मौलिक अधिकार और कर्तव्य ( Fundamental Rights and Duties): अधिकांश लोकतान्त्रिक देशों के आधुनिक संविधानों की भाति , भारत के संविधान में भी नागरिकों के लिए कई मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) शामिल किये गये हैं । इन मौलिक अधिकारों को भारतीय संविधान केवल गारंटी ही नहीं देता अपितु यह विश्व के अन्य संविधानों में पाये जाने वाले अधिकारों से अधिक व्यापक और स्पष्ट भी हैं इस आर्टिकल में हम भारत के संविधान के भाग तीन में दिए गये मौलिक अधिकारों तथा उनमें निहित विचार या सोच के विषय में जानेंगे । (Read In English)
इस आर्टिकल के उद्देश्य –
इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद आप मौलिक अधिकारों का अर्थ (Meaning of fundamental rights) बताना,
स्वतंत्रता के अधिकार के अन्तर्गत दी गई विभिन्न स्वतंत्रताओं को समझाना, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और जीवन को सुरक्षित बनाने के लिए किए गए प्रावधानों को पहचान कर पाना, भारत में पंथ निरपेक्षता के आधार ‘ धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार ‘ की भूमिका का महत्व की समझ और विविधता पूर्ण समाज में सहअस्तित्व के लिए , सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों ‘ की अनिवार्यता को समझ सकेंगें । विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के लिए इसके महत्व को समझ विकसित कर सकेंगे
मौलिक अधिकारों के विभिन्न प्रकार से उल्लंघन के विरुद्ध रक्षा कवच के रूप में ‘ सांविधानिक उपचारों के अधिकार ‘ (Right to constitutional remedies) के अन्तर्गत दी गई विभिन्न प्रकार की ‘ रिट ‘ या लेखों को समझ सकेंगे। मौलिक अधिकारों पर लगी सीमाओं को न्यायोचित समझ विकसित कर सकेंगे।
मौलिक अधिकारों और कत्तव्यों के बीच सम्बन्ध (Relationship between Fundamental Rights and Duties) समझ सकेंगे। संविधान में दर्ज मौलिक कर्तव्यों के महत्व को समझ सकेंगे । तो आइए लेेेेख शुरू करते हैं।
मौलिक अधिकारों की आवश्यकता और महत्व – Need and Importance of Fundamental Rights
मौलिक अधिकारों के इतिहास पर दृष्टि डालने से हमें ज्ञात होता है कि संयुक्त राज्य अमेरीका , अपने संविधान में मौलिक अधिकारों को दर्ज करने वाला पहला देश था। जर्मनी ने 1919 में व्हीमर संविधान के द्वारा इनको अपनाया तथा इसी प्रकार आयरलैण्ड और रूस ने क्रमशः 1922 और 1936 में इन्हें स्वीकार किया ।
हमारे स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान हमारे राष्ट्रीय नेताओं ने लोगों के लिए इन अधिकारों के महत्त्व को महसूस किया । इसलिए 1928 में नेहरू कमेटी की मांग पर अधिकारों का प्रस्तावित बिल आया । जब भारत स्वतंत्र हुआ तो संविधान सभा ने कुछ आधारभूत अधिकारों को संविधान में शामिल किया जिनकी विशेष रूप से रक्षा सुनिश्चित की गई और उन्हें मौलिक अधिकार का नाम दिया गया । मौलिक शब्द निम्न बिन्दुओं पर बल देता है :
- भारत के संविधान में उन्हें अलग से दर्ज किया गया है ।
- संविधान ने उनकी सुरक्षा के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं ।
- इन अधिकारों को अदालतों द्वारा लागू किया जा सकता है ।
- यह अधिकार संविधान द्वारा प्रदत्त हैं और इन्हें संविधानिक दर्जा प्राप्त है ।
मौलिक अधिकार किस प्रकार साधारण अधिकारों से अलग है How is Fundamental Rights different from ordinary rights?
