बजटरी नियंत्रण आदि के लिए पूर्ण नियोजन आवश्यक है। संस्था के लक्ष्य तभी पूरे हो सकते हैं जब प्रत्येक कदम पर प्रबंधकीय नियंत्रण प्रभावपूर्ण ढंग से लागू किया जाये।
प्रश्न 16.
नियोजन का आशय समझाइये।
उत्तर:
नियोजन-“नियोजन एक बौद्धिक क्रिया है, जिसके द्वारा प्रबंध अपने लक्ष्यों व उद्देश्यों को निर्धारित करता है तथा इसकी प्राप्ति हेतु विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन कर भावी कार्यों की रूपरेखा तैयार करता है तथा लक्ष्य प्राप्ति हेतु क्या, किसे, कब, कैसे करना है ? इसका निर्धारण करता है।”
प्रश्न 17.
यदि योजना न बनायी जाये तो इसका संगठन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
योजना के अभाव में कर्मचारी भिन्न-भिन्न दिशाओं में कार्य करेंगे और संगठन अपने इच्छित उद्देश्य को प्राप्त करने में असफल होगा।
प्रश्न 18.
विभिन्न विकल्पों में से श्रेष्ठ का चयन करना ही नियोजन है। समझाइये।
उत्तर:
नियोजन का निर्माण करते समय उपलब्ध विभिन्न विकल्पों की तुलना की जाती है अर्थात् लक्ष्यों, नीतियों, विधियों एवं कार्यक्रमों में सबसे उपयोगी एवं उत्तम का चयनकर योजनाएँ व नीतियों का निर्माण कर व्यावसायिक संस्थाओं की सफलता प्राप्त करने का प्रयास किया जाता है।
प्रश्न 19.
“नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए रखा गया पिंजड़ा है।” इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
भविष्य के कार्यों का वर्तमान में निर्धारण ही नियोजन है। व्यवसाय के विभिन्न कार्य कब, कैसे कहाँ व किस रूप में करना है इसकी योजना बना लेना ही नियोजन है। इसके अन्तर्गत भविष्य के जोखिमों का पता लगाकर उससे बचने का आवश्यक प्रयोग पूर्ण किया जा सके।
प्रश्न 20.
“नियोजन से भावी अनिश्चितता दूर होती है।” समझाइए।
उत्तर:
बिना नियोजन के भविष्य के प्रत्येक कार्य में अनिश्चितता रहती है कि कब, क्या तथा कैसे करना है अतः इस अनिश्चितता से बचने के लिए नियोजन करना अत्यन्त आवश्यक है। इतना ही नहीं विभिन्न प्राकृतिक एवं अन्य कारकों से भविष्य में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं, अतः इन परिवर्तनों का सामना करने के लिए भी नियोजन करना आवश्यक है।
प्रश्न 21.
“नियोजन से साधनों का सदुपयोग होता है।” समझाइए।
अथवा
“श्रेष्ठ नियोजन साधनों के दुरूपयोग को रोकता है।” समझाइए।
उत्तर:
प्रत्येक उपक्रम के पास साधन होते हैं, अतः उपलब्ध साधनों का सदुपयोग करना प्रत्येक उपक्रम के लिए आवश्यक है, इस हेतु नियोजन के अन्तर्गत विभिन्न आँकड़ों व प्रवृत्तियों के द्वारा भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है ताकि लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सके। अत: नियोजन से उपक्रम के सभी साधनों का सदुपयोग किया जा सकता है अतः साधनों के दुरुपयोग को नियोजन रोकता है।
प्रश्न 22.
किसी भी राष्ट्र के लिए नियोजन का अत्यधिक महत्व है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
किसी भी राष्ट्र के लिए नियोजन का अत्यधिक महत्व है। इन्हीं योजनाओं से रोजगार, शिक्षा, व्यापार, उद्योग, कृषि आदि का विकास कैसे हो इस संबंध में योजनायें तैयार की जाती हैं ताकि बेरोजगारी, अशिक्षा जैसे देश के शत्रुओं को भगाया जा सके। राष्ट्रीय नियोजन के कारण ही आज रोजगार के साधनों में वृद्धि को रही है, शिक्षा का प्रसार हो रहा है, उद्योग धंधे स्थापित हो रहे हैं, बेरोजगारी को दूर करने का राष्ट्रीय प्रयास जारी है। यह सब नियोजन से भी संभव हो सका है।
प्रश्न 23.
“बिना नियोजन के लक्ष्यों की प्राप्ति संभव नहीं है। स्पष्ट कीजिए।”
उत्तर:
प्रत्येक संस्था का एक निश्चित लक्ष्य या उद्देश्य होता है। इन निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति समय पर तभी हो सकती है, जब संस्था की समस्त क्रियाएँ पूर्व नियोजित ढंग से सम्पन्न की जाये। नियोजन में प्रत्येक काये व्यवस्थित व सही समय पर होने से लक्ष्य पूर्व निर्धारित समय में आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
प्रश्न 24.
