आउटपुट डिवाइस ( Output Device )
आउटपुट डिवाइस का प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को देखने अथवा प्राप्त करने के लिए किया जाता है । आउटपुट डिवाइस आउटपुट को हार्ड कॉपी अथवा सॉफ्ट कॉपी के रूप में प्रस्तुत करते है । सॉफ्ट कॉपी वह आउटपुट होता है जो यूज़र को कम्प्यूटर के मॉनीटर पर दिखाई देता है अथवा स्पीकर में सुनाई देता है जबकि हार्ड कॉपी वह आउटपुट होता है जो उपोयगकर्ता(user) को पेपर पर प्राप्त होता है
कुछ प्रमुख आउटपुट डिवाइसेज निम्न हैं जो आउटपुट को हार्ड कॉपी या साफ्ट कॉपी के रूप में प्रस्तुत करते हैं ।
1. मॉनीटर (Monitor)
मॉनीटर को विजुअल डिस्प्ले डिवाइस ( Visual Display Device VDU ) भी कहते है। मॉनीटर कम्प्यूटर से प्राप्त परिणाम को सॉफ्ट कॉपी के रूप में दिखाता है। मॉनीटर दो प्रकार के होते हैं।
मोनोक्रोम मॉनीटर डिस्प्ले और कलर डिस्प्ले मॉनीटर।
मोनोक्रोम डिस्प्ले मॉनीटर Text को डिस्प्ले करने के लिए एक ही रंग का प्रयोग करता है और कलर डिप्ले मॉनीटर एक समय में 256 रंगो को दिखा सकता है। मॉनीटर पर चित्र (image) छोटे – छोटे बिन्दुओं (Dots) से मिलकर बनता है। इन बिन्दुओं को पिक्सल (Pixels) के नाम से भी जाना जाता है ।
किसी चित्र की स्पष्टता (Clarity) तीन तथ्यों पर निर्भर करती है,
A.स्क्रीन का रिजोल्यूशन ( Resolution of Screen )
किसी मॉनीटर का रिजोल्यूशन उसके क्षैतिज (Horizontal) और ऊर्ध्वाधर (Vertical) पिक्सल्स की संख्या के गुणनफल के बराबर होता है। किसी मॉनीटर की रिजोल्यूशन जितनी अधिक होगी, उसके पिक्सल उतने ही नजदीक होंगे और चित्र उतना ही स्पष्ट होगा।
B.डॉट पिच ( Dot Pitch )
दो कलर्ड पिक्सल के विकर्णों के बीच की दूरी को डॉट पिच ( Dot Pitch ) कहते हैं । यदि किसी मॉनीटर की डॉट पिच कम – से – कम हो तो उसका रिजोल्यूशन अधिक होगा तथा उस मॉनीटर में चित्र काफी स्पष्ट होगा।
C. रिफरेश रेट (Refresh Rate)
एक सेकण्ड में कम्प्यूटर का मॉनीटर जितनी बार रिफरेश होता है, वह संख्या उसकी रिफरेश रेट कहलाती है। ज्यादा से ज्यादा रिफरेश करने पर स्क्रीन पर चित्र ज्यादा अच्छे और स्पष्ट दिखाई देते है ।
कुछ प्रमुख प्रयोग में आने वाले मॉनीटर निम्न हैं
A. कैथोड रे ट्यूब (Cathode Ray Tube – CRT)
यह एक आयताकार बॉक्स की तरह दिखने वाला मॉनीटर होता है । इसे डेस्कटॉप कम्प्यूटर के साथ आउटपुट देखने के लिए प्रयोग करते हैं । यह आकार में बड़ा तथा भारी होता है। सीआरटी इसकी स्क्रीन में पीछे की तरफ फॉस्फोरस की एक परत लगाई जाती है। इसमें एक इलेक्ट्रॉन गन (Electron gun) होती है । CRT में एनालॉग डेटा को इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा मॉनीटर की स्क्रीन पर भेजा जाता है । इलेक्ट्रॉन गन एनालॉग डेटा को इलेक्ट्रॉन्स में परिवर्तित करता है तथा इलेक्ट्रॉन ऊर्ध्वाधर तथा क्षैतिज प्लेट्स के बीच में होते हुए फॉस्फोरस स्क्रीन पर टकराती है । इलेक्ट्रॉन स्क्रीन पर जिस जगह टकराती है उस जगह का फॉस्फोरस चमकने लगता है और चित्र दिखाई देने लगता है ।
