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MP Board Class 12th Business Studies Important Questions Chapter 11 विपणन प्रबंध
विपणन प्रबंध लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
विपणन क्या है ? वस्तु एवं सेवाओं की विनिमय प्रक्रिया में इसके क्या कार्य हैं ? समझाइए।
उत्तर:
विपणन का अर्थ- विपणन के अंतर्गत वस्तुओं व सेवाओं के उत्पादन से पूर्व की क्रियाओं से लेकर उनके विक्रय के बाद तक की क्रियाएँ शामिल की जाती हैं। इस प्रकार विपणन में वे सभी कार्य सम्मिलित किये जाते हैं। जिनके द्वारा मानवीय आवश्यकताओं को ज्ञात किया जाता है तथा उनकी संतुष्टि के लिए वस्तुओं का नियोजन, मूल्य निर्धारण, संवर्द्धन एवं वितरण किया जाता है।
परिभाषाएँ-
- प्रो.पॉल मजूर के अनुसार-“समाज को जीवन-स्तर प्रदान करना ही विपणन है।’
- प्रो. मैकनियर के अनुसार-“जीवन स्तर का सृजन करना एवं उसकी पूर्ति करना ही विपणन है ।’
विपणन का मुख्य केन्द्र वस्तुओं व सेवाओं के विनिमय पर होता है । फिलिप कोटलर ने विपणन प्रबंध को इस प्रकार परिभाषित किया है “लक्षित बाजारों का चुनाव करने और प्राप्त करने, प्रबंध के विशिष्ट ग्राहक मूल्यों के संप्रेषण और सुपुर्दगी के सृजन द्वारा ग्राहकों को बनाने और वृद्धि करने की कला और विज्ञान” यदि हम इस परिभाषा को तोड़ते हैं तो हम कह सकते हैं कि विपणन प्रबंध में निम्नलिखित क्रियाएँ शामिल होती हैं
1. विशिष्ट मूल्य का सृजन करना- विपणन प्रबंध प्रक्रिया का अगला चरण प्रतिस्पर्धी के उत्पादों की बजाय अपने उत्पादों को बेहतर बनाने के लिए उत्पादों में कुछ विशिष्ट मूल्य का सृजन करना होता है।
2. एक लक्षित बाजार का चुनाव करना- विपणन प्रबंध की क्रियाएँ लक्षित बाजार को निश्चित करने द्वारा आरंभ होती है, उदाहरण के लिए औषधि निर्माता के लिए लक्षित बाजार, चिकित्सालय, डॉक्टर, दवाई की दुकानें इत्यादि।
3. लक्षित बाजार में ग्राहकों की वृद्धि करना- एक लक्षित बाजार के चुनाव करने के बाद विपणन प्रक्रिया में अगला चरण ग्राहकों की आवश्यकताओं, इच्छाओं और माँग का विश्लेषण करके ग्राहकों की संख्या में वृद्धि करने के लिए कदम उठाना और ग्राहकों की संतुष्टि को महत्व देना होता है।
प्रश्न 2.
विपणन की उत्पाद अवधारणा एवं उत्पादन अवधारणा में अंतर बताइए।
उत्तर:
विपणन की उत्पाद अवधारणा एवं उत्पादन अवधारणा में निम्न अंतर हैं
1. उत्पादन अवधारणा (Production concept) – विपणन की यह एक पुरानी अवधारणा है। यह अवधारणा उस समय प्रचलित थी जब माल का उत्पादन कम होता था और बाजार की स्थिति विक्रेता प्रधान होती थी। माँग अधिक व पूर्ति कम होने से विक्रय की कोई समस्या नहीं थी। उत्पादक यह सोचता था कि जिस माल का वह उत्पादन करेगा वह स्वतः ही बिक जायेगा। फलतः उत्पादक विक्रय के लिये कोई प्रयास नहीं करता था। आज भी तीसरे विश्व (Third World) के कुछ अविकसित राष्ट्रों में जहाँ उत्पादन कम होता है यही विचारधारा प्रचलित है।
2. उत्पाद (वस्तु) अवधारणा (Product concept) – यह विचारधारा वस्तु की किस्म, गुण, डिजाइन आदि पर बल देती है। इस धारणा का मानना है कि ग्राहक केवल वस्तु की किस्म, गुण, डिजाइन व आकर्षकता पर जोर देता है तथा ग्राहक सदैव श्रेष्ठ माल चाहते हैं। अतः सदैव उत्तम किस्म एवं आकर्षक माल तैयार करना चाहिए।
प्रश्न 3.
‘उत्पाद उपयोगिताओं का समूह होता है। क्या आप इससे सहमत हैं ? विवेचना कीजिए।
उत्तर:
उत्पाद अवधारणा, शब्द सर्वप्रथम थियोडोर लेविट द्वारा प्रयोग में लाया गया था। उनके अनुसार
“उत्पाद अवधारणा से आशय उपयोगिताओं के योग से है जिसमें विभिन्न उत्पाद विशेषताएँ तथा सेवाएँ सम्मिलित होती है” एक प्रस्तावना को विकसित करते समय एक विपणनकर्ता उत्पाद स्तरों की अवधारणा का अनुसरण कर सकता है
(1) प्रथम स्तर पर मूलभूत लाभ होते हैं अर्थात् आधारभूत या आधारिक लाभ जिसे ग्राहक उस उत्पाद या सेवा से प्राप्त करते हैं जिसे वे क्रय करते हैं । उदाहरण के लिए एक कार द्वारा प्रदान किए जाने वाले मूलभूत लाभ परिवहन सुविधा है।
(2) उत्पाद या सेवा का द्वितीय स्तर ग्राहक उस उत्पाद या सेवा से क्या आशा करता है जिसे वह क्रय कर रहा है। उदाहरण के लिए एक ग्राहक आशा करता है कि कार चलाने में सुविधाजनक हो, बेहतर औसत, अच्छा आकार और शैली इत्यादि हो।
(3) उत्पाद या सेवा का तृतीय स्तर वृद्धि अवधारणा है अर्थात् प्रतिस्पर्धी के उत्पाद से बेहतर कैसे है। वृद्धि का अर्थ है अतिरिक्त विशेषताएँ जिन्हें एक विपणनकर्ता को उत्पाद या सेवा में जोड़ना चाहिए जो ग्राहक की मूलभूत आकांक्षा से अधिक हो, उदाहरण के लिए, कार में विपणनकर्ता मुफ्त बीमा, मुफ्त सीट कवर या विक्रय बाद की सेवा प्रदान कर सकता है।
प्रश्न 4.
औद्योगिक उत्पाद क्या है ? यह उपभोक्ता उत्पादों से किस प्रकार भिन्न है ? समझाइए।
उत्तर:
औद्योगिक उत्पाद का अर्थ- औद्योगिक उत्पाद उपभोक्ताओं के उपभोग हेतु नहीं होते बल्कि कारखानों में उपभोक्ता माल बनाने के काम आते हैं।
परिभाषा –
अमेरिकन मार्केटिंग एसोसिएशन की परिभाषा समिति के अनुसार- “औद्योगिक उत्पाद वे हैं जो मुख्यतः अन्य माल के उत्पादन में अथवा सेवाएँ प्रदान करने में प्रयोग हेतु बनाये जाते हैं। इनमें साज-सामान, संघटक हिस्से, अनुरक्षण, मरम्मत, परिचालन आपूर्तियाँ, कच्चा माल और गढ़ी हुई सामग्रियाँ सम्मिलित हैं।”
औद्योगिक उत्पाद बनाम उपभोक्ता उत्पाद विपणन हैं। औद्योगिक उत्पाद और उपभोक्ता उत्पाद एकदूसरे से भिन्न हैं। औद्योगिक उत्पादों की माँग को प्रायः व्युत्पन्न माँग की संज्ञा दी जाती है। इसके अतिरिक्त उपभोक्ता के संबंध में जानकारी की आवश्यकता के संबंध में भी औद्योगिक और उपभोक्ता के उत्पादों में भिन्नता की जा सकती है। अतः औद्योगिक उत्पादों के संबंध में वैयक्तिक विक्रय पर विशेष ध्यान दिया जाता है। इसके विपरीत उपभोक्ता उत्पादों के संबंध में अधिकांश विज्ञापन अवैयक्तिक विक्रय द्वारा किया जाता है।
औद्योगिक उत्पाद एवं उपभोक्ता उत्पाद में भिन्नता
प्रश्न 5.
