उद्यमी या साहसी के कार्य (udyami ke karya)

उद्यमी के कार्य (udyami ke karya): उद्यमी को उपक्रम की स्थापना से लेकर वस्तुओं के विक्रय
तक विभिन्न प्रकार के कार्य करने होते है। किन्तु उद्यमी के कार्य वस्तुओं
के उत्पादन एवं वितरण तक सी सीमित नही है, उसे समाज एवं राष्ट्र के विकास
के सम्बन्धों मे भी अनेक कार्य करने होते है। 

वह समाज मे व्यवसायिक
क्रियाओं की पहल करता है, आर्थिक गतिशीलताओं को जन्म देता है तथा सामाजिक
रूपान्तरण की अनेक क्रियाओं को सम्पादित करता है। अतः उद्यमी के कार्य
व्यापक एवं चुनौतीपूर्ण होते है। 

उद्यमी के कई कार्य आर्थिक विकास के स्तर,
मानवीय एवं भौतिक संसाधनों के विकास, सामाजिक स्थिति, राष्ट्रीय
प्राथमिकताओं आदि पर भी निर्भर करते है।

इस लेख में हम आपको उद्यमी या साहसी के कार्य (udyami ke karya) समझायेंगे, In this article we will explain to you the work of an entrepreneur

उद्यमी या साहसी के कार्य (udyami ke karya)

1. पहल करना एवं जोखिम लेना
उद्यमी का प्रमुख कार्य आर्थिक तथा व्यावसायिक क्रियाओं के प्रारंभ करने मे
पहल करना है। वह व्यावसायिक जोखिम मे स्वयं की पूँजी एवं शक्ति विनियोजित
करता है। व्यावसायिक वातावरण मे व्याप्त अनिश्चितताओं का पूर्वानुमान करता
है। वह न्यूनतम एवं अत्यधिक जोखिम के स्थान पर सामान्य जोखिम लेना पसंद
करता है।

2. आर्थिक तथा व्यावसायिक अवसरों का ज्ञान करना
प्रत्येक समाज मे व्यक्तियों के विकास के लिए कई अवसर होते है। साहसी
आर्थिक तथा व्यावसायिक क्षेत्रों मे व्याप्त अवसरों की खोज करता है, इनके
संबंध मे आवश्यक ज्ञान प्राप्त करता है एवं अपने प्रयत्नों से इन अवसरों का
विदोहन करता है।

3. परियोजना नियोजन
व्यावसायिक उपक्रम की सफलता के लिए प्रभावी नियोजन आवश्यक होता है। इस सम्बन्ध मे उद्यमी निम्म निर्णय लेता है–
(अ) वस्तु की किस्म, डिजाइन, आकार, विशेष तत्व, हिस्से-पूर्जे, पैकिंग, रंग, ब्राण्ड, लेबल आदि।

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(ब) संयन्त्र एवं उत्पादन
संयन्त्र स्थल, संयंत्र अभिन्यास, प्लान्ट भवन, यंत्रोपकरण व सेवाएं, उत्पादन प्रणाली, तकनीक, उत्पादन का पैमाना आदि।
(स) लागत नियोजन
कच्चे माल- मजदूरी, प्रत्यक्ष खर्च, कारखाना व्यय, कार्यालय व्यय, बिक्री विज्ञापन आदि के आरम्भिक अनुमान।
(द) वित्तीय नियोजन
पूँजी की मात्रा, पूँजी स्त्रोत, पूँजी संरचना आदि।
(ई) संगठनात्मक नियोजन
संस्था का आकार, संगठन स्वरूप, व्यावयिक सहयोग, लक्ष्य आदि।
(स) विपणन नियोजन
मध्यस्थ, बाजार, मूल्य, विज्ञापन, विक्रय संवर्ध्दन आदि।

4. परियोजना का अनुमोदन करना
उद्यमी उपक्रम का पंजीयन करवाने, आवश्यक अनुमति, स्वीकृति एवं लाइसेंस
प्राप्त करने, विभिन्न सुविधाएं एवं प्रेरणाएं प्राप्त करने, बैंक एवं
वित्तीय संस्थाओं से वित्त प्राप्त करने आदि के लिए सम्बंधित संस्थाओं व
विभागों मे परियोजना प्रतिवेदन प्रस्तुत करता है। इस प्रकार,  विभिन्न
संस्थाओं को परियोजना प्रतिवेदन प्रस्तुत करने तथा उसे अनुमोदित करवाने कि
प्रक्रिया को ” परियोजना का विक्रय” भी कहा जाता है।

