नमस्कार दोस्तों ! इस पोस्ट में हमने MP Board Class 10th Hindi Book Navneet Solutions पद्य खंड Chapter 5 प्रकृति चित्रण के सभी प्रश्न का उत्तर सहित हल प्रस्तुत किया है। हमे आशा है कि यह आपके लिए उपयोगी साबित होगा। आइये शुरू करते हैं।
MP Board Class 10th Hindi Navneet पद्य Chapter 5 प्रकृति चित्रण
प्रकृति चित्रण अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. कवि के अनुसार ‘वनों और बागों में किसका विस्तार है?
उत्तर: कवि के अनुसार ‘वनों और बागों’ में बसन्त ऋतु का विस्तार है।
प्रश्न 2. तन, मन और वन में परिवर्तन किसके प्रभाव से दिखाई दे रहा है?
उत्तर: तन, मन और वन में परिवर्तन बसन्त ऋतु के प्रभाव से दिखाई दे रहा है।
प्रश्न 3. कन्हैया के मुकुट की शोभा क्यों बढ़ गई है?
उत्तर: शरद ऋतु की चाँदनी की छवि पाकर कन्हैया के मुकुट की शोभा बढ़ गई है।
प्रश्न 4. कवि ने हिमालय की झीलों में किसको तैरते हुए देखा है?
उत्तर: कवि ने हिमालय की झीलों में कमल नाल को खोजने वाले तैरते हुए हंसों को देखा है।
प्रश्न 5. कवि ने बादलों को कहाँ घिरते देखा है?
उत्तर: कवि ने मानसरोवर झील के समीप हिमालय की ऊँची चोटियों पर बादलों को घिरते देखा है।
प्रश्न 6. कौन अपनी अलख नाभि से उठने वाले परिमल के पीछे-पीछे दौड़ता है?
उत्तर: कस्तूरी मृग अपनी अलख नाभि से उठने वाले परिमल के पीछे-पीछे दौड़ता है।
प्रकृति चित्रण लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. बसन्त ऋतु के आगमन पर प्रकृति में कौन-कौन से परिवर्तन होते हैं?
उत्तर: बसन्त ऋतु के आगमन पर कुंजों में भौरे गुंजार करने लगते हैं, उनके झुण्ड के झुण्ड आम के बौरों पर चक्कर लगाने लगते हैं। विहग (पक्षी) समाज में तरह-तरह की आवाजों के द्वारा बसन्त की खुशी का वर्णन होने लगता है। ऋतुराज के आने से प्रकृति में भाँति-भाँति के राग-रंग बिखरने लगते हैं।
प्रश्न 2.यमुना तट पर किसी छटा बिखरी हुई है?
उत्तर: यमुना तट पर अखण्ड रासमण्डल की छटा बिखरी हुई है।
प्रश्न 3. कवि के अनुसार ‘घनेरी घटाएँ’ क्या कर रही है।
उत्तर: कवि के अनुसार घनेरी घटाएँ घुमड़-घुमड़ कर गर्जना करने लग जाती हैं और फिर उनकी गर्जना थमने का नाम नहीं लेती।
प्रश्न 4. ‘निशाकाल से चिर अभिशापित’ किसे कहा गया है?
उत्तर: निशाकाल से चिर अभिशापित चकवा-चकवी को कहा गया है। कवियों की मान्यता है कि चकवा-चकवी का रात के समय वियोग हो जाता है। यह वियोग उन्हें किसी शाप के द्वारा प्राप्त हुआ है।
प्रश्न 5. कवि ने भीषण जाड़ों में किससे ‘गरज-गरज कर भिड़ते देखा है?
उत्तर: कवि ने भीषण जाड़ों में महादेव को झंझावात से गरज-गरज कर भिड़ते देखा है।
प्रकृति चित्रण दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1. पद्माकर ने वर्षा ऋतु में प्रकृति का चित्रण किस तरह किया है? उल्लेख कीजिए।
उत्तर: पद्माकर ने वर्षा ऋतु में चारों ओर चमकने वाली बिजली और शीतल, मन्द सुगन्धित वायु के बहने की तथा घनेरी घटाओं के घुमड़-घुमड़ कर गर्जन करने का वर्णन किया है।
प्रश्न 2. कवि के अनुसार बसन्त का प्रभाव कहाँ-कहाँ दिखाई दे रहा है?
