गणतंत्र दिवस पर ऐसा लेख जो आपका दिमाग खोल दे। (essay on Republic Day in hindi)

सर्वप्रथम आपको गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । मैं आपको पहले ही स्पष्ट कर दूं कि इस पोस्ट को तभी पढ़े जब आप इसे पूरा पढ़ना चाहे , क्योंकि जो अब हम जानने वाले हैं वो हमारे अस्तित्व के लिए आवश्यक है जरूरी है । इसलिए आप से निवेदन है कि पोस्ट को पूरा पढ़ें।

आगे आप क्या क्या जानेंगे

  1. प्रस्तावना
  2. 26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस क्यों चुना गया  ?
  3. क्या जरूरत है गणतंत्र दिवस मनाने की ?
  4. संविधान की प्रस्तावना में ऐसा क्या है?
  5. क्या है” भारत के लोग” ?
  6. क्या है ” सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नता ” ?
  7. क्या है समाजवाद ?
  8. क्या है धर्मनिरपेक्षता ?
  9. क्या है ” पंथनिरपेक्षता ” ?
  10. क्या है ” लोकतंत्रात्मक गणराज्य ” ?

प्रस्तावना
गणतन्त्र दिवस भारत का एक राष्ट्रीय पर्व है जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है।  इसी दिन सन् 1950 को भारत सरकार अधिनियम (एक्ट) (1935) को हटाकर भारत का संविधान लागू किया गया था।  एक स्वतंत्र गणराज्य बनने और देश में कानून का राज स्थापित करने के लिए संविधान को 26 नवंबर 1949 को भारतीय संविधान सभा द्वारा अपनाया गया और 26 जनवरी 1950 को इसे एक लोकतांत्रिक सरकार प्रणाली के साथ लागू किया गया था। इसलिए हम सब मिलकर गणतंत्र दिवस मानते हैं।
26 जनवरी को ही गणतंत्र दिवस क्यों चुना गया  ?

26 जनवरी को इसलिए चुना गया था क्योंकि 1930 में इसी दिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (आई ० एन ० सी ०) ने भारत को पूर्ण स्वराज घोषित किया था।
क्या जरूरत है गणतंत्र दिवस मनाने की ?

15 अगस्त 1947 को हमे आजादी तो मिल गई थी लेकिन भारत के प्रत्येक व्यक्ति को अभी बहुत कुछ देना बाँकी था। जो हमारे संविधान आने पर मिल सका । अब सवाल यह है कि ऐसा क्या मिला था कि आज तक हमें उस दिन को याद रखने की जरूरत है। और यह मिलने वाली बात हमारे संविधान की प्रस्तावना से ही स्पष्ट होती है ।
संविधान की प्रस्तावना में ऐसा क्या है?

संविधान की प्रस्तावना में कहा गया कि “” हम , भारत के लोग , भारत को एक ‘ [ सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न ,समाजवादी , पंथनिरपेक्ष,  लोकतंत्रात्मक गणराज्य ] बनाने के लिए , तथा उसके समस्त नागरिकों को : सामाजिक , आर्थिक और राजनैतिक न्याय , विचार , अभिव्यक्ति , विश्वास , धर्म और उपासना की स्वतंत्रता , प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए , तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और [ राष्ट्र की एकता और अखंडता ] सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवम्बर , 1949 ई० को एतदद्वारा इस संविधान को अंगीकृत , अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं ।””
क्या है” भारत के लोग”?

“हम भारत के लोग” से तात्पर्य है कि इस भारत देश में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति , चाहे वो किसी भी धर्म का हो , किसी भी जाति का हो , किसी भी सम्प्रदाय का हो , भारत के किसी भी स्थान का हो , उसे उसके धर्म या जाति या सम्प्रदाय से नही जाना जाएगा । बल्कि
उसे भारत के नागरिक के रूप में जाना जाएगा ।
यह बात संविधान की प्रस्तावना के पहले शब्द ” हम भारत के लोग ” से स्पष्ट होती है।
क्या है ” सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्नता ” ?