सुविधा उत्पाद एवं प्रतिदिन के उपयोगी उत्पादों में अंतर कीजिए।
उत्तर:
सुविधा उत्पाद- सुविधाजनक उत्पाद वे हैं जिन्हें उपभोक्ता बार-बार ; तुरंत एवं न्यूनतम तुलना करके और बहुत कम क्रय मूल्यों पर खरीदता है जैसे-साबुन, अखबार, माचिस, सिगरेट, बीड़ी, दवाइयाँ इत्यादि। ऐसे उत्पाद टिकाऊ नहीं होते हैं और उपभोक्ता द्वारा इसे शीघ्रता से खत्म कर दिया जाता है। ऐसे उत्पादों को उपभोक्ता द्वारा बार-बार क्रय किया जाता है और इसे प्रायः उपभोक्ता अग्रिम रूप से खरीदकर नहीं रखते हैं।
प्रतिदिन उत्पाद (बिक्रीगत उत्पाद)- प्रतिदिन उत्पाद या बिक्रीगत उत्पाद वे होते हैं जिनका चुनाव और क्रय करने से पूर्व उपभोक्ता उपयुक्तता, किस्म, कीमत और शैली आदि आधारों पर विभिन्न निर्माताओं के उत्पादों से तुलना करता है । इन उत्पादों में फर्नीचर, जूते, बढ़िया चीनी के बर्तनों के सेट, महिला परिधान, कीमती साड़ियाँ आदि को सम्मिलित किया जा सकता है। प्रतिदिन उत्पादों में क्रेता बाजार में घूम-फिर कर विभिन्न भंडारों पर कीमत और किस्म की तुलना करने के पश्चात् ही क्रय करते हैं।
प्रश्न 6.
उत्पादों के विपणन में लेबलिंग के कार्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विपणन में लेबलिंग के कार्य- लेबलिंग के मुख्य कार्य निम्नलिखित हैं
1. उत्पाद के प्रवर्तन में सहायता- लेबलिंग का प्रमुख कार्य विक्रय संवर्द्धन करना है। एक आकर्षक लेबल ग्राहकों को उत्पाद खरीदने के लिए अभिप्रेरित करता है। आज लेबलिंग का विक्रय संवर्द्धन का एक महत्वपूर्ण उपाय के रूप में प्रयोग किया जाता है।
2. उत्पाद का विवरण एवं विषय- वस्तु- लेबल पर निर्माता उत्पादन से संबंधित पूर्ण जानकारी प्रदान करता है। लेबल पर दी जाने वाली मुख्य जानकारी इस प्रकार है:
- वस्तु किन-किन चीजों को मिलाकर तैयार की गई
- इसकी प्रतियोगिता
- प्रयोग करने में सावधानियाँ
- प्रयोग करते समय ध्यान रखने वाली बातें
- उत्पादन तिथि
- बैच नंबर आदि।
3. उत्पाद अथवा ब्राण्ड की पहचान कराना- लेबल अनेक वस्तुओं में से किसी एक विशेष वस्तु को पहचानना संभव बनाता है। उदाहरण के लिए एक ढेर में अनेक साबुनें रखी हैं । आप लिरिल साबुन लेना चाहते हैं। लेबल की मदद से इच्छित साबुन को पहचानना संभव होता है।
4. कानून सम्मत जानकारी देना- लेबलिंग का एक और महत्वपूर्ण कार्य कानूनी रूप से अनिवार्य वैधानिक चेतावनी देना है। सिगरेट के पैकेट पर ‘सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है तथा पान मसाले के पैकैट पर ‘तंबाकू चबाना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।’ लिखा जाना वैधानिक चेतावनी के उदाहरण है।
5. उत्पादों का श्रेणीकरण- जब एक ही उत्पाद की कई क्वालिटी होती हैं तो लेबल ही यह बताता है कि किस पैक में किस क्वालिटी का उत्पाद है। उदाहरण के लिए-हिन्दुस्तान लीवर लिमि. तीन किस्म की चाय बनाती है। प्रत्येक किस्म की चाय की अलग पहचान करने के लिए हरे, लाल व पीले रंग के लेबल का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 7.
उपभोक्ता एवं गैर टिकाऊ उत्पादों के वितरण में मध्यस्थों की भूमिका का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गैर टिकाऊ उत्पादों, अस्थायी उत्पादों जैसे-टूथपेस्ट, साबुन, डिटर्जेंट इत्यादि के वितरण के लिए द्वि-स्तरीय माध्यम का प्रयोग किया जाता है। इस माध्यम में उत्पादों को बेचने के लिए फर्मों द्वारा बिचौलियों को शामिल किया जाता है। जैसे इसे निम्न चित्र द्वारा समझा जा सकता है
निर्माता थोक विक्रेता को अधिक मात्रा में वस्तुएँ बेचता है और थोक विक्रेता फुटकर विक्रेता को कम मात्रा में बेचता है, फुटकर विक्रेता इन्हें अंतिम ग्राहकों को बेचता है।
प्रश्न 8.
वितरण के माध्यमों के चयन में निर्धारक तत्वों को समझाइए।
उत्तर:
वितरण के माध्यमों के चयन में निर्धारक तत्व- निर्माताओं अथवा उत्पादकों को अपनी वस्तुओं को अंतिम उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए वितरण के किसी उपयुक्त माध्यम का चुनाव करना पड़ता है। वितरण के उपयुक्त माध्यम को निर्धारित करने वाले घटक अग्र हैं –
(I) बाजार अथवा विपणि संबंधी- बाजार संबंधी निम्न बातें वितरण माध्यम के चुनाव पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।
1. संभावित ग्राहकों की संख्या- यदि वस्तु विशेष का संभावित बाजार विस्तृत (जैसे-कपड़ा, अनाज, साइकिल आदि) है तो मध्यस्थों की सेवाओं का सहारा लेना होगा। इसके विपरीत यदि वस्तु का बाजार देशव्यापी है तो ऐसी स्थिति में प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के विक्रय के तरीकों को अपनाना होगा।
2. आदेशों का आकार- यदि आदेश कम किंतु बड़ी मात्रा में आते हैं तो प्रत्यक्ष विक्रय के तरीकों को अपनाना चाहिए। इसके विपरीत यदि आदेश बहुत अधिक आते हैं किंतु आदेशित वस्तुओं की मात्रा कम होती है तो थोक व्यापारियों की सहायता लेनी होगी।
3. ग्राहकों की क्रय करने संबंधी आदतें- ये भी वितरण के माध्यम को प्रभावित करती हैं जैसे-उधार क्रय करने की इच्छा, क्रय के उपरांत की सेवा, व्यय करने की आदत आदि।
(II) वस्तु या उत्पादक संबंधी बातें- वस्तु की प्रकृति तथा निम्न विशेषताएँ वितरण में मध्यस्थों की संख्या आदि को निश्चित वितरण में मध्यस्थों की संख्या आदि को निश्चित एवं प्रभावित करती हैं। इस प्रकार यह वितरण के माध्यमों को प्रभावित करती है
1. वस्तु का स्वभाव- शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं के लिए कम-से-कम मध्यस्थों की जरूरत होती है। शीघ्र नष्ट होने वाली वस्तुओं का जल्दी विक्रय करना जरूरी होता है नहीं तो इनके खराब होने का भय होता है। अतः ऐसी वस्तु का फुटकर व्यापारियों द्वारा विक्रय करना ही उचित होता है। जबकि टिकाऊ वस्तुओं का बाजार विस्तृत होता है। इसलिए इसके विक्रय के लिए मध्यस्थों की आवश्यकता होगी।
2. मूल्यवान व भारी वस्तुओं का विक्रय- जैसे कूलर, फ्रीज, पंखे, स्कूटर, मोटर, अलमारी आदि। ऐसे विक्रेता मध्यस्थों को चुनना चाहिए जिनके पास संग्रहालय की सुविधा हो। इनके बिक्री के लिए कम मध्यस्थों की आवश्यकता होती है।
3. सरकारी नियमन- वस्तु के वितरण माध्यम पर सरकारी नियंत्रण होने पर उनके विक्रय के लिए सरकार द्वारा अधिकृत विक्रेताओं की आवश्यकता होगी।
(III) मध्यस्थों संबंधी बातें- मध्यस्थ संबंधी बातें भी वितरण पर प्रभाव डालती हैं जैसे-(1) वितरण की लागत, (2) भावी विक्रय की मात्रा, (3) मध्यस्थों द्वारा प्रदान की जाने वाली सेवाएँ।
प्रश्न 9.