5. उपक्रम की स्थापना करना
इस अवस्था मे उद्यमी पूर्व निर्धारित परियोजनाओं के अनुसार उपक्रम स्थापित
करने हेतु विभिन्न कार्यवाहियाँ करता है। आधुनिक युग मे उपक्रमों की
स्थापना सामान्यतः औद्योगिक बस्तियों मे की जाती है। इन औधोगिक बस्तियों
एवं क्षेत्रों मे उधोग की सभी आधारभूत सुविधाएं विद्यमान होती है। अत:
साहसी निर्धारित स्थान पर संयन्त्र का निर्माण कार्य करवाता है तथा आवश्यक
साधनों व सुविधाओं की व्यवस्था करता है।

6. उपक्रम का प्रबंध करना
उपक्रम की स्थापना के पश्चात उद्यमी का कार्य उपक्रम का सफल संचालन तथा
प्रबंध करना होता है। यद्यपि कम्पनी उपक्रम का संचालन तथा प्रबंध पेशेवर
व्यक्तियों द्वारा किया जाता है, लेकिन लघु व्यावसायिक उपक्रमों का संचालन
तथा प्रबंध स्वयं उद्यमियों के द्वारा किया जाता है। उद्यमी को उपक्रम का
प्रबंध कुशलतापूर्वक करना चाहिए।

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7. नवप्रवर्तन तथा विभेदीकरण
उद्यमी का आधारभूत कार्य नवकरण करना है। उद्यमी समाज मे नवीनता को जन्म
देता है। वह शोध तथा अनुसंधान द्वारा तकनीकी और व्यावसायिक नवप्रवर्तन करता
है। नये उत्पादन विकसित कर, उत्पादन विभेदीकरण करता है जिससे उपक्रम का
विस्तार होता है। आर्थिक विकास की उच्च अवस्थाओं मे नवप्रवर्तन तथा
विभेदीकरण करना ही उद्यमी का मुख्य कार्य है।

8. उद्यम विकास कार्यक्रमों मे भाग लेना
उद्यमियों के विकास के लिए सरकारी विभाग तथा संस्थायें, बैंक तथा वित्तीय
संस्थाये, प्रबंध संस्थान आदि समय-समय पर विकास कार्यक्रम और विचार
गोष्ठियाँ आयोजित करते है। उद्यमी इन कार्यक्रमों मे भाग लेता है। इन
कार्यक्रमों मे भाग लेने से उद्यमी को व्यवसाय संबंधी परिवर्तनों तथा नयी
विचारधाराओं की जानकारी होती है। उद्यमी के ज्ञान मे वृद्धि होती है,
उपक्रम तथा नवप्रवर्तन संबंधी समस्याओं पर विस्तृत विचार-विमर्श होते है।

9. व्यवसाय के भविष्य को सुरक्षित बनाना
उद्यमी अपने उपक्रम का सफलतापूर्वक संचालन करते हुए इसके सुनहरे भविष्य का
निर्माण करता है। उद्यमी का वास्तविक कार्य उपक्रम के वर्तमान एवं भविष्य
दोनों को सुरक्षित बनाना है। अतः उद्यमी को प्रत्येक योजना का निर्माण
दीर्घकालीन प्ररिप्रेक्ष्य मे करना चाहिए।

10. सामाजिक विकास मे योगदान देना
उद्यमी समाज मे विकसित होता है अतः उसे समाज, विशेष रूप से स्थानीय समाज के
विकास के लिए कार्य करना चाहिए। उसे भौतिक तथा मानवीय साधनों का
मितव्ययितापूर्वक सर्वोत्तम प्रयोग करना चाहिए। स्थानीय लोगों को रोजगार
देना चाहिए। समाज के विभिन्न पक्षों के प्रति सामाजिक दायित्व की पूर्ति
करनी चाहिए एवं अन्य व्यक्तियों को उद्यमशील कार्यों को प्रारंभ करने की
प्रेरणा देनी चाहिए।

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