Class 12 Biology notes chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (फूलों के पौधों में यौन प्रजनन)

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Class 12 Biology notes chapter 2 : इस आर्टिकल में हम mp board class 12th biology ncert solution chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants ( पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन ) प्रस्तुत कर रहे हैं। यह आर्टिकल 12वीं जीव विज्ञान के छात्र छात्राओं के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। 
Class 12 Biology notes chapter 2 Sexual Reproduction in Flowering Plants (फूलों के पौधों में यौन प्रजनन)

प्रश्न 1. एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएँ , जहाँ पर नर एवं मादा युग्मकोद्भिद का विकास होता है ? 

उत्तर : नर युग्मकोद्भिद अर्थात् परागकण का विकास पुंकेसर के परागकोश में तथा मादा युग्मकोद्भिद अर्थात् भ्रूणकोष का विकास बीजाण्ड ( गुरुबीजाणुधानी ) जो कि अण्डाशय में स्थित होता है , में होता है । 

प्रश्न 2. लघुबीजाणुयानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर स्पष्ट करें । इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है ? इन दोनों घटनाओं के अन्त में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताएँ ।

उत्तर : लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी में अन्तर 

Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन ( Sexual Reproduction in Flowering Plants )

लघु तथा गुरुबीजाणुजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन होता है । लघु तथा गुरुबीजाणुजनन के फलस्वरूप अन्त में नर तथा भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद विकसित होते हैं । 

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Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन

प्रश्न 3. निम्नलिखित शब्दावलियों को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें परागकण , बीजाणुजन ऊतक , लघुबीजाणु चतुष्क , पराग मात कोशिका या लघुबीजाणुमात कोशिका , नर युग्मक । 

उत्तर : सही विकासीय क्रम निम्नवत् है ( i ) बीजाणुजन ऊतक , ( ii ) पराग या लघुबीजाणु मात कोशिका , ( iii ) लघुबीजाणु चतुष्क , ( iv ) परागकण , ( लघुबीजाणु ) , ( v ) नर युग्मक

प्रश्न 4. एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ – सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ ।

उत्तर

एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हुए एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ ।

प्रश्न 5. आप मादा युग्मकोद्भिद के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं ? 

उत्तर : मादा युग्मकोद्भिद का एकबीजाणुज विकास ( Monosporic development of female gametophyte ) – अधिकांश आवृतबीजी पादपों में मादा युग्मकोद्भिद का विकास एक गुरुबीजाणु से होता है । एक ही गुरुबीजाणु से विकसित होने के कारण इसे एकबीजाणुक ( monosporic ) कहा जाता है । इसे सबसे पहले पॉलीगोनम पौधे में देखा गया था अतः इसे पॉलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष भी कहा जाता है । बीजाण्ड के बीजाण्डकाय ( nucellus ) में गुरुबीजाणु मातृ कोशिका ( megaspore mother cell ) अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा चार गुरुबीजाणु ( megaspore ) बनाती है । इनमें से तीन गुरुबीजाणु नष्ट हो जाते हैं । आधारीय क्रियाशील गुरुबीजाणु वृद्धि एवं विभाजन द्वारा भ्रूणकोष ( embryo sae ) बनाता है । इसे मादा युग्मकोद्भिद भी कहते हैं । यह 8 केन्द्रकीय व 7 कोशिकीय संरचना है । 

Class 12 Biology notes chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन

प्रश्न 6. एक स्पष्ट एवं साफ – सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद के 7 – कोशीय , 8 – न्यूक्लिएट ( केन्द्रक ) प्रकृति की व्याख्या कीजिए । 

