आरक्षण क्या है ? क्या reservation को समाप्त कर देना चाहिए ?

नमस्कार दोस्तों! आज के इस आर्टिकल में बात करेंगे कि आरक्षण क्या है ? आरक्षण क्यों ? किसी अन्य देश में तो जातिगत आधार पर आरक्षण नहीं है ? क्या आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए ? संपन्न पिछड़े वर्ग को भी आरक्षण का लाभ क्यों ? आरक्षण के विपक्ष – पक्ष में तर्क। क्या आरक्षण को समाप्त कर देना चाहिए ? आज हम इसी मुद्दे पर तर्क करेंगे और आवश्यक चीजों को समझेंगे। आइये शुरू करते हैं।

आरक्षण क्या है ? आरक्षण क्यों ? किसी अन्य देश में तो जातिगत आधार पर आरक्षण नहीं है ? क्या आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए ? संपन्न पिछड़े वर्ग को भी आरक्षण का लाभ क्यों ? आरक्षण के विपक्ष - पक्ष में तर्क। क्या आरक्षण को समाप्त कर देना चाहिए ?

आरक्षण क्या है ? Arakshan kya hai

आरक्षण का उद्देश्य वंचित , पीड़ित और पिछड़े वर्गों को सामाजिक न्याय प्रदान करना है । इसके अंतर्गत सामाजिक , शैक्षणिक और आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गों के लोगों को सार्वजनिक महत्व के क्षेत्रों में सामान्य प्रतिस्पर्धा से पृथक रखकर उनके लिए कुछ स्थान आरक्षित रखे जाते हैं ।

इन वर्गों के लोगों की सफलता तथा प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए सार्वजनिक प्रतिस्पर्धा के नियमों को शिथिल कर दिया जाता है ।

आरक्षण क्यों ? ( Why Reservation ? ) 

भारतीय संविधान में अल्पसंख्यक , पिछड़े वर्गों , अनुसूचित जातियों एवं अनुसूचित जनजातियों के आरक्षण की व्यवस्था की गई है । 

ऐसी व्यवस्था करना इसलिए आवश्यक था , क्योंकि समाज के कुछ वर्ग सामाजिक व्यवस्थाओं ( जन्म पर आधारित वर्ण – व्यवस्था के कारण ) के कारण ही मुख्य धारा से पृथक हो गए थे ।

किसी अन्य देश में तो जातिगत आधार पर आरक्षण नहीं क्यों नहीं है ?

कई बार यह तर्क दिया जाता है कि विश्व के किसी अन्य देश में आरक्षण विशेषकर जातिगत आधार पर आरक्षण जैसी कोई व्यवस्था नहीं है तो भारत में जातिगत आधार पर आरक्षण क्यों दिया गया है ?

इसके पीछे सबसे बड़ा कारण भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है । दरअसल , विश्व के किसी भी देश में वर्ण आधारित सामाजिक व्यवस्था का प्रचलन नहीं था ।

भारत में मनुस्मृति में ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य और शुद्र नामक चार वर्णों का उल्लेख मिलता है , साथ ही इनके कार्यों का विभाजन भी स्पष्ट रूप से प्राप्त होता है ।

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वस्तुतः भारत में इस सामाजिक व्यवस्था ने धार्मिक आधार प्राप्त कर लिया तथा प्राचीनकाल से लेकर वर्तमान तक कमोवेश यह व्यवस्था चली आ रही है । यही कारण है कि भारत में आरक्षण जैसी संकल्पना को अपनाया गया है ।

क्या आरक्षण आर्थिक आधार पर होना चाहिए ? Should reservation be on economic basis ? ) 

103वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा आर्थिक रूप से पिछले वर्गों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था कर दी गई , जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी ।

समाजशास्त्र के दृष्टिकोण से देखा जाए तो आर्थिक आधार पर आरक्षण जैसी कोई संकल्पना नहीं है । किन्तु भारत में गरीबी उन्मूलन के प्रयासों को बल देने तथा आर्थिक रूप से पिछड़े हुए वर्गों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए यह व्यवस्था की गई है ।

संपन्न पिछड़े वर्ग को भी आरक्षण का लाभ क्यों ? 

यह भी तर्क दिया जाता है कि जिन पिछड़े वर्गों विशेषकर SC और ST के व्यक्तियों ने आरक्षण का लाभ लेकर प्रतिष्ठित सार्वजनिक पट प्राप्त कर लिया है , उन्हें आरक्षण के दायरे से बाहर कर देना चाहिए । हालांकि अन्य पिछड़े वर्ग के प्रति क्रीमीलेयर के रूप में यह संकल्पना अपनाई गई है ।

किन्तु यह तर्क उचित नहीं है , क्योंकि कोई व्यक्ति आर्थिक रूप से संपन्न हो गया है तो उसका यह तात्पर्य नहीं है कि सामाजिक एंव जातिगत आधार पर उसके साथ भेदभाव नहीं होगा । आर्थिक संपन्नता सामाजिक समता का पैमाना नहीं है ।

