कानून क्या होता है ? अवधारणा, अर्थ, परिभाषा, और कानून का वर्गीकरण जानिए [ What is law? concept, meaning, definition]

क्या आपने कभी अपने दिन – प्रतिदिन के जीवन में कानून की आवश्यकता महसूस की है ? क्या आपने कभी ट्रैफिक पुलिस द्वारा यातायात के नियमों का उल्लंघन करने वाले किसी व्यक्ति पर जुर्माना लगाते देखा है ? कानून हमारे जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित करता है । 
यह हमें मां की कोख से लेकर हमारी शिक्षा , रोजगार , विवाह तथा जीवन के अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों में सुरक्षा उपलब्ध कराता है। कानून हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है, चाहे समाचारपत्र या दूध या कोई अन्य छोटी किन्तु आवश्यक वस्तु खरीदना हो कानून इतना महत्वपूर्ण है कि कानून के विभिन्न तथ्यों के विषय में जानकारी प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है जैसे कानून का अर्थ क्या है, हमें कानून कहाँ से प्राप्त होता है इसके प्रकार कौन – कौन से हैं और सदियों की अवधि से लेकर कानून के वर्तमान स्वरूप का विकास कैसे हुआ,आदि। आइये शुरू करते हैं।

Table of Contents

कानून का अर्थ तथा परिभाषा – Meaning and definition of law

कानून का अर्थ उस नियम से हैं जो सभी क्रियाओं पर अभंदकर रूप से लागू होता हैं । यह आचरण का कल्पित प्रारूप है जिसके अनुरूप क्रियाएं की जाती हैं या की जानी चाहिए । कानून नियमों और विनियमों का एक बड़ा निकाय है , जो मुख्य रूप से न्याय , निष्पक्ष व्यवहार तथा सुविधा के सामान्य सिद्धांतों पर आधारित और जिसे मानव गतिविधियों को विनियमित करने के लिए सरकारी निकायों द्वारा तैयार किया जाता है । 

व्यापक दृष्टिकोण में कानून एक सम्पूर्ण प्रक्रिया को दर्शाता है जिसके द्वारा संगठित समाज सरकारी निकायों और कर्मिकों ( विधायिका , न्यायालय , अधिकरण , कानून प्रवर्तन एजेंसिया और अधिकारी , संहिता और निवारक संस्थान आदि ) के माध्यम से समाज में लोगों के बीच शांतिपूर्ण और व्यवस्थित संबंध स्थापित व अनुरक्षित करने के लिए नियमों और विनियमों को लागू करने का प्रयास किया जाता है 

मानव आचरण के मार्गदर्शक के रुप में कानून की अवधारणा सभ्य समाज के अस्तित्व जितनी पुरानी है । मानव व्यवहार के लिए कानून की प्रासंगिकता आज इतनी अंतरंग हो गई है कि प्रत्येक व्यक्ति के लिए कानून की प्रकृति की संबंध में अपनी स्वब की अवधारणा है जो नि : संदेह उसके स्वयं के दृष्टिकोण से प्रभावित होती है । यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कानून की एक सहमत परिभाषा को खोजना अंतहीन यात्रा समान है । 

कानून की प्रकृति , अवधारणा , आधार और कार्यों के संबंध में विधिवेताओं के विचारों में मतभेद और भिन्नता है । कानून को पूराने रीति – रिवाजों के दैवीय रुप से आदेशित नियम या परम्परा के रुप में या समझदार लोगों के लिखित न्याय के सिद्धांतों के दार्शनिक रूप से सृजित प्रणाली के रूप में , वस्तुओं की प्रकृति या शाश्वत या या अचल नैतिक संहिता के निर्धारण और घोषणा के रूप में या राजनैतिक रूप से संगठित समाज में लोगों के करारों के निकाय के रूप में या दैवीय कारण के बिम्ब के रूप में या स्वायतत आदेशों के निकाय के रूप में , या मानव अनुभव द्वारा आविष्कृत नियमों के निकाय के रूप में , या विधिशास्त्रीय लिखित नियमों और न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित नियमों के निकाय के रूप में या समाज के प्रबुद्ध वर्ग द्वारा समाज के पुरूषों महिलाओं पर लगाए गए नियमों के निकाय के रूप में या व्यक्तियों के आर्थिक और समाजिक लक्ष्यों की दृष्टि से नियमों के निकाय के रूप में देखा जा सकता है । 