उत्तर : आवृतबीजी मादा युग्मकोशिद ( भ्रूणकोष ) की संरचना [ Structure of angiospermic female gametophyte ( Embryo Sac ) ] – अधिकांश आवृतबीजी पादपों का मादा युग्मकोद्भिद ( भ्रूणकोष ) 7 – कोशिकीय तथा 8 – केन्द्रकीय होता है । क्रियाशील गुरुबीजाणु का केन्द्रक समसूत्री विभाजन द्वारा दो संतति केन्द्रक बनाता है । ये विपरीत ध्रुवों पर चले जाते हैं । विपरीत ध्रुवों पर स्थित केन्द्रक पुनः दो बार समसूत्री विभाजन द्वारा 8 – केन्द्रकीय संरचना बनाते हैं । यह विभाजन वास्तव में मुक्त केन्द्रकीय होता है , क्योंकि विभाजन के तुरन्त पश्चात् कोशिका भित्ति नहीं बनती । 8 – केन्द्रकीय संरचना में बीजाण्डद्वार की ओर एक अण्ड कोशिका ( egg cell ) तथा दो सहायक कोशिकाएं ( synergids ) मिलकर अण्ड उपकरण ( egg apparatus ) बनाती हैं । निभाग की ओर तीन कोशिकाएँ प्रतिमुख ( antipodals ) कहलाती हैं । वृहद भ्रूणकोष में शेष बचे दो केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक ( polar nuclei ) कहलाते हैं । दोनों ध्रुवीय केन्द्रक परस्पर मिलकर द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक ( secondary nucleus ) बनाते हैं । इस प्रकार परिपक्व भ्रूणकोष या मादा युग्मकोद्भिद 8 – केन्द्रकीय तथा 7 – कोशिकीय संरचना होती है ।

एक स्पष्ट एवं साफ - सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद के 7 - कोशीय , 8 - न्यूक्लिएट ( केन्द्रक ) प्रकृति की व्याख्या कीजिए ।

प्रश्न 7. उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें । 

उत्तर : कुछ पादपों में दो प्रकार के पुष्प पाए जाते हैं 

( i ) उन्मील परागणी पुष्प ( Chasrmogamous flowers ) – ये सामान्य पुष्यों के समान होते हैं , इनके परागकोश ( anther ) एवं वर्तिकान ( stigma ) अनावृत ( exposed ) होते हैं । इनमें सामान्य पुष्पों की तरह परागण होता है । 

( ii ) अनुन्मील्य परागणी पुष्प ( Cleistogamous flowers ) – ये पुष्प सदैव बन्द रहते हैं । इन पुष्पों में परागकोश एवं वर्तिकार एक – दूसरे के सम्पर्क में रहते हैं । इनमें सदैव स्वपरागण होता है , क्योंकि वर्तिकाम को अन्य पुष्पों से परागकण ग्रहण करने का अवसर प्राप्त नहीं होता । अनुन्मील्य पुष्पों में बीज निर्माण प्रक्रिया सुनिश्चित होती है । 

उदाहरण – वायोला ( Viola ) , ऑक्सैलिस ( Oxatis ) , कनकौआ ( कोमेलीना- Commelina )

उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें ।

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प्रश्न 8. पुष्यों द्वारा स्व – परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्यनीति का विवरण दें । 

उत्तर : पुष्पीय पादपों में अनेक ऐसी युक्तियाँ पायी जाती हैं जो स्वपरागण को रोकने में सहायक होती हैं और पर – परागण को प्रेरित करती है । स्वपरागण को रोकने के लिए पुष्पीय पादपों में निम्नलिखित युक्तियाँ पायी जाती हैं 

( i ) एकलिंगता ( Unisexuality or Dicliny ) एकलिंगी पुष्पों में नर तथा मादा जननांग अलग – अलग पुष्पों में पाए जाते हैं । जब नर तथा मादा पुष्प पृथक् – पृथक् पौधों पर लगते हैं तो पौधे एकलिंगाश्रयी ( dioecious ) कहलाते हैं ; जैसे – पपीता , भाँग आदि । इनमें स्वपरागण नहीं होता । 

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( ii ) स्वबन्थ्यता ( Self – sterility or Incompatibility ) – इसमें एक पुष्प के परागकण जब उसी पुष्प या उसी पौधे के अन्य पुष्पों पर पहुंचते हैं तो परागकणों का अंकुरण अथवा पराग नलिका वृद्धि नहीं होता । इसे स्वबन्ध्यता ( self – sterility ) कहते हैं ; जैसे – तम्बाकू , आलू , झूमकलता आदि में । 

प्रश्न 9. स्व – अयोग्यता क्या है ? स्व – अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व – परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है ? 