बजट नियोजन का एक प्रारूप (प्रकार) क्यों माना जाता है ?
उत्तर:
क्योंकि बजट विभिन्न विभागों के निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु आवश्यक अनुमानित जन सामग्री, समय एवं अन्य साधनों का ब्यौरा देता है।
प्रश्न 25.
“बजट का संबंध नियोजन व नियंत्रण दोनों से होता है।” स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जब हम बजट तैयार करते हैं, तो उसका संबंध नियोजन से होता है और जब हम परिणामों में विचलन को मापने के लिए एक उपकरण के रूप में इसका प्रयोग करते हैं तो इसका संबंध नियंत्रण से होता है।
प्रश्न 26.
नियंत्रण एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
व्यापारिक वातावरण में परिवर्तन आता रहता है और इसमें इतना अधिक परिवर्तन आता है कि एक ही प्रक्रिया को अपनाना व्यवसाय के लिए हितकर नहीं है और इसमें हानि भी हो सकती है अतः प्रत्येक व्यवसायी के लिए आवश्यक है कि वह परिवर्तनों को ध्यान में रखें तथा समयानुसार उसका अनुसरण करें।
नियोजन लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नियोजन की सीमाओं के दो उदाहरण दीजिए जो कि नियंत्रण से बाहर होते हैं।
उत्तर:
नियोजन की सीमाएँ निम्न हैं
- प्राकृतिक आपदा- प्राकृतिक आपदा कब, कहां और कैसे आ जाए यह पूर्व निश्चित नहीं होता आपदाएँ सदैव मानव के नियंत्रण के बाहर होती हैं।
- बाजार में प्रवृत्ति, रुचि या फैशन में परिवर्तन-बाजार में प्रतिदिन नए सामान उपलब्ध हो जाते हैं इस कारण उपभोक्ता की रुचि बदलती रहती है।
प्रश्न 2.
क्या नियोजन के बिना नियंत्रण संभव है ?
उत्तर:
नियोजन को नियंत्रण की पूर्व-आवश्यकता माना जाता है। यह उन लक्ष्यों अथवा मानकों को तय करता है जिसके अनुरूप वास्तविक कार्यानुपालन की माप की जाती है, अन्तरों को जाना जाता है तथा सुधारात्मक कार्यवाही की जाती है क्योंकि लक्ष्य न होने पर न तो अन्तरों का पता लगाया जाता है और न ही सुधारात्मक कार्यवाही हो सकती है अतः नियंत्रण के बिना नियोजन संभव ही नहीं है।
प्रश्न 3.
नियोजन क्या है ? इसकी कोई दो परिभाषाएँ दीजिए।
उत्तर:
नियोजन से आशय-नियोजन से अभिप्राय वर्तमान में यह निश्चय करना कि भविष्य में क्या किया जाना है। यह करने से पूर्व सोचने की क्रिया है। नियोजन प्रक्रिया में प्रबंधक भविष्य का पूर्वानुमान लगाता है। दूसरे शब्दों में नियोजन हम जहाँ हैं, से लेकर हमें जहाँ जाना है कि बीच की दूरी को कम करता है।
परिभाषा-
- कूण्ट्ज एवं ओ. डोनेल के अनुसार, “क्या करना है, कैसे करना है, इसे क्यों करना है और इसे किसे करना है, का पूर्व निर्धारण ही नियोजन है।”
- एलन के अनुसार, “नियोजन भविष्य को पकड़ने के लिए बनाया गया पिंजरा है।”
प्रश्न 4.
बजट और कार्यक्रम में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बजट और कार्यक्रम में अंतर –
बजट:
- बजट का समय प्रायः एक वर्ष होता है।
- बजट में अधिक महत्व वित्त को दिया जाता है।
- बजट संस्था के सामान्य उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु एक गुणात्मक सारिणी है।
- बजट को प्रायः एक बड़ी योजना का वित्तीय आधार माना जाता है।
कार्यक्रम:
- कार्यक्रम का समय उस समय तक होता है जब तक कि उद्देश्य प्राप्त न हो जाए।
- कार्यक्रम में वित्त के साथ-साथ कार्यविधि को भी महत्व दिया जाता है।
- कार्यक्रम किसी विशिष्ट उद्देश्य की प्राप्ति हेतु क्रमबद्ध व समयबद्ध सारिणी है।
- प्रायः प्रत्येक कार्यक्रम का अपना-अपना बजट भी होता है।
प्रश्न 5.
स्थायी और एकल योजनाओं में अन्तर बताइए।
उत्तर:
स्थायी और एकल योजनाओं में अन्तर –
प्रश्न 6.
नियोजन प्रक्रिया एक चरण के रूप में एक विकल्प का चयन करना’ से क्या आशय होता है ?