भौतिक वितरण के घटकों को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर-
भौतिक वितरण के घटक- भौतिक वितरण सेवा प्रदान करने हेतु प्रबंध को मुख्यतः चार निर्णय लेने पड़ते हैं
1. आदेश प्रक्रिया- इस प्रक्रिया से आशय ग्राहक से आदेश प्राप्त करने और आदेशानुसार वस्तुओं की सुपुर्दगी में लगने वाले समय और अपनाई जाने वाली प्रक्रिया से है। सामान्य रूप से आदेश प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण शामिल हैं-
- विक्रयकर्ता को आदेश देना
- विक्रयकर्ता द्वारा आदेश कंपनी को भेजना
- कंपनी द्वारा ग्राहक की साख की जाँच
- कंपनी द्वारा स्टॉक मात्रा
- आदेश के अनुसार वस्तुओं की सुपुर्दगी करना इत्यादि।
2. परिवहन- परिवहन का आशय है कि उत्पादन के स्थान से वस्तुओं को भौतिक रूप से आवश्यकता वाले स्थान पर पहुँचाना। परिवहन उस स्थान पर, जहाँ वस्तुओं की आवश्यकता होती है, पहुँचाने द्वारा वस्तुओं के मूल्य में वृद्धि करता है। उदाहरण के लिए चाय का दार्जिलिंग, गंगटोक, असम इत्यादि में उत्पादन किया जाता है परंतु इसका परिवहन पूरे देश में किया जाता है और साथ ही चाय उत्पादन क्षेत्र की तुलना में दूसरे देशों में इसका मूल्य उच्च होता है।
3. भंडारणं- जो भी उत्पादित किया जाता है, उसको तुरंत बेचा नहीं जाता। इसीलिए प्रत्येक कंपनी को निर्मित वस्तुओं को संग्रह करने की आवश्यकता होती है जब तक उन्हें बाजार में बेचा नहीं जाता। कुछ फसलों का संग्रह करना जरूरी होता है क्योंकि उनकी माँग वर्ष भर होती है और इनका उत्पादन भी मौसमी होता है इसलिए इसे पूरे वर्ष आपूर्ति के लिए भंडारण करना आवश्यक होता है। .
4. स्टॉक मात्रा- इससे अभिप्राय वस्तुओं के स्टॉक को रखने या उसके अनुरक्षण से है। स्टॉक को बनाए रखने की आवश्यकता होती है ताकि जब भी वस्तुओं की माँग हो उनकी पूर्ति की जा सके। उचित स्टॉक अनुरक्षण उत्पाद उपलब्धता को सुनिश्चित करता है।
प्रश्न 10.
विज्ञापन की परिभाषा दीजिए। इसकी मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ? समझाइए।
उत्तर:
विज्ञापन का अर्थ- विज्ञापन शब्द दो शब्दों विज्ञापन से मिलकर बना है जिसका आशय क्रमशः विशेष एवं जानकारी देने से लगाया जाता है। इस प्रकार विज्ञापन शब्द से तात्पर्य विशिष्ट जानकारी प्रदान करना है। इसके अंतर्गत उत्पादित वस्तुओं व सेवाओं की जानकारी उपभोक्ता तक पहुँचाना एवं विज्ञापन के माध्यम से ही उपभोक्ता की रुचि व आदत को ज्ञात करना शामिल है।
परिभाषाएँ
1. डॉ. जॉन्स के अनुसार – “विज्ञापन उत्पादन को बहुत बड़ी मात्रा में विक्रय करने की एक मशीन है जो विक्रेता की वाणी और व्यक्तित्व को सहायता पहुँचाती है।”
2. लस्कर के अनुसार – “विज्ञापन मुद्रण के रूप में विक्रय कला है।” विज्ञापन की विशेषताएँ-विज्ञापन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं
1. अवैयक्तिक संचार – विज्ञापन पूर्णतः अव्यक्तिगत संचार होता है अर्थात् विज्ञापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिए नहीं किया जाता अपितु यह जनसामान्य के लिए किया जाता है।
2. विज्ञापन प्रकाशन से भिन्न है – विज्ञापन खुला होता है जबकि प्रकाशन बंद रहता है। विज्ञापन व प्रकाशन दोनों के स्वभाव, उद्देश्य अलग-अलग होते हैं।
3. व्यापक संचार – विज्ञापन व्यापक संचार है। पत्र, तार, टेलीफोन, वैयक्तिक विक्रय के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, टेलीविजन, आकाशवाणी आदि के माध्यम से विज्ञापन किया जाता है। अतः विज्ञापन में व्यापक संचार साधनों का प्रयोग किया जाता है।
4. ग्राहक बनाना उद्देश्य – विज्ञापन का एक प्रमुख उद्देश्य है ग्राहक बनाना। नये ग्राहक बनाना, पुराने ग्राहकों को स्थायी ग्राहक बनाकर अपनी वस्तु का अधिकतम विक्रय करना विज्ञापन का उद्देश्य है।
प्रश्न 11.
विपणन के उद्देश्य लिख़िये।
उत्तर:
विपणन प्रबन्धक के उद्देश्य-
- विपणन कार्यों का नियोजन करना
- विपणन व्ययों में कमी लाना
- विपणन का उचित संगठन करना
- विपणन का उचित नेतृत्व करना
- विपणन कार्यों में समन्वय बनाना
- विपणन कार्यों का मूल्यांकन करना
- रोजगार एवं क्रय शक्ति में वृद्धि करना
- सामाजिक जीवन स्तर को बढ़ाना
- माँग व पूर्ति के मध्य समन्वय बनाना
- माँग का पूर्वानुमान लगाना
- नये बाजार की खोज करना।
प्रश्न 12.
विपणन व विक्रयण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विपणन व विक्रयण में अन्तर
प्रश्न 13.
विपणन के कार्य लिखिये।
उत्तर:
विपणन के कार्य –
(अ) नियोजन सम्बन्धी कार्य –
- विपणन अनुसन्धान
- वस्तु नियोजन एवं विकास
- वस्तु का प्रमापीकरण
- पैकेजिंग
- वस्तु विविधीकरण।
(ब) वितरण सम्बन्धी कार्य –
- क्रय एवं संग्रहण
- भण्डारण
- परिवहन
- बीमा
- बाजार वर्गीकरण।
(स) विक्रय सम्बन्धी कार्य –
- विज्ञापन
- मूल्य निर्धारण
- व्यक्तिगत विक्रय
- विक्रय शर्तों का निर्धारण
- उधार वसूली
- विक्रय पश्चात् सेवा।
प्रश्न 14.
विज्ञापन के छः उद्देश्य लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन के उद्देश्य निम्नलिखित हैं
- नयी माँग उत्पन्न करना
- ख्याति में वृद्धि करना
- नये ग्राहक आकर्षित करना
- विक्रयकर्ता की सहायता
- प्रतिस्पर्धा का सामना करना
- उत्पादन लागत में कमी करना।
प्रश्न 15.
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्वों को समझाइये।
उत्तर:
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं
(अ) बाजार संबंधी तत्व –
- उपभोक्ता का व्यवहार
- प्रतिस्पर्धा
- सरकारी नियंत्रण।
(ब) विपणन संबंधी तत्व –
- उत्पाद नियोजन
- ब्राण्ड नीति
- संवेष्ठन नीति
- वितरण वाहिकाएँ
- विज्ञापन नीति
- विक्रय संवर्धन
- भौतिक वितरण
- बाजार अनुसंधान।
प्रश्न 16.
विक्रय संवर्द्धन से क्या आशय है ? इसके कोई चार उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन- किसी वस्तु के सामान्य विक्रय की मात्रा में वृद्धि करने की क्रियायें विक्रय संवर्द्धन कहलाती हैं । इसके अन्तर्गत कूपन, पोस्टर्स, प्रदर्शनी, प्रसार-प्रचार, संपर्क, ईनामी योजना, मूल्य वापसी, गारण्टी, प्रीमियम एवं प्रतियोगिताओं को शामिल किया जाता है।
उद्देश्य-
- नये ग्राहकों को वस्तुओं एवं सेवा के संबंध में जानकारी प्रदान कर क्रय हेतु प्रेरित करना।
- आम लोगों में वस्तु को लोकप्रिय बनाना
- वर्तमान ग्राहकों को स्थायी बनाना।
- उपभोक्ताओं, विक्रेताओं को वस्तु से परिचित कराकर उनका ज्ञान बढ़ाना।
प्रश्न 17.
एक अच्छे पैकेजिंग की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
पैकेजिंग की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
- पैकेजिंग एक कला व विज्ञान है।
- इसका संबंध उत्पादन नियोजन से है।
- इसका उद्देश्य वस्तु को सुरक्षित रखकर उपभोग के योग्य बनाये रखना होता है।
- इसके अन्तर्गत लेबलिंग व ब्राण्डिंग की क्रियाएँ स्वतः शामिल हो जाती हैं।
- यह विज्ञापन का कार्य करता है।
प्रश्न 18.
अच्छे ब्राण्ड का नाम चयन करते समय किन-किन बातों को ध्यान में रखना चाहिए?
अथवा
एक अच्छे ब्राण्ड के आवश्यक तत्वों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
एक अच्छे ब्राण्ड के लिए अग्रलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए
- ब्राण्ड का नाम छोटा व सामान्य होना चाहिए।
- नाम का उच्चारण सरल होना चाहिए।
- नाम स्मरणीय होना चाहिए।
- ब्राण्ड का नाम आकर्षक होना चाहिए।
- ब्राण्ड का नाम पंजीकरण योग्य होना चाहिए।
- ब्राण्ड के नाम से वस्तु की जानकारी होने का गुण होना चाहिए।
प्रश्न 19.
