Foreign Contribution (Regulation) Act, 2010 : विदेशी अंशदान के विनियमन की आवश्यकता, नियमों में किये गए परिवर्तन और उनकी आलोचना

गृह मंत्रालय ने विदेशी अंशदान से संबंधित नियमों को और कठोर बनाने के उद्देश्य से विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत नए नियम अधिसूचित किये हैं।
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Foreign Contribution (Regulation) Act, 2010 : विदेशी अंशदान के विनियमन की आवश्यकता, नियमों में किये गए परिवर्तन और उनकी आलोचना

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 से संबंधित नए नियम :

गृह मंत्रालय द्वारा अधिसूचित नए नियमों के अनुसार, किसी भी संगठन के लिये विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत स्वयं को पंजीकृत कराने हेतु कम-से-कम तीन वर्ष के लिये अस्तित्त्व में होना आवश्यक है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि उस संगठन ने समाज के लाभ के लिये गत तीन वर्षों के दौरान अपनी मुख्य गतिविधियों पर न्यूनतम 15 लाख रुपए खर्च किये हों।
हालाँकि असाधारण मामलों में केंद्र सरकार को किसी संगठन को इन शर्तों से छूट देने का अधिकार है।
विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत पंजीकरण कराने वाले संगठनों के पदाधिकारियों को विदेशी योगदान की राशि और जिस उद्देश्य हेतु वह राशि दी गई है, के लिये दानकर्त्ता से एक विशिष्ट प्रतिबद्धता पत्र जमा कराना होगा।
यदि भारतीय प्राप्तकर्त्ता संगठन और विदेशी दानकर्त्ता संगठन में कार्यरत लोग एक ही हैं तो भारतीय संस्था को अंशदान प्राप्त करने के लिये पूर्व अनुमति केवल तभी दी जाएगी जब-
प्राप्तकर्त्ता संगठन का मुख्य अधिकारी दानकर्त्ता संगठन का हिस्सा नहीं है। 
प्राप्तकर्त्ता संगठन के पदाधिकारी अथवा शासी निकाय के सदस्यों में से 75 प्रतिशत लोग विदेशी दाता संगठन के सदस्य या कर्मचारी नहीं हैं।
यदि विदेशी दानकर्त्ता एकल व्यक्ति है तो यह आवश्यक है कि-
  • वह व्यक्ति प्राप्तकर्त्ता संगठन का पदाधिकारी न हो।
  • प्राप्तकर्त्ता संगठन के पदाधिकारी अथवा शासी निकाय के सदस्यों में से 75 प्रतिशत लोग विदेशी दानकर्त्ता के रिश्तेदार न हों।
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विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) के तहत पंजीकरण के लिये आवेदन शुल्क 3,000 रुपए से बढ़ाकर 5,000 रुपए कर दिया गया है।
इसके अलावा संशोधन के माध्यम से FCRA नियम, 2011 में एक नया खंड शामिल किया गया है, जिसमें कहा गया है कि नियम के खंड V और VI में उल्लिखित समूह यदि किसी भी तरह से सक्रिय राजनीति में भाग लेते हैं तो उन्हें केंद्र सरकार द्वारा राजनीतिक समूह माना जाएगा।
राजनीतिक संगठनों अथवा ‘सक्रिय राजनीति’ में हिस्सा लेने वाले संगठनों पर विदेशी अंशदान प्राप्त करने से रोक लगाई गई है।
ध्यातव्य है कि FCRA नियम, 2011 के नियम 3 के खंड V और खंड VI किसानों, श्रमिकों, छात्रों, युवाओं तथा जाति, समुदाय, धर्म अथवा भाषा के आधार पर बनने वाले ऐसे संगठनों से संबंधित है, जो प्रत्यक्ष तौर पर किसी भी राजनीतिक दल से नहीं जुड़े हैं, किंतु वे अपनी गतिविधियों के माध्यम से अपने हितों को बढ़ावा दे रहे हैं और साथ ही ऐसे समूह भी जो अपने हित के लिये राजनीतिक गतिविधियों जैसे कि बंद, हड़ताल और रास्ता रोको आदि में संलग्न होते हैं।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के नए नियमों के प्रभाव :

सरकार के इस निर्णय से गैर-सरकारी संगठनों के लिये विदेशों से अंशदान प्राप्त करना और भी चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।
ध्यातव्य है कि इससे पूर्व सितंबर माह में जब संसद ने विदेशी अंशदान विनियमन (संशोधन) विधेयक, 2020 पारित किया था, तब न्यायविदों के अंतर्राष्ट्रीय आयोग (ICJ) समेत कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने सरकार के इस कदम की आलोचना की थी।
कई आलोचक मानते हैं कि सरकार द्वारा इन संशोधनों का उपयोग ऐसे संगठनों के विरुद्ध कार्यवाही करने के लिये किया जा रहा है, जो सरकार के विरुद्ध बोल रहे हैं।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 में संशोधन :

संशोधन के माध्यम से गैर-सरकारी संगठन (NGOs) या विदेशी योगदान प्राप्त करने वाले लोगों और संगठनों के सभी पदाधिकारियों, निदेशकों एवं अन्य प्रमुख अधिकारियों के लिये आधार (Aadhaar) को एक अनिवार्य पहचान दस्तावेज़ बना दिया गया था। 
संशोधन के बाद अब कोई भी व्यक्ति, संगठन या रजिस्टर्ड कंपनी विदेशी अंशदान प्राप्त करने के पश्चात् किसी अन्य संगठन को उस विदेशी योगदान का ट्रांसफर नहीं कर सकती है। 
विदेशी अंशदान केवल स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI), नई दिल्ली की उस शाखा में ही प्राप्त किया जाएगा, जिसे केंद्र सरकार अधिसूचित करेगी। 
अब कोई भी गैर-सरकारी संगठन (NGO) विदेशी अंशदान की 20 प्रतिशत से अधिक राशि का इस्तेमाल प्रशासनिक खर्च पर नहीं कर सकता है।
ध्यातव्य है कि सरकार द्वारा किये गए इन संशोधनों की राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी आलोचना की गई थी।

विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 की पृष्ठभूमि:

विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने के उद्देश्य से विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम को सर्वप्रथम वर्ष 1976 में अधिनियमित किया गया, जिसके बाद वर्ष 2010 में विदेशी अंशदान को नियंत्रित करने से संबंधित नए उपाय अपनाए गए और विदेशी अंशदान (विनियमन) अधिनियम को संशोधित किया गया।
इस अधिनियम का प्राथमिक उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अंशदान के कारण भारत की आंतरिक सुरक्षा पर कोई प्रतिकूल प्रभाव न पड़े।
यह अधिनियम उन सभी संघों, समूहों और गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) पर लागू होता है जो किसी भी उद्देश्य के लिये विदेशों से अनुदान प्राप्त करते हैं।
इस अधिनियम के तहत विधायिका और राजनीतिक दलों के सदस्य, सरकारी अधिकारी, न्यायाधीश तथा मीडियाकर्मी आदि को किसी भी प्रकार के विदेशी अंशदान प्राप्त करने से प्रतिबंधित किया गया है।
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