भौतिकी (Physics): मानव की सदैव अपने चारों ओर फैले विश्व के बारे में जानने की जिज्ञासा रही है। अनादि काल से ही रात्रि के आकाश में चमकने वाले खगोलीय पिण्ड उसे सम्मोहित करते रहे हैं। दिन – रात की सतत पुनरावृत्ति, ऋतुओं के वार्षिक चक्र, ग्रहण, ज्वार भाटे, ज्वालामुखी, इन्द्रधनुष सदैव ही उसके कौतूहल के स्रोत रहे हैं।
संसार में पदार्थों के आश्चर्यचकित करने वाले प्रकार तथा जीवन एवं व्यवहार की विस्मयकारी विभिन्नताएँ हैं। प्रकृति के ऐसे आश्चर्यों एवं विस्मयों के प्रति मानव का कल्पनाशील तथा अन्वेषी मस्तिष्क विभिन्न प्रकार से अपनी प्रतिक्रियाएँ व्यक्त करता रहा है।
आदि काल से मानव की एक प्रकार की प्रतिक्रिया यह रही है कि उसने अपने भौतिक पर्यावरण का सावधानीपूर्वक प्रेक्षण किया है, प्राकृतिक परिघटनाओं में अर्थपूर्ण पैटर्न तथा संबंध खोजे हैं, तथा प्रकृति के साथ प्रतिक्रिया कर सकने के लिए नए औजारों को बनाया तथा उनका उपयोग किया है। कालान्तर में मानव के इन्हीं प्रयासों से आधुनिक विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का मार्ग प्रशस्त हुआ है।
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SCIENCE साइंस शब्द की खोज कैसे हुई?
अंग्रेजी भाषा के शब्द साईंस ( Science ) का उद्भव लैटिन भाषा के शब्द सिंटिया ( Scientia ) से हुआ है, जिसका अर्थ है ‘ जानना ‘। संस्कृत भाषा का शब्द ‘ विज्ञान ‘ तथा अरबी भाषा का शब्द ‘ इल्म ‘ भी यही अर्थ व्यक्त करता है जिसका तात्पर्य है ” ज्ञान “।
विस्तृत रूप में विज्ञान उतना ही प्राचीन है जितनी कि मानव जाति है। मिस्र, भारत, चीन, यूनान, मैसोपोटामिया तथा संसार के अन्य देशों की प्राचीन सभ्यताओं ने विज्ञान की प्रगति में अत्यावश्यक योगदान दिया है।
सोलहवीं शताब्दी से यूरोप में विज्ञान के क्षेत्र में अत्यधिक प्रगति हुई। बीसवीं शताब्दी के मध्य तक विज्ञान, वास्तविक रूप में, एक महान द्रुत कार्य बन गया, जिसके अंतर्राष्ट्रीय विकास के लिए अनेक सभ्यताओं एवं देशों ने अपना योगदान दिया।
विज्ञान क्या है, एवं तथाकथित वैज्ञानिक विधि क्या होती है ?
विज्ञान प्राकृतिक परिघटनाओं को यथासंभव विस्तृत एवं गहनता से समझने के लिए किए जाने वाला सुव्यवस्थित प्रयास है, जिसमें इस प्रकार अर्जित ज्ञान का उपयोग परिघटनाओं के भविष्य कथन, संशोधन, एवं नियंत्रण के लिए किया जाता है। जो कुछ भी हम अपने चारों ओर देखते हैं उसी के आधार पर अन्वेषण करना, प्रयोग करना तथा भविष्यवाणी करना विज्ञान है।
संसार के बारे में सीखने की जिज्ञासा, प्रकृति के रहस्यों को सुलझाना विज्ञान की खोज की ओर पहला चरण है। वैज्ञानिक विधि ‘ में बहुत से अंत : संबंध- पद : व्यवस्थित प्रेक्षण, नियंत्रित प्रयोग, गुणात्मक तथा मात्रात्मक विवेचना, गणितीय प्रतिरूपण, भविष्य कथन, सिद्धांतों का सत्यापन अथवा अन्यथाकरण सम्मिलित होते हैं निराधार कल्पना तथा अनुमान लगाने का भी विज्ञान में स्थान है।
परन्तु, अंततः, किसी वैज्ञानिक सिद्धांत को स्वीकार्य योग्य बनाने के लिए, उसे प्रासंगिक प्रेक्षणों अथवा प्रयोगों द्वारा सत्यापित किया जाना भी आवश्यक होता है। विज्ञान की प्रकृति तथा विधियों के बारे में काफी दार्शनिक विवाद हैं जिनके विषय में यहाँ चर्चा करना आवश्यक नहीं है।
सिद्धांत तथा प्रेक्षण अथवा प्रयोग क्या होते हैं?