उत्तर: कवि के अनुसार बसन्त का प्रभाव कूलों में, केलि में, कछारों में, कुंजों में, क्यारियों में और सुन्दर किलकती हुई कलियों में, पत्तों में, कोयल में, पलासों में, समस्त द्वीपों में और ब्रज के बाग-बगीचों तथा युवतियों में देखा जा सकता है।
प्रश्न 3. नागार्जुन ने कवि कल्पित’ सन्दर्भ किसे माना है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर: नागार्जुन ने कवि कल्पित सन्दर्भ मेघदूत को माना है। अलकापुरी से जब यक्ष को निर्वासित कर दिया गया तो वह अपनी प्रेमिका के वियोग में दुःखी रहने लगा। वर्षा ऋतु के आने पर यक्ष ने बादल को दूत बनाकर अर्थात् मेघदूत के माध्यम से ही अपनी प्रेमिका को प्रेम-सन्देश भेजा है।
प्रश्न 4. नागार्जुन के अनुसार बसन्त ऋतु के उषाकाल का वर्णन कीजिए।
उत्तर: नागार्जुन के अनुसार बसन्त ऋतु के उषाकाल का वर्णन इस प्रकार है-
बसन्त ऋतु का सुप्रभात था, उस समय मन्द-मन्द गति से हवा चल रही थी, सूर्य की प्रातःकालीन कोमल किरणें पर्वत शिखरों पर स्वर्णिम आभा में गिर रही थीं। रात में चकवा-चकवी का वियोग क्रन्दन सुनाई पड़ता था तथा सरवर के किनारे काई की हरी दरी पर प्रात:काल में उनको प्रणय आलाप करते देखा है।
प्रश्न 5. निम्नलिखित काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) कौन बताए वह छायामय ………… गरज-गरज भिड़ते देखा है।
उत्तर: कविवर नागार्जुन कहते हैं कि इस कैलाश शिखर पर धनपति कुबेर की अलका नगरी का पुराणों में उल्लेख मिलता है लेकिन आज तो इसका यहाँ कोई नामोनिशान भी नहीं है, न ही हमें कालिदास के आकाश में विचरण करने वाले उस मेघदूत का कहीं पता मिलता है। हमने बहुत प्रयत्न कर लिए पर वह ढूँढने से भी नहीं मिला। ऐसा हो सकता है कि वह छायामय मेघदूत यहीं कहीं जाकर बरस गया होगा। फिर कवि कहता है कि इन बातों को छोड़ो, मेघदूत तो कवि कालिदास की कल्पना थी।
मैंने तो भयंकर कड़कड़ाते जाड़ों में आकाश को चूमने वाले कैलाश के शिखर पर घनघोर झंझावातों में महादेव जी को उनसे गरज-गरज कर युद्ध करते देखा है। बादल को घिरते देखा है।
(ब) और भाँति कुंजन ………… और बन गए।
उत्तर: कविवर पद्माकर कहते हैं कि बसन्त ऋतु में कुंजों में और ही प्रकार की सुन्दरता छा गई है तथा भरों की भीड़ में अनौखी गुंजार सुनाई दे रही है। डालियों, झुण्डों तथा आम के बौरों में नयी आभा आ गई है। गलियों में और ही भाँति की शोभा छा गयी है पक्षियों के समाज में भी और ही प्रकार की बोलियाँ सुनाई दे रही हैं। ऐसे श्रेष्ठ ऋतुराज बसन्त के अभी दो दिन भी नहीं चुके हैं फिर भी सर्वत्र और ही प्रकार का रस, और ही प्रकार की रीति, और ही प्रकार के राग तथा और ही प्रकार के रंग सर्वत्र छाये हुए हैं। इस ऋतु में मनुष्यों के शरीर और ही प्रकार के हो गए हैं, और ही प्रकार के मन तथा और ही प्रकार के वन और बाग हो गए हैं।
MCQ
प्रश्न 1. ‘कहाँ गया धनपति कुबेर वह’ पंक्ति पाठ्य-पुस्तक की किस कविता से ली गयी है?
(क) नीति-अष्टक (ख) श्रद्धा (ग) पथ की पहचान (घ) बादल को घिरते देखा है।
उत्तर: (घ) बादल को घिरते देखा है।
प्रश्न 2. कन्हैया के मुकुट की शोभा किसके द्वारा बढ़ गई है?