निम्न को संक्षेप में समझाइये
(अ) लेबलिंग
(ब) विक्रय संवर्धन
(स) विज्ञापन।
उत्तर:
(अ) लेबलिंग- लेबिल शब्द का आशय एक ऐसी पर्ची या पत्र से है जिसमें कुछ सूचना या विवरण दिया रहता है। इस सूचना पत्र में पूर्ण विवरण के साथ उपयोग की विधि, उत्पादक का नाम, कीमत व जीवन अवधि आदि का उल्लेख रहता है।
मैसन एवं रथ के अनुसार –“लेबिल सूचना देने वाली चिट, लपेटने वाला कागज या सील है जो वस्तु या पैकेज से जुड़ी रहती है।”
लेबिल के प्रकार निम्नलिखित होते हैं
1. ब्रांड लेबिल- इस प्रकार के लेबिल में ब्रांड का नाम या चिन्ह या कोई डिजाइन हो सकता है जैसेरेडलेबिल चाय का ब्रांड या बुक ब्रांड इंडिया लिमिटेड आदि।
2. वर्ग लेबिल- इस प्रकार के लेबिल संख्यात्मक होते हैं । वर्ग लेबिल में संख्याएं वस्तु की क्वालिटी या किसी विशिष्ट वर्ग की जानकारी प्रदान करते हैं । जैसे- गेहूँ के बैग में PR-20 K-68 ‘7’ ° clock ब्लेड ग्रेड ए आदि वर्ग आदि वर्ग के लेबिल लगे रहते हैं।
3. विवरणात्मक लेबिल- इस प्रकार के लेबिलों में उत्पाद के संबंध में पूर्ण जानकारी दी जाती है। जैसे- वस्तु का मिश्रण, तैयार करने की विधि, वस्तु के प्रयोग करने का ढंग, वस्तु का अधिकतम दाम, वस्तु की प्रभावी अवधि की जानकारी आदि।
(ब) विक्रय संवर्धन- इसके लिए लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 16 देखिये।
(स) विज्ञापन- विज्ञापन शब्द का तात्पर्य विशिष्ट जानकारी प्रदान करना है। वर्तमान में विज्ञापन शब्द काफी विस्तृत अर्थ से लिया जाने लगा है जिसके अंतर्गत उत्पादित वस्तु की जानकारी उपभोक्ताओं तक पहुँचाना एवं उपभोक्ता की रुचि व आदत की जानकारी प्राप्त करता है।
लस्कर के अनुसार- “विज्ञापन मुद्रण के रूप में विक्रय कला है।’
विज्ञापन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
1. अवैयक्तिक संचार- विज्ञापन पूर्णतः अवैयक्तिगत संचार होता है अर्थात् विज्ञापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिए नहीं होता अपितु जनसामान्य के लिये किया जाता है।
2. व्यापक संचार- विज्ञापन व्यापक संचार है। पत्र, तार, टेलीफोन, वैयक्तिक विक्रय के साथ-साथ पत्र-पत्रिकाएँ, समाचार पत्र, टेलीविजन, आकाशवाणी आदि के माध्यम से विज्ञापन किया जाता है। अतः विज्ञापन में व्यापक संचार साधनों का प्रयोग किया जाता है।
3. दैनिक व्यावसायिक क्रिया- विज्ञापन व्यवसाय का अंग बन गया है। व्यवसाय की अन्य क्रियाओं की भाँति विज्ञापन भी दैनिक व्यावसायिक क्रिया बन गई है।
प्रश्न 20.
ब्राण्डिंग तथा ट्रेडमार्क में भेद स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ब्राण्डिंग तथा ट्रेडमार्क में भेद –
प्रश्न 21.
विज्ञापन की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन की उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निम्न विशेषताएँ दी जा सकती हैं
1. व्यापक संचार- विज्ञापन व्यापक संचार है। पत्र, तार, टेलीफोन, पत्र-पत्रिकाओं में, समाचार पत्र, टेलीविजन, आकाशवाणी के माध्यम से विज्ञापन किया जाता है।
2. विज्ञापन व्यय का भुगतान- विज्ञापन व्यय को वह व्यक्ति वहन करता है जिसके द्वारा विज्ञापन कराया जाता है। सामान्यतः विज्ञापन से लाभान्वित पक्ष ही विज्ञापन व्यय का भुगतान करता है।
3. विज्ञापन प्रकाशन से भिन्न है- विज्ञापन खुला होता है जबकि प्रकाशन बन्द रहता है। विज्ञापन व प्रकाशन दोनों के स्वभाव, उद्देश्य अलग-अलग होते हैं।
4. अवैयक्तिक संचार- विज्ञापन पूर्णत: अवैयक्तिगत संचार होता है अर्थात् विज्ञापन किसी विशिष्ट व्यक्ति के लिये नहीं किया जाता अपितु यह जन सामान्य के लिए किया जाता है।
प्रश्न 22.
विज्ञापन एवं विक्रय सवर्द्धन में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
विज्ञापन एवं विक्रय सवर्द्धन में अन्तर निम्नलिखित हैं
प्रश्न 23.
मूल्य का अर्थ बताइए एवं उसे प्रभावित करने वाले घटक कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
मूल्य का अर्थ- मूल्य से आशय किसी उत्पाद या सेवा के लिए ग्राहक से वसूल की जाने वाली मुद्रा से है। दूसरे शब्दों में, यह उत्पाद का विनिमय मूल्य है अर्थात् ग्राहक को उत्पाद के बदले में देता है।
परिभाषा – वॉल्टन हैमिल्टन के अनुसार – “मूल्य उन सभी दशाओं का मौद्रिक सार है जो एक उत्पाद को मूल्यन प्रदान करता है।”
मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले घटक– मूल्य या मूल्य निर्धारण को प्रभावित करने वाले निम्न घटक हैं
1. उत्पादन लागत- उत्पादन लागत मूल्य को प्रभावित करने वाला सबसे प्रमुख एवं महत्वपूर्ण घटक है। कोई भी व्यवसायी अपने उत्पाद को उत्पादन लागत में जोड़ दिया जाता है।
2. लाभ दर- लाभ की दर भी मूल्य को प्रभावित करती है। व्यवसायी चाहे तो लाभ की अधिक दर निर्धारित कर सकता है अथवा लाभ की कम दर निर्धारित कर सकता है, जैसे-लाभ की 5% दर अथवा 10% दर। इसे भी उत्पाद की लागत में जोड़ दिया जाता है।
3. प्रतिस्पर्धा- बाजार में विद्यमान प्रतिस्पर्धा भी उत्पाद के मूल्य के निर्धारण को प्रभावित करती है। इसमें प्रतियोगी फर्मों के मूल्य पर विचार करना आवश्यक है।
4. अपनाई गई विपणन विधियाँ- विक्रेता द्वारा किसी उत्पाद के विपणन के संबंध में अपनाई जाने वाली विधियाँ भी मूल्य निर्धारण को प्रभावित करती है। इस पर होने वाले व्यय को भी मूल्य में जोड़ दिया जाता है; जैसे-विक्रय के उपरांत ग्राहकों को अर्पित की जाने वाली सेवाओं पर होने वाला खर्च तथा मध्यस्थों की सेवाएँ लेने पर दिया जाने वाला कमीशन।
प्रश्न 24.
ब्राह्य विज्ञापन से क्या आशय है ? उसके विभिन्न प्रारूपों को समझाइए।
उत्तर:
ब्राह्य विज्ञापन का अर्थ- ब्राह्य विज्ञापन से आशय दीवारों, गली के कोनों, सड़कों के किनारों, रेलवे स्टेशनों, बस स्टैण्डों, चलते-फिरते वाहनों आदि पर विज्ञापन करने से होता है। ब्राह्य विज्ञापन के प्रारूप- इसके प्रारूप निम्नलिखित हैं
1. पोस्टर्स– पोस्टर्स से हमारा आशय विज्ञापन का संदेश रखने वाले ऐसे छपे हुए कागजों, कार्ड-बोर्डों तथा धातु या लकड़ी की प्लेटों से होता है जो चौराहों, रेलवे स्टेशनों, सड़क एवं गलियों के किनारे तथा दुकानों के बाहर एवं अंदर लगे रहते हैं।
2. विज्ञापन बोर्ड- विज्ञापन बोर्ड को साइन बोर्ड भी कहा जाता है। अपितु साइन बोर्ड वे होते हैं जिन्हें स्टील की चादर पर बड़े-बड़े अक्षरों में आकर्षक ढंग से लिखवाकर चौराहे पर या दुकान के ऊपर टाँग दिया जाता है।
3. बिजली द्वारा सजावट- विज्ञापन बोर्डों को जब बिजली द्वारा सजावट कर दी जाती है तब इसे बिजली द्वारा सजावट के विज्ञापन कहते हैं । इसमें बोर्ड के आसपास झालर या छोटे-छोटे बल्ब, ट्यूब लाइटों के अक्षरों के बोर्ड, जलते-बुझते बल्ब या लाईन से एक के बाद एक जलने वाली सीरीज आदि प्रमुख होते हैं।
4. सैण्डविच मैन विज्ञापन- बाह्य विज्ञापन का एक महत्वपूर्ण व विशिष्ट विज्ञापन माध्यम है। इसमें किसी व्यक्ति को विचित्र व असामान्य कपड़े पहनाकर शरीर पर अद्भुत पोस्टर लगा दिये जाते हैं। साथ ही सिर पर एक लंबी नोक वाली टोपी पहना दी जाती है इस प्रकार इस व्यक्ति को शहर की गलियों में, मेलों में या जहाँ भीड़ हो ऐसे स्थलों पर घुमाया जाता है। साथ में एक ढोल भी रहता है, ढोल की विशिष्ट आवाज व असामान्य व्यक्ति आकर्षण का केंद्र बन जाता है। जैसे बीड़ी, सिगरेट, दवाएँ व अन्य सामग्री के विज्ञापन के लिए यह अच्छी विधि है।
प्रश्न 25.