उत्तर:
एक विकल्प के चयन का अर्थ-एक विकल्प के चुनाव से अभिप्राय उद्देश्य की प्राप्ति के विभिन्न विकल्पों में से एक ऐसे विकल्प का चयन करना है जो संस्था के लिए उपयुक्त हो। यह विकल्प अधिक लाभप्रद, संभव तथा कम नकारात्मक हस्तक्षेप वाला होना चाहिए। कई बार ऐसा होता है कि कोई एक विकल्प उपयुक्त नहीं होता। ऐसी अवस्था में एक विकल्प का चुनाव करने की बजाय विभिन्न विकल्पों का मिश्रण चुना जा सकता है।
प्रश्न 7.
नियम व कार्यविधि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियम व कार्यविधि में अन्तर –
प्रश्न 8.
उद्देश्य व नीतियों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य व नीतियों में अंतर
प्रश्न 9.
उद्देश्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
- उद्देश्य का निर्धारण प्रायः संस्था के उच्च स्तर के प्रबंधकों द्वारा किया जाता है।
- वे भविष्य के मामलों का वर्णन करते हैं जिन्हें संगठन प्राप्त करना चाहता है।
- वे व्यापार की संपूर्ण योजना को मार्गदर्शन देते हैं।
- संगठन में विभिन्न विभागों या इकाइयों के अपने-अपने अलग उद्देश्य होते हैं।
- उद्देश्य दीर्घकालीन भी हो सकते हैं और लघुकालीन भी।
प्रश्न 10.
उद्देश्य के महत्व/आवश्यकता के बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
उद्देश्य का महत्व –
- उद्देश्य संस्था की विभिन्न गतिविधियों को दिशा प्रदान करते हैं।
- वे संगठन में निर्णयन और अन्य समस्त क्रियाओं को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।
- सुभाषित उद्देश्य प्रबंधकीय कुशलता लाते हैं।
- वे समन्वय को सुविधाजनक बनाते हैं।
- वे संसाधनों के सर्वोत्तम प्रयोग में सहायता करते हैं।
प्रश्न 11.
कार्यविधियों की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कार्यविधियों की विशेषताएँ
- वे एक दिनचर्या में प्रयोग किये जाने वाले चरणों का कालक्रम है कि गतिविधियों का किस प्रकार पालन किया जाये।
- ये प्रायः आंतरिक लोगों द्वारा पालन करने के लिए बनी होती हैं।
- कार्यविधियों का नीतियों के साथ गहरा संबंध होता है।
- क्रियाविधियाँ वे चरण हैं जिनका नीतियों के खाके में पालन किया जाता है।
- ये नियमित घटनाओं को संचालित करने का एक व्यवस्थित तरीका है।
- ये किसी विशेष कार्यों को करने के लिए चरणों की श्रृंखला तय करती हैं।
प्रश्न 12.
व्यूह रचना (रणनीति) की विशेषताएँ/प्रकृति लिखिए।
उत्तर:
व्यूह रचना (रणनीति) की विशेषताएँ-निम्नलिखित विशेषताएँ व्यूह रचना की प्रकृति दर्शाती हैं
- रणनीतियाँ प्रतियोगियों की योजनाओं के प्रकाश में बनाई गई योजनाएँ हैं।
- वे एकल प्रयोग योजनाएँ होती हैं, क्योंकि वे बाजार की दशाओं में परिवर्तन के साथ प्रायः बदलती रहती है।
- इसके तीन उपाय हैं
- दीर्घकालीन लक्ष्यों का निर्धारण
- अमुक/विशिष्ट क्रियाविधि को अपनाना
- उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संसाधनों का बँटवारा करना।
- रणनीतियों का निर्माण संस्था के उच्च स्तर प्रबंधकों के द्वारा होता है।
- रणनीति एक गत्यात्मक अवधारणा है।
- जब कभी किसी रणनीति का निर्माण किया जाता है तब उस समय, व्यावसायिक पर्यावरण का ध्यान रखना पड़ता है।
प्रश्न 13.
व्यूह रचना के महत्व के बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
व्यूह रचना का महत्व
- यह एक व्यापक योजना है जो संगठन के उद्देश्य को पूरा करती है।
- यह संगठन के दीर्घकालीन जीवन तथा विकास के लिए आवश्यक है।
- व्यूह रचना की सहायता से संगठन पर्यावरण अवसरों से लाभ उठा सकते हैं।
- व्यूह रचना की सहायता से संगठन पर्यावरण अवरोधों का मुकाबला कर सकता है।
प्रश्न 14.
नियोजन की सीमाओं को नियंत्रित करने के कोई तीन उपाय लिखिए।
उत्तर:
- विश्वसनीय तथ्य एकत्रित करने पर अधिक ध्यान दिया जाना चाहिए।
- नियोजन में कर्मचारियों की भागीदारी होनी चाहिए।
- नियोजन बनाते समय बाहरी पर्यावरण का गहन अध्ययन करना चाहिए।
प्रश्न 15.