B. एलसीडी ( Liquid Crystal Display – LCD )
LCD एक प्रकार की अधिक प्रयोग में आने वाली आउटपुट डिवाइस है । यह CRT की अपेक्षा काफी हल्का किन्तु महँगा आउटपुट डिवाइस है । इसका प्रयोग लैपटॉप में , नोटबुक में , पर्सनल कम्प्यूटर में , डिजिटल घड़ियों आदि में किया जाता एलसीडी है । LCD में दो प्लेट होती हैं । इन प्लेटों के बीच में एक विशेष प्रकार का द्रव (Liquid) भरा जाता है । जब प्लेट के पीछे से प्रकाश निकलता है तो प्लेट्स के अन्दर द्रव एलाइन (Align) होकर चमकते हैं , जिससे चित्र दिखाई देने लगता है ।
C. एलईडी ( Liquid / Light Emitted Diode )
LED एक प्रकार की इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस है । यह एक आउटपुट डिवाइस है जिसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को देखने के लिए करते हैं । यह आजकल घरों में टेलीविजन की तरह प्रयोग किया जाता है । इसके अन्दर छोटे – छोटे LEDS (Light Emitted Diodes ) लगे होते हैं । एलईडी मॉनीटर जब विद्युत धारा इन LEDs से गुजरती है तो ये LEDs चमकने लगते हैं और चित्र LED के स्क्रीन पर दिखाई देने लगता है । LEDs मुख्य रूप से लाल प्रकाश उत्सर्जित करते हैं किन्तु आजकल LEDs लाल , हरा और नीला ( Red , Green and Blue ( RGB ) ) प्रकाश भी उत्पन्न करते हैं । यह सफेद प्रकाश भी उत्पन्न कर सकते हैं । इन सभी रंगो के संयोग से विभिन्न रंग के चित्र (image) LED में दिखाई देते हैं ।
D. 3D मॉनीटर
3D मॉनीटर एक output डिवाइस है, जिसका प्रयोग आउटपुट को तीन डायमेन्शन ( Three Dimension – 3D ) में देखने के लिए करते हैं । यह दो डायमेन्शन ( Two Dimension – 2D ) मॉनीटर की अपेक्षा ज्यादा स्पष्ट और साफ चित्र दिखाता है । 3D मॉनीटर यदि चित्र को 3D मॉनीटर में देखते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है कि यह चित्र बिल्कुल वास्तविक चित्र हैं।
E. TFT ( Thin – Film – Transistor )
TFT और एक्टिव मैट्रिक्स LCD ( AMLCD ) एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है । TFT में एक पिक्सल को कण्ट्रोल करने के लिए एक से चार ट्रांजिस्टर लगे होते हैं । ये ट्रांजिस्टर पैसिव मैट्रिक्स की अपेक्षा स्क्रीन को काफी तेज , चमकीला , ज्यादा कलरफुल बनाते हैं । इस आउटपुट डिवाइस की मुख्य बात ये हैं कि हम इसमें बने चित्र को विभिन्न कोणों ( Angles ) से भी देख सकते हैं । जबकि अन्य मॉनीटर में यदि विभिन्न कोणों ( Angles ) से चित्र देखने पर चित्र स्पष्ट दिखाई नहीं देते हैं । TFT अन्य मॉनीटर्स की अपेक्षा महँगा , लेकिन काफी अच्छी क्वालिटी का चित्र डिस्प्ले ( Display ) करने वाला आउटपुट डिवाइस है ।
2. प्रिण्टर्स ( Printers )