(क) नगों द्वारा (ख) शरद की चाँदनी से (ग) तारों की आभा से (घ) सोने का होने के कारण
उत्तर: (ख) शरद की चाँदनी से
प्रश्न 3. कवि ने बादलों को कहाँ घिरते देखा है?
(क) नवल धवल गिरि पर (ख) तालाबों में (ग) चट्टानों में (घ) बागों में।
उत्तर: (क) नवल धवल गिरि पर
प्रश्न 4. निशाकाल से चिर अभिशापित किसे कहा गया है?
(क) मृगों को (ख) नायक-नायिका को (ग) चकवा-चकवी को (घ) भौंरों को।
उत्तर: (ग) चकवा-चकवी को
प्रश्न 5. हिमालय की झीलों में कवि नागार्जुन ने तैरते हुए देखा है
(क) मछली को (ख) मृग को (ग) हंसों को (घ) नारी को।
उत्तर: (ग) हंसों को
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- अमल धवल गिरि के शिखरों पर ……… को घिरते देखा है।
- वर्षा ऋतु का वर्णन पद्माकर ने ….. को बढ़ाने वाली ऋतु के रूप में किया है।
- “बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलनि में बगन में बागन में बगर्यो …….. है।”
- ……… की हरी दरी पर प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
- हिमालय की झीलों में कवि नागार्जुन ने ………. को तैरते देखा है।
उत्तर:
- बादल
- विरह
- बसन्त
- शैवालों
- हंसों
सत्य/असत्य
- ताप तीन प्रकार के होते हैं – दैहिक, दैविक और भौतिक।
- ‘ऋतु वर्णन’ कविता में कविवर पद्माकर ने वर्षा ऋतु का सुन्दर वर्णन किया है।
- हिमालय पर बादलों की स्थिति सदैव एक-सी रहती है।
- ‘बादल को घिरते देखा है’ कविता के कवि तुलसीदास हैं।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- असत्य
सही जोड़ी मिलाइए
(i) |
(ii) |
1.पद्माकर कवि ने वसन्त,वर्षा और शरद ऋतु का 2. रात्रिकाल से चिर-अभिशापित 3. नागार्जुन 4. बिजली चमक रही है,लौंग की लताएँ |
(क) बादल को घिरते देखा है। (ख) प्रभावशाली वर्णन अपने काव्य में किया है (ग) चकवा-चकवी पक्षी (घ) लावण्यमय हो उठी हैं |
उत्तर:
1. → (ख)
2. → (ग)
3. → (क)
4. → (घ)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- पद्माकर कवि को किस काल का कवि माना जाता है?
- ‘ऋतु वर्णन’ में कवि ने प्रमुख रूप से इन पदों में किस ऋतु का वर्णन किया है।
- पद्माकर कवि ने विरह को बढ़ाने वाली ऋतु कौन-सी मानी है?
- चकवा और चकवी कब बेबस हो जाते हैं?
- कवि नागार्जुन ने हिमालय की झीलों में किसको तैरते देखा?
उत्तर:
- रीतिकाल
- शरद ऋतु,बसन्तु ऋतु तथा वर्षा ऋतु
- वर्षा ऋतु
- रात्रि में
- हंसों को।
ऋतु वर्णन पाठ सारांश
ऋतु वर्णन में पद्माकर कवि ने वसन्त ऋतु की महिमा का गुणगान किया है। यमुना के तट पर,गोपियों की रासलीला का सुन्दर वर्णन किया है। वसन्त ऋतु में कोयल की कूक का मधुर स्वर गूंजता सुनायी पड़ता है। विभिन्न प्रकार के पुष्प खिले रहते हैं तथा उन पुष्पों की सुगन्ध दूर-दूर तक फैली रहती है। बागों में पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित होकर भौरे गुंजार करते हैं।
आम के वृक्ष मंजरियों से भर गये हैं। प्रकृति के हरा-भरा होने से पक्षी भी मस्त होकर कलरव कर रहे हैं। कवि ने शरद ऋतु की अपूर्व शोभा का सुन्दर,वर्णन किया है। शरद ऋतु की चाँदनी चारों ओर व्याप्त है। लताओं पर तथा तमाल के वृक्षों पर चारों ओर शरद ऋतु का सौन्दर्य छाया है। शरद ऋतु में चाँदनी दिग्दिगन्त को अपनी आभा से मंडित कर रही है।
ऋतु वर्णन संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) कुलन में केलि में कछारन में कंजन में,