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के प्रभु संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न ’के पद से व्यक्त होता है कि भारत पूर्ण रूप से प्रभुत्व संपन्न राज्य है और कानूनी दृष्टि से न तो उसके ऊपर किसी आंतरिक शक्ति का प्रतिबंध और न ही किसी बाहरी शक्ति का।
आंतरिक क्षेत्र में, हालांकि भारतीय संविधान में संघ और राज्यों के बीच शक्तियों का वितरण किया गया है, पर यहां विभक्त प्रभुता के सिद्धांत के लिए कोई अवकाश नहीं है, क्योंकि यद्यपि सामान्य कालों में शक्तियों के वितरण को बनाए रखने की व्यवस्था है, तोसों की।  स्थिति में और कुछ और विशिष्ट स्थितियों में संविधान ने संघ सरकार को यह शक्ति दी है कि वह राष्ट्रहित में राज्यों की शक्तियों का अतिशय है  मण कर सकता है।  प्रस्तावना के अनुसार प्रभुता पूरीची भारतीय जनता में या भारतीय गणराज्य में निहित है, उसके किसी अंगभूत हिस्से में नहीं।
बाहय प्रभुसत्ता या आंतरिक विधि में प्रभुसत्ता यह है कि राज्य अन्य राज्यों के सदंर्भ में पूर्ण स्वतंत्र होता है और उसकी विदेश नाती या आंतरिक संबंधों पर कोई अंकुश नहीं होता है।
भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के पास होने के बाद भी जो थोड़े से प्रतिबंध बने रहे थे, वे भी भारतीय संविधान की स्वीकृति के साथ समाप्त हो गए और भारत उसी प्रकार संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न राज्य बन गए, जिस प्रकार कि संयुक्त राज्य अमेरिका, इंग्लैंड,  फ्रांस, जर्मनी या संसार का अन्य कोई स्वाधीन राज्य।  राष्ट्रमंडल की सदस्यता से भी भारत की प्रभुसत्ता पर कोई आघात नहीं होता है और वह अपने आंतरिक और बाहरी मामलों में पूरी तरह स्वतंत्र है।  राष्ट्रमंडल पूर्ण स्वतंत्र राष्ट्रों का स्वतंत्र और स्वैच्छिक समागम है।  राष्ट्रमंडल का सदस्य बने रहने से भारत के ऊपर कोई दायित्व नहीं आता और न राष्ट्रमंडल में ऐसे निर्णय किए जाते हैं जो भारत या अन्य किसी सदस्य राज्य के लिए बंधनकारी हों।
क्या है समाजवाद?

समाजवाद एक ऐसी विचारधारा / सिद्धांत / व्यवस्था है जो समतामूलक समाज व राज्य की स्थापना पर बल देती है । समाजवाद का मुख्य ध्येय समाज की आर्थिक समानता है । यह व्यवस्था पूंजीवाद का विरोध करती है तथा आर्थिक समानता का समर्थन करती है । इस विचारधारा के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को समानता का अधिकार है तथा किसी भी व्यक्ति के साथ आर्थिक भेदभाव नहीं किया जाएगा । कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी व्यवस्था / बुर्जुआ विचारधारा को आर्थिक असमानता का सबसे बड़ा कारण माना है । उनके अनुसार पूंजीवादी वर्ग हमेशा से ही श्रमिक वर्ग का शोषण करता आया है । इसीलिए हमारे संविधान की प्रस्तावना में “समाजवाद” को भी रखा गया ताकि किसी भी व्यक्ति के साथ आर्थिक भेदभाव नहीं किया जाए।
क्या है धर्मनिरपेक्षता ?

पंथनिरपेक्ष राज्य से आशय यह है कि राज्य (भारत) की दृष्टि में सभी धर्म समान हैं और धर्म, पंथ और उपासना रीति के आधार पर राज्य किसी भी व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं करेगा।  राष्ट्रीय स्वतंत्रा संग्राम के दौरान ही भारत मे सांप्रदायिक सामुदायिक कटुता का विस्तार हो चुका था।  और देश का विभाजन इसकी चरम परिणीति थी।।स्वतंत्रा प्राप्ति के बाद नवजात लोकतंत्र को सम्प्रदायवाद के घातक प्रभावों से मुक्त रखने के लिए यह आवश्यक समझा गया है कि धर्म या पंथ को राजनीतिक से अलग रखा जाना चाहिए। राज्य द्वारा सभी को अपने-अपने तरीके से संस्कृति का विकास और धार्मिक अध्ययन प्राप्त करने की छूट दी गई है।
क्या है ” पंथनिरपेक्षता ” ?