प्रिण्टर्स एक प्रकार का आउटपुट डिवाइस है । इसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त डेटा और सूचना को किसी कागज पर प्रिण्ट करने के लिए करते हैं । यह ब्लैक और ह्वाइट ( Black and White ) के साथ – साथ कलर डॉक्यूमेण्ट को भी प्रिण्ट कर सकता है । किसी भी प्रिण्टर की क्वालिटी उसकी प्रिण्टिग की क्वालिटी पर निर्भर करती है अर्थात् जितनी अच्छी प्रिण्टिग क्वालिटी होगी , प्रिण्टर उतनी ही अच्छा माना जाएगा । किसी प्रिण्टर की गति कैरेक्टर प्रति सेकण्ड ( Character Per Second CPS ) में , लाइन प्रति मिनट ( Line Per Minute – LPM ) में और पेजेज प्रति मिनट ( Pages Per Minute – PPM ) में मापी जाती है । किसी प्रिण्टर की क्वालिटी डॉट्स प्रति इंच ( Dots Per Inch – DPI ) में मापी जाती है । अर्थात् पेपर पर एक इंच में जितने ज्यादा – से – ज्यादा बिन्दु होंगे , प्रिण्टिग उतनी ही अच्छी होगी । प्रिण्टर को दो भागों में बाँटा गया है ।
( i )इम्पैक्ट प्रिण्टर ( Impact Printer )
( ii ) नॉन – इम्पैक्ट प्रिण्टर ( Non – Impact Printer )
( i ) इम्पैक्ट प्रिण्टर ( Impact Printer )
यह प्रिण्टर टाइपराइटर की तरह कार्य करता है । इसमें अक्षर छापने के लिए छोटे – छोटे पिन या हैमर्स होते हैं। इन पिनों पर अक्षर बने होते हैं । ये पिन स्याही से लगे हुए रिबन ( Ribbon ) और उसके बाद पेपर पर प्रहार करते है , जिससे अक्षर पेपर पर छप जाते हैं । इम्पैक्ट प्रिण्टर एक बार में एक कैरेक्टर या एक लाइन प्रिण्ट कर सकता है । इस प्रकार के प्रिण्टर ज्यादा अच्छी क्वालिटी की प्रिण्टिग नहीं करते हैं।
ये Printer दूसरे प्रिंण्टर्स की तुलना में सस्ते होते हैं और प्रिण्टिग के दौरान आवाज अधिक करते हैं , इसलिए इनका प्रयोग कम होता है । इम्पैक्ट प्रिण्टर चार प्रकार के होते हैं
( a ) डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर्स ( Dot Matrix Printers )
डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर में पिनो की एक पंक्ति होती है जो कागज के ऊपरी सिरे पर रिबन पर प्रहार करते हैं । जब पिन रिबन पर प्रहार करते हैं तो डॉट्स ( Dots ) का एक समूह एक मैट्रिक के रूप में कागज पर पड़ता है , जिससे अक्षर या चित्र छप जाते हैं । इस प्रकार के प्रिण्टर को पिन प्रिण्टर भी कहते हैं । डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर एक बार में एक डॉट्स मैट्रिक्स प्रिण्टर्स ही कैरेक्टर प्रिण्ट करता है । यह अक्षर या चित्र को डॉट्स के पैटर्न ( Pattern ) में प्रिण्ट करते हैं अर्थात कोई केरेक्टर या चित्र बहुत सारे डॉट्स को मिलाकर प्रिण्ट किए जाते हैं । ये काफी धीमी गति से प्रिण्ट करते हैं । तथा ज्यादा आवाज करते हैं । जिससे इसे कम्प्यूटर के साथ कम प्रयोग करते हैं ।
( b ) डेजी व्हील प्रिण्टर्स ( Daisy Wheel Printers )
डेजी व्हील प्रिण्टर्स में कैरेक्टर की छपाई टाइपराइटर की तरह होती है । यह डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर की अपेक्षा अधिक रिजोल्यूशन की प्रिण्टिग करता है तथा इसका आउटपुट , डॉट मैट्रिक्स प्रिण्टर की अपेक्षा ज्यादा विश्वसनीय ( Reliable ) होता है ।
