सन 1888 में वैज्ञानिक हालवैक्स ( Hallwachs ) ने बताया कि-
“जब किसी धातु तल (matel surface) पर पराबैंगनी प्रकाश अथवा लघु तरंगदैर्घ्य का प्रकाश डाला जाता है तो धातु तल से मुक्त इलेक्टॉन उत्सर्जित होने लगते हैं । इस घटना को प्रकाश विद्युत् प्रभाव कहते हैं तथा उत्सर्जित इलेक्टॉन को ( photo electron ) कहते हैं ।”
प्रकाश – विद्युत् समीकरण का प्रायोगिक सत्यापन
प्रयोग द्वारा उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा को नापने के लिए , बल्ब की प्लेट B पर डिस्क A के सापेक्ष इतना ऋणात्मक विभव आरोपित करते हैं जितने में कि किसी आवृत्ति ( न्यू) के प्रकाश के आपतित होने पर धारामापी G में प्रकाश – विद्युत् धारा शून्य हो जाये । इस ऋणात्मक विभव को निरोधी विभव ( Stopping potential) या संस्तब्ध विभव ( Cut – off potential ) कहते हैं ।
यदि आवृत्ति (न्यू )के प्रकाश के लिए निरोधी विभव V है , तो उत्सर्जित फोटो इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा निम्न होगी .
प्रयोग द्वारा प्राप्त निष्कर्ष निम्लिखित हैं –
1. आपतित प्रकाश की आवृत्ति बढ़ाने पर निरोधी विभव बढ़ता है ( अर्थात उत्सर्जित फोटो – इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा बढ़ती है ) , लेकिन अधिकतम प्रकाश – विद्यत धारा अपरिवर्तित रहती है ।
1. आपतित प्रकाश की आवृत्ति बढ़ाने पर निरोधी विभव बढ़ता है ( अर्थात उत्सर्जित फोटो – इलेक्ट्रॉन की गतिज ऊर्जा बढ़ती है ) , लेकिन अधिकतम प्रकाश – विद्यत धारा अपरिवर्तित रहती है ।
2. आपतित प्रकाश की तीव्रता बढ़ाने पर निरोधी विभव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है , लेकिन अधिकतम प्रकाश विद्युत् धारा बढ़ जाती है ।