उत्तर : स्वअयोग्यता ( Incompatiblity ) – परागण द्वारा परागकोश से परागकण वर्तिकान पर पहुंचते हैं , लेकिन परागण द्वारा यह सुनिश्चित नहीं होता कि एक जाति विशेष के परागकण उसी जाति विशेष के पुष्प के वर्तिकान पर पहुंचेंगे । प्रायः विभिन्न प्रकार के परागकण वर्तिकान पर पहुँचते हैं । स्त्रीकेसर में सही प्रकार के परागकणों को पहचानने की क्षमता होती है । सही प्रकार अर्थात उसी प्रजाति के परागकणों को स्त्रीकेसर स्वीकार कर लेता है और परागण – पश्च घटना ( post – pollination process ) को प्रोत्साहित करता है जिसके फलस्वरूप निषेचन होता है । भिन्न प्रजाति के परागकणों के स्त्रीकेसर पर पहुँचने पर परागकणों का अंकुरण नहीं होता । यदि परागकणों का अंकुरण हो जाता है तो पराग नलिका वर्तिका में प्रवेश नहीं कर पाती अर्थात् स्त्रीकेसर परागकण को अस्वीकार कर देता है । एक स्त्रीकेसर द्वारा परागकण को पहचानने की सक्षमता उसकी स्वीकृति या अस्वीकृति द्वारा अनुपालित होती है जो परागकणों और स्त्रीकेसर के बीच निरन्तर संवाद का परिणाम है । यह संवाद परागकण एवं स्त्रीकेसर के मध्य रसायनों की परस्पर क्रिया के कारण होता है । अनेक द्विलिंगी पुष्पों में स्वबन्ध्यता या स्वअयोग्यता का गुण होता है । अत : जब एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प या उसी पौधे के अन्य पुष्पों के वर्तिकान पर पहुंचते हैं तो परागकणों का अंकुरण नहीं होता अतः निषेचन की अनुपस्थिति में इससे इन पौधों में बीज निर्माण नहीं होता । 

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प्रश्न 10.बैगिंग ( थोरावस्त्रावरण ) या थैली लगाना तकनीक क्या है ? पादप जनन कार्यक्रम में यह कैसे उपयोगी है ? 

उत्तर : बैगिंग ( बोरावस्त्रावरण Bagging ) — बैगिंग या बोरावस्त्र तकनीक का उपयोग कृत्रिम संकरण ( artificial hybridization ) में किया जाता है । इस तकनीक द्वारा द्विलिंगी पुष्पों में पराग के प्रस्फुटन से पूर्व पुष्प कलिका अवस्था से चिमटी की सहायता से परागकोश ( anthers ) को निकाल दिया जाता है । इस प्रक्रिया को विपुंसन ( emasculation ) कहते हैं । विपुंसित पुष्पों को उपयुक्त आकार की बटर पेपर से बनी थैलियों से ढक दिया जाता है , इससे अवांछित परागकण वर्तिकान पर नहीं पहुंचते । इस प्रक्रिया को बैगिंग ( बोरावस्त्रावरण ) कहते हैं । जब वस्त्रावृत पुष्प ( bagged flower ) का वर्तिकाग्र परिपक्व हो जाता है , तब कृत्रिम रूप से संगृहीत वांछित परागकणों को वर्तिकार पर छिटक कर पुष्प को पुन : थैली से ढक दिया जाता है । इसके फलस्वरूप परागकण अंकुरित होकर स्त्रीकेसर के बीजाण्ड में स्थित अण्ड कोशिका का निषेचन करते हैं । निषेचन के फलस्वरूप बीज और फल विकसित होता है । इस तकनीक से फसल की उन्नत किस्में ( improved varieties ) विकसित की जाती हैं । ये अधिक उत्पादन करने वाली , रोग प्रतिरोधी एवं कीट प्रतिरोधी प्रजातियाँ होती हैं । 