( c ) लाइन प्रिण्टर्स ( Line Printers )
इस प्रकार के प्रिण्टर के द्वारा एक बार में पूरी एक लाइन प्रिण्ट होती है। एक प्रकार के इम्पैक्ट प्रिण्टर होते हैं जो कागज पर दाब डालकर एक बार में पूरी एक लाइन प्रिण्ट करते हैं , इसीलिए इन्हें लाइन प्रिण्टर कहते हैं । इनकी प्रिण्टिग की क्वालिटी ज्यादा अच्छी नहीं होती है , लेकिन प्रिण्टिग की गति काफी तेज होती है ।
( d ) ड्रम प्रिण्टर्स ( Drum Printers )
ये एक प्रकार के लाइन प्रिण्टर होते हैं , जिसमें एक बेलनाकार ड्रम ( Cylindrical Drum ) लगातार घूमता रहता है । इस ड्रम में अक्षर उभरे हुए होते हैं । ड्रम और कागज के बीच में एक स्याही से लगी रिबन होती हैं । जिस स्थान पर अक्षर छापना होता है , उस स्थान पर हैमर कागज के साथ साथ रिबन पर प्रहार करता है । रिबन पर प्रहार होने से रिबन ड्रम में लगे अक्षर पर दबाव डालता है जिससे अक्षर कागज पर छप जाता है ।
स्पीकर ( Speaker )
यह एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है जो कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को आवाज के रूप में सुनाती में सुनाती है । यह कम्प्यूटर से डेटा विद्युत धारा ( Electric Current ) के रूप में प्राप्त करता है । इसे सी पी यू ( CPU ) से जोड़ने के स्पीकर लिए साउण्ड कार्ड की जरूरत पड़ती है । यही साउण्ड कार्ड साउण्ड उत्पन्न करता है । इसका प्रयोग गाने सुनने में , संवाद आदि में करते हैं । कम्प्यूटर स्पीकर वह स्पीकर होता है जो कम्प्यूटर में आन्तरिक या बाह्य रूप से लगा होता है ।
( ii ) नॉन – इम्पैक्ट प्रिण्टर ( Non-Impact Printer )
ये प्रिण्टर कागज पर प्रहार नहीं करतें , बल्कि अक्षर या चित्र प्रिण्ट करने के लिए स्याही की फुहार कागज पर छोड़ते हैं । नॉन – इम्पैक्ट प्रिण्टर प्रिण्टिग में इलेक्ट्रोस्टैटिक केमिकल और इंकजेट तकनीकी का प्रयोग करते हैं । इसके द्वारा उच्च क्वालिटी के ग्राफिक्स और अच्छी किस्म के अक्षरों को छापा जाता है । ये प्रिण्टर इम्पैक्ट की तुलना में महँगे होते हैं , किन्तु इनकी छपाई इम्पैक्ट प्रिण्टर की अपेक्षा ज्यादा अच्छी होती है । नॉन – इम्पैक्ट प्रिण्टर निम्न प्रकार के होते हैं
( a ) इंकजेट प्रिण्टर ( Inkjet Printer )
इंकजेट प्रिण्टर में कागज पर स्याही की फुहार द्वारा छोटे छोटे बिन्दु डालकर छपाई की जाती है , इनकी छपाई की गति 1 से 4 पेज प्रति मिनट होती है । इनकी छपाई की गुणवत्ता भी अच्छी होती है । ये विभिन्न प्रकार के रंगो द्वारा अक्षर और चित्र इंकजेट प्रिन्ट ड्रम प्रिन्टर छाप सकते हैं । इन प्रिण्टरों में छपाई के लिए A4 आकार के पेपर का प्रयोग करते हैं । इंकजेट प्रिण्टर में रीबन के स्थान पर गीली स्याही से भरा हुआ कार्टिज ( Cartridge ) लगाया जाता है । यह कार्टिज एक जोड़े के रूप में होता है । एक में काली ( Black ) स्याही भरी जाती है तथा दूसरे में मैजेण्टा ( Magenta ) , पीली ( Yellow ) और सियान रंग ( Green – Bluish ) की स्याही भरी जाती है । कार्टिज ही इस प्रिण्टर का हेड ( Head ) होता है जो कागज पर स्याही की फुहार छोड़कर छपाई करता है । इंकजेट प्रिण्टर को प्रायः समानान्तर पोर्ट ( Parallel Port ) के माध्यम से कम्प्यूटर से जोड़ा जाता है । वैसे आजकल USB पोर्ट वाले इंकजेट प्रिण्टर प्रयोग किए जाते हैं । इसमें रोज एक या दो पेज प्रिण्ट करना चाहिए , जिससे इसका कार्टिज गीला रहता है और बेकार नहीं होता है ।