इसका सबसे बड़ा उदाहरण राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के साथ 18 मार्च , 2018 को ओडिशा के पुरी मंदिर में हुआ भेदभाव है राष्ट्रपति के मंदिर में प्रवेश को लेकर मंदिर के पूजारियों ने कड़ी आपत्ति जताई थी , क्योंकि राष्ट्रपति दलित वर्ग से आते हैं ।

इससे पूर्व 25 जून , 2011 को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष पी.एल. पुनिया को ओडिशा के रानापुड़ा के एक प्रतिष्ठित मंदिर में प्रवेश करने से रोक दिया गया था ।

किन्तु जब प्रशासन की मदद से पीएल पुनिया ने मंदिर में प्रवेश कर पूजा की तो उनके जाने के बाद मंदिर को गंगाजल से धोकर शुद्ध ‘ किया । मंदिर के पूजारियों ने स्पष्ट कहा कि पी.एल. पुनिया समाज के एक वर्ग विशेष आते हैं जिनका मंदिर में प्रवेश वर्जित है और उनके प्रवेश से मंदिर अपवित्र हो गया ।

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जब प्रमुख संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों के साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया जा सकता है , तो दलित वर्ग से आने वाले सामान्य व्यक्ति की समाज में क्या स्थिति होगी , इसकी कल्पना की जा सकती है ।

आरक्षण के पक्ष में तर्क 

न्याय पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के विकास के लिए समाज के कमजोर और पिछड़े वर्गों को समाज की मुख्य धारा में शामिल करने के लिए लोकतंत्र में समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व आवश्यक विकास की प्रक्रिया में सभी वर्गों की बराबर भागीदारी आवश्यक है।

आरक्षण के विरोध में तर्क 

आदर्श सामाजिक न्याय के सिद्धांत के विरूद्ध , क्योंकि सामाजिक न्याय समता पर आधारित जबकि आरक्षण असमान आचरण के सिद्धांत पर आधारित है आरक्षण जातिवाद को प्रोत्साहन देता है , इससे समाज के विभिन्न वर्गों में परस्पर कटुता उत्पन्न होती है

आरक्षण गुणवत्ता के सिद्धांत के विरूद्ध 

सरकारी सेवाओं में आरक्षण से कर्मचारियों की कुशलता पर दुष्प्रभाव पड़ता है । एक वर्ग विशेष के व्यक्ति का प्रमोशन दूसरे वर्ग के व्यक्ति में निराशा उत्पन्न कर सकता है ।

क्या आरक्षण को समाप्त कर देना चाहिए ?

कई व्यक्तियों का तर्क होता है कि आरक्षण की व्यवस्था संविधान निर्माण के समय प्रारंभ में 10 वर्षों के लिए की गई थी , किन्तु बाद में इसे लगातार बढाया जाता रहा है । आरक्षण की अब कोई आवश्यकता नहीं है , इसे समाप्त कर देना चाहिए ।

किन्तु ऐसा नहीं है , राष्ट्रपति और अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष के साथ जातिगत आधार पर हुए भेदभाव का उदाहरण देख चुके हैं । ऐसे असंख्यक उदाहरण मौजूद है । दरअसल , भारत में जातिगत व्यवस्था का इतिहास लगभग 2000 वर्ष पुराना है ।

साथ ही जातिगत विभाजन की व्यवस्था को धार्मिक आधार भी प्राप्त है । ऐसे में 2000 वर्ष से चली आ रही विभेदकारी व्यवस्था का मात्र 50 से 70 वर्षों में समाप्त हो जाना असंभव है । आज भी उत्तरप्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में ऐसे उदाहरण मिलते हैं जहाँ एक संपन्न वर्ग के मोहल्ले से दलित वर्ग का दुल्हा अपनी बारात नहीं ले जा सकता है ।

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मंदिर के पूजारी आज भी एक विशिष्ट वर्ग से ही आते हैं । मृत पशुओं के शवों का निस्तारण करना ) गंदे पानी की नालियों की सफाई करना जैसे कई ऐसे कृत्य है जिन्हें आज भी समाज के एक वर्ग विशेष द्वारा ही किया जाना आवश्यक समझा जाता है ।

निष्कर्ष – आरक्षण

अतः जब तक सामाजिक व्यवस्था के बंधन शिथिल नहीं होते। तब तक आरक्षण का जारी रहना आवश्यक है । प्रत्येक केन्द्र सरकार भी इसी मत का समर्थन करती है । भारतीय संविधान की उद्देशिका में वर्णित सामाजिक न्याय तथा व्यक्ति की गरिमा और प्रतिष्ठा जैसी संकल्पना भी इसी भावना से प्रेरित है ।

आरक्षण को एक बुराई नहीं समझा जाना चाहिए । आरक्षण से समाज के कमजोर एवं पिछड़े वर्ग निश्चित रूप से आगे बढ़े हैं । वस्तुतः आरक्षण को और अधिक पारदर्शी तरीके से लागू किया जा सकता है ताकि इसके निर्धारित लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें ।

इसके अलावा अनारक्षित वर्गों को भी चाहिए कि वे आरक्षित वर्ग के प्रति द्वेष भाव को न अपनाए तथा अपने वर्ग के वंचित लोगों के कल्याण एवं उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए प्रयास करें ।

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