आदर्श नियोजन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
एक आदर्श नियोजन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- निश्चित लक्ष्य- प्रबंध का प्रथम कार्य नियोजन करना है। नियोजन के कुछ निश्चित लक्ष्य होते हैं जिनके आधार पर ही योजनाएँ तैयार की जाती हैं, जिससे लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सके।
- श्रेष्ठ विकल्प का चयन- योजना बनाते समय विभिन्न विकल्पों में से सर्वश्रेष्ठ का चयन करके योजनाएँ एवं नीतियाँ बनाई जाती हैं।
- लोचता- योजना में लोचता का गुण होना चाहिए क्योंकि कोई भी योजना जितनी लचीली होगी उतनी ही सफल होगी।
- निरंतरता- कोई भी योजना एक बार बनाने की वस्तु नहीं है अपितु यह कार्य सदैव चलते रहना . चाहिए, आवश्यकता पड़ने पर पुरानी योजना में संशोधन भी किया जाता है।
प्रश्न 16.
बताइये किस प्रकार नियोजन निर्णय लेने को सुविधाजनक बनाता है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजन में लक्ष्य निर्धारित किये जाते हैं। इन लक्ष्यों की सहायता से प्रबंधक विविध गतिविधियों (alternatives) का मूल्यांकन करता है और उपयुक्त गतिविधि का चयन करता है। योजनाएँ पहले से ही बना ली जाती हैं कि क्या करना है और कब । अतः निर्णय पूरे विश्वास से लिए जा सकते हैं।
प्रश्न 17.
योजनाओं के प्रकार के रूप में ‘पद्धति’ और ‘बजट’ में अंतर्भेद कीजिए।
उत्तर:
पद्धति और बजट में अन्तर-पद्धति योजना का वह प्रकार है जो किसी काम को पूरा करने के लिए की जाने वाली विभिन्न क्रियाओं का क्रम निश्चित करती है। इसका संबंध सभी क्रियाओं से न होकर किसी एक क्रिया से होता है।
एक कार्य को पूरा करने की कई विधियाँ होती हैं। कई पद्धतियों से ऐसी पद्धति को चुना जाता है जिससे काम करने वाले व्यक्ति को थकावट कम हो, उत्पादकता में वृद्धि हो तथा कम लागते आये। पद्धतियाँ कर्मचारियों के लिए दिशा-निर्देश के रूप में कार्य करती हैं। ये कर्मचारियों के कार्यों में एकरूपता लाने में सहायता करती है।
प्रश्न 18.
योजनाओं के प्रकार के रूप में ‘उद्देश्य’ तथा ‘युक्ति/रणनीति’ में अंतर्भेद कीजिए।
उत्तर:
उद्देश्य तथा रणनीति में अंतर-उद्देश्य वे अंतिम परिणाम होते हैं जिन्हें व्यवसाय के किसी विशेष क्षेत्र में एक निश्चित समयावधि के भीतर प्राप्त करना होता है। ये व्यावसायिक क्रियाओं को दिशा प्रदान करते हैं। यह भविष्य की इच्छित स्थिति है जहाँ तक प्रबंध पहुंचना चाहता है। उद्देश्य संगठन के मूल होते हैं। उद्देश्यों का अर्थ है कि व्यापारिक फर्मे क्या चाहती हैं। उदाहरण के लिए एक संगठन का उद्देश्य 10% बिक्री बढ़ाना है। इसके विपरीत युक्ति/रणनीति/मोर्चाबंदी एक व्यापक योजना है जो उद्देश्यों को पूरा करती है। जब कभी रणनीति बनाई जाती है तो व्यापारिक वातावरण को ध्यान में रखा जाता है। व्यूह रचना के तीन आयाम हैं
- दीर्घकालीन लक्ष्यों का निर्धारण
- विशिष्ट कार्य-विधि को अपनाना तथा
- उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संसाधनों का बँटवारा करना।
नियोजन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
नियोजन करते समय क्या बाधाएँ या कठिनाइयाँ आती हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नियोजन के मार्ग में आने वाली बाधाएँ. निम्न हैं
1. व्ययपूर्ण कार्य – यह एक न्यायपूर्ण कार्य है क्योंकि इसको बनाने में बहुत समय, धन तथा श्रम लगता है जिसके कारण लागत बढ़ जाती है। कभी-कभी नियोजन से मिलने वाले लाभ उस पर किए गए व्यय की अपेक्षा बहुत कम होते हैं।
2. भावी घटनाओं की अनिश्चितता – चूँकि भविष्य अनिश्चित होता है और योजनाएँ भविष्य के लिए ही बनाई जाती है अत: यह योजनाएँ पूरी तरह से सटीक हो यह कोई जरूरी नहीं होता क्योंकि जो होने वाला है वह तो होता ही है। ऐसी दशा में नियोजन क्यों और कैसे किया जाए उसका कोई औचित्य नहीं है।
3. सर्वोत्तम विकल्प के चयन में कठिनाई – दिये गए विकल्पों में सर्वोत्तम विकल्प कौन-सा है यह तय करना कठिन है। यह भी संभव है कि जो विकल्प आज सर्वोत्तम है, वह कल सर्वोत्तम नहीं रहे। अत: नियोजन के कार्य में बाधा ध्यान देने योग्य है।
4. नीरस कार्य- योजना बनाने का कार्य मुख्यत – सोचने तथा कागजी खानापूर्ति से संबंध रखता है जबकि प्रबंधक सक्रिय कार्य करना पसंद करते हैं। अतः उनके लिए नियोजन कार्य नीरस प्रकृति का बन जाता
5. लोच का अभाव – नियोजन होने के पश्चात् व्यावसायिक उपक्रमों को अपने समस्त संसाधनों को पूर्व निश्चित क्रम से कार्य में लगाना पड़ता है। इससे प्रबंध में कुछ सीमा तक लोच का अभाव हो जाता है।
प्रश्न 2.