( b ) थर्मल प्रिण्टर ( Thermal Printer )
यह पेपर पर अक्षर छापने के लिए ऊष्मा का प्रयोग करता है । ऊष्मा के द्वारा स्याही को पिघलाकर कागज पर छोड़ते हैं , जिससे अक्षर या चित्र छपते हैं । फैक्स मशीन भी एक प्रकार का थर्मल प्रिण्टर है । यह अन्य प्रिन्टर की अपेक्षा धीमा और महँगा होता है और इसमें प्रयोग करने के लिए एक विशेष प्रकार के पेपर की जरूरत पड़ती है जो केमिकली ट्रीटेड पेपर ( Chemically Treated Paper ) होता है ।
( c ) लेजर प्रिण्टर ( Laser Printer )
लेजर प्रिण्टर के द्वारा उच्च गुणवत्ता ( Quality ) के अक्षर और चित्र छापे जाते है । ये विभिन्न विभिन्न स्टाइल के अक्षर को छाप सकते हैं । इसकी छपाई की विधि फोटोकॉपी लेजर प्रिण्टर मशीन से मिलती – जुलती है । इसमें कम्प्यूटर से भेजा गया डेटा लेजर किरणों की सहायता से इसके ड्रम पर चार्ज उत्पन्न कर देता है । इसमें एक टोनर होता है जो चार्ज के कारण ड्रम पर चिपक जाता है । जब यह ड्रम घूमता है और इसके नीचे से कागज निकलता है , तो टोनर कागज पर अक्षरों या चित्रों का निर्माण करता है । ये प्रिण्टर अपनी क्षमता के अनुसार , 1 इंच में 300 से 1200 बिन्दुओं की सघनता ( Density ) द्वारा छपाई कर सकते हैं । ये एक मिनट में 5 24 पेज तक छाप सकते हैं । ये इम्पैक्ट प्रिण्टर से ज्यादा महँगे होते हैं ।
( d ) इलेक्ट्रो मैग्नेटिक प्रिण्टर ( Electro Magnetic Printer )
इलेक्ट्रो मैग्नेटिक प्रिण्टर या इलेक्ट्रो फोटोग्राफिक प्रिण्टर बहुत तेज गति से छपाई करते हैं । ये प्रिण्टर्स , पेज प्रिण्टर ( जो एक बार में पूरा पेज प्रिण्ट करते हों ) की श्रेणी में आते हैं । ये प्रिण्टर किसी डॉक्यूमेण्ट में एक मिनट के अन्दर 20,000 लाइनें प्रिण्ट कर सकते हैं अर्थात् 250 पेज प्रति मिनट की दर से छपाई कर सकते हैं । इसका विकास पेपर कॉपियर तकनीक के माध्यम से किया गया था ।
( e ) इलेक्ट्रो स्टैटिक प्रिण्टर ( Electro Static Printer
इस प्रिण्टर का प्रयोग सामान्यतः बड़े फॉर्मेट को प्रिण्टिग के लिए किया जाता है । इसका प्रयोग ज्यादातर बड़े प्रिटिंग प्रेस में किया जाता है , क्योंकि इनकी गति काफी तेज होती है तथा प्रिण्ट करने में खर्च कम आता है ।
3. प्लॉटर ( Plotter )