विपणन की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
विपणन की विशेषताएँ (Features of marketing)
1. आवश्यकताएँ (Needs) – विपणन प्रक्रिया के द्वारा ग्राहकों को अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ तथा सेवाएँ प्राप्त होती हैं । आवश्यकता से अभिप्राय ग्राहक की मानसिक स्थिति है जिसमें यदि उसकी वह आवश्यकता की पूर्ति न हो तो वह अपने आपको बेचैन महसूस करता है।
2. बाजार में माँगी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करना (Creating a market offering) – बाजार में माँगी जाने वाली वस्तुओं तथा सेवाओं के उत्पादन से अभिप्राय उन वस्तुओं का उत्पादन करना है जो एक निश्चित कीमत पर ग्राहकों द्वारा अपनी चाहतों तथा इच्छाओं की पूर्ति हेतु माँगी जाती हैं।
3. उपभोक्ता मूल्य (Customer value) – उत्पादक कौन-सी वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन करे तथा किन वस्तुओं को उपभोक्ताओं तक पहुँचाए, इस तथ्य का निर्धारण उपभोक्ता करते हैं । उन्हें कौन से पदार्थ से अधिक संतुष्टि मिलती है अथवा उन्हें पहले कौन-सी वस्तु या सेवा की आवश्यकता है इसका निर्णय उपभोक्ता करते हैं। उत्पादक उसी के अनुसार वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन कर ग्राहकों तक पहुँचाते हैं।
4. हस्तांतरण प्रक्रिया (Exchange mechanism) – विपणन का आधार एक्सचेंज प्रक्रिया है। ग्राहक उत्पादकों को उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य देते हैं परिणामतः वे ग्राहकों की आवश्यकताओं की संतुष्टि करने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 26.
हस्तांतरण प्रक्रिया की आवश्यक शर्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
हस्तांतरण प्रक्रिया की आवश्यक शर्ते (Essential conditions of exchange mechanism) –
- दो पक्षों अर्थात् ग्राहक तथा उत्पादकों की आवश्यकता होती है।
- दोनों पक्षों में एक-दूसरे की आवश्यकताओं को संतुष्ट करने की क्षमता होनी चाहिए।
- दोनों पक्षों में एक-दूसरे से संप्रेषण करने की योग्यता होनी चाहिए। संप्रेषण के अभाव में कोई भी प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकती।
- दोनों पक्षों में एक-दूसरे के विचारों को अपनाने या छोड़ने की पूरी स्वतंत्रता होनी चाहिए।
प्रश्न 27.
विपणन प्रबंध से क्या अभिप्राय है ? इसकी प्रक्रिया लिखिए।
उत्तर:
विपणन प्रबंध (Marketing management)- विपणन संबंधी समस्त क्रियाओं के नियोजन, संगठन तथा नियंत्रण को विपणन प्रबंध कहते हैं।
विपणन प्रबंध की प्रक्रिया (Process of marketing management)-
- एक उपयुक्त बाजार का चुनाव।
- उस बाजार के ग्राहकों की आवश्यकताओं को भली-भाँति समझकर उनको पूरा करना।
- अधिक-से-अधिक मात्रा में क्रेताओं को वस्तुएँ तथा सेवाएँ खरीदने के लिए प्रेरित करना।
प्रश्न 28.
विपणन धारणा के कौन-से स्तंभ हैं ?
उत्तर:
विपणन धारणा के स्तंभ (Pillars of marketing concept)-
- बाजार अथवा ग्राहकों का पता लगाना जिन्हें विपणन के प्रयासों का लक्ष्य बनाया जा सके।
- लक्ष्य वाले बाजार में ग्राहकों की आवश्यकताओं एवं इच्छाओं को समझना।
- लक्ष्य वाले बाजार की आवश्यकताओं की संतुष्टि के लिए उत्पादों अथवा सेवाओं का विकास करना।
प्रश्न 29.
ब्रांडिंग में उपयोग होने वाली विभिन्न व्यूह रचनाओं को समझायें।
उत्तर:
विभिन्न प्रकार की व्यूह रचना (Strategy) जिनका ब्रांडिंग में प्रयोग किया जाता है
- ब्रांड (Brand)- इसके अंतर्गत प्रत्येक उत्पाद के लिए फर्म द्वारा अलग-अलग ब्रांड का प्रयोग किया जाता है जिससे वह अपने ब्रांड को दूसरी कंपनियों के ब्रांड से अलग रख सके।
- ब्रांड को नाम देना (Brand name)- ब्रांड को जिस नाम से पुकारा अथवा बुलाया जाता है उसे ब्रांड का नाम कहा जाता है।
- ब्रांड मार्क (Brand mark)- जब ब्रांड के साथ में कोई निशान अथवा मार्क बनाया जाता है उसे ब्रांड मार्क कहा जाता है।
- व्यापार चिन्ह (Trade mark)- व्यापार का वह चिह्न जिसे कोई जानी-मानी हस्ती चलाती है, व्यापार चिन्ह कहलाता है। यह सामान्य रूप में एक चिन्ह, प्रतीक, निशान, शब्द या कई शब्द होते हैं । व्यापार चिन्ह उत्पाद को उसी श्रेणी के दूसरे उत्पादों से अलग रखता है।
प्रश्न 30.
बिक्री संवर्धन के विभिन्न उपायों को बताइये।
उत्तर:
बिक्री संवर्धन के विभिन्न उपाय (Techniques of sales promotion)
- मुफ्त नमूने बाँटना (Distribution of free samples) – दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुओं के नमूने विशिष्ट व्यक्तियों में बाँटकर उन्हें लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया जाता है।
- कूपन (Coupon)– कूपन एक ऐसी पर्ची है जिसके आधार पर उपभोक्ता वस्तु खरीदते समय कुछ बचत कर सकता है।
- प्रीमियम (Premium)- इसका अर्थ है- एक वस्तु क्रय करने वाले को एक अन्य वस्तु मुफ्त देना।
- व्यापारिक टिकटें (Trading stamps)– इसके अंतर्गत वस्तु की खरीद पर प्रायः 20 प्रतिशत की दर से टिकटें दी जाती हैं। उपभोक्ता वे टिकटें एकत्रित करता रहता है। जब टिकटें 100 रु. से अधिक की हो जाती हैं तो वह इनके बदले की उतनी राशि की कोई वस्तु निर्धारित दुकान से प्राप्त कर लेता है।
- इनामी प्रतियोगिता (Prize contests)- उत्पादक अक्सर प्रतियोगिताएँ आयोजित करते रहते हैं।
प्रश्न 31.
वितरण के माध्यम के कार्य बताइये।
उत्तर:
वितरण माध्यम के कार्य (Functions of distribution channels)
- छाँटना (Sorting)- वितरण के माध्यम के द्वारा अलग-अलग वस्तुओं को क्वालिटी, रंग, किस्म इत्यादि गुणों के आधार पर छाँटा जाता है।
- एकत्रित करना (Accumulation)– छाँटने के बाद एक गुण वाले सभी पदार्थों को बड़े-बड़े कंटेनर्स अथवा जगहों पर एकत्रित किया जाता है।
- छोटे-छोटे वर्गों में बाँटना (Allocation)- एक जैसे पदार्थों को एक जगह पर एकत्रित करने के बाद संभालने के दृष्टिकोण से तथा ग्राहकों में बेचने के लिए तथा लेबलिंग व ब्रांडिंग के दृष्टिकोण से छोटे-छोटे समूहों में बाँटा जाता है।
- अन्य पदार्थों को भी साथ में मिलाना (Assortment)– केवल एक पदार्थ को वितरित करने से न उपभोक्ता की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं और न ही वितरण के माध्यम अपनी लागत निकालने में सफल होते हैं। अतः वे तीन अथवा चार अधिक वस्तुओं के समूहों को वितरित करते हैं।
प्रश्न 32.