इसलिए , कानून को पहले उसकी प्रकृति , तर्क , धर्म या नीतियों द्वारा परिभाषित किया जा सकता है दूसरे – इसके स्त्रोतों जैसे रीति – रिवाजों , पुर्वनिर्णयों या विधान द्वारा , तीसरा – समाज के जीवन पर इसके प्रभाव , चौथा – इसको औपचारिक अभिव्यक्ति या आधिकारित अनुप्रयोग , पांचवा उन लक्ष्यों द्वारा जिन्हें ये प्राप्त करना चाहते हैं । 

कानून की परिभाषा – Definition of law

हालांकि , कानून की ऐसी कोई सामान्य परिभाषा नहीं है जिसमें कानून के सभी पहलू शामिल हों किन्तु सामान्य जिज्ञासा के लिए , कुछ महत्वपूर्ण परिभाषाएं निम्नानुसार हैं ।

एरिस्टोटिल ( अरस्तू ) – यह ( परिपूर्ण कानून ) मानव की प्रकृति में निहित हैं और मानव प्रकृति से प्राप्त किया जा सकता है । 

ऑस्टिन– ऑस्टिन कहते हैं कि “ कानून , प्रभूसत्ता – सम्पन्न का आदेश है “।

राजनीतिक वरिष्ठों द्वारा राजनीतिक कनिष्ठों के लिए नियमों को निर्धारित करना । अन्य शब्दों में , स्वतंत्र समाज के स्वायत्त सदस्य या सदस्यों नेतृत्व का निकाय जिसमें कानून का रचयिता श्रेष्ठ है 

पेटन– पेटन के अनुसार “ कानून उन नियमों का निकाय है जो समुदायों में बाध्यकारी नियमों को रुप में प्रचालित होते हैं और जिसके द्वारा नियमों के बाध्यकारी प्रावधान का सक्षम बनाने के लिए नियमों को पर्याप्त अनुपालन सुनिश्चित किया जाता है । “

See also  EPF क्या है ? PF Balance कैसे चेक करें ?

ए.वी.डायसी– ए.वी.डायसी के शब्दों में ” कानून जनमत का प्रतिबिम्ब हैं । 

इहरिंग – इहरिंग ने कानून को राज्य की नियन्त्रण की शक्ति द्वारा समाज में जीवन की स्थितियों की एक प्रकार की गारंटी है ” । 

सेल्मंड– सेल्मंड के अनुसार “ कानून , न्याय के प्रयोग में राज्य द्वारा मान्यता प्राप्त तथा प्रयुक्त सिद्धान्तों का निकाय है ” अर्थात न्याय के संचालन में राज्य द्वारा स्वीकृत तथा प्रयुक्त सिद्धांत । 

सेविने– कानून समुदाय के भीतर अचेतन विकास का विषय है और इसे केवल इसके ऐतिहासिक परिपेक्ष्य में समझा जा सकता है । संविने की बॉल्बएस्ट थ्योरी के अनुसार कानून से तात्पर्य लोगों की इच्छा है । 

रॉस्कोई पाउंड– ” कानून राजनैतिक रूप से संगठिन समाज में बल के सुव्यवस्थित प्रयोग के माध्यम से सामाजिक नियंत्रण हैं । ” न्यूनतम मन – मुटाव और क्षय के साथ समाज में अधिकतम इच्छाओं को पूरा करने का उपकरण है । 

कानून का वर्गीकरण – Classification of law

कानून का उचित तथा तर्कसंगत ज्ञात प्राप्त करने के लिए , इसका वर्गीकरण अत्यंत आवश्यक है । इससे कानूनी व्यवस्था के सिद्धांतों और तार्किक संरचना को समझने में सहायता मिलती है यह नियमों के अंतर – संबंधों और इनका एक – दूसरे पर होने वाले प्रभावों को स्पष्ट करता है और इससे नियमों का संक्षिप्त और व्यवस्थित रूप से निर्धारित करने में मदद मिलती हैं ।