सिद्धांत तथा प्रेक्षण ( अथवा प्रयोग ) का पारस्परिक प्रभाव विज्ञान की प्रगति का मूल आधार है। विज्ञान सदैव गतिशील है विज्ञान में कोई भी सिद्धांत अंतिम नहीं है तथा वैज्ञानिकों में कोई निर्विवाद विशेषज्ञ अथवा सत्ता नहीं है जैसे – जैसे प्रेक्षणों के विस्तृत विवरण तथा परिशुद्धता में संशोधन होते जाते हैं, अथवा प्रयोगों द्वारा नए परिणाम प्राप्त होते जाते हैं, वैसे यदि आवश्यक हो तो उन संशोधनों को सन्निविष्ट करके सिद्धांतों में उनका स्पष्टीकरण किया जाना चाहिए।
कभी – कभी ये संशोधन प्रबल न होकर सुप्रचलित सिद्धांतों के ढांचे में भी हो सकते उदाहरण के लिए, जब जोहानेस केप्लर ( 1571-1630 ) ने टाइको ब्राह ( 1546-1601 ) द्वारा ग्रह गति से संबंधित संगृहीत किए गए विस्तृत आंकड़ों का परीक्षण किया, तो निकोलस कोपरनिकस ( 1473-1543 ) द्वारा कल्पित सूर्य केन्द्री सिद्धांत ( जिसके अनुसार सूर्य सौर – परिवार के केन्द्र पर स्थित है ) की वृत्ताकार कक्षाओं को दीर्घवृत्तीय कक्षाओं द्वारा प्रतिस्थापित करना पड़ा, ताकि संगृहीत आंकड़ों तथा दीर्घवृत्तीय कक्षाओं में अनुरूपता हो सके।
तथापि, यदा कदा सुप्रचलित सिद्धांत नए प्रेक्षणों का स्पष्टीकरण करने में असमर्थ होते हैं ये प्रेक्षण ही विज्ञान में महान क्रांति का कारण बनते हैं बीसवीं शताब्दी के आरंभ में यह अनुभव किया गया कि उस समय का सर्वाधिक सफल न्यूटनी यांत्रिकी सिद्धांत परमाण्वीय परिघटनाओं के कुछ मूल विशिष्ट लक्षणों की व्याख्या करने में असमर्थ है।
इसी प्रकार उस समय तक मान्य ” प्रकाश का तरंग सिद्धांत ” भी प्रकाश विद्युत प्रभाव को स्पष्ट करने में असफल रहा। इससे परमाण्वीय तथा आण्विक परिघटनाओं पर विचार करने के लिए मूलत : नए सिद्धांत ( क्वान्टम यांत्रिकी ) के विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ।
जिस प्रकार कोई नया प्रयोग किसी वैकल्पिक सैद्धांतिक निदर्श ( मॉडल ) को प्रस्तावित कर सकता है, ठीक उसी प्रकार किसी सैद्धांतिक प्रगति से यह भी सुझाव मिल सकता है कि कुछ प्रयोगों में क्या प्रेक्षण किए जाने हैं।
अर्नेस्ट रदरफोर्ड ( 1871-1937 ) द्वारा वर्ष 1911 में स्वर्ण पर्णिका पर किए गए ऐल्फा कण प्रकीर्णन प्रयोग के परिणाम ने परमाणु के नाभिकीय मॉडल को स्थापित किया, जो फिर नौल बोर ( 1885-1962 ) द्वारा वर्ष 1913 में प्रतिपादित हाइड्रोजन परमाणु के सिद्धांत का आधार बना दूसरी ओर पॉल डिरेक ( 1902-1984 ) द्वारा वर्ष 1930 में सर्वप्रथम सैद्धांतिक रूप से प्रतिकण की संकल्पना प्रतिपादित की गई जिसे दो वर्ष पश्चात् काल एन्डरसन ने पॉजीट्रॉन ( प्रति इलेक्ट्रॉन ) की प्रायोगिक खोज द्वारा प्रमाणित किया।
प्राकृतिक विज्ञानों की श्रेणी का एक मूल विषय भौतिकी है। इसी श्रेणी में अन्य विषय जैसे रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान भी सम्मिलित हैं भौतिकी को अंग्रेजी में Physics कहते हैं जो भाषा के एक शब्द से व्युत्पन्न हुआ है जिसका अर्थ ‘ प्रकृति “।
इसका तुल्य संस्कृत शब्द ‘ भौतिकी ‘ है जिसका उपयोग भौतिक जगत के अध्ययन से संबंधित है इस विषय को यथार्थ परिभाषा देना न तो संभव है और न ही आवश्यक।
मोटे तौर पर हम भौतिकी का वर्णन प्रकृति के मूलभूत नियमों का अध्ययन तथा विभिन्न प्राकृतिक परिघटनाओं में इनकी अभिव्यक्ति के रूप में कर सकते हैं।
अगले अनुभाग में भौतिकी के कार्यक्षेत्र विस्तार का संक्षिप्त वर्णन दिया गया है .