आइये हम समझने का प्रयास करें कि मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) किस प्रकार विधायिका द्वारा निर्मित साधारण अधिकारों से अलग है ।
- साधारण अधिकार मौलिक अधिकारों की भांति देश के संविधान से रक्षित नहीं है।
- मौलिक अधिकारों में परिवर्तन केवल संविधान संशोधन द्वारा ही किया जा सकता है जबकि साधारण कानून , कानून निर्माण की साधारण प्रक्रिया मात्र से बदले जा सकते हैं ।
- मौलिक अधिकारों का सरकार के किसी भी अंग द्वारा उल्लंघन निषिद्ध है यद्यपि स्थापित प्रक्रिया द्वारा इनमें संशोधन किया जा सकता हैं ।
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के मामले में न्यायपालिका का यह दायित्व और क्षेत्राधिकार है कि वह उनकी रक्षा करे । साधारण कानूनों के मामले में ऐसी कोई गारंटी नहीं ।
मौलिक अधिकारों के लक्षण – Characteristics of Fundamental Rights
- संविधान द्वारा प्रत्याभूत मौलिक अधिकार साधारण कानूनों से ऊपर हैं ।
- सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को रिट ( लेख ) , आज्ञा और निर्देश के माध्यम से मौलिक अधिकार लागू करवाने की शक्ति है।
- नागरिकों के लिए कुछ अधिकारों के अतिरिक्त , गैर नागरिकों के लिए भी अधिकार हैं।
- मौलिक अधिकारों के उपयोग पर कई प्रकार के नियंत्रण लगाये गये हैं इसका अर्थ है कि ये अधिकार असीमित नहीं है ।
- अदालतों को यह जांचने का अधिकार है कि मौलिक अधिकारों पर लगाये गये नियंत्रण तर्क संगत है अथवा नहीं आपातकाल की स्थिति में मौलिक अधिकारों को सीमित अथवा स्थगित किया जा सकता है ।
मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति – Power to amend Fundamental Rights
• भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने घोषित किया हैं कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 368 के अन्तर्गत मौलिक अधिकार उसकी संशोधन करने की शक्ति से बाहर हैं । यह निर्णय गोलकनाथवाद ( केस ) में दिया गया था ।
• संविधान के 24 वें और 25 वें संशोधन के द्वारा संसद को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने का अधिकार पुनः दिया गया था ।
• सर्वोच्च न्यायालय ने केशवानन्द भारतीवाद ( केस ) में भी संसद की मौलिक अधिकारों में संशोधन करने की शक्ति को स्वीकार किया ।
42 वें संशोधन ने मौलिक अधिकारों में संशोधन करने के संसद के अधिकार पर और अधिक बल दिया । 1980 में मिनर्वा मिलवाद ( केस ) का निर्णय देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि संविधान के भाग III और भाग IV का सन्तुलन बिगाड़ने वाली हर बात को संविधान के मूल ढांचे को नष्ट करने वाला और असंवैधानिक माना जाएगा।
मौलिक अधिकार कितने हैं – How many are the fundamental rights
मूल रूप में भारत के संविधान के भाग III में सात मौलिक अधिकारों को शामिल किया गया था इनमें सम्पति का अधिकार शामिल था । जिसे 44 वें संविधान संशोधन द्वारा हटा दिया गया था । अब केवल छ : मौलिक अधिकार हैं : जो इस प्रकार है ।
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरूद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- सांस्कृति और शिक्षा का अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
समानता का अधिकार क्या है : ( अनुच्छेद 14-18 ) What is the right to equality
( i ) सभी लोगों , नागरिकों और बाहरी लोगों को कानून ( विधि ) के समक्ष समानता का अर्थ है कि राज्य किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और भारत की सीमा क्षेत्र के भीतर कानून की समान सुरक्षा से इन्कार नहीं करेगा। यह अधिकार संविधान के अनुछेद -14 में निहित तथा राज्य द्वारा किसी प्रकार के भेद – भाव करने पर रोक लगाता है ।