कानून का वृहत वर्गीकरण निम्नानुसार हैं- 

कानून क्या होता है ? अवधारणा, अर्थ, परिभाषा, और कानून का वर्गीकरण जानिए [ What is law? concept, meaning, definition]


कानून का व्यापक वर्गीकरण कानून को व्यापक स्तर पर दो श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है ।

1. अंतराष्ट्रीय कानून – International law

अंतरराष्ट्रीय कानून , विधि की वह शाखा है जिसमें राज्यों या राष्ट्रों के बीच आपसी संबंधों को विनियमित करने वाले नियम शामिल है। अन्य शब्दों में अंतरराष्ट्रीय नियम प्रथागत और परम्परागत नियमों का एक निकाय है जो सभ्य राष्ट्रों के लिए एक दूसरे के साथ संव्यवहार करते समय कानूनी रुप से बाध्यकारी होते हैं । अंतरराष्ट्रीय कानून मुख्य रूप से सभ्य राष्ट्रों के बीच संधियों पर आधारित हैं अंतरराष्ट्रीय कानून को निम्नानुसार विभाजित किया जा सकता है ।

( क ) लोक अंतरराष्ट्रीय कानून यह नियमों का वह निकाय हो जो एक राष्ट्र के अन्य राष्ट्रों के साथ आचरण व संबंधों को शासित करता है । 

( ख ) निजी अंतरराष्ट्रीय कानून इसका तात्पर्य उन नियमों और सिद्धान्तों से हैं जिनके अनुसार विदेशी तत्वों वाले मामलों को निपटाया जाता है । 

उदाहरण के लिए यदि एक संविदा भारत में एक भारतीय और पाकिस्तानी नागरिक के बीच में किया जाता है और इसे सीलोन में निष्पादित करना है . उसके नियम और विनियमों पर पक्षों के अधिकारों और दायित्वों का निर्धारण किया जाता है , उन्हें ‘ निजी अंतरराष्ट्रीय कानून (Private international law)’ कहते हैं । 

2. नगरपालिका या ( राष्ट्रीय ) कानून – Municipal or (national) law

नगरपालिका या राष्ट्रीय कानून , विधि की बह शाखा है जो राज्य के भीतर ही लागू होती है इसे दो श्रेणियों में वगीकृत किया जा सकता है

( क ) 

i . संवैधानिक कानून संवैधानिक कानून राज्य का आधारभूत या मौलिक कानून है । यह कानून राज्य की प्रकृति तथा सरकार की संरचना का निर्धारण करता है । यह उस राष्ट्र के सामान्य कानून से उत्कृष्ट होता है क्योंकि सामान्य कानून संवैधानिक कानून से ही प्राधिकार और शक्तियां प्राप्त करता है । 

ii . प्रशासनिक कानून यह कानून प्रशासन के अगों की सरंचना , शक्तियों और कार्यो , उनको शक्तियों की सीमाओ , अपनी शक्तियों को प्रयोग करने के लिए अनुसरण की जाने वाली विधियों और प्रक्रियाओं , विधियां जिनके द्वारा उनकी शक्तियों को नियंत्रित किया जाता है तथा एक व्यक्ति को उनकी विरूद्ध उपलब्ध उपचारों , जब उस व्यक्ति के अधिकार उनके प्रचालन के कारण बाधित होते हैं से संबंधित है । 

iii . अपराधिक कानून यह अपराधों को परिभाषित करता है और उनके लिए दंड निर्धारित करता है । इसका उद्देश्य अपराधों का निवारण करना और इनके लिए दंड देना हैं क्योंकि सभ्य समाजों में , ‘ अपराध ‘ को व्यक्ति के विरूद्ध गलत कृत्य नहीं माना जाता बल्कि समाज के विरुद्ध गलत कार्य माना जाता है । 

( ख ) निजी कानून : 

कानून की यह शाखा नागरिकों के एक – दूसरे के साथ आपसी संबंधों को विनियमित तथा शासित करता है । इसमें निजी या व्यक्तिक कानून शामिल है जैसे हिन्दू कानून और मुस्लिम कानून । 

इन प्रकार के कानूनों के अतिरिक्त , कुछ अन्य प्रकार के कानून भी विद्यमान हैं , जो निम्नानुसार हैं। 

प्राकृतिक या नैतिक कानून (Natural or moral law) :

