प्रायोगिक ऊर्जा वितरण वक्र –
वैज्ञानिक ल्यूमर तथा प्रिंग्जहाइम ( Lummer and Pringsheim ) ने सन् 1889 में कृष्ण पिण्ड को विभिन्न तापों पर रखकर उससे उत्सर्जित विकिरण ऊर्जा का विभिन्न तरंगदैर्यों में स्पेक्ट्रमी वितरण के प्रयोग द्वारा अध्ययन किया।
विभिन्न ताप पर प्रयोग द्वारा प्राप्त ऊर्जा वितरण वक्र चित्र (a) में प्रदर्शित है ।
1 . प्रत्येक ताप पर कृष्ण पिण्ड का वर्णक्रम अविरत ( अथवा श्वेत )(Continuos) होता है ।
2. प्रत्येक ताप पर वक्र का λ – अक्ष से घिरा क्षेत्रफल कृष्ण पिण्ड द्वारा उत्सर्जित सम्पूर्ण ऊर्जा का मान प्रदर्शित करता है । कृष्ण पिण्ड का ताप जितना अधिक होता है , उससे उतनी ही अधिक सम्पूर्ण विकीर्ण ऊर्जा उत्सर्जित होती है ।
अर्थात, तप्त पिण्ड से उत्सर्जित सम्पूर्ण ऊर्जा , पिण्ड के परमताप की चतुर्थ घात के अनुक्रमानुपाती होती है ।
( 3 ) जैसे – जैसे पिण्ड का ताप बढ़ता है , किसी भी तरंगदैर्घ्य के विकिरण के लिए उत्सर्जित ऊर्जा E(λ) का मान ताप के साथ तेजी से बढ़ता है ।
अर्थात
( 4 ) जैसे – जैसे पिण्ड का ताप बढ़ता है , अधिकतम उत्सर्जित ऊर्जा के संगत तरंगदैर्घ्य का मान घटता है , अर्थात् वक्र का शिखर लघु तरंगदैर्ध्य की ओर सरकता है ।
( 5 ) अधिकतम तीव्र उत्सर्जन के संगत तरंगदैर्ध्य का मान पिण्ड के परमताप T के व्युत्क्रमानुपाती होता है ,
अर्थात्
यहाँ b एक नियतांक है जिसका मान 2.88×10^7 मीटर x केल्विन होता है । इसे वीन नियतांक कहते हैं ।
उपर्युक्त समीकरण से स्पष्ट है कि पिण्ड को साधारण ताप तक गर्म करने पर केवल बड़ी तरंगदैर्घ्य वाली विकिरण तरंगें उत्सर्जित होती हैं ।
जैसे – जैसे पिण्ड का ताप बढ़ता जाता है , उससे उत्सर्जित विकिरण में लघु तरंगदैर्घ्य वाली विकिरण तरंगों की ऊर्जा बढ़ती जाती है ।
यही कारण है कि –
लोहे की गेंद को गर्म करने पर पहले लगभग 500°C पर वह लाल , फिर 800°C पर पीली और अन्त में 1000°C से ऊपर श्वेत होती है ।
कृष्ण पिण्ड विकिरण वक्र की व्याख्या –
कृष्ण पिण्ड से उत्सर्जित विकिरण के स्पेक्ट्रमी वितरण वक्र की व्याख्या करने के लिए निम्नलिखित चार नियम दिये गये :
( 1 ) स्टीफेन का नियम ( Stefan ‘ s law )
अर्थात्
जहाँ । ( सिग्मा ) एक नियतांक (= 5.67×10^-8 वाट / मीटर^2 केल्विन^4 ) है जिसे स्टीफेन का नियतांक कहते हैं ।
( 2 ) वीन का नियम ( Wien ‘ s law ) –
इस नियम के अनुसार कृष्ण पिण्ड का ताप बदलने पर ,
(a) किसी ताप पर कृष्ण पिण्ड से उत्सर्जित विकिरण की तरंगदैर्घ्य λ का मान , पिण्ड के परमताप T के व्युत्क्रमानुपाती होता है ,
अर्थात् .
( b ) किसी ताप पर कृष्ण पिण्ड से तरंगदैर्घ्य की उत्सर्जित विकिरण की ऊर्जा का मान , पिण्ड के परमताप की पंचम घात के अनुक्रमानुपाती होता है ,
अर्थात्
अत : ताप पर कृष्ण पिण्ड द्वारा उत्सर्जित विकिरण में तरंगदैर्घ्य λ व + λd के बीच उत्सर्जकता निम्न सूत्र द्वारा दी जाती है :
जहां f(λ,T)
एक अज्ञात फलन है तथा A एक नियतांक है । बाद में वैज्ञानिक वीन ने इस अज्ञात फलन f(λ,T) को चरघातांकी ( exponential ) फलन माना ।
तब वीन के नियमानुसार ,
( 3 ) रैले – जीन का नियम ( Rayleigh – Jean’s law ) –
अतः तरंगदैर्घ्य परास λ व + dλ में ऊर्जा घनत्व
= तरंगदैर्घ्य परास λ व λ + dλ में एकांक आयतन में कम्पनों की विधाओं की संख्या x एक कम्पन विधा की औसत ऊर्जा ।