( ii ) अनुच्छेद -15 के अन्तर्गत भेदभाव पर प्रतिबन्ध , किसी नागरिक के विरूद्ध वंश , धर्म , जाति , लिंग अथवा जन्म स्थान के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करना शामिल हैं । इसका अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को सभी दुकानों , सार्वजनिक स्थानों तथा कुओं , तालाबों और सड़कों का प्रयोग करने का अधिकार है । सामाजिक समानता लाने के लिए यह अधिकार जरूरी है ।
( iii ) अनुच्छेद -16 के अन्तर्गत अवसरों की समानता का अर्थ है कि सभी नागरिकों को राज्य के आधीन किसी भी रोजगार अथवा किसी कार्यालय में नियुक्ति के मामले में समान अवसर प्राप्त हैं । इसका अर्थ है कि रोजगार केवल योग्यता और पात्रता के आधार पर दिया जाएगा ।
कुछ अपवाद
( a ) जब राज्य सरकारों के आधीन कुछ नौकरियों में निवास की योग्यता को शामिल किया जाता है ।
( b ) जब कुछ पदों को अनुसूचित जातियों , अनुसूचित जन जातियों अथवा अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित कर दिया जाता है
( c ) जब किसी धार्मिक अथवा अल्पसंख्यक समुदाय के संस्थानों में किसी पद पर नौकरी के लिए उसी समुदाय के किसी व्यक्ति को नियुक्त किया जाना हो
इन a, b, c परिस्थितियों में अवसरों की समानता लागू नहीं होता है।
( iv ) अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है और किसी भी रूप में इसके व्यवहार पर प्रतिबन्ध है । अनुच्छेद -17 के अन्तर्गत इसको दण्डनीय उपराध बना दिया गया है । लाखों भारतीय जिन्होंने समाज में भेदभाव , हेय दृष्टि से देखा जाना और दुर्व्यवहार को झेला , वह अब अछूत नहीं हैं । उनके सामाजिक स्तर को उन्नत करने के निरन्तर प्रयास किए जाते हैं । महात्मा गाँधी को यह अतीव इच्छा थी कि अस्पृश्यता की बुराई को जड़ से उखाड़ फेंका जाए , लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी यह बुराई देश के कुछ भागों में देखने को मिल जाती है ।
( v ) अनुच्छेद -18 राज्य को सैन्य अथवा शैक्षिक सम्मान देने के अतिरिक्त कोई भी पदवी अथवा उपाधि देने पर प्रतिबन्ध लगता है । स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व अंग्रेज अपने प्रति वफादार एवं उनके हित में काम करने वालों को उपाधिया बांटा करते थे राय बहादुर , राय साहब , खान बहादुर , सर इत्यादि जैसी उपाधियां न केवल सामाजिक भेद पैदा करती थीं अपितु समाज को विभाजित भी करती थीं । इसलिए उन्हें समाप्त कर दिया गया है । उसके स्थान पर भारत का राष्ट्रपति सार्वजनिक , समाजिक , शैक्षिक और खेल के क्षेत्रों से सम्बन्धित गणमान्य नागरिकों को भारत रत्न , पदम विभूषण , पदम भूषण और पदम श्री जैसी उपाधियाँ प्रदान कर सकता है । इसी प्रकार सेना अथवा अर्द्ध सैनिक बलों में सेवा अथवा बलिदान के लिए सैनिक अथवा वीरता पुरस्कार प्रदान किये जा सकते हैं ।
स्वतंत्रता का अधिकार क्या है ? ( अनुच्छेद 19-22 ) What is the right to freedom?
स्वतंत्रता का अधिकार सामाजिक स्वतंत्रता का केन्द्र हैं और व्यक्ति को कार्यपालिका के दमनपूर्ण कार्यों से बचाता हैं । अनुच्छेद 19 छ : स्वतन्त्रताओं की गारंटी देता है जो किसी के व्यक्तित्व के विकास तथा लोकतंत्र के सफल संचालन हेतु अनिवार्य हैं । ये स्वतंत्रताएं हैं –
- विचार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता [ अनुच्छेद 19 ( a ) ]
- बिना हथियारों के शान्तिपूर्ण सभा करने की स्वतंत्रता [ अनुच्छेद 19 ( b ) ]
- संगठन और संघ बनाने की स्वतंत्रता [ अनुच्छेद 19 ( c ) ]
- भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने ( भ्रमण ) की स्वतंत्रता [ अनुच्छेद 19 ( d ) ]
- भारत के किसी भाग में स्थायी रूप से रहने और बसने की स्वतंत्रता [ अनुच्छेद 19 ( e ) ]
- किसी पेशे को अपनाने अथवा किसी व्यवसाय , कारोबार अथवा व्यापार को करने की स्वतंत्रता [ अनुच्छेद 19 ( g ) ]