प्राकृतिक कानून सही और गल के सिद्धांत पर आधारित हैं । यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को सम्मिलित करता है । 

परंपरागत कानून (Customary law) :

परंपरागत कानून से तात्पर्य किसी नियम या नियमों की प्रणाली से है जो व्यक्तियों द्वारा एक दूसरे के प्रति अपने आचरण को विनियमित करने के लिए आपसी सहमति से तैयार किए जाते हैं । 

उदाहरण के लिए भारतीय संविदा अधिनियम , 1872 संविदाओं या करारों संबंधी नियमों से सम्बन्धित है । प्रथागत या रूढ़िगत कानून ऐसा नियम जिसका पालन किसी प्रथा के स्थापित होने पर मनुष्यों द्वारा किया जाता है , लोगों द्वारा स्वीकृत या मान्य होने के कारण राज्य द्वारा कानून के रूप में लागू कर दिया जाता है ।

सिविल कानून (civil law):

राज्य द्वारा प्रवर्तित कानून को सिविल कानून कहा जाता है । इस कानून का आधार राज्य का बल है । सिविल कानून अनिवार्य रुप से प्रादेशिक प्रकृति का है और यह संबंधित राज्य के क्षेत्र के भीतर ही लागू होता है । 

अधिष्ठायी कानून ( Sovereign law):

अधिष्ठायी कानून राज्य के विरूद्ध व्यक्तियों के अधिकारों और दायित्वों से संबंधित है और अपराधों को निर्धारित करता है और इन अधिकारों के उल्लंघन के लिए दंड का निर्धारण करता है उदाहरण के लिए , भारतीय दंड संहिताए 1860 ( Indian Penal Code ) में 511 विभिन्न अपराधों और इन अपराधों से संबंधित दण्डों का उल्लेख है । 

प्रक्रियात्मक कानून (Procedural law):

यह उस विधि तथा प्रक्रिया से संबंधित है जिसका उद्देश्य न्याय के प्रबंधन को सुलभ बनाना है । यह न्यायालय द्वारा मुकदमाकर्ता पक्षों के कानूनी अधिकारों और दायित्वों के प्रवर्तन के लिए एक अनिवार्य प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए , दंड प्रक्रिया संहिता , 1973 ( Criminal Procedure Code , 1973 ) में अपराधी को दंड प्रदान करने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया स्थापित की गई है ।

कानून के स्रोत – Source of law

कानून की अवधारणा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए कानून के स्रोतों का ज्ञात प्राप्त करना अत्यंत आवश्यक है । स्रोत का शाब्दिक अर्थ उस बिन्दु से हैं जहां से किसी अवधारणा का उदय , उत्पत्ति या निर्माण होता है । 

इस प्रकार , “ कानून का स्रोत ” अभिव्यक्ति से तात्पर्य उस स्त्रोत से है जहां से मानव आचरण के नियमों की उत्पत्ति होती है और बाध्यकारी स्वरूप की कानूनी शक्ति प्राप्त की जाती है । व्यापक रूप से , कानून के स्त्रोत को निम्नानुसार विभाजित किया जा सकता है । 

1. रीति – रिवाज रीति – (Customs)

रिवाज कानून के सबसे पुराने और सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण स्रोत हैं । रीति – रिवाज उन सिद्धांतों को अभिव्यक्ति करते हैं । जो न्याय और जन उपयोगिता के सिद्धांतों के रूप में स्वाभाविक अंत : करण से स्वयं निर्मित हुए हैं । 

रीति रिवाज या प्रथा समान कृत्य के बार – बार दोहराने से जन्म लेते हैं और इसलिए , ये एक समुदाय के भीतर प्रथागत आचरण को दर्शाते हैं । इस प्रकार समान परिस्थितियों में आचरण की एकरूपता रीति – रिवाज का प्रमाणन है ।

रीति – रिवाज के अनिवार्य तत्व

कानून की दृष्टि में वैध होने के लिए परम्परागत पद्धितियों को कुछ अपेक्षाओं को पूरा करना होता है और इनमें से कुछ महत्वपूर्ण अपेक्षाएं हैं ।