क्यारिन में कलित कलीन किलकत है।
कहैं पद्माकर परागन में पौन में,
पातन में पिक में पलासन पतंग है।
द्वार में दिसान में दुनी में देस देसन में,
देखौ दीप दीपन में दीपत दिगंत है।
बीथिन में ब्रज में नवेलिन में बेलनि में,
बनन में बागन में बगर्यो बसंत है।
शब्दार्थ :
कूलन = नदी के किनारों में। कलित = सुन्दर। केलि क्रीड़ा में। कलीन-कलियों में। किलकंत=किलकारी मारता है। पौन = पवन, हवा। पातन = पत्तों। पिक = कोयल। दुनी = दुनिया। दीप = द्वीप। दीपत = दीप्त। दिगंत = दिशाओं में। बीथिन = गलियों में। नवेलिन = नवयुवतियों में। बगर्यो = फैला हुआ है।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘प्रकृति चित्रण’ के अन्तर्गत ‘ऋतु-वर्णन’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।
प्रसंग:
इस छन्द में कवि ने बसन्त की चारों ओर फैली हुई मादकता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कविवर पद्माकर कहते हैं कि नदी के कूलों में क्रीड़ा स्थलों में, कछारों में, कुंजों में, क्यारियों में, सुन्दर कलियों में बसन्त किलकारी मार रहा है। पुष्पों के पराग में, पवन में, पत्तों में, कोयल में और पलाशों में बसन्त पगा हुआ है। घर के द्वारों में दिशाओं में, दुनिया में, देशों में, द्वीपों में और दिशाओं में बसन्त दीप्तमान हो रहा है। गलियों में, ब्रजमण्डल में, नवयुवतियों में बेलों में, वनों में, बागों में चारों ओर बसन्त की बहार छाई हुई है।
विशेष:
- कवि ने बसन्त की मादक छटा का सम्पूर्ण संसार में प्रसार दिखाया है।
- अनुप्रास अलंकार की सुन्दर छटा।
- भाषा-ब्रज।
(2) और भाँति कुंजन में गुजरत भीरे भौंर,
और डौर झौरन पैं बोरन के वै गए।
कहै पद्माकर सु और भाँति गलियान,
छलिया छबीले छैल औरे छ्वै छ्वै गए।
औरे भाँति बिहग समाज में अवाज होति,
ऐसे रितुराज के न आज दिन द्वै गए।
और रस औरे रीति और राग औरे रंग,
औरे तन और मन और बन है गए॥
शब्दार्थ :
भीरे = भीड़। बौरन = आम के बौर में। छैल = छवि। छ्दै छ्वै = छा-छा गए। विहग = पक्षी।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘प्रकृति चित्रण’ के अन्तर्गत ‘ऋतु-वर्णन’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।
प्रसंग:
इस छन्द में कवि ने बसन्त की चारों ओर फैली हुई मादकता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कविवर पद्माकर कहते हैं कि बसन्त ऋतु में कुंजों में और ही प्रकार की सुन्दरता छा गई है तथा भरों की भीड़ में अनौखी गुंजार सुनाई दे रही है। डालियों, झुण्डों तथा आम के बौरों में नयी आभा आ गई है। गलियों में और ही भाँति की शोभा छा गयी है पक्षियों के समाज में भी और ही प्रकार की बोलियाँ सुनाई दे रही हैं। ऐसे श्रेष्ठ ऋतुराज बसन्त के अभी दो दिन भी नहीं चुके हैं फिर भी सर्वत्र और ही प्रकार का रस, और ही प्रकार की रीति, और ही प्रकार के राग तथा और ही प्रकार के रंग सर्वत्र छाये हुए हैं। इस ऋतु में मनुष्यों के शरीर और ही प्रकार के हो गए हैं, और ही प्रकार के मन तथा और ही प्रकार के वन और बाग हो गए हैं।
विशेष :
- बसन्त ऋतु को इन्हीं सब विशेषताओं के कारण ऋतुराज की पदवी दी गयी है।
- बसन्त में प्रकृति तथा पुरुष सभी में एक विचित्र प्रकार की नवीनता आ जाती है।
- अनुप्रास की छटा।
(3) चंचला चलाकै चहूँ ओरन तें चाह भरी,
चरजि गई तो फेरि चरजन लागी री।
कहै पद्माकर लवंगन की लोनी लता,
लरजि गई तो फेरि लरजन लागी री।