प्रश्न 11.त्रिसंलयन क्या है ? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है ? त्रि – संलयन में सम्मिलित न्यूक्लीआई का नाम बताएँ । 

उत्तर : त्रिसंलयन – पराग नलिका दो केन्द्रकों को भ्रूणकोष में मुक्त करती है । भ्रूणकोष में एक नर युग्मक अण्ड कोशिका ( egg cell or female gamete ) से मिलकर युग्मनज ( zygote ) बनाता है । इसे सत्य निषेचन या संयुग्मन ( syngamy ) कहते हैं । दूसरा नर युग्मक द्विगुणित द्वितीयक केन्द्रक rnucleus ) या दो अगुणित ध्रुवीय केन्द्रकों ( polar nuclei ) से मिलकर त्रिगुणित ( triploid ) प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक ( primary endospermic nucleus ) बना लेता है । यह भ्रूणकोष में सम्पन्न होता है । इस क्रिया को निसंलयन ( triple fusion ) कहते हैं । त्रिसंलयन में सम्मिलित केन्द्रक हैं -1 नर युग्मक +2 ध्रुवीय केन्द्रका आवृतबीजी पौधों में संयुग्मन ( syngamy ) तथा त्रिसंलयन ( triple fusion ) को सम्मिलित रूप से विनिषेचन ( double fertilization ) कहते हैं । युग्मनज से भ्रूण और प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से भ्रूणपोष ( endosperm ) का विकास होता है । 

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प्रश्न 12. एक निषेचित बीजाण्ड में युग्मनज की कुछ समय की प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं ? 

उत्तर : निषेचित बीजाण्ड के भ्रूणकोष में द्विगुणित युग्मनज ( aygote ) तथा त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक ( primary endospermic nucleus ) को छोड़कर अन्य कोशिकाएँ विघटित हो जाती हैं । निषेचन के तुरन्त बाद युग्मनज का विभाजन प्रारम्भ नहीं होता । प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक से एक निश्चित सीमा तक भ्रूणपोष के विकसित हो जाने के पश्चात् भ्रूण का विकास प्रारम्भ होता है । यह एक प्रकार का अनुकूलन है , ताकि विकासशील भ्रूण को सुनिश्चित पोषण प्राप्त हो सके । त्रिगुणित भ्रूणपोष की कोशिकाओं में भ्रूण के लिए उपयोगी खाद्य पदार्थ संचित रहते हैं । अत : बीजाण्ड में युग्मनज को कुछ समय की प्रसुप्ति भ्रूणपोष को विकास की पर्याप्त अवधि व अवसर प्रदान करती है । साथ ही भ्रूण को पोषण सुनिश्चित कराती है । 

प्रश्न 13. इनमें विभेद करें ( क ) बीजपत्राधार और बीजपत्रोपरिक ( ख ) प्रांकुर चोल और मूलांकुर चोल ( ग ) अध्यावरण तथा बीजचोल ( घ ) परिश्रूणपोष एवं फलभित्ति । ( घ ) परिभ्रूणपोष एवं फलभित्ति में अन्तर 

उत्तर

उन्मील परागणी पुष्यों से क्या तात्पर्य है ? क्या अनुन्मील्य पुष्यों में परपरागण सम्पन्न होता है ? अपने उत्तर की सतर्क व्याख्या करें ।

प्रश्न 14. एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं ? पुष्प का कौन – सा भाग फल की रचना करता है ? 

उत्तर : पुष्प के अण्डाशय से विकसित होने वाले फल सत्य फल ( true fruits ) कहलाते हैं । कभी – कभी फल के निर्माण में अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्प के अन्य भाग भी भाग लेते हैं तो ऐसे फलों को आभासी फल ( false fruits ) कहते हैं । सेब एक आभासी फल है , इसके बनने में अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्पासन ( thalamus ) भाग लेता है । 

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प्रश्न 15. विपुंसन से क्या तात्पर्य है ? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है ? 

