भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 : यह भारत सरकार द्वारा वर्ष 1972 में वन्यजीवों के अवैध शिकार और मांस और त्वचा के व्यापार पर प्रतिबंध लगाने के उद्देश्य से पारित किया गया था। वर्ष 2003 में इसमें संशोधन किया गया और इसे भारतीय वन्यजीव संरक्षण (संशोधन) अधिनियम 2002 नाम दिया गया, जिसके तहत सजा और जुर्माने को और सख्त कर दिया गया है। 1972 से पहले, भारत में केवल पांच नामित राष्ट्रीय उद्यान (National Park) थे। अन्य सुधारों के अलावा, अधिनियम संरक्षित पौधों और जानवरों की प्रजातियों की अनुसूची स्थापित करता है और मोटे तौर पर इन प्रजातियों की कटाई और शिकार को प्रतिबंधित करता है।
- यह अधिनियम जंगली जानवरों, पक्षियों और पौधों को संरक्षण प्रदान करता है।
- इसमें कुल 6 अनुसूचियाँ है जो अलग-अलग तरह से वन्यजीवन को सुरक्षा प्रदान करता है।
- अनुसूची-1 तथा अनुसूची-2 के द्वितीय भाग वन्यजीवन को पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते है। इनके तहत अपराधों के लिए उच्चतम दंड निर्धारित है।
- अनुसूची-3 और अनुसूची-4 भी संरक्षण प्रदान कर रहे हैं लेकिन इनमे दंड बहुत कम हैं।
- अनुसूची-5 मे वह जानवरों शामिल है जिनका शिकार हो सकता है।
- छठी अनुसूची में शामिल पौधों की खेती और रोपण पर रोक है।
- सबसे ज्यादा जोर भारतीय स्टार कचवे पर दिया गया है इसे रखने पर 10000 रु जुर्माना ओर 10 साल की निश्चित गैर जमानती जेल है।
अपराध और दण्ड विधान – Crime and punishment
उन अपराधों के लिए सजा जिनमें जंगली जानवर (या उनके शरीर के अंग) – इस अधिनियम की सूची I या सूची II के भाग II में शामिल हैं – उनका शिकार करना, या किसी अभयारण्य या राष्ट्रीय उद्यान की सीमा को बदलने के लिए, और राशि जुर्माने की राशि बढ़ा दी गई है। अब न्यूनतम कारावास 3 वर्ष है जिसे 7 वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है और न्यूनतम जुर्माना 10,000/- रुपये है। दूसरी बार ऐसा अपराध कम से कम 3 साल के कारावास से, जो 7 साल तक हो सकता है और न्यूनतम 25,000/- रुपये के जुर्माने से दंडनीय है।
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