भौतिकी के अंतर्गत हम विविध भौतिक परिघटनाओं की व्याख्या कुछ संकल्पनाओं एवं नियमों के पदों में करने का प्रवास करते हैं। इसका उद्देश्य विभिन्न प्रभाव क्षेत्रों तथा परिस्थितियों में भौतिक जगत को कुछ सार्वत्रिक नियमों की अभिव्यक्ति के रूप में देखने का प्रयास है।
उदाहरण के लिए, समान गुरुत्वाकर्षण का नियम ( जिसे न्यूटन ने प्रतिपदित किया ) पृथ्वी पर किसी सेब का गिरना, पृथ्वी के परित : चन्द्रमा की परिक्रमा तथा सूर्य के परितः ग्रहों की गति जैसी परिघटनाओं की व्याख्या करता है।
इसी प्रकार विद्युत चुम्बकत्व के मूलभूत सिद्धांत ( मैक्सवेल – समीकरण ) सभी विद्युतीय तथा चुम्बकीय परिघटनाओं को नियंत्रित करते हैं। प्रकृति के मूल बलों को एकीकृत करने के प्रयास एकीकरण के इसी अन्वेषण को प्रतिबिम्बित करते हैं।
किसी अपेक्षाकृत बड़े, अधिक जटिल निकाय के गुणों को इसके अवयवी सरल भागों की पारस्परिक क्रियाओं तथा गुणों से व्युत्पन्न करना एक संबद्ध प्रयास होता है इस उपगमन को न्यूनीकरण कहते हैं तथा यह भौतिकी के मर्म में है उदाहरण के लिए . उन्नीसवीं शताब्दी में विकसित विषय ऊष्मा गतिकी बृहदाकार निकायों के साथ ताप, आंतरिक ऊर्जा, एन्ट्रापी आदि जैसी स्थूल राशियों के पदों में व्यवहार करता है।
तत्पश्चात् अणुगति सिद्धांत तथा सांख्यिकीय यांत्रिकी विषयों के अंतर्गत इन्हीं राशियों की व्याख्या वृहदाकार निकायों के आण्विक अवयवों के गुणों के पदों में की गई। विशेष रूप से ताप को निकाय के अणुओं की औसत गतिज ऊर्जा से संबंधित पाया गया।
Other
जीव विज्ञान और भौतिक विज्ञान में समानता
भौतिक विज्ञान जीव विज्ञान के लिए आधार प्रदान करती है। अंतरिक्ष, पदार्थ, ऊर्जा और समय के बिना – ऐसे घटक जो ब्रह्मांड बनाते हैं – जीवित जीव मौजूद नहीं होंगे।
भौतिक विज्ञानी रिचर्ड फेनमैन ने कहा कि पृथ्वी पर सब कुछ परमाणुओं से बना है, पदार्थ की बुनियादी इकाइयाँ, जो लगातार चलती हैं। चूंकि जीव विज्ञान भौतिक विज्ञान में अपनी नींव रखता है, इसलिए यह मस्केगॉन कम्युनिटी कॉलेज के अनुसार, जीवों के अध्ययन के लिए भौतिक प्राकृतिक नियम लागू करता है।
उदाहरण के लिए, भौतिक विज्ञान यह समझाने में मदद करती है कि चमगादड़ अंधेरे में नेविगेट करने के लिए कैसे ध्वनि तरंगों का उपयोग करते हैं और कैसे पंख हवा के माध्यम से जाने की क्षमता देते हैं।
अमेरिकन फिजिकल सोसाइटी ने कहा कि कई फूल अपने बीज या पंखुड़ियों को प्रकाश और पोषक तत्वों के संपर्क में लाने के लिए फाइबोनैचि जैसे अनुक्रम में व्यवस्थित करते हैं।
कुछ मामलों में, जीवविज्ञान भौतिक कानूनों और सिद्धांतों को साबित करने में मदद करता है। फेनमैन ने कहा कि जीव विज्ञान ने ऊर्जा के संरक्षण के कानून के साथ वैज्ञानिकों को आने में मदद की।