विपणन अवधारणा की विशेषताएँ बताइए।
उत्तर– विपणन अवधारणा की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
1. विपणन धारणा उपभोक्ता मूलक है जिसमें विपणन प्रक्रिया उत्पादन से पहले प्रारंभ हो जाती है और वस्तुओं या सेवाओं के हस्तांतरण के बाद भी चलती रहती है।
2. इसके अंतर्गत उपभोक्ताओं की इच्छाओं तथा आवश्यकताओं का अध्ययन किया जाता है और उन्हों वस्तुओं तथा सेवाओं का उत्पादन किया जाता है जो माँग के अनुरूप हों। इसलिए आजकल विपणन शोध एक अत्यंत महत्वपूर्ण कार्य बन गया है।
3. इस विचारधारा को कार्यान्वित करने के लिए ग्राहक को सर्वोच्च स्थान देना होगा और ग्राहक के दृष्टिकोण से ही समस्त व्यावसायिक क्रियाओं का संचालन तथा समन्वय किया जाना चाहिए। ग्राहक का सृजन एवं संतुष्टि ही व्यवसाय का औचित्य समझा जाता है।
4. विपणन अवधारणा के अंतर्गत विपणन का अर्थ अधिकतम लाभ कमाना नहीं बल्कि उत्पादक या व्यापारी तथा ग्राहक दोनों की संतुष्टि करना है।
प्रश्न 33.
‘ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालना’ तथा ‘ग्राहक की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित करना’ विपणन प्रबंध की दो महत्वपूर्ण अवधारणायें हैं। इन अवधारणाओं की पहचान कर दोनों में अंतर्भेद कीजिये।
उत्तर:
‘ग्राहक को उत्पाद के अनुसार ढालना’ विक्रय अवधारणा है जबकि ‘ग्राहक की आवश्यकताओं के अनुरूप उत्पाद विकसित करना’ विपणन अवधारणा है।
विक्रय अवधारणा तथा विपणन अवधारणा में अंतर- प्रश्न क्र. 35 का उत्तर देखें।
प्रश्न 34.
पैकेजिंग तथा लेबलिंग अवधारणाओं में अंतर्भेद कीजिये।
उत्तर-
पैकेजिंग तथा लेबलिंग में अंतर– पैकेजिंग का अर्थ है उत्पाद के लिए पात्र या रेपर तैयार करना ताकि उत्पाद को परिवहन, बिक्री और उपयोग के लिये तैयार किया जा सके। पैकेजिंग उत्पाद की रक्षा करती है। इससे वस्तु की पहचान होती है। यह स्वतः विज्ञापन का कार्य करता है। यह एक मूक विक्रयकर्ता के रूप में कार्य करता है। यह वस्तुओं को सुरक्षित रखता है। इसके विपरीत लेबलिंग का अर्थ है पैकेज पर पहचान चिन्ह अंकित करना। यह किसी पैकेज का वह भाग है जो उत्पाद तथा उत्पादक के बारे में सूचनायें देता है।
लेबलिंग उत्पाद को पहचान देता है। इस पर उत्पाद का मूल्य लिखा होता है। यह उत्पाद की विभिन्न श्रेणियों को बताता है।
प्रश्न 35.
“आवश्यकताओं को ढूंढ़िए एवं उनकी पूर्ति कीजिए” तथा “वस्तुएँ बनाइए एवं उनकी बिक्री कीजिये ये विपणन प्रबंध की दो महत्वपूर्ण अवधारणायें हैं। पहचान कर दोनों अवधारणाओं में अंतर्भेद कीजिये।
उत्तर:
“आवश्यकताओं को दूँढ़िए एवं उनकी पूर्ति कीजिए” यह विपणन अवधारणा है तथा “वस्तुएँ बनाइए एवं उनकी बिक्री कीजिये” यह विक्रय अवधारणा है।
विपणन अवधारणा तथा विक्रय अवधारणा में अंतर
प्रश्न 36.
विपणन प्रबंध क्या है ? विपणन प्रबंध के विभिन्न उद्देश्यों को बताइये।
उत्तर:
विपणन प्रबंध का अर्थ- विपणन प्रबंधन, प्रबंध की एक शाखा है। विपणन किसी संस्था के विपणन कार्यों को नियोजित, सुव्यवस्थित व नियंत्रित करता है।
परिभाषा-
1. फिलिप कोटलर के अनुसार-“संगठनात्मक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए बनाये गये विपणन कार्यक्रमों का विश्लेषण नियोजन, क्रियान्वयन एवं नियंत्रण ही विपणन प्रबंध है। ।
2. विलियन जे.स्टैन्टन के अनुसार-“विपणन विचार का क्रियात्मक रूप ही विपणन प्रबंध होता है।’ विपणन प्रबन्ध के उद्देश्य (Objectives of Marketing Management) –
विपणन एक विस्तृत शब्द है जिसमें उत्पादन से लेकर विक्रय व विक्रय पश्चात् सेवा ( Service after sales) भी शामिल है। इन सभी क्रियाओं के लिये उचित संगठन, नियोजन, नियंत्रण, सम्प्रेषण व समन्वय की कार्यवाही प्रबन्ध के अन्तर्गत आती है। विपणन प्रबन्ध के प्रमुख उद्देश्य निम्नांकित हैं
1. विपणन कार्यों का नियोजन करना – विपणन के अन्तर्गत क्रेताओं की खोज करना, उपभोक्ता के अनुकूल वस्तुओं का निर्माण करना, उचित मूल्य निर्धारित करना, उचित परिवहन एवं भण्डारण व्यवस्था करना, वितरण की उचित व्यवस्था करना, बाजार सूचना आदि महत्वपूर्ण कार्य आते हैं । इन सभी कार्यों को एक योजना के तहत् सम्पादित करने के लिये विपणन प्रबन्ध आवश्यक है। अत: विपणन प्रबन्ध का प्राथमिक उद्देश्य विपणन कार्यों को नियोजित ढंग से करना है।
2. विपणन व्ययों में कमी लाना – वर्तमान प्रतियोगी बाजार में वस्तु की लागत कम-से-कम करने का प्रयास किया जाता है। किसी भी वस्तु की कीमत उत्पादन लागत से काफी अधिक होती है क्योंकि उत्पादन के पश्चात् वितरण एवं विक्रय के समस्त व्यय भी जोड़ दिये जाते हैं। अत: इन व्ययों में कमी लाना विपणन प्रबन्ध का महत्वपूर्ण उद्देश्य होता है।
3. विपणन का उचित संगठन करना- बिना विपणन संगठन के विपणन कार्य आसानी से नहीं किया जा सकता है। अत: विपणन के समस्त कार्यों में उचित संगठन व्यवस्था का विकास करना विपणन प्रबन्ध का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य है।
4. विपणन का उचित नेतृत्व करना- खराब नेतृत्व अच्छे से अच्छे संगठन व्यवस्था को नष्ट कर देता है। विपणन कार्यों का निष्पादन सही एवं योग्य व्यक्तियों के द्वारा सम्पन्न कराना विपणन प्रबन्ध का उद्देश्य होता है।
प्रश्न 37.
विपणन के विभिन्न कार्यों को संक्षिप्त में समझाइए।
उत्तर:
विपणन के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं
1. विपणन अनुसन्धान (Marketing research) – विपणन अनुसन्धान के अन्तर्गत, उपभोक्ताओं की संख्या, उनकी रुचि, फैशन, आदत, आवश्यकता व माँग की जानकारी ज्ञात की जाती है ताकि उसी के अनुरूप वस्तुओं का उत्पादन किया जा सके।
2. वस्तु नियोजन एवं विकास (Product planning and development) – उपभोक्ता की सन्तुष्टि व रुचि के अनुरूप वस्तु का विक्रय करने पर ही विक्रेता अधिक लाभ की आशा रख सकता है। वस्तु का निर्माण व विक्रय दो बातों पर निर्भर है, प्रथम-उपभोक्ताओं की पसन्द की वस्तु निर्मित करना और द्वितीय समय-समय पर वस्तु का आकार-प्रकार व रंग में परिवर्तन करना। ये कार्य पूर्व में इंजीनियरिंग व अन्य अनुसंधान विभाग द्वारा किये जाते थे, वर्तमान में इन सभी कार्यों की जिम्मेदारी विपणन की है, अतः वर्तमान में विपणन वस्तु का नियोजन व विकास दोनों कार्य करता है।
3. प्रमापीकरण एवं श्रेणीयन (Standardization and grading) – प्रमापीकरण विपणन का महत्वपूर्ण कार्य है, क्योंकि प्रमाप के आधार पर वस्तु को वर्गीकृत किया जाता है, तत्पश्चात् ही उसका विक्रय सरलतापूर्वक किया जा सकता है। उत्पादक द्वारा विभिन्न ब्रान्ड एवं गुण (Brand and Quality) की वस्तुएँ तैयार की जाती हैं, अतः वस्तु के प्रमाप के अनुरूप उसका वर्गीकरण सम्बन्धी कार्य विपणन द्वारा ही किया जाता है।
4. पैकेजिंग (Packaging) – विक्रय एवं वितरण प्रमापी में अब पैकिंग का विशेष महत्व है अच्छी सी अच्छी वस्तु खराब पैकिंग के कारण कम मूल्य की हो जाती है। इसी कारण वर्तमान में वस्तु की पैकिंग कर उपभोक्ता को देने का एक फैशन चल पड़ा है। वस्तु खराब न हो या उसकी उपयोगिता नष्ट न हो उसके लिए डिब्बों, हार्डबोर्ड, प्लास्टिक की थैलियाँ या पुढे के डिब्बों में पैकिंग कार्य किया जाता है।
प्रश्न 38.