स्वतंत्रतायें लोकतन्त्र के लिए आवश्यक है यद्यपि भारतीय संविधान निर्माता अनेक प्रकार की मौलिक स्वतंत्रताओं के प्रति प्रतिबद्ध थे तदापि उनका विश्वास था कि ऐसी सभी स्वतंत्रताएं निरपेक्ष अथवा अनियन्त्रित नहीं होनी चाहिए । इसलिए स्वतंत्रताओं पर कुछ तर्कसंगत पाबन्दियां लगाई गई ताकि चे अराजकता , अव्यवस्था और देश को विघटन की और न ले जा सकें ।
• राज्य को अपने अथवा मित्र देशों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों अथवा सार्वजनिक व्यवस्था , नैतिकता अथवा सार्वजनिक हित में तथा अदालत की अवमानना के सम्बन्ध में , बदनामी अथवा किसी अपराध को भड़काने से बचाने तथा देश की संप्रभुता , एकता और अखण्डता के हित में तर्क संगत पाबन्दियां लगाने का अधिकार है।
• अनुच्छेद 19 ( b ) के अन्तर्गत स्वतंत्रता के लिए दो तर्कसंगत पाबन्दियां हैं ।
( i ) सभाएं , रैलियां तथा जुलूस शान्तिपूर्ण होने चाहिए
( ii ) भाग लेने वालों के पास कोई हथियार नहीं होना चाहिए ।
• अनुच्छेद 19 ( c ) के अन्तर्गत संगठन और संघ बनाने की स्वतंत्रता लोकतन्त्र कं सफल कार्यप्रणाली के लिए तथा राजनीतिक दलों की भूमिका के लिए अनिवार्य है । लेकिन जब कुछ गैरकानूनी , अनैतिक और षडयन्त्रकारी संगठन बनाए जाते हैं तो देश की एकता और संप्रभुता खतरे में पड़ जाती है । इसलिए राज्य इस प्रकार के संगठनों को अनुमति नहीं दे सकता ।
• अनुच्छेद 19 ( d,e , f ) के अन्तर्गत दी गई स्वतंत्रताओं पर भी राज्य के प्राधिकार द्वारा कुछ तर्क संगत पाबन्दियां लगाई जा सकती हैं –
( i ) साधारण जनता के हित में
( ii ) अनुसूचित जनजातियों की रक्षा के लिए
( iii ) संक्रामक रोगों को फैलने से रोकने के लिए
• अनुच्छेद 19 ( g ) के अन्तर्गत किसी व्यवसाय को अपनाने अथवा किसी व्यवसाय , कारोबार और व्यापार को चलाने की स्वतंत्रता का अर्थ नौकरियों को प्राप्त करने की स्वतंत्रता और ऐसा व्यापार करने की स्वतंत्रता नहीं है जो समाज के लिए घातक हों । जुआ खेलना , वैश्यावृति , मादक द्रव्यों का व्यापार इत्यादि की अनुमति नहीं है । इसी प्रकार अनिवार्य योग्यता के बिना डाक्टर का कार्य करने की भी अनुमति नहीं है ।
जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार : Right to life and personal liberty:
भारत का संविधान अनुच्छेद 20 सेे 22 के अन्तर्गत व्यक्ति को राज्य के स्वेच्छाचारी कार्यवाही के विरुद्ध सुरक्षा प्रदान करता है इसलिए जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार अन्य सभी अधिकारों का सुख भोगने के लिए अति अनिवार्य है ।
अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषी पाए जाने पर सुरक्षा प्रदान करता है ।
- किसी भी व्यक्ति को अपराध करते समय प्रभारी कानून के उल्लघन के अतिरिक्त किसी अन्य अपराध में आरोपित नहीं किया जा सकता और न ही इस अपराध के लिए निश्चित दण्ड से अधिक दण्डित किया जा सकता हैं ।
- किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक बार दण्डित नहीं किया जा सकता ।
- किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध लगे आरोपों के पक्ष में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता ।
• प्रायः प्राकृतिक न्याय के रूप में वर्णित अनुच्छेद 20 किसी आरोपित व्यक्ति को मनमानी गिरफ्तारी और अधिकाधिक दण्ड देने से सुरक्षा प्रदान करता है ।
अनुच्छेद 21 यह निर्धारित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के बिना वंचित नहीं किया जाएगा । यह अनुच्छेद प्रत्येक भारतीय नागरिक को राज्य के स्वेच्छाचारी व्यवहार के विरुद्ध स्वतंत्रता की गारंटी देता है । 1975-77 के आपातकाल के दौरान राज्य ने लोगों को स्वतंत्रता सीमित करने की अभूतपूर्व शक्तियां प्राप्त कर ली थी । इस प्रकार की स्थिति की पुनरावृति से बचने के लिए 44 वां संशोधन पारित किया गया । इस अधिनियम के अनुसार जीवन और निजी स्वतंत्रता का अधिकार आपातकाल के दौरान भी निर्बाध चलता रहेगा ।
क्या आप जानते हैं?