क. प्राचीनता ( Antiquity ) – एक रीति को कानून के रुप में मान्यता प्राप्त करने के लिए यह सिद्ध करना आवश्यक है कि वह चिरकाल या लंबे समय से अस्तित्व में हैं । 

ख . निरंतरता ( Contiunance ) – एक रीति की दूसरी अनिवार्य आवश्यकता यह है कि वह निरंतर रूप से प्रयोग में होनी चाहिए । 

ग . विश्वसनीयता– एक रीति को अविश्वसनीय या गैर – युक्तिसंगत नहीं होना चाहिए अर्थात यह व्यक्तिगत मामलों की परिस्थितियों में अनुप्रयोग में युक्ति संगत होना चाहिए । 

घ . बाध्यकारी विशेषता – रीति में बाध्यकारी शक्ति होना चाहिए । इसे जन – साधारण का समर्थन प्राप्त होना चाहिए और यह अधिकार का विषय होना चाहिए । 

ड . निश्चितता– एक रीति को निश्चित होना चाहिए । एक ऐसी प्रथा या परम्परा जो अस्पष्ट था अनिश्चित हो उसे मान्यता प्रदान नहीं की जा सकती है । 

च . अनुरूपता – परंपरागत नियमों में प्रयोग के आचार में अनुरूपता होनी चाहिए । छ , सांविधिक कानून और लोक नीति के साथ अनुकूलता – परम्पराओं को सांविधिक कानून और लोक नीति के अनुकूल होना चाहिए ।  

2. न्यायिक पूर्वनिर्णय – Judicial prejudice 

‘पूर्व – निर्णय’ ऐसे निचित प्रतिमानों या आदर्शों को दर्शाते हैं जिन पर भावी आचरण आधारित होते हैं । ये समान परिस्थितियों में पूर्ववर्ती घटना , निर्णय या अनुसरण की गई कार्रवाही हो सकती है न्यायिक पूर्व – निर्णय कानून का एक स्वतंत्र स्रोत हैं । 

निर्णीतानुसार ( Starc Decisis ) एक लैटिन शब्द है जिसका अर्थ है ” पूर्व निर्णय या दृष्टान्त का अनुपालन करना और सिद्ध बिंदुओं को न छेड़ना । ” पूर्व निर्णय या निर्णीतानुसार क्रमानुसार निचली अदालतों में भावी मामलों में निर्णय देने के लिए पूर्ण न्यायिक – निर्णयों के अनुप्रयोग को दर्शाता है।

कानून क्या होता है ? अवधारणा, अर्थ, परिभाषा, और कानून का वर्गीकरण जानिए [ What is law? concept, meaning, definition]

न्यायिक पूर्व – निर्णय या ‘ स्टेरे डिसीसी ‘ का आगामी मामलों में बाध्यकारी शक्ति होती है यह कोई सम्पूर्ण निर्णय नहीं है जो कि बाध्यकारी होता है । अन्य शब्दों में पूर्ववर्ती निर्णय में न्यायाधीश द्वारा दिया गया प्रत्येक विवरण भावी मामले के लिए बाध्यकारी नहीं होता है ।

पूर्ववर्ती मामले के केवल वही निर्णय , उस मामले के निर्णय के लिए कारण का निर्धारण करता है या विनिश्चिय आधार ‘ ( ratio decidendi ) , सामान्य सिद्धांत के रूप में बाध्यकारी होता है । विनिश्चिय आधार एक सामान्य सिद्धांत है जिसका प्रयोग निर्णय मामले में किया जाता है । कानून के नियम के आधार पर निर्णय दिया जाता है और यह प्रामाणिक प्रकृति का होता है । 

कानून क्या होता है ? अवधारणा, अर्थ, परिभाषा, और कानून का वर्गीकरण जानिए [ What is law? concept, meaning, definition]

‘विनिश्चय आधार’ के अतिरिक्त , एक निर्णय में वे टिप्पणियां भी शामिल हो सकती हैं जो न्यायलय के समक्ष उपस्थित मामले के लिए विशुद्ध रूप से संगत नहीं होती हैं । ये टिप्पणियां कानून के व्यापक पहलुओं पर आधारित हो भारत में न्यायपालिका की एकीकृत प्रणाली सकती हैं । या सुनवाई के दौरान न्यायधीशों या काउंसलों द्वारा उठाए गए कल्पित प्रश्नों के उत्तरों पर आधारित हो सकती हैं । 