नियोजन के तत्व कौन-कौन से हैं ?
अथवा
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए
- लक्ष्य या उद्देश्य
- नीतियाँ
- बजट
- मोर्चाबन्दी
- कार्यक्रम।
उत्तर:
1. लक्ष्य या उद्देश्य- लक्ष्य नियोजन का आधार होते हैं, लक्ष्य परिणाम होते हैं, इन्हीं परिणामों की प्राप्ति के लिए भविष्य की समस्त क्रियायें सम्पादित की जाती हैं। लक्ष्यों के द्वारा हमें क्या करना है, का ज्ञान होता है।
2. नीतियाँ- लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए जिन सिद्धान्तों को ध्यान में रखा जाता है वे सिद्धान्त ही नीतियाँ कहलाती हैं। नीतियाँ प्रबंधकीय क्रियाओं का मार्गदर्शन करती हैं।
3. बजट- बजट भविष्य के लिये खर्चों का पूर्वानुमान होते हैं । बजट बन जाने से खर्चों को नियंत्रित एवं नियमित किया जा सकता है। बजट भविष्य की आवश्यकताओं का अनुमान है जो व्यक्तियों द्वारा लगाया जाता है और एक निश्चित समय में एक निश्चित उद्देश्य को प्राप्त करने का स्पष्टीकरण देता है। यह भविष्य की योजनाएँ होती हैं। इसके बनने के बाद ही विभिन्न विभागों के कार्य-कलापों की सीमा निश्चित हो जाती है।
4. मोर्चाबन्दी- मोर्चाबन्दी या व्यूहरचना एक व्यावहारिक योजना है जिसमें प्रतिस्पर्धियों को ध्यान में रखकर योजना बनाई जाती है। जब एक उत्पादक अपनी योजना को गुप्त रखकर अन्य प्रतिस्पर्धी की योजना को ज्ञात करने का प्रयास करता है, यही मोर्चाबन्दी कहलाती है।
5. कार्यक्रम- किसी कार्य को सम्पन्न करने की संक्षिप्त योजना को कार्यक्रम कहा जाता है। कार्यक्रम एक उद्देश्य की प्राप्ति के लिये आवश्यक प्रयासों की एक श्रेणी है जो प्राथमिकता के क्रम में व्यवस्थित होते हैं।
प्रश्न 3.
आदर्श नियोजन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
आदर्श नियोजन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
1. निश्चित लक्ष्य (Definite goals) – प्रबन्ध का प्रथम कार्य है नियोजन करना। नियोजन के कुछ निश्चित लक्ष्य होते हैं। इन लक्ष्यों के आधार पर ही योजना तैयार की जाती हैं, जिससे लक्ष्यों को आसानी से प्राप्त किया जा सके।
2. पूर्वानुमान (Forecasting) – नियोजन में पूर्वानुमान का विशेष महत्त्व है। जानकारी एवं आँकड़ों के आधार पर पूर्वानुमान किये जाते हैं, जिससे योजना बनाने में काफी सुविधा होती है। हेनरी फेयोल ने इस हेतु ‘PREVOYANCE’ शब्द का प्रयोग किया है, जिसका आशय आगे देखना (Looking Ahead) होता है।
3. श्रेष्ठ विकल्प का चुनाव (Selection of best alternatives) – योजना बनाते समय विभिन्न विकल्पों को तैयार कर उनकी तुलना की जाती है, तत्पश्चात् उनमें से श्रेष्ठ का चुनाव कर कार्य हेतु योजनायें एवं नीतियाँ बनाई जाती हैं।
4. सर्वव्यापकता (Pervasiveness) – सम्पूर्ण प्रबन्ध में नियोजन व्याप्त है, प्रबन्ध के प्रत्येक क्षेत्र में नियोजन का अस्तित्व है, प्रत्येक प्रबन्धक को योजनायें बनानी पड़ती हैं। इसी प्रकार फोरमैन भी अपने स्तर पर योजनायें बनाता है। अत: यह सर्वव्यापी है।
5. लोचता (Flexibility) – योजना में लोच का गुण अवश्य रहता है, अर्थात् आवश्यकतानुसार उसमें परिवर्तन करना पड़ता है, योजनायें जितनी लचीली होंगी, योजना उतनी सफल होगी। अतः योजना में लोचता होनी चाहिये।
6. निरन्तरता (Continuity) – योजना केवल एक बार बनाने की वस्तु नहीं है, अपितु योजना बनाने का कार्य निरन्तर चलता रहता है। आवश्यकतानुसार पुरानी योजनाओं में संशोधन भी किया जाता है। अत: योजनायें निरन्तर चलती रहती हैं।
प्रश्न 4.