अनुच्छेद 22 मनमानी गिरफ्तारी और नजरबंदी के विरूद्ध दो प्रकार से सुरक्षा प्रदान करता है ।
( a ) ( i ) किसी को गिरफ्तारी का आधार या कारण बताए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता ।
( ii ) गिरफ्तार व्यक्ति को गिरफ्तारी के 24 घण्टे के भीतर निकटतम न्यायाधीश के समक्ष प्रस्तुत करना होता है ।
( iii ) गिरफ्तार व्यक्ति को अपनी पसन्द के वकील द्वारा अपना बचाव करने का अधिकार है । विदेशियों अथवा निवारक नजरबन्दी के अन्तर्गत गिरफ्तार लोगों को यह अधिकार प्राप्त नहीं हैं ।
( b ) निवाकरक नजरबंदी – निवारक निरोध का अर्थ है किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकने के लिए गिरफ्तार करना । यदि ऐसी सम्भावना है कि कोई व्यक्ति किसी गलत कार्य अथवा कोई अपराध कर सकता है तो उसे एक सीमित समय , जो तीन महीने से अधिक नहीं होगा , के लिए नजरबंद किया जा सकता है । ऐसे मामलों पर तीन महीने बाद एक परामर्श मण्डल पुनर्विचार करता हैं ।
निवारक निरोध अधिनियम की बहुत से प्रख्यात लोगों ने इसके व्यापक दुरुपयोग ; जैसे राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तारी के कारण आलोचना की है । इसलिए इस कानून को 1969 के अन्त में अपने आप समाप्त होने दिया गया । दिसम्बर 1971 में बंगलादेश के बुद्ध के समय संसद द्वारा राष्ट्र विरोधी तत्वों से निबटने के लिए एक नया कानून पारित किया गया । इसको मीसा ( MISA ) के नाम से जाना जाता था
मीसा का अर्थ – Meaning of misa
MISA का विस्तृत अर्थ था आन्तरिक सुरक्षा अनुरक्षण अधिनियम । मीसा को राजनीतिक विरोधियों के विरूद्ध प्रयोग न करने के आश्वसन के बावजूद जून 1975 में आपातकाल की घोषणा के साथ नेताओं , कार्यकर्ताओं और उनके समर्थकों को इस कानून के तहत बड़ी संख्या में गिरफ्तार किया गया । यहाँ तक कि लोगों को अदालत का दरवाजा खटखटाने या अपील का अधिकार भी नहीं दिया गया ।
इसके परिणाम स्वरूप निवारक नजरबंदी कानून को 1978 में जनता सरकार ने 44 वें संशोधन द्वारा संशोधित किया और राज्य की शक्ति को सीमित किया गया ।
निवारक नजरबन्दी के सन्दर्भ में वर्तमान स्थिति यह है कि किसी भी व्यक्ति को परामर्श बोर्ड की सलाह के बिना साधारणतया दो मास के लिए नजरबन्द किया जा सकता है ।
शोषण के विरूद्ध अधिकार क्या है ? ( अनुच्छेद 23-24 ) What is the right against exploitation
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 शोषण के विरुद्ध अधिकार से सम्बन्धित हैं । इस अधिकार का उद्देश्य समाज के कमजोर , वचित और अल्प सुविधा सम्पन्न वर्गों को शोषण से बचाना है । यह अधिकार नीचे उल्लिखित भारतीय संविधान के दो अनुच्छेदों के अनुरूप व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखता है ।
( i ) अनुच्छेद 23 मानव व्यापार , बेगार और इसी प्रकार के बलात श्रम पर प्रतिबन्ध लगाता है । किसी भी व्यक्ति को वेतन के बिना काम करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता । परन्तु यह अनुच्छेद राज्य को बिना किसी भेदभाव के सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए अनिवार्य सेवा प्राप्त करने से नहीं रोकता ।
( ii ) अनुच्छेद 24 , चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों को फैक्ट्रियों , खदानों अथवा अन्य जोखिम भरे कामों के लिए नौकरी देने पर प्रतिबन्ध लगाता है । इस प्रावधान का उल्लंघन करना कानून के अनुसार दण्डनीय अपराध है । दुर्भाग्य का विषय है कि भारत में छोटे बच्चों को घरेलू नौकर रखना सामान्य बात है अमीरों द्वारा किए जाने वाला शोषण इस अनुच्छेद के अन्तर्गत नहीं आता क्योंकि घरेलू काम को फैक्ट्री में काम करना नहीं माना जाता । इसी प्रकार संगठित और असंगठित क्षेत्रों में फैक्ट्रियों , दुकानों , छोटे होटलों अथवा ढाबों इत्यादि पर छोटी आयु की बच्चों को नौकरी पर रखना एक प्रचलन सा बन गया है ।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार क्या है ? ( अनुच्छेद 25-28 ) What is the right to religious freedom?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 भारत के नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता को गारंटी देते हैं पंथ निरपेक्ष देश होने के नाते यह अपने सभी नागरिकों को किसी भी धर्म में आस्था रखने तथा दूसरों की भावनाओं एवं अस्थाओं में दखल दिए बिना अपनी इच्छा अनुसार पूजा करने की स्वतंत्रता देता है ।