कैसे धरौं धीर वीर त्रिविधि समीरै तन,
तरजि गई तो फेरि तरजन लागी री।
घुमड़ि-घुमड़ि घटा घन की घनैरों अबै,
गरजिं गई तो फेरि गरजन लागी री॥
शब्दार्थ :
चंचला = बिजली। चलाकै = चमककर। त्रिविध समीरें = शीतल, मन्द, सुगन्ध वाली हवा। घनेरी = घनी।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘प्रकृति चित्रण’ के अन्तर्गत ‘ऋतु-वर्णन’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।
प्रसंग:
इस छन्द में कवि ने पावस ऋतु का सुन्दर एवं मनोहारी वर्णन किया है।
व्याख्या :
कविवर पद्माकर कहते हैं कि पावस ऋतु में बिजली चारों ओर बड़ी चाहना से चमक रही है। एक बार वह बिजली आकाश में छा गयी तो सभी को आश्चर्यजनक लगने लगी। कवि पद्माकर कहते हैं कि लौंग (लवंग) की सुन्दर लता इस ऋतु को बहुत ही अच्छी लग रही है। एक बार यदि वह लवंग लता झुक गई तो फिर वह निरन्तर झुकती ही जाती है। वे वीर! तू ही बता ऐसे सुहावने समय में जबकि शीतल, मन्द और सुगन्धित वायु बह रही हो, तो मैं तेरे बिना कैसे धैर्य धारण करूँ। यह सुगन्धित वायु एक बार यदि तन को सुवासित करने लगी, तो फिर वह निरन्तर ही सुवासित करती रहेगी। इस ऋतु। में बादलों की घनी घटाएँ घुमड़-घुमड़ कर बार-बार आ रही हैं। यदि वे घटाएँ एक बार गर्जन करने लगी, तो फिर वे निरन्तर गर्जन करने लगेंगी।
विशेष :
- वर्षा ऋतु का बड़ा ही मनमोहक वर्णन हुआ
- अनुप्रास की छटा।
- ब्रजभाषा का प्रयोग।
(4) तालने पै ताल पै तमालन पै मालन पै,
वृन्दावन बीथिन बहार बंसीवट पै।
कहै पद्माकर अखंड रासमंडल पै,
मण्डित उमंड महा कालिन्दी के तट पै।
छिति पर छान पर छाजत छतान पर,
ललित लतान पर लाड़िली की लट पै।
छाई भली छाई यह सदर जुन्हाई जिहि,
पाई छबि आजु ही कन्हाई के मुकुट पै।
शब्दार्थ :
तमालन = तमाल वृक्ष पर। बंसीवट = वह वट वृक्ष जहाँ श्रीकृष्ण बंसी बजाते थे। कालिन्दी = यमुना। छिति = पृथ्वी। छान = छाजन। छतान = छतों पर। लाड़िली = राधा जी। जुन्हाई = चाँदनी।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘प्रकृति चित्रण’ के अन्तर्गत ‘ऋतु-वर्णन’ शीर्षक से लिया गया है। इसके रचयिता श्री पद्माकर हैं।
प्रसंग:
इस छन्द में कवि ने शरद ऋतु की सुन्दर शोभा का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कवि पद्माकर कहते हैं कि तालाबों पर, ताड़ पर, तमाल वृक्षों पर और मालाओं पर, वृन्दावन की गलियों एवं बंसीवट पर, सभी ओर शरद ऋतु की बहार छाई हुई है। कविवर पद्माकर कहते हैं कि सम्पूर्ण रासमण्डली पर तथा कालिन्दी के तट पर शरद ऋतु की महान् छटाएँ उमड़ रही हैं। पृथ्वी पर, छप्परों पर और छतों पर शरद ऋतु छाई हुई है। सुन्दर लताओं पर, लाड़िली अर्थात् राधाजी की लटों पर शरद ऋतु की यह चाँदनी भली-भाँति छाई हुई है और यही शोभा आज श्रीकृष्ण के मुकुट पर भी छाई हुई है।
विशेष :
- शरद ऋतु की सुन्दरता का वर्णन।
- अनुप्रास की छटा।
- ब्रजभाषा का प्रयोग।
बादल को घिरते देखा है भाव सारांश लिखिए
प्रस्तुत कविता में कवि ने हिमालय की ऊँची-ऊँची चोटियों का तथा उमड़ने-घुमड़ने वाली घटाओं का चित्ताकर्षक वर्णन किया है। हिमालय की चोटियों के नीचे अनेक प्रकार की झीलें बहती रहती हैं। उन झीलों के समीप बरसात की उमस से व्याकुल होकर हंस कमलदण्डों को खोजते हुए इधर-उधर घूम रहे हैं।