नियोजन के उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
नियोजन के उद्देश्य (Goals or Objectives of Planning) नियोजन करना मनुष्य के लिये आवश्यक है। नियोजन के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं –
1. भावी कार्य- योजना तैयार करना-नियोजन का आशय है भविष्य के गर्त को देखना अर्थात् भविष्य में क्या, कहाँ, कैसे, किससे व कौन कार्य करेगा इसकी रूपरेखा तैयार करना ही नियोजन का उद्देश्य होता है।
2. भावी गतिविधियों में निश्चितता लाना- कार्य-योजना सुनिश्चित न होने से कौन-सा कार्य कब, कहाँ, कैसे व कौन करेगा यह अनिश्चित रहता है, जबकि इसका पूर्व निर्धारण कर लेने से भविष्य के कार्यों में निश्चितता आती है। अतः नियोजन भविष्य के कार्य में निश्चितता व स्थिरता प्रदान करता है।
3. कार्यों में एकरूपता लाना- नियोजन द्वारा कार्यों में एकरूपता लाई जा सकती है क्योंकि कार्यों को करने का सम्पूर्ण ढंग नियोजन द्वारा पूर्व से ही निर्धारित कर दिया जाता है। कार्यों में एकरूपता से व्यवसाय व उत्पाद की ख्याति बढ़ती है।
4. भविष्य की जानकारी देना- नियोजन करने के पश्चात् उसकी जानकारी संबंधित कर्मचारियों व अधिकारियों को दी जाती है, ताकि वे नियोजन के अनुरूप कार्य कर सकें। अतः जानकारी प्रदान करने के उद्देश्य से भी नियोजन किया जाता है।
5. अपव्यय रोककर मितव्ययिता लाना- नियोजन के अंतर्गत एक मानक व सम्भावित बजट तैयार किया जाता है। इसमें उन बिन्दुओं को ध्यान में रखा जाता है जहाँ पर अधिक व अनावश्यक व्यय होने की सम्भावना है। इन व्ययों को कम करने के उपाय खोजे जाते हैं । इस प्रकार नियोजन का उद्देश्य अपव्यय को रोककर उत्पादन में मितव्ययिता लाना है।
6. पूर्वानुमान लगाना- नियोजन में भविष्य के कार्यों व व्ययों का पूर्वानुमान लगाया जाता है ताकि उसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सके।
प्रश्न 5.
नियम व नीतियों में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
नियम व नीति में अन्तर –
प्रश्न 6.
नीतियों तथा कार्यविधियों में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
नीतियाँ तथा कार्यविधि में अंतर
प्रश्न 7.
नियोजन के महत्व या लाभ लिखिए। –
उत्तर:
व्यवसाय हो या सामान्य जीवन, धर्म हो या राजनीति किसी भी क्षेत्र में नियोजन के महत्त्व को नकारा नहीं जा सकता। सत्य तो यही है कि बिना नियोजन के आज कोई भी कार्य अधूरा-सा लगने लगता है। बिना मानचित्र (Map) बनाये हम एक अच्छे भवन निर्माण की कल्पना नहीं कर सकते हैं। आज व्यवसाय में प्रतिदिन हमें नियोजन का सहारा लेना पड़ता है। इसीलिये कहा गया है कि नियोजन व्यवसाय का आधार स्तम्भ है। जिस प्रकार मकान का आधार (Base) कमजोर हो तो पूरा मकान कमजोर होगा। वैसे ही किसी व्यवसाय का नियोजन ही कमजोर रहा तो वह व्यवसाय कभी भी सशक्त व विकसित नहीं हो सकता। नियोजन के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए जी.डी. एच. कोल ने कहा है-“बिना नियोजन के कोई भी कार्य तीर और तुक्के पर आधारित होगा जिससे केवल भ्रम, सन्देह एवं अव्यवस्था ही उत्पन्न होगी।” नियोजन के महत्त्व को निम्न शीर्षकों द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है
1. प्रबन्धकीय कार्यों का आधार – प्रबन्ध के अन्तर्गत अनेक कार्य किये जाते हैं, जैसे-संगठन, निर्णयन, नियंत्रण, समन्वय, अभिप्रेरणा आदि। इन सभी कार्यों को कैसे पूर्ण करना है, इस हेतु एक योजना बनाई जाती है, इसी के साथ विभिन्न नीतियों व कार्य विधियों को कैसे लागू किया जाये, ताकि लक्ष्य को प्राप्त किया जा सके, इस हेतु एक योजना अवश्य बना ली जाती है। इस प्रकार प्रबन्ध के अन्य कार्यों का नियोजन आधार है।