प्लॉटर एक आउटपुट डिवाइस है , जिसका use बड़ी ड्राइंग या चित्र जैसे कि कंन्स्ट्रक्शन प्लान्स ( Construction Plans ) , मैकेनिकल वस्तुओं की ब्लूप्रिण्ट , AUTOCAD , CAD / CAM आदि के लिए करते हैं । इसमें ड्रॉइंग बनाने के लिए पेन , पेन्सिल , मार्कर आदि राइटिंग टूल का प्रयोग होता है । यह प्रिण्टर की तरह होता है । इसमें एक समतल चौकोर सतह पर कागज लगाया जाता है । इस सतह से कुछ ऊपर एक ऐसी छड़ ( Rod ) होती है , जो कागज के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चल सकती है । इस छड़ पर अलग – अलग रंगों के दो या तीन पेन लगे होते हैं , जो छड़ पर आगे – पीछे सरक सकते हैं । इस प्रकार छड़ और पेनों की सम्मिलित हलचल से समतल सतह के किसी भी भाग में कागज पर चिन्ह या चित्र बनाया जा सकता है । इनके द्वारा छपाई अच्छी होती है , परन्तु ये बहुत धीमे होते हैं तथा मूल्य भी अपेक्षाकृत अधिक होता है । लेजर प्रिण्टरों के आ जाने के बाद इनका प्रयोग लगभग समाप्त हो गया है । प्लॉटर दो प्रकार के होते है ।
( i ) फ्लैट बैड प्लॉटर ( Flat Bed Plotter )
ये प्लॉटर साइज में छोटे होते हैं तथा इसे आसानी से मेज पर रखकर प्रिण्टिग की जा सकती है । इसमें जो पेपर प्रयोग होता है , उनका आकार ( Size ) सीमित होता है ।
( ii ) ड्रम प्लॉटर ( Drum Plotter )
ये साइज में काफी बड़े होते हैं । तथा इसमें प्रयुक्त पेपर की लम्बाई असीमित होती है । इसमें पेपर का एक रोल ( Roll ) प्रयोग किया जाता है । स्पीकर ( Speaker ) यह एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है जो कम्प्यूटर से प्राप्त आउटपुट को आवाज के रूप में सुनाती है । यह कम्प्यूटर से डेटा विद्युत धारा ( Electric Current ) के रूप में प्राप्त करता है । इसे सी पी यू ( CPU ) से जोड़ने के स्पीकर लिए साउण्ड कार्ड की जरूरत पड़ती है । यही साउण्ड कार्ड साउण्ड उत्पन्न करता है । इसका प्रयोग गाने सुनने में , संवाद आदि में करते हैं । कम्प्यूटर स्पीकर वह स्पीकर होता है जो कम्प्यूटर में आन्तरिक या बाह्य रूप से लगा होता है ।
4. हेड फोन्स ( Head Phones )
हेड फोन्स एक प्रकार की आउटपुट डिवाइस है । जिसमें लाउड स्पीकर का एक जोड़ा होता है तथा इसकी बनावट ऐसी होती है कि ये सिर पर बेल्ट की तरह पहना जा सकता है तथा दोनों स्पीकर मनुष्य के कान के ऊपर आ जाते हैं । हेड फोन इसीलिए इसकी आवाज सिर्फ इसे पहनने वाला व्यक्ति ही सुन सकता है । किसी – किसी हैड फोन के साथ माइक भी लगा होता है , जिससे सुनने के साथ – साथ बात भी की जा सकती है ।
इस उपकरण का प्रयोग प्रायः टेलीफोन ऑपरेटरों , कॉल सेण्टर ऑपरेटरों , कमेण्टेटरों आदि द्वारा किया जाता है । इसे स्टेरियों फोन्स , हेड सेट या कैन्स के नाम से भी जाना जाता है ।
5. प्रोजेक्टर ( Projector )
यह एक प्रकार का आउटपुट डिवाइस है , जिसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्राप्त सूचना या डेटा को एक बड़ी स्क्रीन पर देखने के लिए करते हैं । इसकी सहायता से एक समय में बहुत सारे लोग एक समूह में बैठकर कोई परिणाम देख सकते हैं । इसका प्रयोग क्लास रूम ट्रेनिंग या एक बड़े कॉन्फ्रेन्स हॉल जिसमें ज्यादा संख्या में दर्शक हों , जैसी जगहों पर किया जाता है । इसके द्वारा छोटे चित्रों को बड़ा करके सरलतापूर्वक देखा जा सकता है । यह एक प्रकार का अस्थायी आउटपुट डिवाइस है ।