( i ) अनुच्छेद 25 , के अन्तर्गत सभी लोगों को अन्तरात्मा की स्वतंत्रता तथा सार्वजनिक व्यवस्था , नैतिकता और स्वास्थ्य के नियमों की शर्त पर किसी भी धर्म को मानने और प्रचार करने की स्वतंत्रता है सरकार को किसी आर्थिक , सामाजिक , राजनीतिक अथवा धार्मिक व्यवहार से जुड़ी किसी अन्य गतिविधि पर पाबन्दी लगाने का विशेषाधिकार है ।
( ii ) अनुच्छेद 26 , प्रत्येक धार्मिक संस्था को अपने सभी कार्यों का प्रबन्धन करने तथा धार्मिक उद्देश्यों के लिए सम्पति ग्रहण करने और उसका प्रशासन सम्भालने के अधिकार को मान्यता देता है ।
( iii ) अनुच्छेद 27 निर्धारित करता है कि किसी भी व्यक्ति को कोई ऐसा कर देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता यदि इस प्रकार संग्रहित धन का प्रयोग किसी विशंष धर्म को चलाने अथवा धार्मिक कार्यों के लिए किए गए खर्च की आदयगी के लिए प्रयोग किया जाना हो ।
( iv ) अनुच्छेद 28 कुछ धार्मिक संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या निर्देश और धार्मिक पूजा की स्वतंत्रता के विषय से सम्बन्धित है । इस अनुच्छेद के अनुसार :
- राजकीय कोष से संचालित किसी भी शैक्षणिक संस्थान में कोई धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी ।
- खण्ड 1 में लगाई गई उपरोक्त पाबन्दी ऐसे शिक्षण संस्थाओं पर लागू नहीं होगी जिसका प्रशासन तो राज्य के पास है परन्तु उसे ऐसे धार्मिक ट्रस्ट अथवा संगठनों ने स्थापित किया है जो ऐसे संस्थानों में धार्मिक शिक्षा देना चाहते हैं ।
- उन संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा दी जा सकती हैं जिनकी देख रेख पूरी तरह से राजकीय कोष में नहीं की जाती । लेकिन इन संस्थानों में भी किसी बच्चे को धार्मिक शिक्षा लेने के लिए विवश नहीं किया जा सकता ।
भारत के संविधान में उल्लिखित उपरोक्त सभी प्रावधानों का उद्देश्य राज्य अथवा किसी अन्य समुदाय के दखल के बिना पूरी धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करना है । इसीलिये भारत एक पंथ निरपेक्ष राज्य है ।
सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार क्या है ? ( अनुच्छेद 29 और 30 ) What is cultural and educational rights
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 भारत के प्रत्येक नागरिक को विशेषतया अल्पसंख्यकों को , उनकी संस्कृति , भाषा और लिपि को संरक्षित रखने का विश्वास दिलाता है क्या आप जानते हैं अनुच्छेद 29 और 30 शिक्षा के अधिकार का वायदा नहीं करते जिसको अलग से संविधान के 86 वें संशोधन द्वारा प्रदान किया गया है । ये दो अनुच्छेद धार्मिक और भाषायी अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक हितों की रक्षा करते हैं-
( i ) अनुच्छेद 29 निर्धारित करता है कि भारत के क्षेत्र में रहने वाले किसी भी वर्ग . जिसकी अपनी अलग भाषा , लिपि अथवा संस्कृति है , को अपनी भाषा , लिपि और संस्कृति को बचाए रखने का अधिकार होगा ।
किसी भी नागरिक को राज्य अथवा राज्य के कोष से संचलित किसी शैक्षिक संस्थान में केवल धर्म , वंश , जाति , भाषा अथवा इनमें से किसी एक के आधार पर प्रवेश देने से इन्कार नहीं किया जाएगा ।
( ii ) अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित एवं संचालित करने की गारंटी देता है । शैक्षिक संस्थाओं को सहायता प्रदान करते समय राज्य किसी भी शिक्षण संस्थान के साथ इस आधार पर भेदभाव नहीं करेगा कि उस संस्थान का प्रबन्धन , किसी धर्म एवं भाषा पर आधारित अल्पसंख्यक समुदाय के हाथ में है ।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार क्या है ? ( अनुच्छेद 32 ) What is the right to constitutional remedies