भारत सर्व धर्म समभाव की भावना रखता है , इसमे सभी धर्मो से सरकार की ” नैतिक दूरी ” होती है , कितुं राज्य धर्मो के अंदरूनी मामलों में जरूरत पड़ने पर दखल दे सकता है जैसे ट्रिपल तलाक आदि कितुं स्टेट किसी एक विशेष धर्म का प्रोत्साहन नही करेगा ।

गांधी कहते है कि ” धर्म राजनीति की नींव में होना चाहिए । वो सर्व धर्म समभाव की बात करते और कहते है कि राजनीति को नैतिकता धर्मो के ग्रन्थों से लेनी चाहिए”।
अम्बेडकर कहते है कि ” मैं किसी एक धर्म के विकास का सपना नही देखता हूँ , बल्कि सहिष्णुता के साथ सभी धर्म विकास करे” ।
क्या है ” लोकतंत्रात्मक गणराज्य ” ?

एक गणराज्य या गणतंत्र (लातिन: रेस पब्लिका) सरकार का एक रूप जिसमें देश में एक “सार्वजनिक मामला” माना जाता है, न कि शासकों की निजी संस्था या सम्पादन।  एक गणराज्य के भीतर सत्ता के प्राथमिक पद विरासत में नहीं मिलते हैं।  यह सरकार का एक रूप है जिसके तहत राज्य का प्रमुख राजा नहीं होता है।
गणराज्य की परिभाषा का विशेष रूप से सन्दर्भ सरकार के एक ऐसे रूप से है जिसमें व्यक्ति नागरिक निकाय का प्रतिनिधित्व करते हैं और किसी संविधान के तहत विधि के नियम के अनुसार शक्ति का प्रयोग करते हैं, और जिसमें निर्वाचित राज्य के प्रमुख के साथ शक्तियों का पृथक्करण होगा।  शामिल होते हैं, व किस राज्य का सन्दर्भ संवैधानिक गणराज्य या प्रतिनिधित्व लोकतंत्र से हैं।
गणराज्य एक ऐसा देश होता है जहां के शासनतन्त्र में आर्थिक रूप से देश का सर्वोच्च पद पर आम जनता में से कोई भी व्यक्ति पदासीन हो सकता है।  इस तरह के रेगतन्त्र को गणतन्त्र (संस्कृत; गण: पूर्ण सार्वजनिक, तंत्र: प्रणाली; सार्वजनिक द्वारा नियंत्रक प्रणाली) जाता है।  “लोकतंत्र” या “प्रजातंत्र” इससे अलग होता है।  लोकतन्त्र वह शासनतन्त्र होता है जहाँ वास्तव में सामान्य जनता या उसके बहुमत की इच्छा से शासन चलता है।  आज विश्व के अधिकान्श देश गणराज्य हैं और इसके साथ-साथ लोकतान्त्रिक भी।  भारत स्वय: एक लोकतान्त्रिक गणराज्य है।

इस प्रकार से भारत के संविधान में सभी को साथ रखने के लिए हर प्रकार से नियम दिए  हैं । और इन सबका श्रेय संविधान निर्माताओं को जाता है । 
यदि आप अपने अधिकारों और कर्तव्यों को पूरी तरह समझना और जानना चाहते हैं तो आज से ही संविधान को पढ़ना शुरू कीजिए ।

मेरा मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति को रोज़ एक पेज संविधान का पाठ करना चाहिए और उसे अपने जीवन में अमल में लाना चाहिए।
धन्यवाद








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Hello friends, I am Ashok Nayak, the Author & Founder of this website blog, I have completed my post-graduation (M.sc mathematics) in 2022 from Madhya Pradesh. I enjoy learning and teaching things related to new education and technology. I request you to keep supporting us like this and we will keep providing new information for you. #We Support DIGITAL INDIA.

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