इनपुट / आउटपुट पोर्ट ( Input/Output-I/O Port )
पेरिफेरल डिवाइसेज को कम्प्यूटर से जोड़ने के लिए जिस माध्यम का प्रयोग होता है , उन्हें इनपुट / आउटपुट पोर्ट ( Input / Output Port ) कहते हैं । यह एक बाह्य ( External ) इण्टरफेस होता है , जिसमें इनपुट / आउटपुट डिवाइस ; जैसे प्रिण्टर , मोडम ( Modem ) और जॉयस्टिक आदि को कम्प्यूटर से जोड़ते हैं । इनपुट / आउटपुट पोर्ट निम्न प्रकार के होते हैं-
पैरेलल पोर्ट ( Parallel Port )
पैरेलल पोर्ट एक माध्यम होता है , जिसमें आठ या उससे अधिक तारों ( Wires ) को जोड़ सकते हैं । इसमें आठों तारों से एक साथ डेटा ट्रान्सफर होता है । इसी वजह से इसकी डेटा स्थानान्तरण ( Transmission ) की स्पीड काफी तेज होती है । इसका प्रयोग कम्प्यूटर से प्रिण्टर को जोड़ने के लिए किया जाता है
सीरियल पोर्ट ( Serial Port )
सीरियल पोर्ट के द्वारा एक बार में एक ही बिट डेटा भेजा जा सकता है । इसके द्वारा काफी धीमी गति से डेटा स्थानान्तरण होता है । इसका प्रयोग मोडम ( Modem ) , प्लॉटर , बार कोड रीडर आदि को कम्प्यूटर से जोड़ने के लिए करते हैं । इस पोर्ट को कम्यूनिकेशन पोर्ट अथवा कॉम ( COM ) भी कहा जाता है ।
यूनिवर्सल सीरियल बस ( Universal Serial Bus – USB )
यह सर्वाधिक प्रयोग में आने वाला बाह्य पोर्ट है जो लगभग सभी कम्प्यूटरों में लगा होता है । सामान्यतः दो से चार USB पोर्ट कम्प्यूटर में लगे होते हैं । USB में प्लग ( Plug ) और प्ले ( Play ) फीचर होते हैं जो किसी डिवाइस को कम्प्यूटर से जोड़ने तथा चलाने में सहायक होते हैं । एक सिंगल USB पोर्ट में 127 डिवाइसेज को जोड़ा ( Connect ) जा सकता है ।
फायर वायर ( Fire Wire )
इसका प्रयोग ऑडियों , वीडियो या मल्टीमीडिया डिवाइसेज़ जैसे की वीडियो कैमरा आदि को जोड़ने के लिए किया जाता है । यह एक महँगी तकनीक है , जिसका प्रयोग बड़ी मात्रा में डेटा ट्रान्सफर करने के लिए करते हैं । हार्ड डिस्क ड्राइव और नई DVD ड्राइव को फायर वायर के द्वारा कम्प्यूटर से कनेक्ट किया जाता है । इसके द्वारा 400 MB / सेकण्ड की दर से डेटा स्थानान्तरित किया जा सकता है ।
इन्हें भी जानें
मॉडम ( Modem ) का प्रयोग डेटा को प्राप्त ( Receive ) तथा प्रेषित करने में किया जाता है ।
कम्प्यूटर (computer) को चलाए जाने के लिए आवश्यक युक्तियों को स्टैण्डर्ड युक्तियाँ कहा जाता है , जैसे – कीबोर्ड , फ्लॉपी ड्राइव , हार्ड डिस्क आदि ।
मॉनीटर की रिफ्रेश रेट हर्ट्ज में नापी जाती है ।
मजबूत चुम्बकीय क्षेत्र बनने के कारण मॉनीटर की स्क्रीन काली या रंगहीन हो जाती है जो एक वायरस की तरह कार्य करता है । अतः मॉनीटर का प्रयोग करते समय सभी चुम्बकीय उपकरण हटा देने चाहिए।
ग्राफिक डिस्प्ले यूनिट मॉनीटर अल्फा न्यूमेरिक अक्षरो के साथ – साथ ग्राफ्स एवं डायग्राम्स को भी प्रदर्शित कर सकते हैं ।
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