इस अधिकार को प्रारूप समिति के अध्यक्ष डा. भीम राव अम्बेडकर ने भारत के संविधान का ‘ हृदय और आत्मा ‘ माना था । इसे अधिक प्रभावकारी होने के लिए मौलिक अधिकारों को अपने पीछे न्यायिक शक्ति की जरूरत थी ।
मौलिक अधिकारों को सूचीबद्ध करने के अतिरिक्त संविधान निर्माताओं ने इन अधिकारों के उल्लघन के विरुद्ध उपचार भी प्रस्तुत किए ।
अनुच्छेद 32 के अन्तर्गत संविधान लोगों को मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए उच्च न्यायालयों तथा सर्वोच्च न्यायालय में जाने की गारंटी देता है । ये न्यायालय सरकार को मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए आज्ञा अथवा निर्देश दे सकते हैं । ऐसे निर्देशों अथवा विशेष आदेशों को ‘रिट’ या लेख कहा जाता है।
‘रिट’ ( लेख ) पाँच प्रकार के हैं – There are five types of ‘writ’ (articles)
( i ) बंदी प्रत्यक्षीकरण : बंदी प्रत्यक्षीकरण रिट का अर्थ है कि गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए ताकि न्यायालय यह परीक्षण कर सके कि गिरफ्तारी कानूनी दृष्टि से ठीक है अथवा नहीं । गिरफ्तारी गैर कानूनी होने की स्थिति में न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को मुक्त करने की आज्ञा दे सकता है । यह लेख निजी स्वतंत्रता के रक्षार्थ सबसे महत्वपूर्ण अधिकार माना जाता है ।
( ii ) परमादेश : यह आदेश तब जारी किया जाता है जब न्यायालय को ज्ञात होता है कि कोई विशेष अधिकारी अपने कानूनी कर्तव्य की अवहेलना कर रहा है और इस कारण किसी अन्य व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के अधिकारों का अतिक्रमण कर रहा है।
( iii ) प्रतिषेधः यह एक वरिष्ठ या उच्चतर न्यायालय द्वारा अपने अधीनस्थ न्यायालय को जारी किया आदेश है जो उसको अपने क्षेत्राधिकार से बाहर केस की सुनवाई न करने का आदेश देता है ।
( iv ) अधिकार पृच्छाः यदि न्यायालय को ज्ञात होता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर आसीन है अथवा ऐसे कार्य कर रहा जिनके लिए वह कानूनी रूप से अधिकृत नहीं हैं तो न्यायालय उसे वह पद छोड़ने एवं कार्य न करने की आज्ञा दे सकता है ।
( v ) उत्प्रेषण : यह रिट किसी अधीनस्थ न्यायालय को अपने यहां लम्बित पड़े किसी केस को उच्चतर न्यायालय में प्रेषित करने की आज्ञा है ताकि वहां केस की प्रभावशाली ढंग से सुनवाई की जा सके ।
क्या आप जानते हैं?
यद्यपि हमारे मौलिक अधिकार न्यायसंगत हैं तदापि आपातकाल की स्थिति में उन्हें स्थगित किया जा सकता है । अनुच्छेद 352 के अन्तर्गत ( युद्ध अथवा आन्तरिक सशस्त्र विद्रोह ) आपातकाल घोषित होते ही अनुच्छेद 19 के अन्तर्गत दी गई सभी स्वतंत्रताए स्वतः ही स्थगित हो जाती हैं ।
इसके साथ ही अनुच्छेद 359 संसद को आपातकाल के दौरान संवैधानिक उपचारों के अधिकार तक को स्थगित करने हेतु एक अलग आदेश जारी करने के लिए प्राधिकृत करता है इसका अभिप्राय है कि उल्लंघन की स्थिति में उपचार के लिए कोई भी अदालत नहीं जा सकता और इस प्रकार सभी मौलिक अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के अलावा स्थगित रहते हैं।
मौलिक कर्त्तव्य क्या है – What is the fundamental duty
यदि अधिकारों के साथ कर्त्तव्य न जुड़े हों तो अधिकार निरर्थक हो जाते हैं । यदि हम एक नागरिक के रूप में अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते तो अन्य लोग अपने अधिकारों का आनन्द नहीं ले सकते । इतना ही नहीं बल्कि राज्य भी हमारी रक्षा करने तथा हमारी आवश्यकताओं जैसे शिक्षा , स्वास्थ्य , मकान , पानी इत्यादि को पूरा करने के अपने दायित्व का ठीक ढंग से पालन नहीं कर सकेगा । इसलिए महसूस किया गया कि भारत के संविधान में मौलिक कर्तव्यों को शामिल किया जाना चाहिए ।
1976 में स्वीकृत 42 वें संविधान संशोधन में ग्यारह महत्वपूर्ण मूल या मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान है उन्हें संविधान के अनुच्छेद 51A के अन्तर्गत भाग IVA में सूचीबद्ध किया गया है । मौलिक अधिकारों के विपरीत ये कर्त्तव्य न्याय संगत नहीं है इसके बावजूद वे कई प्रकार से महत्वपूर्ण हैं ।
मौलिक कर्तव्य कितने हैं? How many are the fundamental duties?