विक्रय संवर्द्धन एवं वैयक्तिक विक्रय में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन एवं वैयक्तिक विक्रय में अन्तर
प्रश्न 39.
वैयक्तिक विक्रय की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
वैयक्तिक विक्रय की विशेषताएँ (Characteristics of Personal Selling)
1. प्रत्यक्ष विक्रय (Direct sales) – प्रत्यक्ष विक्रय में विक्रेता स्वयं प्रत्यक्ष रूप से वस्तु का विक्रय करता है स्वयं सामग्री को लेकर क्रेता से मूल्य प्राप्तकर वस्तु की सुपुर्दगी देती है।
2. वैयक्तिक सम्बन्ध (Personal relation) – वैयक्तिक विक्रय में क्रेता व विक्रेता के मध्य सीधे वैयक्तिक सम्बन्ध होते हैं। क्रेता व विक्रेता के मध्य कोई कड़ी (Chain) नहीं होती है। वैयक्तिगत सम्बन्धों में व्यक्तिगत भेंट एवं निजी अनुरोध उसके सार तत्त्व हैं । बर्नाड लेस्टर के अनुसार “यह एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क तक सम्पर्क है (Mind to mind approach)
3. वस्तु का ज्ञान (Knowledge of product)—इसमें विक्रेता को वस्तु के गुणों की सम्पूर्ण जानकारी रहती है। अत: वह वस्तु बेचने तक सीमित न रहकर वस्तु का उपयोग, उसके लाभ आदि जानकारी भी क्रेता को देता है।
4. सृजनात्मक कला (Creative art)- वैयक्तिक विक्रय, विक्रय लक्ष्यों की पूर्ति के लिये नये ग्राहक, नयी माँग, नये बाजारों व नये विक्रय व्यवहारों के सृजन की कला है। इसमें विक्रेता नई-नई आवश्यकताओं व माँग को विकसित करता है।
प्रश्न 40.
उत्पादों में अंतर करने में ब्रांडिंग किस प्रकार से सहायक होती है ? क्या यह वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में भी सहायता करती है ? समझाइए।
उत्तर:
ब्रांड एक उत्पादन की पहचान होती है। यह एक नाम चिन्ह या डिजाइन के रूप में हो सकता है। ब्रांड निर्धारण न केवल विक्रेता या उत्पादक को पहचानने के लिए किया जाता है बल्कि आपके उत्पाद को प्रतिस्पर्धी के उत्पाद की तुलना में श्रेष्ठ बनाने के लिए भी किया जाता है।
ब्रांड निर्धारण एक पहचान चिन्ह से कहीं अधिक होता है । यह क्रेता की आशाओं को संतुष्टि प्रदान करने और गुणवत्ता की सुपुर्दगी करने का विक्रेता का वचन होता है। ब्रांड के साथ हम आसानी से पहचान सकते हैं कि विशिष्ट कंपनी से संबंधित सभी उत्पाद कौन से हैं। जब फर्मे किस्म के बारे में अच्छी प्रसिद्धि विकसित करती हैं। तब ब्रांड विश्वस्तता विकसित करने में उनकी सहायता करता है।
ब्रांड वस्तु एवं सेवाओं के विपणन में सहायक
1. उत्पाद में अंतर्भेद करने में सहायक- ब्रांड के कारण विज्ञापन सरल हो जाता है यह न केवल उत्पाद के बारे में जागरूकता फैलाता है अपितु ब्रांड को भी प्रचलित करता है।
2. नये उत्पादों को परिचित करवाना- ब्रांडिंग एक कंपनी के नये उत्पादों को बाजार में परिचित करवाने का काम करता है। यदि एक कंपनी का ब्रांड नाम प्रसिद्ध हो जाए तो वह कंपनी उसी नाम से अपने किसी अन्य उत्पाद को आसानी से बाजार में उतार सकती है। जैसे-Samsung एक सफल ब्रांड है और इसने इसी ब्रांड का प्रयोग अपने अन्य उत्पादों को बाजार में लाने के लिए किया जैसे-LED;A.C., Computer, Washing Machine इत्यादि।
3. विभेदात्मक मूल्य निश्चित करना- प्रसिद्ध ब्रांड नाम के कारण कंपनी अपने उत्पाद का मूल्य अन्य कंपनियों से भिन्न निश्चित कर सकती है। यदि ग्राहक को एक बार आपका ब्रांड पसंद आ जाए तो भविष्य में वह इसका अधिक मूल्य देने में भी संकोच नहीं करेगा।
प्रश्न 41.
एक अच्छे विक्रेता के गुण बताइए।
उत्तर:
एक अच्छे विक्रेता के आवश्यक गुण निम्नलिखित हैं
1. व्यक्तित्व- एक अच्छे विक्रेता का एक अच्छा व्यक्तित्व होना चाहिए जैसे एक फूल के लिए उसकी खुशबू। व्यक्ति का अच्छा व्यक्तित्व दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है। एक आकर्षक व्यक्तित्व हमेशा एक अच्छा प्रभाव बनाता है। इसके लिए अच्छा स्वास्थ्य, आकर्षक स्वरूप और प्रभावशाली आवाज होना चाहिए। उन्हें बाध्यकारी और लंगड़ा आदि जैसे शारीरिक बाधाओं से पीड़ित नहीं होना चाहिए।
2. हँसमुख स्वभाव- उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा होना चाहिए। यह सही कहा जाता है कि मुस्कुराते हुए चेहरे के बिना एक आदमी को दुकान नहीं खोलना चाहिए। ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए उन्हें हमेशा हँसमुख और मीठे स्वभाव का होना चाहिए। उचित पोशाक पहनना चाहिए क्योंकि अच्छे पोशाक व्यक्ति के व्यक्तित्व की पहचान होती है।
3. सौजन्य- एक विक्रेता को हमेशा अपने ग्राहकों के प्रति विनम्र और सरल होना चाहिए। इसके लिए कुछ भी लागत नहीं लगती है, बल्कि बिक्री के लिए स्थायी ग्राहकों के मन को जीतता है। उन्हें सही – सही विकल्प बनाने या उत्पादों को चुनने में ग्राहकों की सहायता करनी चाहिए।
4. धैर्य और दृढ़ता- एक विक्रेता के पास विभिन्न प्रकार के ग्राहक आते हैं उनमें से कुछ उत्पादों के बारे में अप्रासंगिक प्रश्न पूछकर कुछ भी नहीं खरीदते हैं और समय बर्बाद करते हैं। ऐसी परिस्थितियों में, उसे गुस्सा नहीं करना चाहिए तथा ग्राहकों की बातें सुननी चाहिए।
प्रश्न 42.
विज्ञापन एवं वैयक्तिक विक्रय में अंतर कीजिए।
उत्तर:
विज्ञापन एवं व्यक्तिगत विक्रय में स्पष्ट अंतर –
प्रश्न 43.
किसी वस्तु अथवा सेवा की कीमत निर्धारण को प्रभावित करने वाले तत्व कौन-कौन से हैं ? समझाइए।
उत्तर:
वस्तु अथवा सेवा की कीमत निर्धारण को प्रभावित करने वाले तत्व –
1. वस्तु की माँग- किसी वस्तु की माँग पर उसकी कीमत का सीधा प्रभाव पड़ता है अर्थात् जिस वस्तु की माँग अधिक होगी उसकी कीमत भी अधिक होगी। कीमत अधिक रहने पर भी उसकी बिक्री होती रहेगी। जबकि मांग कम या सामान्य रहने पर कीमत भी कम या सामान्य रखना उचित होगा।
2. वस्तु की विशेषताएँ – वस्तु की विशेषताओं के अंतर्गत वस्तु का जीवन, वैकल्पिक वस्तु की प्राप्ति, वस्तु की माँग का स्थगन आदि प्रमुख है। यदि वस्तु नाशवान किस्म की है तो उसके सड़ने – गलने या खराब होने के पूर्व कम से कम दाम में विक्रय करना उचित होता है वैकल्पिक वस्तु की प्राप्ति के अंतर्गत यदि एक वस्तु के अन्य विकल्प हैं तो कीमत कम रखना उचित होगा जबकि वैकल्पिक वस्तु न रहने से दाम कितने भी ऊँचे रखे जा.सकते हैं । इसी प्रकार ऐसी कोई वस्तु जिसकी माँग को स्थगित रखा जा सकता है जैसे कार, फ्रिज या टी.वी. खरीदना आदि। इस प्रकार वस्तु की विशेषताएँ भी उसकी कीमत को प्रभावित करती हैं।
3. वस्तु की लागत – किसी वस्तु की लागत प्रत्यक्ष रूप से कीमत को प्रभावित करती है जिस वस्तु की लागत अधिक होगी उस वस्तु की कीमत अधिक होना स्वाभाविक है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पादक वस्तु की लागत कम-से-कम करने के उपाय खोजते रहते हैं।
4. वस्तु के वितरण मार्ग – वस्तु के वितरण मार्ग का स्वभाव उसकी कीमत निर्धारण को प्रभावित करता है। यदि वितरण में मध्यस्थ अधिक है तो उन सभी का लाभ जोड़ते हुए अधिक कीमत निर्धारण करना होगा। जबकि वितरण मार्ग कम रहने पर कीमत कम निर्धारित होगी।
प्रश्न 44.