2. भावी अनिश्चितता को दूर करने के लिये – बिना नियोजन के भविष्य के प्रत्येक कार्य में अनिश्चितता.रहती है कि अब क्या व कैसे करना है, अतः इस अनिश्चितता से बचने के लिये नियोजन करना अत्यन्त आवश्यक है। इतना ही नहीं विभिन्न प्राकृतिक एवं अन्य कारकों से भविष्य में अनेक परिवर्तन होते रहते हैं। अतः इन परिवर्तनों का सामना करने के लिये भी एक योजना बनाना अच्छा होता है।
3. उतावले निर्णयों से बचने के लिये – एक कहावत है कि “जल्दी काम शैतान का’ अर्थात् उतावले या शीघ्र निर्णय उसी समय लेना चाहिये जब कोई अन्य विकल्प न हो, उतावले निर्णयों की सफलता पर सदैव संदेह रहता है, इसीलिये व्यवसाय के उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु पूर्व में ही नियोजन कर लिया जाये तो उतावले निर्णयों से बचा जा सकता है। ऐलन ने कहा है- “नियोजन के माध्यम से उतावले निर्णयों और अटकलबाजी कार्यों की प्रकृति को समाप्त किया जा सकता है।”
4. साधनों का सदुपयोग—प्रत्येक उपक्रम के पास साधन होते हैं । अतः उपलब्ध साधनों का सदुपयोग करना प्रत्येक उपक्रम के लिये आवश्यक है। इस हेतु नियोजन के अन्तर्गत विभिन्न आँकड़ों (Datas) व प्रवृत्तियों ( Trends) के द्वारा भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है, ताकि लक्ष्य को आसानी से प्राप्त किया जा सके। नियोजन से उपक्रम के सभी साधनों का सदुपयोग किया जा सकता है।
5. लागत व्यय में कमी- नियोजन में प्रत्येक स्तर पर की जाने वाली क्रियाओं के व्यय का पूर्वानुमान लगाया जाता है, यदि किसी स्तर पर व्यय का अनुमान अधिक हो तो उसे पूर्वानुमान करते समय ही कम करने के उपाय खोजे जा सकते हैं साथ ही नियोजन द्वारा विभिन्न क्रियाओं में आने वाली लागत को भी नियंत्रित किया जा सकता है। नियोजन में वस्तु की लागत के विभिन्न स्तर (Process) पर लागत का अनुमान लगाकर एक मानक (Standard) निर्धारित किया जाता है, तत्पश्चात् इसी मानक को ध्यान में रखकर उत्पादन पर व्यय किये जाते हैं।
प्रश्न 8.
कभी-कभी प्रबंध के सर्वोच्च प्रबंधों के बावजूद भी नियोजन क्यों असफल होते हैं ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
हमने नियोजन के लाभों एवं महत्त्व की विस्तृत विवेचना की है। इनके लाभों एवं महत्त्व को देखते हुये प्रबन्धकों को नियोजन अत्यन्त सावधानी व सतर्कता से करना चाहिये तथा नियोजन का कार्य अनुभवी व विशिष्ट योग्यता वाले प्रबन्धकों से कराना चाहिये। नियोजन के निर्माण में सामान्यतः जिन समस्याओं का सामना करना पड़ता है वे निम्नलिखित हैं
1. श्रेष्ठ नियोजकों का अभाव- नियोजन सदैव भविष्य के बचाव के लिये किया जाता है। इसके लिये योग्य, अनुभवी एवं कुशल नियोजकों (नियोजन करने वाले) का अभाव रहता है। योग्य योजना बनाने वाले सभी उपक्रम को नहीं मिल पाते हैं साथ ही भविष्य की योजना के लिये मशीन, यन्त्रों तथा सांख्यिकी ज्ञान की आवश्यकता होती है। इसके अभाव में भी अच्छे नियोजक श्रेष्ठ योजना नहीं बना सकते।
2. नियोजन तकनीक का अभाव- नियोजन का आधार भविष्य होता है भविष्य में क्या होगा और क्या नहीं होगा इसको ज्ञात करने के लिये विशिष्ट तकनीक से अनुमान लगाना तथा विभिन्न वैज्ञानिक तरीकों से जानकारी प्राप्त करना आवश्यक है। इसके लिये विशिष्ट यन्त्रों व उपकरणों की आवश्यकता पड़ती है। भारत में इनका अभाव रहा है तथापि विगत कुछ वर्षों से सूचना तकनीक (Information Technology) के क्षेत्र में आशातीत प्रगति हुई है। इससे मौसम, वर्षा आदि का अनुमान लगाना अब आसान हो गया है। किन्तु व्यापारिक क्षेत्र में अनुमान लगाना काफी कठिन है।