संविधान के अनुच्छेद 51 ( A ) A में निम्नलिखित मौलिक कर्तव्यों को सूचीबद्ध किया गया ।
मौलिक या मूल कर्त्तव्य – भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह –
( a ) संविधान का पालन करे और इसके आदर्शों , प्रतीकों व संस्थाओं जैसे राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे ।
( b ) ऐसे आदर्शों का अनुसरण करे जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय संघर्ष को प्रेरित किया ।
( c ) भारत की एकता और अखण्डता की रक्षा करें ।
( d ) आवश्यकता पड़ने पर देश की रक्षा और राष्ट्रीय सेवा के स्वयं को समर्पित करें ।
( e ) भारत के सभी लोगों में , धार्मिक , भाषायी और क्षेत्रीय अथवा वर्ग विविधता को पार कर . भ्रातृत्व और समरसता की भावना बढ़ाए तथा स्त्रियों की गरिमा के प्रति अनादर व्यक्त करने वाली प्रथाओं का त्याग करें ।
( f ) अपनी सामूहिक संस्कृति और गौरवशाली विरासत की रक्षा और उसका सम्मान करे ।
( g ) प्राकृतिक पर्यावरण , जिसमें वन , झोलें , नदियां और वन्य जीव सम्मिलित है , कि रक्षा एवं सुधार करें तथा जीव – जन्तुओं के प्रति दया भाव रखे ।
( h ) वैज्ञनिक दृष्टिकोण , मानववाद , जिज्ञाशु प्रवृति तथा सुधार की भावना को विकसित करे ।
( i ) सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करे तथा हिंसा का परित्याग करे।
( j ) व्यक्तिगत और सामूहिक कार्यकलाप के हर क्षेत्र में उत्कृष्टता के लिए प्रयास करना ताकि देश उपलब्धियों एवं उद्यम के उच्चतर स्तरों की ओर निरन्तर बढ़ सके ।
( k ) प्रत्येक माता – पिता अथवा अभिभावक को अपने 6 से 14 वर्ष के बच्चों को शिक्षा का अवसर प्रदान करना चाहिये ।
प्रारम्भ में 1976 में निश्चित किए गए 10 मौलिक कर्त्तव्य थे लेकिन अब ग्यारह हैं । अन्तिम कर्त्तव्य 2002 में 86 वें संशोधान तथा अनुच्छेद 21A के अन्तर्गत शिक्षा के अधिकार के परिणामस्वरूप इस सूची में जोड़ा गया । इस प्रकार ग्यारहवें स्थान पर उल्लिखित कर्त्तव्य शिक्षा के अधिकार का पूरक है इसलिए अब माता – पिता का यह कर्त्तव्य है कि शिक्षा के अधिकार का अधिकतम लाभ उठाएं ।
आपने क्या सीखा
भारतीय संविधान का भाग तीन कुछ मौलिक अधिकारों की बात करता है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास तथा जीवन को जीने योग्य बनाने के लिए भी आवश्यक है । क्योंकि इन अधिकारों की संविधान गारंटी देता हैं इसलिए इन्हें मौलिक अधिकार अथवा मूल अधिकार कहा जाता है रक्षा के लिए विशेष प्रावधान , तथा साधारण धकारों से श्रेष्ठतर समझे जाने वाले इन अधिकारों को न्यायालयों द्वारा लागू एंव रक्षित किया जाता है भारतीय संविधान में सम्मिलित मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं
- समानता का अधिकार ,
- स्वतंत्रता का अधिकार ,
- शोषण का अधिकार ,
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार ,
- सांस्कृतिक एवं शैक्षिक अधिकार ,
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
मौलिक अधिकार न्याय संगत है परन्तु असीमित नहीं है । इन अधिकारों पर सुरक्षा , स्वास्थ्य और सार्वजनिक व्यवस्था के हित में कई तर्क संगत पाबन्दिया लगाई जा सकती हैं लेकिन कभी कभी राजनीतिक कारणों से सरकार इन पाबन्दियों का दुरुपयोग करती हैं । ऐसे हालात में सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों को राज्य अथवा व्यक्ति द्वारा मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को रोकने की शक्ति है । संवैधानिक उपचारों के अधिकार के अन्तर्गत न्यायालय व्यक्ति के मौलिक अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं ।
कर्तव्यों के बिना अधिकारों का कोई अर्थ नहीं है । इसलिए सावधान के भाग IVA में अनुच्छेद 51A के अन्तर्गत कुछ मौलिक कर्तव्यों को निर्धारित किया गया है । मौलिक कर्तव्य ग्यारह हैं ।
ग्यारहवें कर्त्तव्य को बाद में 2002 में शिक्षा के अधिकार के पूरक के शामिल किया गया था । इसलिए यह माता – पिता अथवा आभिभावकों का कर्तव्य है कि वे अपने 6 से 14 साल के बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करें ।
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