इस प्रकार की टिप्पणियां ‘ इतिरोक्ति ‘ ( obiter dicta ) और ये बिना किसी बाध्यकारी प्राधिकार के होती हैं क्योंकि अब तक ये निर्णय निर्धारण के लिए अनिवार्य नहीं है । 

3. विधान या विधि – निर्माण ( Legislation ) :

‘विधान’ कानून के क्रमविकास की सुविचारित प्रक्रिया है जिसमें संविधान के द्वारा अभिकल्पित एजेंसियों द्वारा निर्धारित प्रक्रिया के माध्यम से एक नियत प्रारूप में मानव आचरण के नियमों का सजृन शामिल है । 

विधान’ का अर्थ है मानव व्यवहार के नियमों का निर्माण । ‘विधान’ शब्द की उत्पत्ति लेगिस ( legis ) और लेटम ( latum ) शब्दों से हुई हैं जिनका अर्थ बनाना या स्थापित करना है । इस प्रकार , शब्द ” विधान ” का अर्थ कानून का निर्माण करना है । 

यह कानून का वह स्रोत है जिसमें सक्षम प्राधिकरण द्वारा कानूनी नियमों की घोषणा शामिल है । विधान में विधायिका के संकल्प की प्रत्येक अभिव्यक्ति शामिल होती है . चाहे कानून निर्माण हो या नहीं ।

कानून के प्रवर्तन तथा न्यायकरण में कानूनी प्रणाली , न्यायपालिका , कानूनी पेशेवरों और सिविल सोसाइटी की भूमिका –

जब समाज अस्तित्व में आया उस समय समाज में रहने वाले लोगों के व्यवहार को विनियमित करने के लिए शायद ही कोई नियम रहा हो । उस समय , हर ओर अराजकता , जंगलीपना और अव्यवस्था की स्थिति थी । 

सभ्यता और समाज के विकास की प्रक्रिया में , एक ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता महसूस की गई जो न्याय और निष्पक्षता के निर्धारित सिद्धांतों के आधार पर मानव व्यवहार को विनियमित कर सके और लोगों के बीच मतभेदों को न्यूनतम कर सके ।

समाज के विकास और बेहतरी के लिए अनेक व्यवस्थाएं विकसित की गईं । इन व्यवस्थाओं भूमिका का उल्लेख नीचे किया गया है ।

कानून प्रणाली की भूमिका – Role of law system

एक कानून प्रणाली एक समाज में लोगों के सुरक्षित और संवर्धन के लिए कानूनी सिद्धातों और मानदंडों का समुच्य है । इस प्रकार , यह लोगों के अधिकारों को मान्यता प्रदान करके और कर्तव्यों को निर्धारित करके महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है तथा यह इन अधिकारों और कर्तव्यों को लागू करने का तरीका भी उपलब्ध करती है । 

कानून क्या होता है ? अवधारणा, अर्थ, परिभाषा, और कानून का वर्गीकरण जानिए [ What is law? concept, meaning, definition]

इन अधिकारों और कर्तव्यों को लागू करने के लिए , कानुनी प्रणाली समाज की सामाजिक – आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों पर विचार करती है और स्वयं के लक्ष्य निर्धारित करती हैं और तत्पश्चात नियमों या सिद्धातों और कानूनों के एक समुच्चय का निर्माण करती है जो समाज को अपने चिहिनत लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होती है । 

न्यायाधीश – judge

न्यायाधीश जो न्याय के रक्षक होते हैं , वे लोकतांत्रिक व्यवस्था में कार्यपालिका और विधायिका दोनों से स्वतंत्र होते हैं इसलिए ,न्यायाधीश वे व्यक्ति हैं जो निर्भय होकर या पक्षपात के बिना न्याय प्रदान करते हैं वे अपने समक्ष प्रस्तुत मामले पर न्यायोचित , निष्पक्ष और युक्तिसंगत सिद्धांतों के अनुसार उचित जांच करने के पश्चात निर्णय देते हैं ।