उन जल-क्रीड़ा करते हुए हंसों को देखकर मेरा मन प्रफुल्लित हो उठता है। कवि कहता है कि हिमालय पर्वत की बर्फ से ढकी अगम्य घाटियों में कस्तूरी मृग विचरण करते हुए देखे जा सकते हैं। उन मृगों की नाभि से निकलने वाली कस्तूरी की सुगन्ध को खोजते हुए वे अज्ञानतावश इधर-उधर भटक रहे हैं। मृग कस्तूरी न मिलने के कारण स्वयं से दुखी प्रतीत होते हैं।
कवि बादलों का वर्णन करते हुए कहता है कि प्राचीनकाल में कुबेर के शाप से अलकापुरी से निष्कासित यक्ष ने बादलों को दूत बनाकर अपनी प्रेमिका के समीप भेजा था। इसमें कितनी सत्यता है कौन जानता है? मैंने शीत के दिनों में बर्फ से ढकी कैलाश पर्वत की ऊँची-ऊँची चोटियों पर काले-काले बादलों को घिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
(1) अमल धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन कणों को
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
अमल = निर्मल। धवल = सफेद। गिरि = पर्वत। तुहिन = ओस।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग :
घिरते हुए बादलों को देखकर कवि की कल्पना स्फुटित हुई है, उसी का यहाँ वर्णन है।
व्याख्या :
कविवर नागार्जुन कहते हैं कि निर्मल तथा श्वेत पर्वत के शिखरों पर मैंने बादल को घिरते हुए देखा है। छोटे-छोटे मोती जैसे उसके ठण्डे बर्फ के कणों को मानसरोवर के उन सुनहरे कमलों पर गिरते देखा है। बादल को घिरते देखा है।
विशेष :
- कवि का प्रकृति चित्रण बड़ा ही मोहक है।
- अनुप्रास की छटा।
- भाषा-खड़ी बोली।
(2) तुंग हिमालय के कन्धों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
तुंग = ऊँचे। नील सलिल में = नीले जल में। समतल = मैदानी भागों से। पावस= वर्षा। आकुल= व्याकुल। तिक्त = तीखे। मधुर =मीठे। विसतंतु = कमल नाल।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने मानसरोवर झील में तैरने वाले हंसों का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कविवर नागार्जुन कहते हैं कि ऊँचे हिमालय पर्वत की तलहटी में छोटी और बड़ी कई झीलें हैं। उनके साँवले और नीले जल में मैदानी भागों से उड़-उड़कर आने वाले तथा
वर्षा की उमस से व्याकुल हुए एवं तीखे तथा मीठे कमल नाल को खोजते-फिरते हंसों को मैंने तैरते देखा है। बादल को घिरते देखा है।
विशेष :
- मानसरोवर की प्राकृतिक सुषमा तथा उसमें तैरने वाले सुन्दर हंसों का मनमोहक वर्णन है।
- अनुप्रास की छटा।
- भाषा-खड़ी बोली।
(3) ऋतु बसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णाभ शिखर थे
एक-दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उन चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रन्दन फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
अनिल = वायु। बालारुण = प्रात:कालीन सूर्य। मृदु = कोमल। स्वर्णिम = सुनहरे। विरहति = अलग। होकर, वियोग की दशा में। निशाकाल = रात के समय। चिर = दीर्घ काल से। अभिशापित = अभिशाप पाये हुए। सरवर = तालाब। तीरे = किनारे। शैवालों = काई। प्रणय-कलय = प्रेम का झगड़ा।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग :
प्रस्तुत छन्द में कवि ने बसन्त ऋतु के सुप्रभात की मनोहर झाँकी का वर्णन किया है।
व्याख्या :
कविवर नागार्जुन कहते हैं कि बसन्त ऋतु का सुप्रभात था। उस समय वायु मंद-मंद गति से बह रही थी तथा प्रात:कालीन सूर्य की कोमल किरणे अगल-बगल के सुनहरे शिखरों पर बिखर रही थीं। उस समय एक-दूसरे से अलग होकर! सारी रात वियोग में बिता देने वाले, अनन्त काल से अलग रहने का अभिशाप पाये हुए, उन बेवस चकवा-चकवी का वियोग। दुःख से उत्पन्न क्रन्दन यकायक बन्द हो गया। प्रात:काल होने पर उस महान सरोवर के किनारे काई की हरी पट्टी पर उन चकवा-चकवी को परस्पर प्रेमालाप में झगड़ते हुए मैंने देखा है। बादल को घिरते देखा है।
