भारत में फैले भ्रष्टाचार के मूल कारण क्या क्या है ? [ corruption-in-India ]

देश में फैला भ्रष्टाचार एक जटिल समस्या है और इस समस्या की जड़ देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक ढाँचे में खोजी जा सकती है। प्रायः भ्रष्टाचार को प्रशासनिक एवं आर्थिक समस्या माना जाता है परंतु इसका सामाजिक पहलू अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण है। भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-

भारत में भ्रष्टाचार के कारण

देश में फैला भ्रष्टाचार एक जटिल समस्या है और इस समस्या की जड़ देश के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, प्रशासनिक ढाँचे में खोजी जा सकती है। प्रायः भ्रष्टाचार को प्रशासनिक एवं आर्थिक समस्या माना जाता है परंतु इसका सामाजिक पहलू अपेक्षाकृत अधिक महत्त्वपूर्ण है। भ्रष्टाचार के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-
  • आर्थिक समृद्धि के महत्त्वपूर्ण साधन के रूप में भ्रष्टाचार को सामाजिक स्वीकृति मिलना।
  • नैतिक या अनैतिक किसी भी तरह से अपने समकक्षों से आगे निकल जाने की इच्छा को बल देना।
  • उच्चतर जीवस्तर प्राप्त करने के लिये भ्रष्ट साधनों का इस्तेमाल करना।
  • पारदर्शिता का अभाव और कानूनों की जठिलता की आड़ में भ्रष्टाचारी उपयों को अपनाने में आसानी होना।
  • भ्रष्टाचार के लिये दिये जाने वाला दण्ड तथा दण्ड विधानों का अपर्याप्त होना ।
  • भ्रष्टाचार के मुकदमों का दीवानी प्रकृति का होना और लंबे समय तक चलना अथवा लंबित रहना। 
  • साक्ष्यों के अभाव में भ्रष्टाचारियों का छूट जाना और आसानी से अग्रिम जमानत मिल जाना।
इनके अतिरिक्त, सरकार की अक्षमता तथा देश की बड़ी जनसंख्या भी भ्रष्टाचार का एक अन्य बड़ा कारण है। इतनी बड़ी जनसंख्या को सरकार गणवत्तापूर्ण सार्वजनिक सेवाएँ उपलब्ध नहीं करा पा रही है। इसलिये इन सेवाओं को प्राप्त करने के लिये रिश्वत दी जाती है।
जैसा कि आस्ट्रेलिया में होता है लोक सेवा मूल्यों की एक शृंखला होनी चाहिये जो कानूनी अनुबंध द्वारा निर्धारित हो, साथ ही, यह सुनिश्चित करने की व्यवस्था होनी चाहिये कि सिविल सेवक निरंतर इन मूल्यों के प्रति उत्साहजनक रहें। 

कुछ विशेष सिफारिशें निम्नवत हैंः

● अधिकारियों के लिये नैतिक संहिता और आचार संहिता में हितों के संघर्ष के मुद्दे को विस्तृत रूप से शामिल किया जाना चाहिये। सेवारत अधिकारियों को भी सरकारी उपक्रमों के मंडलों में नामांकित नहीं किया जाना चाहिये, तथापित यह गैर-लाभ के सरकारी संस्थानों और परामर्शी निकायों पर लागू नहीं होगा।
● ‘लोक सेवा मूल्यों’ जिन्हें सभी सार्वजनिक कर्मचारियों को ऊँचा उठाना चाहिये, को परिभाषित किया जाना चाहिये। इसे सरकारी और अर्द्ध-सरकारी संगठनों की सभी श्रेणियों पर लागू किया जाना चाहिये। इन मूल्यों का उल्लंघन किये जाने पर इसे कदाचार और दंड को नियंत्रण समझा जाना चाहिये। 
● विभिन्न वर्ग के लोगों के लिये पृथक-पृथक नैतिक संहिता के निर्माण होना चाहिए। मंत्रियों के लिये नैतिक संहिता, विधायिका सदस्यों के और सिविल संहिता, विधायिका सदस्यों के और सिविल सेवकों के लिये नैतिक संहिता हो। 

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