3. सर्वोत्तम विकल्प के चुनाव में कठिनाई- नियोजन करने में अनेक विकल्प सामने रहते हैं। सभी विकल्पों में गुण व दोष होते हैं उनमें से कौन सा श्रेष्ठ होगा यह चुनना एक कठिन कार्य है। इसे चुनने में भी विशिष्ट अनुभव व ज्ञान की आवश्यकता होती है। साथ ही वर्तमान में जो विकल्प श्रेष्ठ होगा वह भविष्य में भी श्रेष्ठ होगा यह आवश्यक नहीं है। अत: सर्वोत्तम विकल्प के चुनने की समस्या भी नियोजन की एक सीमा होती है।
4. भविष्य की अनिश्चितता- यह सर्वविदित है कि भविष्य अनिश्चित है और कोई भी अनुमान शत्-प्रतिशत सत्य नहीं निकलता है। अतः नियोजन के निर्माण में या योजना बनाने में सबसे बड़ी समस्या भविष्य की अनिश्चितता है। भविष्य की अनिश्चितता के कारण ही अनेक समस्यायें एवं बाधायें उत्पन्न होती हैं।
5. नियोजन के दोष या कमियाँ- नियोजन की कुछ सीमायें स्वयं नियोजन के कुछ दोषों के कारण पाई जाती हैं जो इस प्रकार हैं
- कुछ आलोचकों का मानना है कि नियोजन अपव्यय है इसे तैयार करने में समय, धन व श्रम लगता है। वह अनावश्यक है।
- कुछ आलोचकों का मानना है कि नियोजन एक निश्चित तरीके से कार्य करने को बाध्य करता है जबकि समय परिवर्तनशील है इसमें अधिक स्थिरता उचित नहीं है।
- नियोजन की प्रक्रिया में प्रबन्धकों, विशेषज्ञों का मार्गदर्शन उचित नहीं मिल पाता।
- योजनाओं का सामयिक मूल्यांकन करने में असफल रहना।
- औपचारिकताओं पर अत्यधिक ध्यान देना।
- नियोजन पूर्व निर्धारित कार्य पद्धतियों, विधियों, कार्यक्रमों एवं प्रभावों के आधार पर कार्य करने के लिए व्यक्तियों को बाद्ध करता है। फलत: व्यक्तियों में पहलपन (Initiative) का अभाव रहता है।
नियोजन की सीमाओं के सम्बन्ध में जार्ज ए. स्टेनर (George A. Steener) ने कहा है- “नियोजन न तो एक प्रबन्धक की सभी समस्याओं का समाधान ही करेगा और न ही व्यवसाय की सफलता की गारण्टी देगा।”
प्रश्न 9.
नियोजन के सिद्धांत लिखिए।
उत्तर:
बिना किसी सिद्धान्त के किसी भी शास्त्र का विकसित होना सम्भव नहीं है। प्रबन्धशास्त्री कूण्ट्ज ओ’ डोनेल ने विभिन्न दृष्टिकोणों से नियोजन के सिद्धांतों को स्पष्ट किया है। प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित
1. उद्देश्यों के प्रति योगदान का सिद्धान्त (Principle of contribution to objectives) – यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि नियोजन संस्था के उद्देश्यों की प्राप्ति में योगदान देने वाला होना चाहिये। यह सिद्धान्त इस बात की ओर भी संकेत करता है कि किसी भी नियोजन को जब तक उद्देश्योन्मुख नहीं किया जाता तब तक वह नियोजन अच्छा परिणाम नहीं दे सकता है।
2. नियोजन की मान्यताओं का सिद्धान्त (Principle of planning premises) – सामान्यतः किसी भी कार्य को करने की कुछ मान्यतायें हैं जिनको ध्यान में रखते हुये ही कार्य किया जाता है। अच्छे नियोजन की मान्यताओं को पहले से ही निश्चित किया जाना चाहिये, इससे समन्वय के कार्यों में अत्यधिक सहायता मिलती है।
3. कार्यकुशलता का सिद्धान्त (Principle of efficiency) – इसी सिद्धान्त के अनुसार नियोजन न्यूनतम प्रयत्नों एवं लागतों द्वारा संगठन या संस्था के लक्ष्यों की प्राप्ति में सहयोग देने वाला होना चाहिये।
4. लोच का सिद्धान्त (Principle of flexibility) – इस सिद्धान्त के अनुसार योजना या नियोजन सदैव लोचदार व परिवर्तनशील होना चाहिये क्योंकि भविष्य की समस्याओं एवं परिस्थितियों के अनुरूप नियोजन में परिवर्तन आवश्यक है।
5. व्यापकता का सिद्धान्त (Principle of pervasiveness) – इस सिद्धान्त के अनुसार नियोजन एक सर्वव्यापी क्रिया है जिसकी आवश्यकता एक उपक्रम में प्रबन्ध के सभी स्तरों में होती है। अतः नियोजन प्रबन्ध के सभी स्तरों के अनुरूप होना चाहिये।
6. समय का सिद्धान्त (Principle of timing) – नियोजन में समय का विशेष महत्व है क्योंकि समय पर नियोजन बना कर उचित समय पर क्रियान्वयन नहीं हो सका तो लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन होगा।