उत्तर : विपुंसन ( Emasculation ) – द्विलिंगी पुष्पों में पराग प्रस्फुटन से पूर्व पुष्प कलिका से चिमटी की सहायता से परागकोश को पृथक् करना विपुंसन ( emasculation ) कहलाता है । पादप प्रजनक ( plant breeder ) इस तकनीक का उपयोग कृत्रिम संकरण ( artificial hybridization ) के लिए करता है । विपुंसन तथा बोरावस्त्र तकनीक ( बैगिंग- Bagging ) द्वारा फसलों की उन्नत किस्में विकसित की जाती हैं । 

प्रश्न 16. यदि कोई व्यक्ति वृद्धिकारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकफलन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेकफलन के लिए कौन – सा फल चुनते हैं और क्यों ? 

उत्तर : निषेचन के फलस्वरूप बीजयुक्त फल बनते हैं । अनेक प्रजातियों में बिना निषेचन के फल बन जाते हैं । ये फल बीजरहित होते हैं ; जैसे — केला , अंगूर आदि । इन फलों को अनिषेकफलनी फल ( parthenocarpic fruits ) तथा इस प्रक्रिया को अनिषेकफलन ( parthenocarpy ) कहते हैं । 

वृद्धिकारकों की उचित सान्द्रता के विलयन को पुष्पों के ऊपर छिड़कने से बीजरहित फल प्राप्त किए जा सकते हैं । अनिषेकफलन द्वारा सन्तरा , नीबू , अमरूद , पपीता , तरबूज आदि का व्यापारिक स्तर पर उत्पादन किया जा सकता है इसके फलस्वरूप इनसे अधिक मात्रा में पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं । यह प्रक्रिया फल की गुणवत्ता बढ़ा देती है । जिन फलों में बीज ही प्रमुख खाद्य भाग बनाते हैं ( जैसे – अनार ) उनमें अनिषेकफलन हानिकारक रहता है । 

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प्रश्न 17. परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या करें । 

उत्तर : लघुबीजाणुधानी की बाह्य तीन पर्ते लघुबीजाणुधानी को सुरक्षा प्रदान करती हैं और स्फुटन में सहायता करती हैं । सबसे भीतरी टेपीटम पर्त की कोशिकाएँ विकासशील परागकणों को पोषण प्रदान करती हैं । यह परागकणों को स्पोरोपोलेनिन युक्त बाह्यभित्ति ( exine ) बनाने में मदद करता है । परागकण को भित्ति पर यह तेलयुक्त पदार्थ लगाता है । कीट परागित पुष्पों में परागकण की पोलेन किट का निर्माण टेपीटम से होता है । 

प्रश्न 18. असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्त्व है ? 

उत्तर : असंगजनन ( Apomixis ) – यह एक प्रकार का अलैंगिक जनम है जो लैंगिक जनन की नकल करता है । इसमें बीज निर्माण बिना निषेचन के होता है । कुछ पौधों के जीवन – चक्र में युग्मक संलयन ( syngamy ) अथवा अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis ) नहीं होता तथा इनकी अनुपस्थिति में नए पौधे का निर्माण हो जाता है । इस प्रक्रिया को असंगजनन ( apomixis ) कहते हैं । इसकी खोज विकलर ( Winkler , 1908 ) ने की । यह प्राय : अनिषेकबीजता ( agamospermy ) के कारण होता है ; जैसे – घास कुल व सूरजमुखी कुल के पौधों में । 

संकर ( hybrid ) किस्मों से फसलों की उत्पादकता बहुत अधिक बढ़ गई है । संकर बीजों की सबसे बड़ी समस्या यह है कि इन्हें प्रत्येक फसल के लिए तैयार करना होता है । यदि संकर किस्म के संगृहीत बीज को बुआई करके प्राप्त किया जाता है तो लैंगिक जनन से उपजी विभिन्नताओं के कारण उसकी पादप संतति संकर बीज की विशिष्टता को यथावत् बनाए नहीं रख पाती । यदि संकर बीज असंगजनन द्वारा तैयार किए जाते हैं तो संकर संतति मूल विशिष्टता को फसल – दर – फसल प्रदर्शित करती रहेगी और प्रतिवर्ष संकर बीजों को प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रहेगी । अतः कृषि और बागवानी के लिए असंगजनन लाभप्रद है ।

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