वितरण के माध्यम से आप क्या समझते हैं ? वस्तु एवं सेवाओं के वितरण में इनके क्या कार्य हैं ? समझाइए।
उत्तर:
वितरण के माध्यम का आशय-“किसी भी वस्तु का उत्पादन उपभोग करने के लिए किया जाता है। वर्तमान समय में उत्पादन व उपभोग काफी दूर-दूर होने के कारण वस्तु को उपभोक्ता तक पहुँचाने में विभिन्न माध्यमों का सहारा लेना आवश्यक होता है जिसमें वितरक, थोक व्यापारी, फुटकर व्यापारी, प्रतिनिधि आदि का महत्वपूर्ण योगदान रहता है ये माध्यम या मध्यरूप की वाहिकाएँ कहलाती हैं या इसे वितरण का माध्यम भी कहा जाता है।
वस्तु एवं सेवाओं के वितरण में इनका कार्य-वस्तु एवं सेवाओं के वितरण में ‘वितरण माध्यम’ के निम्नलिखित कार्य हैं
1. छाँटना- मध्यस्थ विभिन्न निर्माताओं से वस्तुएँ उत्पादित करते हैं और तब उसकी छंटाई करते हैं अर्थात् गुणवत्ता, आकार या कीमत के अनुसार उनकी पुनः पैकिंग करना।
2. विविधता- मध्यस्थ विभिन्न प्रकार के वस्तु अपने पास रखते हैं। वे विभिन्न निर्माताओं से वस्तुएँ प्राप्त करते हैं ताकि ग्राहक केवल एक स्थान पर जाकर अपनी आवश्यकता को पूरा कर सके।
प्रश्न 45.
विपणन व विक्रयण में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
विपणन व विक्रयण में अन्तर
प्रश्न 46.
विपणन के कार्य लिखिये।
उत्तर:
विपणन के कार्य-
(अ) नियोजन सम्बन्धी कार्य –
- विपणन अनुसन्धान
- वस्तु नियोजन एवं विकास
- वस्तु का प्रमापीकरण
- पैकेजिंग
- वस्तु विविधीकरण।
(ब) वितरण सम्बन्धी कार्य –
- क्रय एवं संग्रहण
- भण्डारण
- परिवहन
- बीमा
- बाजार वर्गीकरण।
(स) विक्रय सम्बन्धी कार्य –
- विज्ञापन
- मूल्य निर्धारण
- व्यक्तिगत विक्रय
- विक्रय शर्तों का निर्धारण
- उधार वसूली
- विक्रय पश्चात् सेवा।
प्रश्न 47.
लेबलिंग के लाभ बताइये। (कोई चार)
उत्तर:
लेबलिंग के लाभ निम्नलिखित हैं
- वस्तु की जानकारी- लेबलिंग से ग्राहक को उस वस्तु के बारे में जानकारी प्राप्त होती है तथा उसका उपयोग किस प्रकार करना है उसकी जानकारी मिलती है।
- ग्राहक के प्रति सेवा- लेबलिंग के माध्यम से ग्राहकों की सेवा की जाती है। यह एक पर्ची या पत्र है जिसमें कुछ सूचना या वितरण दिया रहता है।
- गुणवत्ता- लेबलिंग के माध्यम से वस्तु की गुणवत्ता की जानकारी उपलब्ध होती है।
- विज्ञापन- लेबलिंग के द्वारा विज्ञापन सरलता से किया जाता है।
प्रश्न 48.
विक्रय संवर्द्धन की विधियों का वर्णन कीजिये।
अथवा
विक्रय संवर्द्धन विधि की ग्राहक संवर्धन विधि के चार बिन्दु लिखिए।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन की विधियाँ –
I. ग्राहक संवर्द्धन विधियाँ –
- नमूना
- कूपन
- प्रीमियम
- प्रतियोगिताएँ
- कम मूल्य पर विक्रय
- प्रदर्शन
- मेले एवं प्रदर्शनियाँ
- प्रतिभाओं का सम्मान
- छूट या रिबेट
- उधार या किस्तों में विक्रय
- धन वापसी प्रस्ताव
- एक्सचेंज ऑफर ।
II. व्यापार संवर्द्धन विधियाँ –
- विक्रय प्रतियोगिताएँ
- व्यापारियों को सुविधाएँ
- विक्रय सामग्री को उपलब्ध करना
- विक्रय रैली का आयोजन
- उत्पाद मॉडल देना।
प्रश्न 49.
विज्ञापन के माध्यम का चुनाव करते समय ध्यान रखने योग्य घटकों (कारकों) का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
एक विज्ञापनकर्ता को अपनी वस्तु का विज्ञापन करते समय या विज्ञापन करने के पूर्व निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिये
1. बाजार का स्वभाव – बाजार के स्वभाव से अर्थ है कि वस्तु के ग्राहक किस स्थान पर रहते हैं। अतः विज्ञापन ऐसे साधन से कराया जाना चाहिए कि वह उन तक पहुँच सके। यदि ग्राहक सम्पूर्ण देश में रहते हैं तो विज्ञापन राष्ट्रीय स्तर पर रेडियो, टेलीविजन आदि से कराया जा सकता है।
2. वितरण व्यवस्था – साधन का चुनाव करते समय वितरण व्यवस्था को भी ध्यान में रखना चाहिए। जिन स्थानों पर विज्ञापनकर्ता की वस्तु के बेचने वाले नहीं हैं वहाँ पर विज्ञापन कराना व्यर्थ ही होता है।
3. सन्देश सम्बन्धी आवश्यकताएँ-विज्ञापन सन्देशों को सभी प्रकार के माध्यमों में एक – सा प्रसारित नहीं किया जा सकता है जैसे-यदि किसी विज्ञापन में चित्र दिखाना या प्रदर्शन करना आवश्यक है तो ऐसा विज्ञापन टेलीविजन से करना उचित होगा।
4. वस्तुओं की प्रकृति – वस्तुएँ कई प्रकार की होती हैं। जैसे-खाद्य वस्तुएँ, व्यापारिक वस्तुएँ। इन विभिन्न वस्तुओं के लिए विभिन्न प्रकार के माध्यम प्रभावी एवं उचित रहते हैं। अतः विज्ञापन का चुनाव करते समय वस्तु की प्रकृति को ध्यान में अवश्य रखना चाहिए।
प्रश्न 50.
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्वों को समझाइये।
उत्तर:
विपणन मिश्रण को प्रभावित करने वाले तत्व निम्नलिखित हैं
(अ) बाजार संबंधी तत्व –
- उपभोक्ता का व्यवहार
- प्रतिस्पर्धा
- सरकारी नियंत्रण।
(ब) विपणन संबंधी तत्व –
- उत्पाद नियोजन
- ब्राण्ड नीति
- संवेष्ठन नीति
- वितरण वाहिकाएँ
- विज्ञापन नीति
- विक्रय संवर्धन
- भौतिक वितरण
- बाजार अनुसंधान।
प्रश्न 51.
विक्रय संवर्द्धन से क्या आशय है ? इसके कोई चार उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
विक्रय संवर्द्धन- किसी वस्तु के सामान्य विक्रय की मात्रा में वृद्धि करने की क्रियायें विक्रय संवर्द्धन कहलाती हैं। इसके अन्तर्गत कूपन, पोस्टर्स, प्रदर्शनी, प्रसार – प्रचार, संपर्क, ईनामी योजना, मूल्य वापसी, गारण्टी, प्रीमियम एवं प्रतियोगिताओं को शामिल किया जाता है।
उद्देश्य:
- नये ग्राहकों को वस्तुओं एवं सेवा के संबंध में जानकारी प्रदान कर क्रय हेतु प्रेरित करना।
- आम लोगों में वस्तु को लोकप्रिय बनाना।
- वर्तमान ग्राहकों को स्थायी बनाना।
- उपभोक्ताओं, विक्रेताओं को वस्तु से परिचित कराकर उनका ज्ञान बढ़ाना।
- प्रतिस्पर्धा में आगे रहना।
- किसी विशिष्ट नये बाजार में बिक्री प्रारंभ करना।
- मध्यस्थों एवं व्यापारियों को अधिकाधिक माल बेचने के लिए प्रेरित करना।