विशेष :
- चकवा-चकवी रात में एक-दूसरे से अलग होकर विरह जन्य क्रन्दन करते रहते हैं। प्रात:काल दोनों का संयोग होने पर प्रणय क्रीड़ाएँ करने लगते हैं।
- बसन्त ऋतु की मादकता का वर्णन है।
- भाषा-खड़ी बोली।
(4) दुर्गम बर्फानी घाटी में
शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख-नाभि से उठने वाले
निज के ही उन्मादक परिमल
के पीछे धावित हो होकर
तरल तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है,
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
दुर्गम = जहाँ जाना सरल न हो। बर्फानी = बर्फ से ढकी हुई। शत-सहस्र = सैकड़ों-हजारों। अलख नाभि = अदृश्य नाभि। उन्मादकं = नशीले। परिमल = पराग, सुगन्ध। धावित = दौड़कर।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने दुर्गम बर्फीली घाटियों में दौड़ते हुए कस्तूरी मृगों की चेष्टाओं का सुन्दर वर्णन किया है।
व्याख्या :
कविवर नागार्जुन कहते हैं कि दुर्गम बर्फ से ढकी हुई चोटियों में सैकड़ों-हजारों फुट की ऊँचाई पर, नाभि से उठने वाली स्वयं की ही अदृश्य उन्मादक गन्ध को ढूँढ़ते हुए तथा उसकी खोज में भटकते हुए चंचल एवं तरुण कस्तूरी मृगों को स्वयं अपने ऊपर चिढ़ते हुए मैंने देखा है, बादल को घिरते देखा है।
विशेष :
- कस्तूरी मृग की नाभि में अदृश्य रूप से छिपी रहती है, पर कस्तूरी मृग अपने अन्दर छिपी हुई कस्तूरी को न जानकर उसकी खोज में इधर-उधर भटकता फिरता है।
- अनुप्रास की छटा।
- भाषा-खड़ी बोली।
(5) कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढा बहुत परन्तु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चंबी कैलाश शीर्ष पर
महादेव को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
अलका = कुबेर की राजधानी। व्योम-प्रवाही। = आकाश में बहने वाली। नभ-चुंबी = आकाश को चूमने वाले। झंझानिल = झंझावात।।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत छन्द ‘बादल को घिरते देखा है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके कवि ‘नागार्जुन’ हैं।
प्रसंग :
इस छन्द में कवि ने कैलाश पर्वत की सुन्दरता का वर्णन करते हुए पौराणिक आख्यानों की चर्चा की है।
व्याख्या :
कविवर नागार्जुन कहते हैं कि इस कैलाश शिखर पर धनपति कुबेर की अलका नगरी का पुराणों में उल्लेख मिलता है लेकिन आज तो इसका यहाँ कोई नामोनिशान भी नहीं है, न ही हमें कालिदास के आकाश में विचरण करने वाले उस मेघदूत का कहीं पता मिलता है। हमने बहुत प्रयत्न कर लिए पर वह ढूँढने से भी नहीं मिला। ऐसा हो सकता है कि वह छायामय मेघदूत यहीं कहीं जाकर बरस गया होगा। फिर कवि कहता है कि इन बातों को छोड़ो, मेघदूत तो कवि कालिदास की कल्पना थी।
मैंने तो भयंकर कड़कड़ाते जाड़ों में आकाश को चूमने वाले कैलाश के शिखर पर घनघोर झंझावातों में महादेव जी को उनसे गरज-गरज कर युद्ध करते देखा है। बादल को घिरते देखा है।
विशेष :
- इस छन्द में कवि ने गगनचुम्बी कैलाश शिखर की प्राकृतिक छटा का सुन्दर वर्णन किया है।
- अनुप्रास की छटा।
- भाषा-खड़ी बोली।
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