अधिवक्ता – Advocate

अधिवक्ता न्याय प्रदान करने की प्रक्रिया में न्यायधीशों को सहयोग प्रदान करने वाले प्रमुख पदाधिकारी हैं । अधिवक्ता न्यायालय के अधिकारी हैं और अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के अंतर्गत एक स्वतंत्र व्यवसाय का भाग हैं । विवाद के दोनों पक्षों के वकीलों की विशेषज्ञ सहायता के बिना , न्यायाधीश के लिए मामले के विवादित तथ्यों के संबंध में सत्य का पता लगाना और न्याय की व्याख्या कर पाना कठिन हो जाता है ।

सिविल सोसाईटी – Civil society

लोक तंत्र में ” हम लोग ” अर्थात नागरिक और उनके विशिष्ट समूह सुशासन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं । वे विधायिका और सरकार का ध्यान आकर्षित करने के लिए दबाव समूहों का सृजन करते हैं । उदाहरण के लिए स्वतंत्रता संग्राम में दौरान महात्मा गांधी जी द्वारा अनेक आंदोलन चलाए गए , भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे जी द्वारा चलाया गया जन – आंदोलन । लोगों की प्रभावपूर्ण भागीदारी सरकार में पारदर्शिता , जवाबदेही और प्रतिक्रियात्मकता लाती है । 

आपने क्या सीखा 

• कानून मानव आचरण और व्यवहार को विनियमित करने के लिए न्याय और समान अवसर के सामान्य सिद्धांतों पर आधारित नियमों और विनियमों का एक व्यापक निकाय 

• व्यापक रूप से . कानून को अंतरराष्ट्रीय कानून तथा नगरपालिका ( राष्ट्रीय ) कानून में वर्गीकृत किया जा सकता है , जिसे आगे लोक और निजी कानूनों में विभाजित किया जा सकता हैं और तत्पश्चात अधिष्ठायी और प्रक्रियात्मक कानून में विभाजित किया जा सकता हैं

• कानून का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के लिए , उन स्रोतों का ज्ञान प्राप्त करना अंत्यत आवश्यक है जहां से कानून आता है । व्यापक रूप से कहा जाए तो परम्पराए , न्यायिक पूर्व – निर्णय और विधान वे स्रोत हैं जहां से कानून की उत्पत्ति होती है । 
• समय के साथ साथ समाज ने मानव आचरण और व्यवहार को विनियमित करने के लिए अनेक माध्यम विकसित कर लिए हैं जो समाज में मतभेदों और अराजकता को न्यूनतम कर सकते हैं । कानूनी प्रणाली , संविधान , बायालय , कानून के कार्मिक विशेष रूप से न्यायाधीश , एडवोकेट , सिविल सोसाइटी नागरिकों के अधिकारों और दायित्वों को लागू करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। इससे समाज में व्यापत अराजकता , मतभेद तथा भ्रष्टाचार का निवारण भी सम्भव होगा।

तो दोस्तों, कैसी लगी आपको हमारी यह पोस्ट ! इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें, Sharing Button पोस्ट के निचे है। इसके अलावे अगर बिच में कोई समस्या आती है तो Comment Box में पूछने में जरा सा भी संकोच न करें। अगर आप चाहें तो अपना सवाल हमारे ईमेल Personal Contact Form को भर पर भी भेज सकते हैं। हमें आपकी सहायता करके ख़ुशी होगी । इससे सम्बंधित और ढेर सारे पोस्ट हम आगे लिखते रहेगें । इसलिए हमारे ब्लॉग “Hindi Variousinfo” को अपने मोबाइल या कंप्यूटर में Bookmark (Ctrl + D) करना न भूलें तथा सभी पोस्ट अपने Email में पाने के लिए हमें अभी Subscribe करें। अगर ये पोस्ट आपको अच्छी लगी तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर करना न भूलें। आप इसे whatsapp , Facebook या Twitter जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर शेयर करके इसे और लोगों तक पहुचाने में हमारी मदद करें। धन्यवाद !

Sharing Is Caring:

Hello friends, I am Ashok Nayak, the Author & Founder of this website blog, I have completed my post-graduation (M.sc mathematics) in 2022 from Madhya Pradesh. I enjoy learning and teaching things related to new education and technology. I request you to keep supporting us like this and we will keep providing new information for you. #We Support DIGITAL INDIA.

Leave a Comment